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लेखांकन का इतिहास

भारत में लेखांकन का इतिहास

भारत के वेदों से जानकारी मिलती है के विश्व को लिखांकन का ज्ञान भारत ने दिया | अथर्वेद में विक्रय शब्द हा जिसका मतलब सलेस होता है तथा शुल्क भी ऋग्वेद से लिया हुआ शब्द है जिस का भाव कीमत होता है | धर्म सूत्र का मतलब टैक्स होता है[1]

प्राचीन मेसोपोटामिया में प्रतीकी लेखांकन

उपजाऊ क्रेसेंट सिरका को दिखाते हुए मध्य पूर्व के मानचित्र. 3 सहस्राब्दी बीसी.

सर्वप्रथम प्रारंभिक लेखांकन के रिकॉर्ड प्राचीन बेबीलॉन, असीरिया और सुमेरिया के खंडहरों में पाए गए, जो 7000 वर्षों से भी पहले की तारीख के हैं। तत्कालीन लोग फसलों और मवेशियों की वृद्धि को रिकॉर्ड करने के लिए प्राचीन लेखांकन की पद्धतियों पर भरोसा करते थे। क्योंकि कृषि और पशु पालन के लिए प्राकृतिक ऋतु होती है, अतः अगर फसलों की पैदावार हो चुकी हो या पशुओं ने नए बच्चे पैदा किए हों तो हिसाब-किताब कर अधिशेष को निर्धारित करना आसान हो जाता है।[2]

मिट्टी, शूशन, उरुक अवधि, सिरा 3500 बिसीइ के बने हुए जटिल लेखांकन टोकंस. ओरिएंटल एंटीक्युटिस का विभाग, लौवर.

8000–3700 ई.पू. की अवधि के दौरान, फर्टाइल क्रिसेंट, कृषि अधिशेष द्वारा समर्थित छोटी-छोटी बस्तियों के प्रसार का साक्षी रहा. इस अधिशेष की पहचान और सुरक्षा से संबंधित प्रबंधन प्रयोजनों के लिए शंकुओं या गोलकों जैसी सरल ज्यामितीय आकृतियों वाले प्रतीकों (टोकन) का इस्तेमाल किया जाता था और ये प्रतीक निजी संपत्ति की सूचियों को सन्दर्भित करने वाले लेखा (हिसाब) के उदाहरण हैं।[3] उनमें से कुछ उत्कीर्णित छेदों वाली कटी-फटी रेखाएं तथा गहरे खुदे विन्दुओं के रूप में चिह्नित हैं। नव प्रस्तर कालीन समुदाय के सरदार अधिशेष को नियमित अंतराल से किसानों की फसलों और मवेशियों के एक हिस्से के रूप में संग्रह कर लिया करते थे। बदले में, संचित सामुदायिक सामान को उन लोगों में वितरित कर दिया जाता था जो खुद अपना भरण-पोषण नहीं कर पाते थे, लेकिन एक बड़ा हिस्सा त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों की प्रस्तुति और प्रदर्शन के लिए बचा कर रख दिया जाता था। 7000 बीसीई (BCE), केवल 10 प्रतीक आकार (सांचे) थे, क्योंकि इस प्रणाली में विशेष प्रकार से कृषि की वस्तुएं रिकॉर्ड की जाती थीं, जिसमें से कृषि के प्रत्येक उत्पाद पर उस समय उगाही स्वरूप ली जाती थी, जैसे कि अनाज के दाने, तेल एवं पालतू पशुएं.3500 ईस्वी पूर्व के आसपास इन प्रतीक सांचों की संख्या बढ़कर लगभग 350 तक पहुंच गई, जब शहरी कार्यशालाओं ने अर्थव्यवस्था के पुनर्वितरण में योगदान देना आरंभ कर दिया. इनमें से कुछ नए प्रतीक (टोकन्स) कच्चे मालों के प्रतीक स्वरूप थे जैसे कि ऊन और धातु एवं कुछ तैयार उत्पादों के लिए जैसेकि वस्त्र, पोशाक, गहने, रोटी, बियर तथा मधुके लिए होते थे।

मिट्टी के प्रतीकों के इस्तेमाल वाले बही खाता (बुक कीपिंग) के आविष्कार ने मानव जाति को एक विशाल संज्ञानात्मक उछाल का दर्जा दिया.[4] प्रतीक (टोकन) प्रणाली का संज्ञानात्मक महत्व आंकड़ों के उलट-फेर को प्रोत्साहित करने के लिए था। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक मौखिक सूचना हस्तान्तरित करने की तुलना में, टोकन्स (प्रतीक) अतिरिक्त दैहिक (ठोस) थे, जो मानव-मस्तिष्क से बाहर की वस्तु थे। फलतः नव प्रस्तरयुगीन लेखाकार किसी के ज्ञान के मूक (निष्क्रिय) मुखापक्षी नहीं रह गए, बल्कि आकंड़ों के कूट लेखन (संकेतन) और कूटानुवाद (डिकोडिंग) में उन्होंने सक्रिय हिस्सा लिया। प्रतीक प्रणाली असली मालों के बदले में लघु काउंटरों के रूप में प्रतिस्थापित थी, जिसने थोक माल और उसके वजन को लेन-देन के रास्ते से हटाकर आंकड़े को एक विशेष विन्यास में प्रस्तुत करने के लिए अमूर्त आकृति प्रदान की. इसके परिणामस्वरूप, अनाज से भरी भारी टोकरियां और पशु जिन्हें नियंत्रित करना कठिन होता था, वे अब आसानी से गिने और दोबारा गिने जा सकते थे। लेखाकार इन काउंटरों को खिसकाकर या हटाकर जोड़, घटाव, गुणा और भाग कर सकते थे।[5]

