रायोलाइट
रायोलाइट (Rhyolite) एक आग्नेय शैल है।
परिचय
रायोलाइट (Rhyolite) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फॉन रिख्योफेन ने सन् १८६१ में किया था। यह ग्रीक शब्द रायक्स (Rhyax) से निकला है, जिसका आशय 'लावा की धारा' होता है। रायोलाइट अधिसिलिक शैल है, जिसमें लावा प्रवाह के चिह्न भली भाँति देखे जा सकते हैं। यह ग्रैनाइट से अत्यधिक साम्य रखता है। रायोलाइट मोटी चादरों, या स्तरों में पाया जाता है। अधिसिलिक होने के करण लावा अपेक्षाकृत अधिक श्यान होता है और रायोलाइट स्तरों की मोटाई उनके विस्तार की तुलना में अल्पसिलिक (basic) लावाओं से कहीं अधिक होती है।
रायोलाइट सामान्यत: सूक्ष्म दानेदार होते हैं और उनमें लावा की प्रवाहशीलता के चिह्न देखे जा सकते हैं। प्रवाहशीलता के ही कारण उनका स्वरूप पट्टित् या पट्टिदार भी होता है। प्राय: उनका गठन पॉर्फ़िराइटी (porphyritic) होता है। स्फटिक (quartz) तथा सेनिडीन (sanidine), या कभी कभी ऑलिगोक्लेस (oligoclase) के अपेक्षाकृत इसके बृहत् और प्राय: संक्षारित क्रिस्टल होते हैं।
कभी तो स्फटिक के बृहत् क्रिस्टलों का प्राधान्य रहता है और कभी क्रिस्टल इतने छोटे होते हैं कि आँखों से इन्हें देखना भी कठिन होता है। आधार द्रव्य (ground mass) प्राय: सघन तथा सूक्ष्मकणिक होता है और टूटने पर शंखाभ भंग दिखाई पड़ता है। रायोलाइट का रंग सामान्यतः हलका श्वेत, पीला, भूरा, या गुलाबी होता है। इसमें कभी कभी छोटी बड़ी, गोलाकार संरचनाएँ भी दिखाई पड़ती हैं।
रायोलाइट के मुख्य खनिज स्फटिक, सेनिडीन, ऑलिगोक्लेस, काला अभ्रक, हार्नब्लेंड तथा काँच हैं। सहायक खनिजों में मैग्नेटाइट, श्वेत अभ्रक, ट्रिडीमाइट, टाइटेनाइट, ऐपाटाइट, ज़रकॉनन, ऐनाटेस, टूरमैलीन, फ्लुओराइट, कुरुविंद, पुखराज आदि उल्लेखनीय हैं।
वर्गीकरण
रासायनिक संघटन के आधार पर रायोलाइट का वर्गीकरण दो भागों में किया जा सकता है: सोडा रायोलाइट एवं पोटैश रायोलाइट। सोडा रायोलाइट के अंतर्गत ऐनॉर्थोक्लेस, या सोडा सेनिडीन, ऐल्बाइट और स्फटिक, ट्रिडीमाइट या क्रिस्टोबलाइट, सोडा ऐंफिबोल या सोडा-पाइरॉक्सीन आते हैं। सोडा रायोलाइट (soda Rhyolite) को पैटेलेराइट (Pantellerite) भी कहते हैं।
पोटैश रायोलाइट के अंतर्गत ऑर्थोक्लेस, या सेनिडीन, फ़ेल्सपार आदि आते हैं, जो कुछ अधिकता से पाए जाते हैं और कुछ विरल हैं, जैसे औज़ाइट, या हाइपरस्थीन।
रायोलाइट के एक विशेष प्रकार का नाम नेवाडाइट (Nevadite) रखा गया है। सुविकसित क्रिस्टल अत्यंत न्यून मात्रा वाले आधार द्रव्य (ground mass) में अंत:स्थापित होते हैं। आधार द्रव्य का अनुपात इतना कम रहता है कि प्रथम दृष्टि में ये शैल वितलीय (plutonic) मालूम पड़ते हैं। ये बृहत् क्रिस्टल (phenocryts) संक्षारण संरचना (corrosion structure) को प्रदर्शित करते हैं।
उत्पत्ति
पृथ्वी के गर्भ में उत्पन्न मैग्मा धरती तल पर फैलते समय तेजी से ठंडा होता है। इस द्रुत शीतलन के कारण खनिजों का आकार सूक्ष्मतर हो जाता है और कभी कभी तो लावा नितांत काँचाभ (glassy) रूप में ढल जाता है। रायोलाइट के ऐसे काँचाभ रूप को ऑब्सीडियन (Obsidian), या पिचस्टोन (Pitchstone) कहते हैं। रायोलाइट लावा दूर तक नहीं फैल पाता, अत: रायोलाइट के मोटे मोटे स्तर (flows) बन जाते हैं। अधिक श्यानता के कारण ही रायोलाइट लावा के उच्च ताप (high temperature) के द्योतक हैं।
भारतीय रायोलाइट
राजस्थान प्रदेश के जोधपुर जिले के मलानी क्षेत्र में कैंब्रियन पूर्व महाकल्प (Pre-cambrian era) के रायोलाइट पाए जाते हैं। कई हजार वर्ग मील में फैले हुए ये लावास्तर आंशिक रूप से काँचाभ है और बादामाकार संरचना प्रदर्शित करते हैं। रायोलाइट के स्तर टफ़् (tuff) एवं ज्वालाश्मचय (agglomerate) के सग संस्तरित हैं। उत्तर प्रदेश में सोनघाटी और मध्य प्रदेश के सरगुजा तथा डोंगरगढ़ जिलों में भी समकालीन रायोलाइटी टफ़् मिलते हैं।
गुजरात में बड़ोदरा (बड़ौदा) के निकट पावागढ़ की पहाड़ी का शीर्ष और जूनागढ़ के निकट ओशाम पहाड़ी रायोलाइट के स्तरों से ही बनी है। पश्चिमी घाट के पहाड़ों में भी रायोलाइट छिट पुट मिलते हैं।
बाहरी कड़ियाँ
- A sample of Rhyolite from the Conical Hill dome at the head Lyttelton Harbour, Banks Peninsula, New Zealand