सामग्री पर जाएँ

राजा धवल मौर्य

राजा धवल मौर्य
धवल मोरी (संस्कृत - मौर्य) का साम्राज्य अपने शीर्ष शिखर पर । इस साम्राज्य के संस्थापक चित्रांगद थे ।
शासनावधिल.  644 CE
उत्तरवर्तीमहारत मोरी
निधन670 CE
राजवंशमोरिय (मौर्य ) क्षत्रिय राजवंश
धर्मसनातन धर्म

राजा धवल मोरी एक मौर्यवंशी राजा थे जिनके विषय में जानकारी कोटा के कंसवा शिलालेख और दबोक, मेवाड़ शिलालेख से मिलती है ।[1][2]

कंसवा शिलालेख में एक प्राचीन शिव मंदिर तीर्थस्थल उल्लेखित करने के साथ ही लिखा हुआ है कि यह कण्व ऋषि का प्राचीन आश्रम है जहाँ शकुंतला का पालन पोषण हुआ था। यह माना जाता है कि इस स्थान की धार्मिक महत्ता को समझकर चित्तौड़गढ़ के राजा धवल मौर्य के सामंत शिवगण ने विक्रमी संवत 795 में यहाँ इस मंदिर का निर्माण कराया था। [3]शिवगण एक ब्राह्मण था और उसने यहाँ भव्य शिवमंदिर का निर्माण करवा कर वैदिक कालीन महर्षि कण्व के आश्रम को अमरत्व प्रदान किया। इस मंदिर का समय समय पर कोटा के हाड़ा वंशीय शासकों ने भी जीर्णोद्धार कराया था।[4]

धवल मोरी के परदादा चित्रांगद मौर्य द्वारा बनवाया गया चित्तौड़गढ़ किला
धवल का दबोक अभिलेख

(कंसवा शिलालेख[5]):

५ भूभृतां इ दूर-अभ्यगत-वाहिनी-परिकरो रत्न-प्रकार्-[ज*]ज्वलः श्रीमान्। इत्थम्-अदार-सागर-समो मौर्य-अन्वयो दृश्यते ॥ दिज्ञागा इव जात्य-सम्भृत-मुदो दान-०[ज*]ज्वलैर्-आननैर्->विस्र(श्र)म्भेन रमन्त्य्-अभीत-मनसो मान्-उद्धुरास्-सर्वतः। सद्वंशत्व-वस-प्रसिद्ध-यससो यस्मिन् प्रसिद्ध गुणैः श्लाघ्या भद्रतया॥

६ छ सत्त्व-बहुल-ब पक्षैस्-ससम् (मम्) भूभृतः इत्थम् भवत्सु भुपेषु भुम्जत्सु सकलां महीम् धवल-आत्मा नृपस्-तत्त्र यससा धवलो-भवत् ॥ कय्-आदि-प्रकत्-आर्जितैर्-अहर्-अह[ब*] स्वैर्-एव दोषैः सदा निर्व्वस्त्रा[*] सतत-क्षुध[ह*] प्रति-दिनम् स्पष्टीभवय् (द)-यातनाः। रात्रि-सरिचरना भृसं पर-गृहेष्व्=इत्थम् विजित्य=आरयोः येन् आद्य== आपि नरेन्द्र-


Translation (in English):

(L. 5).-The rulers (born) in this Mauryan race , like the elephants of the quarters, filling the noble with joy by (their) faces bright with generosity (as with rutting-juice) together with their adherents confidently take delight everywhere, undaunted of mind (and) exulting in (their) pride, of known renown on account of (their) good lineage (and) known for (their) virtues, praiseworthy for probity and full of energy.

(L. 6).-Among these kings, who were such (and) who ruled the whole earth, there was a prince who, Dhavala as he was, was dazzling by (his) fame. For their own sins, which day by day they always openly brought on themselves by their bodies and so forth, he defeated (his) enemies and reduced the wretches to such a state that, like evil spirits, naked (and) ever famishing (and thus) day by day revealing the punishment (meted out to them, and) again and again wandering at night to strangers' houses, they even now are kings.

सन्दर्भ

  1. link (2012-06-11). "कोटा के कंसुआ का प्राचीन शिव मंदिर है भरत की स्थली और कण्व ऋषि का आश्रम" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-08-13.
  2. "pg.201 :कोटा के कंसवा के शिवमन्दिर के ई.स.738 के लेख में मौर्यवंशी राजा धवल का नाम मिलता है।"Dr. Gaorishankar (1954). Aojha. पृ॰ 201.
  3. "आइये जाने Kota में चंबल नदी के तट पर स्थित Kansua Temple के इतिहास के बारे में". aapkarajasthan.com. 2022-01-01. अभिगमन तिथि 2023-08-13.
  4. "KANSWA TEMPLE | ARCHAEOLOGICAL SURVEY OF INDIA JAIPUR CIRCLE". asijaipurcircle.nic.in. अभिगमन तिथि 2023-08-13.
  5. Thakurdas (1914). Shri Bharat Varsiya Digamber Jain Directory.