लेखांकन टोकन के एक समूह के साथ एक ग्लोब के आकार का टोकन लिफाफा. मिट्टी, शूशन, उरुक अवधि (4000-3100 BCE).ओरिएंटल एंटीक्युटिस का विभाग, लौवर.
आंकिक संकेत के साथ आर्थिक गोली.मिट्टी, शूशन, उरुक अवधि में प्रोटो-एलामाईट स्क्रिप्ट (3200 बीसी की अवधि से 2700 बीसीइ). ओरिएंटल एंटीक्युटिस का विभाग, लौवर.

3700 से 2900 ईस्वी पूर्व की अवधि के दौरान कर्षण (हल चलाना) नौकायन और तांबा की धातु पर कारीगरी जैसे तकनीकी नवोन्मेषों के साथ मेसोपोटामिया की सभ्यता उभर कर सामने आई. मिट्टी की तख्तियां (टिकिया) जिनपर धार्मिक स्थानों (देवालयों) के द्वारा निष्पादित वाणिज्यिक लेन-देनों को रिकॉर्ड करने के लिए चित्रलिपि में चरित्र अंकित होते थे वे दिखाई देने लगे.[3] मिट्टी के पात्र जो बुल्ले (लैटिन में: 'बबल') कहलाते थे, शुशा के एलामाइट शहर में इस्तेमाल किए जाते थे जिनमें टोकन निहित थे। ये पात्र आकार में गोलाकार होते थे और ढक्कन के रूप में काम में लाये जाते थे; जिनपर उन लोगों की मुहर खुदी होती थी जो सौदे में हिस्सा लेते थे। उनमें निहित टोकनों के चिह्नों को लेखाचित्रीय पद्धति से उनके सतह पर प्रदर्शित किया जाता था और इन्हें प्राप्त करने और इसका निरीक्षण करने के बाद माल-प्राप्तकर्ता यह जांच कर सकता था कि बुल्ला पर व्यक्त किए गए परिमाण एवं विशेषताओं से ये मिलते हैं या नहीं. यह तथ्य कि बुल्ला की सामग्री इसकी सतह पर चिह्नांकित होती थी अतः पात्र (रिसेप्टेकल) को नष्ट किए बिना जांच करने का एक सरल तरीका निकल आया, जिसमें लिखित रूप में एक कार्रवाई स्थापित होती थी कि, व्यापारिक माल को नियंत्रित करने के लिए मौजूदा प्रणाली के एक सहायक के रूप में लगातार बने रहने के बावजूद, अंत में गैर-मौखिक संचार के लिए एक स्पष्ट अभ्यास बन गया। आखिरकार, बुल्ले की जगह मिट्टी की तख्तियों का इस्तेमाल किया जाने लगा, जिसमें प्रतीकों को दर्शाने के लिए चिह्नों का इस्तेमाल किया जाता था।[6]

सुमेरियन सभ्यता की कालावधि में, ढक्कन वाले टोकन के लेखांकन की जगह मिट्टी की चपटी टिकियों ने ले ली, इस बात से प्रभावित होकर कि टोकंस प्रतीकों के महज हस्तांतरण ही तो हैं। ऐसे दस्तावेजों की देखरेख और रख-रखाव मुंशी या मुनीम किया करते थे, जिन्हें आवश्यक साहित्यिक और गणितीय ज्ञान उपलब्ध कराने के लिए सावधानीपूर्वक प्रशिक्षित किया जाता था और उन्हें इन वित्तीय लेनदेन के दस्तावेजीकरण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता था।[7] ऐसे अभिलेखन (रिकॉर्ड्स) मिट्टी की तख्तियों (टैबलेट्स) में खुदी अमूर्त (दुर्बोध) चिन्हों के आकार में कीलाक्षरों में लिखे पहले-पहल पाए गए प्राचीन पद्धति के अनुकरण हैं जो 2900 ईस्वी पूर्व में जेम्डेट नस्र (Jemdet Nasr) में सुमेरियन भाषा में लिखे गए। इसलिए "टोकन एन्वेलप अकाउंटिंग" न केवल लिखित शब्दों की पूर्ववर्ती परंपरा का अनुकरण है बल्कि लेखन और अमूर्त गणना के सृजन में महत्वपूर्ण पहल भी है।[3]

