लघुवलयक
लघुवलयक | |
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लघुवलयक वैविध्य | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | प्राणी |
संघ: | लघुवलयक |
लघुवलयक या खण्डित कृमि एक बड़ा प्राणी संघ है, जिसमें लघुकृमि, केंच्वा और जलूका सहित 22 सहस्राधिक उपस्थित जातियाँ हैं। ये जातियाँ विभिन्न पारिस्थितिकी के अनुकूल हैं- समुद्री वातावरण में कुछ ज्वारीय क्षेत्रों और जलतापीय छिद्रों के रूप में, अन्य जलीय (लवणीय जल तथा मीठा जल) अथवा स्थलीय; स्वतन्त्र जीव तथा कभी-कभी परजीवी होते हैं। ये अंगतन्त्र स्तर के संगठन को प्रदर्शित करते हैं तथा द्विपार्श्विक सममिति होते हैं। ये त्रिकोरकी क्रमिक पुनरावृत्ति, विखण्डित तथा प्रगुहीय प्राणी होते हैं। इन प्राणियों में अनुदैर्घ्य तथा वृत्ताकार दोनों प्रकार की पेशियाँ पाई जाती हैं जो चलन में सहायता करती हैं।
जलीय लघुवलयक नेरिस में पार्श्विक उपांग (पार्श्वपाद) पाए जाते हैं जो तैरने में सहायता करते हैं। इसमें बन्द परिसंचरण तन्त्र उपस्थित होता है। वृक्कक परासरण नियमन तथा उत्सर्जन में सहायक हैं। तन्त्रिका तन्त्र में एक जोड़ी गुच्छिकाएँ होती है, जो पार्श्व तन्त्रिकाओं द्वारा दोहरी अधर तन्त्रिका रज्जु से जुड़ी होती हैं। नेरीस में नर तथा मादा भिन्न होते हैं लेकिन केंच्वे तथा जलूकों में नर तथा मादा पृथक् नहीं होते (उभयलिंगी) हैं। लैंगिक जनन होता है।