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रेबीज़ का टीका

एंटी रेबीज वैक्सीन या आलर्क निरोधी वैक्सीन उस स्थिति में दिया जाता है जब किसी व्यक्ति को पागल कुत्ता, गीदड़, भेड़िए आदि काट ले| मरीज को ७२ घंटे के अंदर आलर्क निरोधी वैक्सीन लगवाना आवश्यक है| वैक्सीन न लगवाने की इस्थिति में रेबीज़ रोग होने का खतरा होता है|इस टीके की खोज लुई पास्चर नामक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने की।

एंटी रेबीज टीका (वैक्सीन), रेबीज की बीमारी से बचने में कारगर है| इसका वैक्सीन कई प्रकार में उपलब्ध है और कारगर के साथ-साथ सुरक्षित भी है| यह वैक्सीन, कुत्ते द्वारा काटने के बाद रेबीज के विषाणु के संपर्क में आने पर, रेबीज बीमारी से कुछ समयांतराल तक बचाने के लिए उपयुक्त है| इस वैक्सीनेशन के तीन डोज़ के बाद से ही जो प्रतरोधक क्षमता शरीर में तैयार होती है वह काफी समय तक बनी रहती है| एंटी रेबीज वैक्सीन को इंजेक्शन के द्वारा मासपेशियों में दिया जाता है| एंटी रेबीज का वैक्सीन, रेबीज इम्मुनोग्लोबुलिं (rabies immunoglobulin) के साथ-साथ दिया जाता है| जो लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं या फिर ऐसे पेशे मैं हैं जहाँ पर रेबीज के विषाणु से संपर्क का काफी खतरा हो, उन्हें भी एंटी रेबीज वैक्सीन डॉक्टर की सलाह पर, लगातार अंतराल पर लगवाना चाहिए|

रोग रेबीज के वीथिका विषाणु (street virus) से होता है किंतु इसी विषाणु का निस्तेजित रूपवाला स्थिर विषाणु (fixed virus) रोगकारी नहीं है किंतु रोगनिरोधी प्रतिरक्षी का उत्पादक है। रेबीज के स्थिर विषाणु को भेड़ या खरगोश के मस्तिष्क में उत्पन्न करते हैं और फिर मस्तिष्क को पीसकर फ़िनोलयुक्त लवण विलयन में विलयन बना लेते हैं। पागल कुत्ते के काटने पर आवश्यकतानुसार 14 दिन तक नित्य एक टीका लगाते हैं। इस वैक्सीन की शक्ति बढ़ाकर कुत्तों को टीका लगाकर उन्हें भी आलर्क रोग से बचाया जा सकता है।