वासुदेव महादेव अभ्यंकर
वासुदेव महादेव अभ्यंकर (जन्म १८६१, मृत्यु १९४३) सुप्रसिद्ध वैयाकरण तथा अनेक शास्त्रों के पारंगत विद्वान्। हिंदुस्थान की सरकार ने १९२१ में आपको "महामहोपाध्याय" की उपाधि से विभूषित किया। संकेतश्वर के शंकराचार्य जी ने भी उन्हें "विद्वद्रत्न" की पदवी प्रदान की।
सतारा के प्रसिद्ध विद्वान् पंडित राजाराम शास्त्री गोडबोले उनके गुरु थे। इनके गुरु भास्कर शास्त्री अभ्यंकर उनके पितामह थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद राजाराम शास्त्री ने उनका सारा भार अपने ऊपर ले लिया। न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानडे ने उनकी विद्वत्ता को देखकर फर्ग्युसन कॉलेज में शास्त्री के पद पर उनकी नियुक्ति की। व्याकरण के साथ साथ वेदान्त, मीमांसा, साहित्य, न्याय, ज्योतिष आदि शास्त्रों में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का समान रूप में परिचय दिया। इन विषयों का अध्ययन, अध्यापन तथा लेखन आपका अव्याहत गति से चलता रहा।
अभ्यंकर की लेखनशैली बहुत ही मार्मिक, मौलिक तथा सरल है। ग्रंथों का स्तर ऊँचा है। संस्कृत में अनेक ग्रंथों पर उन्होंने टीकाएँ लिखी हैं। स्वंतत्र रचनाओं में अद्वैतामोदः, कायशुद्धिः, धर्मतत्वनिर्णयः, सूत्रान्तर, परिग्रह विचार आदि हैं। ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य तथा पातञ्जल महाभाष्य का मराठी अनुवाद भी उनकी कृतियाँ हैं। ये रचनाएँ आनन्दाश्रम, पुणे, तथा गायकवाड़ पौर्वात्य पुस्तकमाला (ओरियन्टल सिरीज) में प्रकाशित हैं।
वे मुंबई विश्वविद्यालय के एम. ए. के परीक्षक थे। पुणे की वेदशास्त्रोत्तेजक सभा को भी उनकी सहानुभूति प्राप्त थी। जिस विद्वत्परंपरा में उनका निर्माण हुआ था वह महान् थी। इसी परंपरा में प्रो॰ कीलहार्न, बाल सरस्वती रानडे तथा गंगाधरशास्त्री तेलंग हुए थे। उनकी शिष्य परंपरा में पं॰ रंगाचार्य रेड्डी, शंकरशास्त्री मारुलकर, गणेशशास्त्री गोडबोले, सिद्धेश्वरशास्त्री चित्राव आदि प्रसिद्ध विद्वान् हुए हैं।