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रावल (जाति)

रावल राजस्थानऔर गुजरात का एक भारतीय समुदाय है। और यह क्षत्रिय वर्ण में आते हैं [1] [2] [3] [4] [5]

उद्भव

रावलों का 12वीं शताब्दी के आसपास ब्राह्मणों से परिवर्तित होना माना जाता है। [4]

इतिहास

पूर्व समय में, रावल लोग चारणों के गांव-गांव घूमकर रात्रिकालीन कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे। [6] [7]

रावल की रम्मत

रावल अपने रम्मत नामक प्रदर्शनों के लिए जाने जाते हैं, जो प्रकृति में भक्तिपूर्ण हैं जो उनकी संरक्षक देवी को समर्पित होते हैं। यह प्रदर्शन देवी की प्रार्थना के साथ शुरू होता है जिसके बाद प्रदर्शन क्षेत्र को तलवार से चिह्नित किया जाता है। यह रम्मत परंपरा आधुनिक समय में 'लगभग विलुप्त' मानी जाती है। [4]

राजस्थान की लोक नाट्य परम्पराओं के अध्ययन में महेंद्र भानावत, रम्मत की उत्पत्ति के बारे में बताते हैं: [8]

"राजस्थान के रावल, जो अपने विशिष्ट संरक्षकों (चारण यजमानों) से उपहार (विरत) के लिए विभिन्न रूप(स्वांग) धारण करके विभिन्न प्रकार के मनोरंजक प्रदर्शन करते हैं-जिन्हें रम्मत कहते हैं। मुझे बताया गया था कि पुराने समय में रावल, नवरात्रों में देवी का रूप धारण करके देवी की चरजायेँ और भक्ति गीत गाते थे, साथ में मृदंग, ताल, रवज आदि वाघयंत्रों का प्रयोग करते हुए। समय बीतने के साथ, उन्होंने चारणों के सामने खेड़ा प्रदर्शन भी शुरू कर दिया और अलग-अलग प्रतिरूपण (स्वांग) प्रस्तुत किए। एक खेड़ा प्रदर्शन के लिए, एक लड़का देवी की तरह तैयार होगा और दूसरा लड़का अपनी महिला की वेशभूषा में रात भर धार्मिक गीत, नृत्य और ढोल के साथ विभिन्न चरजायेँ पेश करेगा। इन भक्ति प्रदर्शनों को रम्मत के रूप में जाना जाने लगा।” [8]

वंशावली

रावल उन सम्मानित जातियों में से एक हैं जो चारणों के लिए वंशावली लेखन व सरंक्षण का कार्य करते हैं। [4] [9]

आधुनिक व्यवसाय

वर्तमान में, रावल मुख्य रूप से खेती और मोटे सूती कपड़े और टेप की बुनाई के कार्यों में लगे हुए हैं। [6]

जनसंख्या

1961 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में रावल की जनसंख्या लगभग 4500 थी। [6]

अग्रिम पठन

  1. Rājasthāna ke Rāvala By Devilal Samar · 1967

इन्हें भी देखें

मोतीसर

संदर्भ

  1. Kothiyal, Tanuja (2016-03-14). Nomadic Narratives: A History of Mobility and Identity in the Great Indian Desert (अंग्रेज़ी में). Cambridge University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-316-67389-8. Another client caste of the Charans were the Bhands, who sang and danced for the Charans on festive occasions. Their particular form of dance is still popular and called rammat.
  2. Singh, Munshi Hardyal (1990). The castes of Marwar: being Census Report of 1891 (English में). Jodhpur: Books Treasure. OCLC 652191570.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  3. Singh, Hardyal (1990). The Castes of Marwar, Being Census Report of 1891 (अंग्रेज़ी में). Books Treasure.
  4. Mathur, Madan Mohan (2006). Kuchamaṇi Khyal: An Endangered Folk Theatre Style of Rajasthan (अंग्रेज़ी में). Madan Mohan Mathur. Rawals are the caste genealogists of the Charans . They claim to have been converted from the Brahmins in about 1195 A.D. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":0" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  5. Qanungo, Kalika Ranjan; Kānūnago, Kālikā Rañjana (1960). Studies in Rajput History (अंग्रेज़ी में). S. Chand. There are seven categories of persons and communities, who in their turn have a hereditary claim on the Charan’s bounty, and are not allowed to beg of any other community. Besides their kula-guru family of Brahmans living in Ujjain till today, and the purohit (family priest), these are: the Rao Bhat of Chandisa sept of Marwar (who are the Bhats of the Charans as of the Rathors of Marwar); the Rawal Brahmans, the Goind-pota and the Viram-pota (Bhats singing with dhol?) and the Motisar community
  6. Rajasthan, India Superintendent of Census Operations; Mathur, U. B. (1969). Ethnographic Atlas of Rajasthan: With Reference to Scheduled Castes & Scheduled Tribes (अंग्रेज़ी में). Manager of Publications. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":1" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  7. Vidyarthi, Lalita Prasad; Sahay, B. N. (1980). Applied Anthropology and Development in India (अंग्रेज़ी में). National. The Rawals provide entertainment particularly for the people of Charan caste by arranging night long shows.
  8. Bhanawat, Mahendra (1979). Overview of the folk theatre of Rajasthan. Sangeet Natak Akademi, New Delhi. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":2" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  9. Jansen, Jan; Maier, Hendrik M. J. (2004). Epic Adventures: Heroic Narrative in the Oral Performance Traditions of Four Continents (अंग्रेज़ी में). LIT Verlag Münster. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-3-8258-6758-4.