रोमन साम्राज्य में लेखांकन

मोनुमेनटम ऐन्सिरानाम से रेस गेस्टाए डिवी ऑगस्टी (ऑगस्टस और रोम के मंदिर) ऐन्स्यरा पर, 25 BCE - 20 BCE के बीच बनाया गया।

रेस गेस्टा डिवी अगस्टी (Res Gestae Divi Augusti) (लैटिन में: द डीड्स ऑफ़ द डिवाइन ऑगस्टस") अर्थात् "दिव्य ऑगस्टस के अलौकिक कर्म" रोमन लोगों के लिए सम्राट ऑगस्टस के प्रबंधन का एक उल्लेखनीय लेखा-जोखा है। इसमें उनके सार्वजनिक व्यय को निर्धारित और सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें सार्वजनिक वितरण सेना के पुराने अनुभवी दिग्गजों को जमीन अथवा मुद्रा के अनुदान एरेरीयम (राजकोष) देवालय के निर्माण, धमार्थ दान तथा नाटक के प्रदर्शनों एवं तलवारबाजी के खेलों पर आने वाले व्ययों के लिए आर्थिक सहायताओं को सम्मिलित किया गया है। यह राज्य के राजस्व और व्यय का लेखा-जोखा नहीं था, बल्कि इसे विशेष रूप से ऑगस्टस की वदान्यता निरुपित करने के लिए बनाया गया था। लेखांकन के परिप्रेक्ष्य में रेस गेस्टा डिवी अगस्टी (Res Gestae Divi Augusti) का महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि यह विस्तार से व्याख्या करता है कि कार्यकारी अधिकारी को विस्तारित वित्तीय सूचना पाने का अधिकार था, लगभग चालीस साल की कालावधि को समेटे हुए जो घटनाक्रम के पश्चात भी अब तक फिर से बहाली करने लायक (पुनः प्राप्य) था। सम्राट के प्रबंधन (निपटान) के तहत लेखांकन की सूचना का क्षेत्र यह अभिव्यंजित करता है कि इसके उद्देश्य में योजना और निर्णय लेना दोनों ही समाविष्ट थे।[8]

रोमन इतिहासकारों सुएटोनियस और कैसियस डियो ने यह रिकॉर्ड किया है कि 23 ईस्वी पूर्व में, ऑगस्टस ने एक रेशनेरियम (एकाउंट) तैयार किया जिसमें सार्वजनिक राजस्व एरारियम (राजकोष) में रोकड़ की रकम, प्रांतीय फिस्सी (कर अधिकारी) और पब्लिकानी (सार्वजनिक ठेकेदारों) के हाथों में रकम की सूची होती थी;एवं इसमें आजाद उन्मुक्त लोगों तथा दासों के नाम भी शामिल हुआ करते थे जिनसे विस्तारित लेखा की जानकारी प्राप्त की जा सकती थी। सम्राट के कार्यकारी प्राधिकारी को इस सूचना की सन्निकटता टैसिटस के इस बयान से सत्यापित होती थी कि यह स्वयं ऑगस्टस के द्वारा लिखा गया था।[9]

नॉर्थम्बरलैंड के विन्डोलंडा रोमन फोर्ट ऑफ हड्रियंस वॉल से रोमन राइटिंग टैबलेट (1st-2nd सेंचुरी एडी) 5000 उपाय पक बीयर खरीदने के लिए पैसे का अनुरोध का इस्तेमाल किया। प्रागितिहास और यूरोप, ब्रिटिश संग्रहालय के विभाग.

नकदी,वस्तुओं, एवं लेनदेन के रिकॉर्ड्स रोमन सैन्य कर्मियों द्वारा इमानदारी से रखे जाते थे। सीरा 110 क्रिश्चियन एरा में विन्दोलांडा किले में कुछ ही दिनों में प्राप्त छोटी-सी नकदी रकम का लेखा-जोखा यह दर्शाता है कि किले में इतनी दक्षता थी कि नकदी राजस्व की रोजाना के हिसाब से गणना की जा सकती थी, शायद आपूर्ति के अधिशेष की बिक्री अथवा शिविर में विनिर्मित वस्तुएं, दासों में वितरित कर दिए गए सामान जैसे कि, सर्वेसा (बीयर), एवं क्लावी कैलीगेयर्स (जूतों के लिए कीलें) साथ ही साथ सैनिकों द्वारा ख़रीदे गए सामान आदि की. किले की बुनियादी जरूरतें प्रत्यक्ष उत्पादन के मिश्रण, खरीदारी एवं मांग; एक पात्र में 5000 मोदी (नाप की मात्रा) ब्रेसेज़ (शराब बनाने में इस्तेमाल किया जाने वाला अनाज) खरीदने के लिए रकम की मांग यह जाहिर करती है कि किले में काफी संख्या में लोगों के लिए खरीदारी का प्रावधान था।[10]

