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राजस्थान मे शिक्षा

माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान

आधुनिक शिक्षा के चलते राजस्थान बोर्ड का शिक्षा के प्रति मूल्यान्कन करना एक बहुत ही संशय का विषय है। एक बालिका पवित्रा भदौरिया से मेरी मुलाकात हुई उसने लगातार तीन साल तक दसवीं की परीक्षा दी और लगातार तीनो बार ही वह गणित अंग्रेजी में सप्लीमेंटरी की परीक्षा के लिये चुनी गई, तीनो बार ही उसने दोनो विषयों की परीक्षा दी, दोनो विषयों का पुनर्मूल्यांकन करवाया, मगर एक ही जबाब आया जो कि सभी जानते हैं, कि वह फ़ेल हो गई। उसने अपने तीन साल कितनी परेशानियों से गुजारे, वह गरीब घर में पैदा हो गई उसकी जान पहिचान किसी बोर्ड के अफ़सर से नहीं थी, जो लोग जा सकते थे, वे गोपनीय शाखा में जाकर विषयों का पुनर्मूल्यांकन करवाकर पास हो गये, लेकिन जो नहीं जा सकते थे वे फ़ेल के नाम से घोषित कर दिये गये।

सरकारी दावे और शिक्षा बोर्ड

सचिव की नियुक्ति करते समय ख्याल किया जाता है वह सम्पूर्ण परीक्षा प्रणाली को स्थान, विषय, विद्यार्थी, और माहौल के हिसाब से परखे, फ़िर उसके जीवन का निर्णय करे, और जब सचिव इन बातों का ध्यान नहीं रखता है तो वह एक बहुत बडी गल्ती के अन्दर आ जाता है, जो कभी किसी भी दंड से पूरित नहीं की जा सकती है, राजस्थान शिक्षा बोर्ड एक व्यवसायिक स्थान के रूप में जाना जाता है, अधिकतर सिन्धी समुदाय के लोग इस संस्थान में काम करते है, सभी लोग जानते हैं कि सिन्धी समुदाय किसी भी ह्रदय की फ़ीलिन्ग को नहीं जानता है, वह केवल पैसे को जानता है, जो लोग अपने द्वारा कापियां जांचने के लिये अधिक से अधिक पैसों का बन्दोवस्त करते हैं उनको अधिक कापिंया दी जाती है, साधारण से अध्यापक जो प्राइमरी स्कूल में शिक्षा देते हैं वे ही कापियां जांचते है, आज भी लेख सुधारो का ख्याल उनके मन मे है, जबकि आज का विद्यार्थी केवल कम्प्यूटर का की बोर्ड ही जानता है, और बोल कर लिखने वाला सोफ़्टवेयर भी आ गया है, तब अध्यापक जो कापी जांचता है, वह लेख का ख्याल रखता है, तो आज से पचास साल पीछे वह जाता है और विद्यार्थी को उसके इस पुराने तरीके के कारण अपना साल भर का परिश्रम बेकार करना पडता है। जब जोडने घटाने के लिये केलकुलेटर आ गये है, पलक झपकते ही लेपटोप अपना हिसाब सामने रखदेता है तो जोडने घटाने के लिये और फ़ार्मूला याद करने की कौन जोखिम लेगा, जब अध्यापक कापिंया जांच कर बोर्ड को देता है, तो सुपरवाइजर खाना पूरी के लिये हर लोट से दस कापियां निकालता है और चेकिन्ग के नाम पर वह भी अपनी दिमागी शक्ति को खराब नहीं करता है और जो भी उसे सौगात पहुंचा देता है, उसका ही लोट सफ़ल जांचकर्ता के रूप में माना जाता है।

