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राहुल बारपुते

राहुल बारपुते हिन्दी के पत्रकार थे।

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ND हिंदी पत्रकारिता में शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जिसने राहुल बारपुते का नाम नहीं सुना होगा। पत्रकारिता के इस युग निर्माता का नाम जितना सुनने में आता है, उनके बारे में लेखन सामग्री का उतना ही अभाव है। सच भी है एक ऐसी शख्सियत जिसने राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी जैसे दिग्गजों को तराशा हो, के बारे में लिखना साहस का काम है।

बाबा के नाम से मशहुर बारपुतेजी ने नईदुनिया रूपी वटवृक्ष के नीचे धूनी रमाते हुए पत्रकारिता जगत को रत्नों से लाद दिया। यह संस्था कब अखबार से विश्वविद्यालय बन गया और बाबा कुलपति को भी पता नहीं चला। लोग नईदुनिया पत्रकारिता सीखने आते और बाबा से सीखकर अन्य अखबारों को समृद्ध करने चले जाते। यह सिलसिला 1996 तक अनवरत चलता रहा। बारपुतेजी जब तक जिए नईदुनिया की बेहतरी के लिए सोचते रहे।

प्रखर पत्रकार विजय मनोहर तिवारी ने बाबा से जुड़ी विभिन्न हस्तियों के माध्यम से उनके जीवन के पन्नों को सफलतापूर्वक पलटने का प्रयास किया। जिस चश्मे से उन्होंने बारपुतेजी को देखा वह उनके इस महान शख्सियत के प्रति सम्मान को भी प्रकट करता है।

अनेक दुर्लभ संस्मरणों को‍ इस किताब में समेटकर उन्होंने युवा पत्रकारों को बेहद खूबसूरत तोहफा दिया है। किताब को पढ़कर न सिर्फ पाठक रोमांचित हो उठता है बल्कि उसे कई महत्वपूर्ण सीख भी मिलती है।

पत्रकारों को हर विषय की जानकारी होनी चाहिए इस तथ्य को हमने कितनी ही बार सुना होगा। बाबा ने इसे आत्मसात किया था। रंगमंच, समाजसेवा, संगीत, पेंटिंग आदि कई विधाओं में उन्हें महारत हासिल थी। टेनिस एसोसिएशन का अध्यक्ष बनने के लिए उन्होंने 3 दिन में टेनिस सीखा था।

कुमार गंधर्व, विष्णु चिंचालकर और राहुल बारपुते की तिकड़ी से संबंधित किस्सों को लेखक ने बहुत खूबसूरती से किताब में उकेरा है। बाबा की वसंत पोत्दार से बोलचाल बंद थी लेकिन जब उन्होंने कुमार गंधर्व पर किताब लिखने का निश्चय किया तो बाबा खबर मात्र से ही पोत्दार साहब के पास पहुँच गए।

अनिल सद्‍गोपाल जब किशोर भारती की स्थापना के लिए मध्यप्रदेश आए तो उन्हें बाबा ने हाथों हाथ लिया। रणवीर सक्सेना के साथ पिपरिया के समीप के एक गाँव में उनके प्रोजेक्ट को इस तरह सबल प्रदान किया कि किशोर भारती के कार्यकर्ता उत्साह से भर गए। बाद में उन्होंने इंदौर में अनिल की प्रेस कॉन्फ्रेंस कराकर उन्हें जननायक सा सम्मान दिलवाया।

अभय छजलानी, अभिलाष खांडेकर, सुभाष गावड़े, दिलीप चिंचालकर, भानु चौबे, राजीव बारपुते, जवाहरलाल राठौर से लेकर नईदुनिया पुस्तकालय के अशोकजी, कमलेशजी तक सभी से मिलकर लेखक ने यह लघुशोध तैयार किया है, जिसे पढ़कर लेखक की लगन और मेहनत का सहज अनुमान लगता है। लेखक विजय मनोहर तिवारी की भाषा इतनी सधी हुई है कि मशाल लेकर अर्थ खोजने की जरूरत नहीं पढ़ती। पत्रकारिता के छात्रों के अलावा सामान्य पाठकों के लिए भी किताब उपयोगी सिद्ध होगी।

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से जारी पत्रकारों के व्यक्तित्व की यह श्रृंखला निश्चय ही प्रशंसनीय है। इससे पूर्व विश्वविद्यालय द्वारा महात्मा गाँधी, राजेन्द्र माथुर, हनुमान प्रसाद पोद्दार, बनारसीदास चतुर्वेदी, माधवराव सप्रे, माखनलाल चतुर्वेदी, हेमंत कुमारी देवी चौधरी, प्रभाष जोशी, मनोहर श्याम जोशी, कर्पूर चंद्र कुलिश, बालकृष्ण शर्मा नवीन, कृष्णानंद गुप्त तथा शिवपूजन सहाय पर प्रामाणिक मोनोलॉग तैयार करवाए गए हैं और यह क्रम जारी है।

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