रोगों के जीवाणु सिद्धांत
रोगों का जीवाणु सिद्धांत कहता है कि कई रोगों के कारण सूक्ष्मजीव हैं। अपने प्रारंभिक दिनों में यह सिद्धांत विवादित रहा। इसने सूक्ष्मजैविकी की नींव रखी, जिससे प्रतिजैविक तथा आधुनिक दवावों की खोज संभव हो सकी।[1] अथर्वेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ है जिसमें रोगों एवं औषधियों के सबंध में विवरण उपलब्ध है। इसमें रोगों का कारण कई प्रकार के जीवों को माना गया है तथा उनकी चिकित्सा के लिए औषधियों का भी जिक्र है।
सूक्ष्मजीवों को कई शताब्दियों पूर्व ही अनुमान लगा लिया गया था, सत्रहवीं शताब्दी में उनकी असल खोज से कहीं पहले। सूक्षमजीवों पर पहले पहल सिद्धांत प्राचीन रोमन स्कॉलर मार्कस टेरेंशियस वैर्रो ने अपनी कृषि पर एक पुस्तक में दिये थे। इसमें उसने कृषि फार्मों को दलदल के निकट बनाने से बचने की सलाह दी थी।
“ | ...and because there are bred certain minute creatures which cannot be seen by the eyes, which float in the air and enter the body through the mouth and nose and there cause serious diseases.[2] | ” |
कैनन ऑफ मैडिसिन नामक पुस्तक में, अबु अली इब्न सिना ने कहा है, कि शरीर के स्राव, संक्रमित होने से पहले बाहरी सुक्ष्मजीवों द्वारा दूषित किये जाते हैं।[3]। उसने क्षय रोग व अन्य संक्रामक बिमारियों के संक्रामक स्वभाव की प्राक्कल्पना की थी, व संगरोध (क्वारन्टाइन) के तौर पर, संक्रामक बिमारियों की रोकथाम हेतु, प्रयोग किया था।[4]।
जब काली मृत्यु (ब्लैक डैथ) व ब्युबोनिक प्लेग अल-अंडैलस में चौदहवीं शताब्दी में पहुंचा, इब्न खातिमा ने सूक्ष्मजीवों द्वारा इसके प्रसार की प्राक्कल्पना की थी, कि वे मानव शरीर के अंदर पहुंच कर, संक्रमण व प्रसार करती हैं।[5]।
1546 में, जिरोलामो फ्रैकैस्टोरो ने यह प्रस्ताव दिया, कि महामारियां, स्थानांतरणीय बीज जैसे अस्तित्वों द्वारा फैलती हैं। यह वस्तुएं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, कभी कभी तो बिना सम्पर्क के ही, लम्बी दूरी से भी संक्रमित कर सक्ती हैं।
सूक्ष्मजीवों के बारे में, यह सभी दावे अंदाज़े मात्र थे, जो कि किसी आंकड़ों या विज्ञान पर आधारित नहीं थे। सत्रहवीं शताब्दी तक सूक्ष्म जीव, ना तो सिद्ध ही हुए थे, ना देखे ही गये थे। इनको सत्रहवीं शताब्दी में ही सही तौर पर देखा गया, व वर्णित किया गया। इसका मूल कारण था, कि सभी पूर्व सूचनाएं व शोध, एक मूलभूत उपकरण के अभाव में किये गये थे, जो कि सूक्ष्मजैविकी या जीवाणुविज्ञान के अस्तित्व में रहने के लिये अत्यावश्यक था और वह था [[सूक्ष्मदर्शी] यंत्र।
सन्दर्भ
- ↑ Madigan M, Martinko J (editors). (2005). Brock Biology of Microorganisms (11th ed. संस्करण). Prentice Hall. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0131443291.सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ (link)
- ↑ वैर्रो ऑन एग्रीकल्चर 1,xii लोएब
- ↑ इब्राहिम बी.सैयद, पी.एच.डी. (2002). "इस्लामिक मैडिसिन: 1000 ईयर्स अहेड ऑफ इट्स टाइम्स ", जर्नल ऑफ द इस्लामिक मैडिकल एसोसियेशन 2, p. 2-9.
- ↑ डैविड डब्ल्यु. शैन्ज़, MSPH, PhD (अगस्त 2003). "अरब रूट्स ऑफ यूरोपियन मैडिसिन्स ", हार्ट व्यूज़ 4 (2).
- ↑ Ibrahim B. Syed, Ph.D. (2002). "इस्लामिक मैडिसिन: 1000 ईयर्स अहेड ऑफ इट्स टाइम्स ", [[जर्नल ऑफ द इस्लामिक मैडिकल एसोसियेशन 2, p. 2-9.