पेपिरस दस्तावेजों के विशाल संग्रह को डी हेरोनिनस पुरालेख नाम दिया गया है, इन दस्तावेजों में यूं तो विशेषकर पत्र ही हैं, लेकिन इनमें काफी संख्या में हिसाब-किताब (अकाउंट्स) भी शामिल हैं, जो ईस्वीसन् की तीसरी सदी के रोमन मिस्र से चली आई है। दस्तावेजों का एक बड़ा थोक[11] हिस्से का नाम हेरोनिनस के नाम पर रखा गया क्योंकि वह राज्य का फ्रंटिस्टेट्स (यूनानी कोइन: प्रबंधक) था, जो लेखांकन की जटिल एवं मानकीकृत प्रणाली थी जिसका अनुपालन सभी स्थानीय खेत प्रबंधकों द्वारा किया जाता था।[12] प्रत्येक जागीर के उपखंड के लिए प्रत्येक प्रशासक को जागीर की दैनिक देखभाल और संचालन, कर्मचारियों के भुगतान, अनाज के उत्पादन, उत्पादित माल की बिक्री, पशुओं के उपयोग, तथा कर्मचारियों पर होने वाले आमतौर पर सामान्य खर्चों के लिए अपना छोटा-सा लेखा-जोखा रखना पड़ता था। तब जागीर के हर विशेष उप-खंड के लिए इस सूचना को एक बड़े वार्षिक लेखांकन में पेपिरस की अलग-अलग नामावली सूची के छोटे-छोटे हिस्सों में संक्षिप्त कर दिया जाता था। नकदी खर्च और अलग-अलग सभी क्षेत्रों से बहिर्वेशित लाभों के साथ प्रविष्टियों को क्षेत्र के क्रम में व्यवस्थित करना पड़ता था। इस तरह के खातें (लेखा-जोखा) मालिक को बेहतर आर्थिक फैसले लेने के मौके प्रदान करते थे क्योंकि सूचना को उद्देश्यपूर्ण तरीके से चुना एवं व्यवस्थित किया जाता था।[13]

सरल लेखांकन का उल्लेख ईसाई बाइबल के (नव विधान) मैथ्यू की पुस्तक, प्रतिभाओं की नीतिकथा (पैरेबल ऑफ द टैलेंट्स) में मिलता है।[14]

इस्लामी लेखांकन एवं बीजगणित

पवित्र कुरान में, 'हिसाब ' शब्द (अरबी में: लेखा या खाता) सामान्य अर्थ में प्रयोग, मानव जाति से संबंधित उन सभी मामलों में किया गया प्रयास है जिसके साथ ईश्वर (अल्लाह) के प्रति हिसाब देने का दायित्व जुडा हुआ है। पवित्र कुरान (सुरा 2, अयाह 282) के अनुसार, अनुयायियों को उनके क़र्ज़ के हिसाब-किताब का रिकॉर्ड रखना पड़ता है, इस प्रकार इस्लाम लेनदेनों की रिकॉर्डिंग और रिपोर्टिंग के लिए सामान्य अनुमोदन और दिशा-निर्देशों का प्रबंध करता है।[15]

विरासत के लिए इस्लामी कानून (द इस्लामिक लॉ ऑफ़ इनहेरिटेंस) (सुरा 4, अयाह 11) यह परिभाषित करता है कि ठीक किस तरह किसी व्यक्ति विशेष की मौत पर उसकी जागीर की गणना की जाती है। वसीयती व्यवस्था की शक्ति मूलतः निवल जागीर (भू-संपदा) की एक तिहाई तक ही सीमाबद्ध है (अर्थात् मृत व्यक्ति के कर्जों और अंतिम संस्कार के खर्चों की भुगतान के बाद बची परिसंपत्तियों), परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए तय शेयरों का न केवल पत्नियों और बच्चों में ही बल्कि पिता और माता को भी आवंटित कर.[16] इस कानून की जटिलता ने मोहम्मद इब्न-मूसा-अल-ख्वारिज्मी एवं अन्य मध्ययुगीन इस्लामी गणितज्ञों के द्वारा बीजगणित (अरबी: अल-जब्र) के विकास के पीछे प्रोत्साहन का काम किया। अल-ख्वारिज्मी हिसाब अल-जब्र-वल-मुकाबला (अरबी में: "द कम्पेंडियस बुक ऑन कैलकुलेशन बाई कम्पलीशन एंड बैलेंसिंग", बग़दाद, 825 के आसपास) ने एक सम्पूर्ण अध्याय को रेखीय समीकरण का प्रयोग कर इस्लामी विरासत कानून के समाधान में समर्पित कर दिया.[17] बारहवीं सदी में, लैटिन में अनुवाद अल-ख्वारिज्मी किताब-अल-जाम'वा-ल-ताफ्रिक-बी-हिसाब अल-हिंद (अरबी में: बुक ऑफ एडीशन एंड सबट्रैकशन अकौर्डिंग टू द हिंदू कैलकुलेशन) में भारतीय संख्याओं के प्रयोग पर लिखते हुए कहा कि पश्चिमी दुनिया को संख्या की दशमीक प्रणाली दी.[18]

