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रावणा राजपूत

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रावणा एक भारतीय जाति है। वे उन जातियों में से हैं जिन्हें दरोगा के नाम से जाना जाता था जो क्षत्रिय होने का दावा करते हैं।[1][2]

रावणा राजपूत एक उप क्षत्रिय है जो सामंत काल में भूमि ना रहने से पर्दा क़ायम न रख सके और अन्य राजपूत जो शासक व जमीदार या जागीरदार थे ने इन्हें निम्न दृष्टि से देख इनपर सामाजिक एवं शारीरिक अत्याचार किये तथा इन पर विभिन्न प्रथाओं को क़ायम कर इनका सामाजिक शोषण किया।…..कालांतर में राजपूत जाती में भी अनेक जातियां निकली। उस व्यवस्था में रावणा राजपूत नाम की जाति राजपूत जाति में से निकलने वाली अंतिम जाती है, जिसकी पहचान के पूर्वनाम दरोगा, हजुरी वज़ीर आदि पदसूचक नाम है।…..रावणा शब्द का अर्थ राव+वर्ण से है अर्थात योद्धा जाति यानी की राजाओं व सामंतों के शासन की सुरक्षा करने वाली एकमात्र जाति जिसे रावणा राजपूत नाम से जाना जाए। इस नाम की शुरुआत तत्कालीन मारवाड़ की रियासत के रीजेंट सर प्रताप सिंह राय बहादुर के संरक्षण में जोधपुर नगर के पुरबियों के बॉस में सन १९१२ में हुई है। जिस समय इस जाति के अनेकानेक लोग मारवाड़ रियासत के रीजेंट के शासन और प्रशासन में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभा रहे थे।”

उल्लेखनीय है कि ‘णा’ प्रत्यय से पुष्कर+णा = ‘पुष्करणा’, बाफ+णा = बाफणा आदि अनेक जातिवाचक संज्ञाएं बनी हैं जो राजपूत जाति की शाखाएँ हैं।

राजपूतों की रावणा शाखा वस्तुतः विभिन्न राजवंशों का समूह है। विभिन्न राजवंशों के राव (शासक) मुस्लिम शासकों से निरन्तर संघर्ष करते हुए राज्यहीन हो गए। उनकी सन्तानें मुस्लिम-साम्राज्य की अधीनस्थ राजपूत रियासतों में दरोगा पदों पर नियुक्त हुए। ठा. जयसिंह बघेला के अनुसार दरोगा डिपार्टमेन्ट के अफसर को कहा जाता था। इस कारण रावणा दरोगा भी कहे जाने लगे।

वर्तमान स्थिति

ऐतिहासिक रूप से, रावण राजपूतों को जाति-आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ा। उच्च जाति के राजपूत उन्हें हीन मानते हैं, विशेषकर वैवाहिक जीवन के लिए। फिर भी, रावण राजपूत खुद को ग्रामीण जाति के पदानुक्रम में सर्वोच्च स्थान देते हैं। [3]

2013 की बिजनेस स्टैंडर्ड रिपोर्ट के अनुसार, रावण राजपूत राजस्थान राज्य की आबादी का लगभग 7% हिस्सा हैं। उन्हें सकारात्मक विकास के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा दिया गया है। [4]

जुलाई 2017 में, रावण राजपूत समुदाय ने गैंगस्टर आनंदपाल सिंह की कथित नकली मुठभेड़ के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन किया, जो उनके समुदाय के थे और उनके गांव में नायक माना जाता था। सिंह को राजपूत-जाट वर्ग के बीच संघर्ष को बढ़ाने के लिए जाना जाता था, और उनकी मृत्यु के बाद हुए आंदोलन ने स्थानीय राजपूत समुदाय को एकजुट किया । [5]

सन्दर्भ

  1. Joshi, Varsha (1995-01-01). Polygamy and Purdah: Women and Society Among Rajputs (अंग्रेज़ी में). Rawat Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7033-275-6.
  2. Singh, K. S. (1998). Rajasthan (अंग्रेज़ी में). Popular Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7154-766-1. मूल से 1 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 मई 2020.
  3. Vinay Kumar Srivastava (1997). Religious renunciation of a pastoral people. Oxford University Press. पृ॰ 266. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-564121-9.
  4. "The Man without a smile". Tehelka Magazine, Vol 9, Issue 13. 31 March 2012. मूल से 6 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जून 2020.
  5. Prakash Bhandari. "DNA ANALYSIS: Raje again demonstrates political acumen in politically sorting out Anandpal case". DNA. मूल से 26 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जून 2020.