लंगट सिंह महाविद्यालय
लंगट सिंह महाविद्यालय | |
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स्थापना: | 1899 |
संबद्ध: | बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय |
स्थिति: | मुज़फ्फरपुर |
जालस्थल: | www |
लंगट सिंह महाविद्यालय मुजफ्फरपुर स्थित बिहार विश्वविद्यालय का एक अंगीभूत महाविद्यालय है।
स्वतंत्रता आन्दोलन के समय आज़ादी प्रसिद्द समाजसेवी लंगट सिंह के प्रयाश से 3 जुलाई 1899 को लंगट सिंह कॉलेज (एल . एस .कॉलेज) की स्थापना हुई। इस महाविद्यालय के स्थापना के प्रारंभिक काल में डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद, प्रथम राष्ट्रपति बतौर शिक्षक व प्रधानाध्यापक रहे, वही आचार्य जे.बी.कृपलानी, अध्यक्ष कांग्रेस (1947) भी अध्यापन कार्य कर युवाओ को आज़ादी के लिए प्रेरित करते थे।
महात्मा गाँधी का भी चंपारण यात्रा के क्रम में 10 अप्रैल 1917 को कॉलेज परिसर में आना हुआ था और इसी महविद्यालय परिसर में ११-१२ अप्रैल को पुरे चंपारण आन्दोलन की रुपरेखा तैयार की गयी थी। उस समय जे.बी.कृपलानी और प्रख्यात शिक्षाविद एच. आर. मलकानी, तत्कालीन छात्रावास अधीक्षक ने उनके विश्राम और आतिथ्य की व्यवस्था की थी। बापू ने परिसर स्थित कुँए पर प्रातःकालीन स्नान-ध्यान कर किसानों की दुर्दशा सुधारने का संकल्प भी लिया था, जिसकी याद के रूप में गाँधी- कूप कॉलेज परिसर में मौजूद है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी महाविद्यालय के इतिहास विभाग में शिक्षक थे तथा अपनी “उर्वर्शी”, जिसपर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था, की रचना यही की थी। १९५२ में राज्यसभा के सांसद बनने तक वे यही शिक्षक थे। महान साहित्यकार रामवृक्ष बेनपुरी की कर्मस्थली यह कॉलेज रहा है।[1]
बेलियोल (Balliol) कॉलेज, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की तर्ज़ पर बने इस महाविद्यालय के भवन का उद्घाटन 26 जुलाई 1922 को तत्कालीन गवर्नर सर हेनरी व्हीलर ने किया था। एल . एस .कॉलेज का भवन मुजफ्फरपुर के लाल-किला के रूप में भी प्रसिद्द है तथा यह वास्तुकला और भवन निर्माण की अनूठी मिसाल भी पेश करती है। महाविद्यालय परिसर में स्थापित तारामंडल देश का पहला तारामंडल माना जाता है जहाँ अन्तरिक्ष से सम्बंधित अनुसन्धान होते थे, फ़िलहाल यह बंद पड़ा है।
खगोलीय वेधशाला
अगस्त 2022 में, लंगट सिंह कॉलेज की खगोलीय वेधशाला को दुनिया की महत्वपूर्ण लुप्तप्राय विरासत वेधशालाओं की यूनेस्को सूची में शामिल किया गया था।[2] इस वेधशाला की स्थापना की पहल कॉलेज के रोमेश चंद्र सेन ने की थी। बाद में, 1946 में कॉलेज में शायद भारत में पहला तारामंडल भी स्थापित किया गया था। वेधशाला और तारामंडल दोनों ने 1970 के दशक की शुरुआत तक संतोषजनक ढंग से काम किया, लेकिन समय बीतने के साथ धीरे-धीरे कम होना शुरू हो गया। वेधशाला ने प्रेसिडेन्सी विश्वविद्यालय, कोलकाता के खगोलीय वेधशाला के साथ बातचीत की।
भूतपूर्व छात्र
- अजीत अंजुम, जगन्नाथ मिश्र, शान्ति राय, डी. पी ओझा,गुप्तेश्वर पांडेय,प्रभात कुमार,रघुवंश प्रसाद सिंह
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "मुजफ्फरपुर स्थित प्रसिद्ध लंगट सिंह कॉलेज के स्थापना के 124 वर्ष पूरे". newsonair.gov.in. अभिगमन तिथि 2024-03-05.
- ↑ "Century-old Bihar college astronomical lab on Unesco list".