नवजागरण के दौरान गणित और लेखांकन का विकास एक दूसरे के साथ आपस में गुंथे हुए थे। 15 वीं सदी के आख़िरी चरण में गणितशास्त्र महत्वपूर्ण विकास की एक अवधि के बीच से होकर गुजर रहा था। 10 वीं सदी के अंत में अरब गणित से हिंदू अरबी अंक और बीजगणित बेनिडिक्टिन भिक्षु गेर्बेर्ट ऑफ ऑरिलैक द्वारा यूरोप के लिए प्रवर्तित किया गया, लेकिन यह लियोनार्डो पिसानो (फिबोनैकी के रूप में भी ज्ञात) के बाद ही हुआ था जिसने वाणिज्यिक अंकगणित, हिंदू अरबी अंक और बीजगणित के नियम सन् 1202 में अपने लाइबर एबाकी के साथ सम्मिलित कर दिया जो हिंदू-अरबी अंक के रूप में इटली में व्यापक रूप से व्यवहृत हुए.[19]

जबकि बहीखाता और बीजगणित के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, विषयों के शिक्षण और प्रकाशित पुस्तकें एक ही वर्ग से संबंधित हैं, उदाहरणार्थ व्यापारियों के बच्चे जिन्हें (जर्मनी और फ़्लैंडर्स) गणना करने के लिए विद्यालयों में अथवा एबैकस स्कूल्स (इटली में अब्बाको के रूप में ज्ञात) में भेजे जाते थे, जहां वे व्यापार और वाणिज्य के लिए इस्तेमाल में आने वाली प्रवीणता प्राप्त करते थे। बहीखाता के रख-रखाव और संचालन की क्रिया में बीजगणित की शायद कोई जरूरत नहीं है, लेकिन वस्तु-विनिमय के जटिल कार्यों के लिए या मिश्र ब्याज की गणना के लिए, अंकगणित का बुनियादी ज्ञान अनिवार्य था और बीजगणित का ज्ञान बहुत उपयोगी था।[20]

लुका पसिओली और दोहरी प्रविष्टि वाली बहीखाता प्रणाली

मध्य युग के दौरान यात्रारत व्यापारियों के लिए वस्तु-विनिमय का प्रमुख प्रचलन था। जब मध्यकालीन यूरोप 13 वीं सदी की मौद्रिक अर्थव्यवस्था में स्थानांतरित हो गया, एक जगह बैठे रहने वाले व्यापारियों को बैंक ऋण द्वारा वित्तपोषित एकाधिक लेनदेन पर निगरानी रखने के लिए बहीखाता पर निर्भर रहना पड़ा. इसी समय एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई: दोहरी-प्रविष्टि वाली बहीखाता प्रणाली की शुभ सूचना हुई,[21] जो एक ऐसी बहीखाता प्रणाली के रूप में परिभाषित हुई जिसमें प्रत्येक लेनदेन के लिए एक डेबिट एवं क्रेडिट प्रविष्टि होती है, अथवा जिसके लिए अधिकांश लेनदेन इसी फार्म में अभिप्रेत होते हैं।[22] लेखांकन में डेबिट और क्रेडिट शब्दों के इस्तेमाल की ऐतिहासिक उत्पत्ति एकल-प्रविष्टि बहीखाता के प्रचलन के समय से हो रही है जिसका प्रमुख उद्देश्य (ऋणी) ग्राहकों के पास बकाया राशि और लेनदारों को लौटाई जाने वाली राशि का पता लगाना और तय करना था। 'वह ऋणी है' का लैटिन 'डेबिट' और 'उसकी अमानत है' का लैटिन 'क्रेडिट' है।[23]

सम्पूर्ण दोहरी-प्रविष्टि वाली बहीखाता का आरंभिक विद्यमान साक्ष्य 1299-1300 का फैरोल्फी खाता बही हैं।[21] गियोवानो फैरोल्फी एण्ड कंपनी (Giovanno Farolfi & Company) महत्वपूर्ण फ्लोरेंटाइन व्यापारियों का एक फर्म था जिसका प्रमुख कार्यालय निमेस में था जो उनके सबसे महत्वपूर्ण ग्राहक आर्लेस के आर्कबिशप के साहूकार के रूप में भी काम करता था।[24] सम्पूर्ण रूप से दोहरी प्रविष्टि पद्धति का सबसे पुराने रिकॉर्ड की खोज मेस्सारी (इतालवी: कोषाध्यक्ष की) सन् 1340 के जेनोवा शहर के लेखा के रूप में की गयी है। मेस्सारी के खातों में डेबिट और क्रेडिट रोजनामचा प्रविष्टि के द्विपक्षीय प्रारूप में और अधिशेष को पिछले वर्ष से आगे बढ़ाकर शामिल किया गया है और इसलिए दोहरी प्रविष्टि की एक आम मान्यता के रूप में स्वीकृत है।[25]

