विकलांग शल्यचिकित्सा
विकलांग शल्यचिकित्सा (orthopedic surgery या orthopedics या orthopaedics), शल्यकर्म (Surgery) की वह शाखा है जो उन क्षतिग्रस्त या रुग्ण हड्डियों, जोड़ों, पेशियों, तंत्रिकाओं और ऊतकों से संबंधित है, जिनमें विरूपता या क्रिया में शिथिलता उत्पन्न होना संभव हो।
अनुप्रयोग
इसका अनुप्रयोग बच्चों तक ही सीमित नहीं है। जिन प्रधान व्याधिप्ररूपों का उपचार विकलांग शल्यकर्म द्वारा होता है, वे हैं :
(1) जोड़ों की व्याधियाँ : ये व्याधियाँ जीवाणविक संक्रमण (bacterial infection), या क्षति, जैसे अस्थिभंग, खतरनाक मोच, या बारंबार होनेवाली क्षति के कारण होती हैं।
(2) हड्डियों की व्याधि संक्रमण या क्षति के कारण हो सकती है। हड्डी का विकास अंत:स्त्रावी (endocrine) स्राव की अव्यवस्था से प्रभावित हो सकता है, रिकेटरोधी (antirachitic) विटामिनों की कमी और अर्बुद (tumour) से भी प्रभावित हो सकता है।
(3) रोग या त्वचा, पेशी जोड़ों के निकट कंडरा (tendon) आदि भृदु ऊतकों का आकुंचन (contraction) विरूपता उत्पन्न कर सकता है। क्षति के कारण हुए आकुंचन को घाव के विसंक्रमण (sterilisation) द्वारा रोका जा सकता है और यदि आवश्यक हो तो परवर्ती समुचित त्वचा, या ऊतककलमन (tissue grafting), भी किया जा सकता है। क्रमिक तनाव द्वारा कुछ प्रकार के आंकुचनों को ठीक किया जा सकता है। संक्रांत या क्षतिग्रस्त स्नेहपुटी (bursae) और जोड़ों के ऊपर स्थित स्नेहक कोश अक्सर पैर की सूजन, जान्वस्थि की सूजन जैसी विरूपता उत्पन्न करने के कारण होते हैं।
(4) तंत्रिकातंत्र के रोग के अंतर्गत इस तंत्र में असूतिकालीन क्षति (obstetric injury), तंत्रिकापथों का अपकर्षण प्रमस्तिष्कीय क्षत (cerebral lesions) और बालपक्षाघात (infuntile paralysis) आते हैं। बालपक्षाघात अत्यंत संक्रामक महामारी है, जिसमें रुग्ण तंत्रिकाओं द्वारा निर्मित पेशियाँ पक्षाघातग्रस्त होकर अपुष्ट संक्रामक महामारी है, जिसमें रुग्ण तंत्रिकाओं द्वारा निर्मित पेशियाँ पक्षाघातग्रस्त होकर अपुष्ट (atrophied) रह जाती हैं।
(5) अधिकांश विरूपताएँ स्थैतिक हैं और गलत अंगविन्यास से उपजती हैं। सपाट पाँव (flat foot), गोल कंधे (round shoulders) और खोखली पीठ (hollow back) आदि सर्वसामान्य भ्रूणविकास के कारण होते हैं।
(6) जन्मजात रोग असामान्य भ्रूणविकास के कारण होते हैं और इनके कारण भली भाँति स्पष्ट नहीं हैं। जन्मजात गदापद (club foot) सपाट पाँव, नितंब का विस्थापन (dislocation of hip), मेरुदंड के रोग अन्य सामान्य राग हैं जिनका उपचार विकलांग शल्यकर्म के अंतर्गत होता है।
विकलांग शल्यकर्म का दूसरा बहुत ही मुख्य योगदान अपंगों के उपचार में है। यह अधिकतर तीव्र पोलियो (poliomyelitis), या बालपक्षाघात के कारण, या प्रमस्तिष्कीय फालिज के साथ जन्मे हुए बच्चों को, होता है। ऐसी स्थितियों में हाथ के उपयोग या संचलन (locomotion) के लिए आवश्यक पेशियों में से कुछ का विकास ही नहीं हुआ रहता, या वे पक्षाघातग्रस्त, होती हैं। इन पक्षाघातग्रस्त पेशियों के स्थान पर काम करने के लिए शल्यकर्म द्वारा पेशियों का स्थानांतरण और साथ ही भौतिक चिकित्सा (physiotheraphy) तथा शिक्षा का सहयोग अपंगता के प्रभाव को काफी हद तक दूर करन में सहायक होता है।