अध्यापक द्वारा कापियां जांचने का तरीका

अध्यापक अपने अवकाश का प्रयोग करने और अतिरिक्त कमाई करने के चक्कर में कापियां जांचने का काम हाथ मे ले लेता है। वह अपने अवकास के कामों के साथ कापियां जांचने का काम करता है, उसके लिये कापियां जांचने का एक समय दे दिया जाता है, भारतीय समय के और हिन्दू शास्त्रीय मतानुसार शादी विवाह का यही समय होता है, कापिंया जांचने वाले के किसी रिस्तेदार की शादी तो होगी ही, और नहीं होगी तो वह किसी के निमत्रण के अन्दर अपने को शामिल तो करेगा ही, और इधर कापिंया जांचने का काम भी करना है, वह सभी काम करता है, कापियां भी जांचता है, और अपने को अवकास का पूरा फ़ल भी लेने की कोशिश करता है, अधिकतर वे कापियां उसके निजी लोग जांचते है, और जिस प्रकार से बोर्ड के द्वारा फ़ार्मूला लिख दिया जाता है, उसे उसी फ़ार्मूले का प्रयोग करने के बाद सवाल को हल किये हुए विद्यार्थी को पास या फ़ेल करना होता है, अगर विद्यार्थी दो और दो को जोडने में २+२=४, का फ़ार्मूला प्रयोग करता है और यही फ़ार्मूला बोर्ड ने लिख कर दिया है तो वह विद्यार्थी पास हो जाता है, और अगर उसने २ और २ बराबर ४ लिखा है तो वह फ़ेल कर दिया जायेगा, इस प्रकार से विद्यार्थी का दिमागी पावर न देखकर केवल फ़ार्मूलो पर पास फ़ेल करने का काम उसके घर वाले अपने खाली समय में पूरा कर लेते है। अगर अध्यापक की तू तू में में अपनी पत्नी के साथ हो गयी, तो और भी विद्यार्थियों की आफ़त आ जाती है, वह अपने गुस्से को कापियों पर उतारता है, साथ ही राजस्थान मे शराब का चलन भी खूब है, और कापियां जांचने का काम अधिकतर शाम को ही होता है, अवकास का पूरा मजा लेने के चक्कर में अध्यापक शराब का सेवन करके कापियां जांचने बैठता है तो पता नहीं कौन पास होगा और कौन फ़ेल इसका तो भगवान भी मालिक नहीं होगा।

प्राइवेट स्कूल और सरकारी स्कूल

प्राइवेट स्कूलो मे अनुसाशन की अधिक पालना और अधिक शिक्षित बेरोजगारों का फ़ायदा उठा कर वे विद्यार्थियों को उचित शिक्षा के साथ साप्ताहिक मासिक और अर्धवार्षिक टेस्ट लेकर विद्यार्थी का मूल्यांकन करते रहते हैं, और अगर किसी भी मूल्यांकन मे वह असफ़ल रहता है तो उसे बाहर निकालदेते है, जबकि सरकारी विद्यालय अपने हाजिरी रजिस्टर के अन्दर अधिक से अधिक विद्यार्थियों को दिखाकर अपनी साख तो दिखाते है लेकिन विद्यार्थी के ज्ञान का कोई मूल्यांकन नहीं किया जाता, नाम मात्र के लिये छमाही का मूल्यांकन कर लिया जाता है, जो कि उसी विद्यालय के शिक्षक करते है, और वे प्रधानाध्यापक की नजर में अपने को न गिरने देने के लिये परीक्षार्थियों को पास या फ़ेल करने के अन्दर केवल पास करने मे ही अपनी भलाई समझते है।

२००७ का दसवीं का रिजल्ट ४००००० में केवल १००००० ही पास

तीन लाख विद्यार्थियों का भविष्य जिस प्रकार से राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने बिगाडा है वह एक इतिहास मे लिखने वाली बात है साथ ही जिस प्रकार से जो भी विद्यार्थी सप्लीमेंटरी मे बैठा वह भी बहुत ही प्रयास के बाद पास हो सका और उसमे भी एक चौथाई विद्यार्थी तो पास हुए और बाकी फ़ेल होकर अपने जीवन के प्रति सन्नटे में बैठकर भविष्य के प्रति सिवाय रोने और अपने को इस राजस्थान मे पैदा होने के दुख से पूरित करने के और उनके पास कोई चारा है, सौ में से सत्तर लोगो ने अपने बच्चो को स्कूल छुटा दिये है, या तो उनको बाहर के प्रान्तों मे शिक्षा के प्रति भेज दिया है, या फ़िर शिक्षा को छुडाकर मजदूरी वाले कामों के अन्दर लगा दिया है।

बाहरी कडि़यां