जकॉपो 'डे बारबरी के द्वारा बने गई पसिओली की चित्र, 1495, (Museo di Capodimonte) खुली किताब जिसमें उन्होंने अपना हाथ रखा है शायद वह सुम्मा डे एरिथ्मेटीका, जियोमेट्रिया, प्रोपोर्शियोनी एट प्रोपोर्शियानालिटी[26]

लुका पसिओली की "सुम्मा डे एरिथमेटिका, जियोमेट्रिया, प्रोपोर्शनी एट प्रोपोर्शनलिटा" (Summa de Arithmetica, Geometria, Proportioni et Proportionalità) (इतालवी: "अंकगणित, रेखागणित, अनुपात और समानुपात की समीक्षा") सर्वप्रथम वेनिस में सन् 1494 में मुद्रित और प्रकाशित की गई थी। इसमें बुककीपिंग पर 27 पृष्ठ का एक शोध-ग्रंथ, "पार्टिक्यूलरिस डे कंप्यूटिस एट स्क्रिप्ट्यूरिस" (Particularis de Computis et Scripturis) (इतालवी: "रिकॉर्डिंग और गणना का विस्तारित विवरण") शामिल था। इसे पहले व्यापारियों के लिए लिखा गया था और फिर मुख्य रूप से उन्हें बेच दिया गया था, जो इसमें निहित खुशी के स्रोत गणितीय पहेली का एक सन्दर्भ पुस्तक के रूप में और अपने बेटों की शिक्षा की सहायिका के रूप में भी इस्तेमाल किया करते थे। यह बहीखाता पर पहला ज्ञात मुद्रित ग्रंथ का प्रतिनिधित्व करता है और व्यापक रूप से इसे आधुनिक बहीखाता की कार्यप्रणाली का अग्रदूत माना जाता है। सुम्मा एरिथमेटिका (Summa Arithmetica) में, पसिओली ने पहली बार मुद्रित पुस्तक में योग और वियोग के लिए प्रतीकों की शुरूआत की, जो प्रतीक इतालवी पुनर्जागरणकालीन गणित में संकेतन मानक बने. सुम्मा एरिथमेटिका (Summa Arithmetica) इतालवी में छपी बीजगणित निहित पहली पुस्तक के रूप में ज्ञात है।[27]

हालांकि लुका पसिओली ने दोहरी प्रविष्टि वाली बहीखाता की खोज नहीं की,[28] इस विषय पर ज्ञात 27 पृष्ठ वाले बुककीपिंग के प्रकाशित शोध प्रबंध में उन्होंने इसकी चर्चा की और कहा जाता है कि दोहरी प्रविष्टि वाली बहीखाता की उन्होंने ही नींव रखी जो आजकल प्रचलित है।[29] यद्यपि पसिओली के शोध-ग्रंथ में मौलिकता लगभग नहीं के बराबर है, फिर भी इसे आम तौर पर एक महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है, विशेष रूप से इसके व्यापक संचलन के कारण, इसे स्थानीय इतालवी भाषा में लिखा गया और पुस्तकाकार में छापा गया।[30]

पसिओली के अनुसार, लेखा, व्यापारी द्वारा संरचित एक तदर्थ आदेश प्रणाली है। इसका नियमित इस्तेमाल व्यापारी को उसके व्यापार के बारे में नियमित जानकारी प्रदान करता है और उसे यह मूल्यांकन करने के लिए मौके देता है कि बातें कैसे बनती हैं और जिसके अनुसार कार्य किये जाय. पसिओली दूसरी सभी पद्धतियों से ऊपर दोहरी प्रविष्टि वाली बहीखाता की विनीशियन विधि की सलाह देते हैं। इस प्रणाली के प्रत्यक्ष आधार पर तीन प्रमुख पुस्तक हैं: मेमोरिएल (इतालवी: ज्ञापन), गिओर्नेल (पत्रिका) और क्वाडर्नो (खाता). खाता (लेजर) को एक केंद्रीय आधार माना जाता है और इसके साथ एक वर्णानुक्रम अनुक्रमणिका होती है।[31]