हड्डियों और जोड़ों के तपेदिक के रोग के उपचार में समुचित प्रतिजैविकी (antibiotics) के प्रयोग और रुग्ण ऊतक के अपच्छेदन (excision) के तकनीक से क्रांति हो गई है। अब अंग सामान्य अवस्था में कुछ ही महीनों में लौट आते हैं, जबकि पहले इसमें वर्षों लग जाते थे।
अब मेरुदंडनाल (spinal canal) रहस्य नहीं रह गया। अब बिना व्यग्रता के शल्यकर्मक मेरुदंड पर दबाव डालनेवाले तपेदिकी मवाद के मलबे को हटा सकता है जो अन्यथा निचले सिरे का पक्षाघात उत्पन्न कर सकता है; या मेरुदंड का अर्बुद हटा सकता है, जो दबाव के लखण या पैरों की फालिज (paraplegia) उत्पन्न कर सकता है। अस्थिभंग के अनेक रोगी विरूपता (कुसंयोजन) लेकर अच्छे होते हैं और अनेक अच्छे होते हैं और अनेक अच्छे होते ही नहीं (असंयोजन)। विभिन्न शल्यकर्मी प्रक्रियाओं द्वारा भग्न खंडों को सीध में लाया जा सकता है और सुई, तार या धात्विक स्टेपलों (staples) द्वारा उन्हें समुचित स्थिति में रखकर स्वस्थ किया जा सकता है।
हड्डियों और जोड़ों का संक्रामण प्रतिजैविकी से प्रभावित होता है। यह संतोष की बात है, परंतु जब संक्रमण चिरकालिक हो जाता है, तब प्रतिजैविकी ऊतकों तक नहीं पहुँचते। फलत: ऐसे अनुक्रमणीय (irreversible) परिर्वन होते हैं जिनसे जोड़ों की गतिविधि सीमित हो जाती है और विरूपता उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में ऐसे जोड़ को जो गतिविधि में दर्द उत्पन्न करता है, किसी पूर्वनिर्धारित अनुकूलतम कोण पर स्थिर किया जा सकता है (arthrodesis) या यदि जोड़ का संचलन अभीष्ट हो तो संधिघटना (arthroplasty) की जा सकती है।
चिकित्सा की अन्य शाखाओं में निरोधक का पहलू महत्व का है। अब विकलांग शल्यकर्मक भी विरूपता और कंकाली (skeleter) विकृतक्रिया की रोकथाम के प्रति सचेत और सचेष्ट हैं। रोग के निरोधन के लिए सही अंगविन्यास के महत्व पर जोर देने का प्रयास अनवरत रूप से चल रहा है। यह भी पाया गया है कि वृद्धि में कुछ परिवर्तन विभिन्न अधिभौतिक (epiphysical) केंद्रों पर क्षति के कारण होते हैं और इन केंद्रों को सक्रिय अव्यवस्था के समय में ही सुरक्षित किया जा सकता है। इन प्रयत्नों और इन वृद्धिकेंद्रों को सुरक्षित करने की विधि के कारण निरोधक विकलांगविज्ञान बड़ा महत्वशाली हो गया है।
बाहरी कड़ियाँ
- Drawings of a knee osteotomy
- Washington University Orthopedics
- Oxford Clinic for Specialist Surgery - Orthopaedic Hospital
- Yale Orthopaedics
- The History of Orthopaedics
- Wheeless' Textbook of Orthopaedics
- The International Society of Orthopaedic Surgery and Traumatology
- American Academy of Orthopaedic Surgeons
- American Orthopaedic Society for Sports Medicine
- Pediatric Orthopaedics
- AO Surgery Reference
- The Journal of Bone and Joint Surgery
- Orthopedics News
- Orthopedic Surgery Articles written by Paul Baxt, MD
- The Institute for Arthroscopy and Sports Medicine - Jeffrey Halbrecht, MD