पसिओली के शोधग्रंथ में निर्देश दिया गया है कि वस्तु विनिमय के लेनदेन और मुद्राओं की विभिन्न किस्मों में लेनदेन कैसे रिकॉर्ड करें - ऐसा इसलिए संभव था क्योंकि आज की तुलना में दोनों कहीं अधिक सामान्य थे। इसने व्यापारियों को अपनी लेखा परीक्षा करने के लिए और लेखाकारों द्वारा किए गए लेखांकनों के रिकॉर्ड में वर्णित विधि के पालन में प्रविष्टियां सटीक हैं या नहीं यह सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सक्षम बनाया. ऐसी एक प्रणाली के बिना, सभी व्यापारी जो अपने ही रिकॉर्ड का हिसाब-किताब नहीं बनाए रखते थे वे अपने कर्मचारियों और एजेंटों के द्वारा चोरी के ज्यादा जोखिम में होते थे: यह दुर्घटनावश नहीं है कि उनके शोध ग्रंथ में वर्णित प्रथम और अंतिम आइटम सटीक सूची से सम्बद्ध है या नहीं.[32]

दोहरी प्रविष्टि की प्रकृति की पहचान इस बात से की जा सकती है कि बहीखाता की इस प्रणाली में वे खरीदे-बेचे गए सामानों का केवल हिसाब-किताब ही नहीं रखते बल्कि अपने कारोबार में परिसंपत्तियों या लाभ और हानि की गणना भी कर सकते है; इसके बजाए दोहरी प्रविष्टि में लेखन ने, प्रतिलेखन (ट्रांसक्रिप्शन) और गणना के प्रभाव को भी पीछे छोड़ दिया. इसका एक सामाजिक प्रभाव व्यापारियों को एक वर्ग के रूप में अपनी ईमानदारी प्रमाणित करना था; इसका एक ज्ञानमीमांसीय प्रभाव इसकी औपचारिक शुद्धता का निर्माण करना था जो इसके द्वारा रिकॉर्ड किए गए विवरणों की सटीकता की गारंटी देने वाली अंकगणितीय प्रतीति की एक नियम बंध प्रणाली पर आधारित था। हालांकि लेखा के खातों में दर्ज की गई जानकारी सही ही हो जरूरी नहीं थी, परिशुद्धता और सामान्यीकरण प्रभाव का संयोजन दोहरी प्रविष्टि प्रणाली में यह प्रमाणित करता है कि लेखा की पुस्तक केवल प्रभाव ही पैदा करने की प्रवृत्ति के लिए नहीं थे बल्कि सटीक हिसाब-किताब के लिए भी थे। संख्या से प्रतिष्ठा प्राप्त करने के बजाय, दोहरी प्रविष्टि बहीखाता ने संख्याओं को सांस्कृतिक अधिकार प्रदान करने में मदद भी की.[33]

पसिओली के पश्चात

इतालवी लेखा नियमों का प्रसार यूरोप के बाकी हिस्सों में और यहां से आगे के क्षेत्रों में भी हुआ, उनमें से कुछ पसिओली के कार्य पर सशक्त रूप से आधारित थे, जो शोध ग्रंथ का परिणाम था, जिसमें इसकी कार्य-प्रणाली की व्याख्या विस्तार से की गयी है। डोमेनिको मंजोनी दा ओदेर्जो का "क्वाडर्नो डोपियो" (Quaderno doppio) (अनुवाद - डबल एंट्री लेजर, वेनिस, 1534) पसिओली की "पार्टिक्यूलरिस डे कंप्यूटिस एट स्क्रिप्ट्यूरिस" (Particularis de Computis et Scripturis) की पहली प्रतिकृतियों में से एक था। विस्तृत उदाहरणों की वजह से महत्वपूर्ण हुई यह रचना व्यापारियों के बीच काफी लोकप्रिय और प्रचलित थी: इसने 1534 और 1574 के बीच सात से कम संस्करणों का मज़ा नहीं लिया। पसिओली की रचना पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आधारित अन्य पुस्तकें हैं: ह्यू ओल्डकैशल की "ए प्रोफिटबल ट्रिटीस कॉल्ड द इंस्ट्रुमेंट ऑर बोक टू लर्न टू नो द गुड ऑर्डर ऑफ द फेमस रिकोनिंग कॉल्ड इन लैटिन, डेयर एण्ड हैबियर, एण्ड इन इंग्लिश, डेबिटर एण्ड क्रेडिटर" (A Profitable Treatyce called the Instrument or Boke to learne to knowe the good order of the kepyng of the famous reconynge called in Latyn, Dare and Habere, and in Englyshe, Debitor and Creditor) (लन्दन, 1543), पसिओली के प्रबंध का एक अनुवाद और वुल्फगैंग श्वेकर की "ज्विफैच बुछाल्टन" (Zwifach Buchhalten) (अनुवाद - डबल-एंट्री बुककीपिंग/दोहरी-प्रविष्टि बही-खाता, न्यूरनबर्ग, सन् 1549), "क्वाडर्नो डोपियो" (Quaderno doppio) का एक अनुवाद.[34]

डच गणितज्ञ साइमन स्टेविन ने ही अपने विस्कोंस्टिग हेडाक्टेनिसेन (Wisconstigheg hedachtenissen) (डच: "गणितीय संस्मरण", लेडन, 1605–08) के कूपमैन्सबौकहाउडिंग ओप डे इटालियंश वाइस (Coopmansbouckhouding op de Italiaensche wyse) (डच: "इतालवी पद्धति से वाणिज्यिक हिसाब-किताब रखना") नामक एक अध्याय में व्यापारियों को हर वर्ष के अंत में हिसाब-किताब का सारांश तैयार करने के लिए इसे एक नियम बनाने पर बल दिया. हालांकि उन्होंने बही की प्रविष्टियों के आधार पर हर उद्यम की हर वर्ष की आवश्यकता के अनुसार तुलन-पत्र तैयार किया, इसे लेखा की प्रमुख पुस्तकों से अलग से तैयार किया गया था। सबसे पुराना अर्ध-सार्वजनिक बैलेंस शीट (तुलन पत्र) दिनांक 30 अप्रैल 1671 को दर्ज की गई थी जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी की जनरल मीटिंग में 30 अगस्त 1671 को प्रस्तुत किया गया था। तुलनपत्र का लेखापरीक्षण और प्रकाशन बैंक चार्टर अधिनियम 1844 के पारित होने से पूर्व इंग्लैंड में एक अनूठी बात थी।[35]

सन् 1863 में डॉलेस आयरन कंपनी (Dowlais Iron Company) व्यापार की मंदी से उबरी, लेकिन लाभ के बावजूद भोंका-भट्ठी में कोई नया निवेश करने के लिए इसके पास नकदी नहीं था। निवेश के लिए नकदी क्यों नहीं थी इसकी व्याख्या के लिए प्रबंधक ने एक नया वित्तीय विवरण तैयार किया जिसे संतुलन तुलनपत्र कहा गया, जिससे यह पता चला कि कंपनी के पास काफी इन्वेंटरी (संख्यापत्र) था। इस नए वित्तीय विवरण को नकद प्रवाह कथन पत्र का उद्गम माना जाता है जिसका प्रयोग आजकल किया जाता है।[36]

पसिओली की "पार्टिक्यूलरिस डे कंप्यूटिस एट स्क्रिप्ट्यूरिस" (Particularis de Computis et Scripturis) के प्रकाशन और 19 वीं सदी के दौरान लेखांकन पद्धति में कुछ अन्य परिवर्तन हुए. इसमें एक सामान्य सैद्धांतिक सहमति है कि दोहरी प्रविष्टि पद्धति बेहतर थी क्योंकि यह लेखांकन समस्याओं का समाधान कर सकता है। लेकिन आम सहमति के बावजूद इस लेखांकन प्रथाओं में उल्लेखनीय भिन्नताएं थी और 16 वीं तथा 17 वीं सदियों में व्यापारियों ने शायद ही कभी दोहरी प्रविष्टि पद्धति के उच्च मानकों का रखरखाव करते थे। दोहरी प्रविष्टि बहीखाता का अनुपालन विभिन्न देशों में, उद्योग और व्यक्तिगत फर्मों में अपने दर्शकों के आधार पर किया जाता है। यह साझेदारी एकमात्र आम आकार में दर्शकों में बड़े समूह के स्वामित्व में स्थानांतरित हो गयी जो अकेले में छितरी हुई थी और सहनिवेशकों, शेयरधारकों और अंततः पूंजीवाद के रूप में राज्य और अधिक परिष्कृत हो गया।[37]

तुर्क साम्राज्य (ओटोमन एम्पायर) में, जब यह अपनी उन्नति के शिखर पर था, इसने अनातोलिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, बाल्कन और यूरोप के पूर्वी भागों, मेर्दिबन (फारसी: सीढ़ी या सोपान) लेखांकन प्रणाली जो 14 वीं सदी में इल्खानाते से अपनाई गयी थी उसका प्रयोग 500 वर्षों के लिए 19 वीं सदी के अंत तक होता रहा.[38] इल्खानियंस और ऑटोमंस दोनों ही सियाकत (अरबी से उद्धृत सियक लिपि, अर्थात् अगुआई करना या चराना) का इस्तेमाल करते थे, जो अरबी की आशुलिपि मे लेखन शैली है जिसका प्रयोग केवल सरकारी दस्तावेजों के लेखन में किया जाता था ताकि आम लोगों को राज्य के महत्वपूर्ण पत्राचार पढ़ने से रोका जाए.[39] प्रत्येक प्रविष्टि के लिए सीधी लाइन में पहले शब्द के आखिरी अक्षर को आगे बढ़ाकर शीर्षक दिया जाता है, ताकि लगातार प्रविष्टियों के बीच की पंक्तियां सीढ़ी के सोपान की शैली में सजी रहें.[40] सन् 1880 में सुल्तान अब्दुलहमिद द्वितीय ने मेर्दिबन लेखांकन प्रणाली के साथ दोहरी प्रविष्टि लेखांकन की अनुमति वित्त मंत्रालय को दी.[41]

सन्दर्भ

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 2 अक्तूबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अक्तूबर 2011.
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Friedlob, G. Thomas 1996, p.1 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
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