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राजनयिक उन्मुक्‍ति

राजनयिक प्रतिनिधि अपने कार्य एवं दायित्वों को सम्पन्न कर सकें, इसलिए उन्हें अनेक विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियां (immunities) प्रदान की जाती हैं। ये विशेषाधिकार रिवाजी एवं अभिसमयात्मक कानूनों पर आधारित होते हैं। राजदूतों के स्वतंत्र कार्य संचालन के लिए ऐसी व्यवस्था की जाती है ताकि वे अपना पत्त्र-व्यवहार गुप्त रख सकें और उन पर किसी प्रकार के भय तथा दबाव का प्रयोग नहीं किया जा सके। उन्हें स्वागतकर्ता राज्य के न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से मुक्ति प्रदान की जाती है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून के मुख्य विचारक ओपेन होम के कथनानुसार ,

राजनयिक प्रतिनिधि राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनका गौरव होता है। वे अपने कार्यों को पूरी तरह तभी सम्पन्न कर सकेंगे जब उन्हें विशेषाधिकार सौंपे जायें।

आजकल सामान्यतः निम्नलिखित विशेषाधिकारों एवं उन्मुक्तियों को उचित माना जाता है :-

व्यक्तिगत अनतिक्रम्यता (Personal Inviolability)

राजनयिक अभिकर्त्ताओं को उतना ही पवित्रा माना जाता है जितना कि राज्य का अध्यक्ष। अतः उनको अपने शरीर की भी रक्षा की विशेष सुविधा दी जाती है तथा स्वागतकर्त्ता राज्य के कानेनी क्षेत्राधिकार से अलग रखा जाता है। राजदूत पर किया गया आक्रमण उनके राज्य पर किया गया आक्रमण है जो युद्ध का कारण बन जाता है। अतः उसे विशेषाधिकार सौंपे जाते हैं। राजदूत को दी गई सुरक्षा अंशतः अथवा पूर्ण नहीं होती। यदि राजनयज्ञ कोई गैर-कानूनी कार्य करे तो स्वागतकर्त्ता राज्य आत्म-रक्षा के लिए कदम उठा सकता है।

प्राचीन भारतीय विचारकों ने दूत को शारीरिक क्षति पहुचांना, मारना अथवा बन्धन में रखना निन्दनीय कार्य बताया है। कौटिल्य के अनुसार दूत चाण्डाल होने पर भी अवध्य है। महाभारत के शान्तिपर्व में भीष्म नें युधिष्ठिर को बताया कि दूत को मारने वाला नरक गामी और भ्रूण हत्या के पाप का भागी होता है। आजकल अन्तर्राष्ट्रीय कानून और न्यायालय के निर्णयों द्वारा यह सुस्थापित हो चुका है कि किसी राजदूत को बन्दी बनाना तथा उसका माल जब्त करना अवैध है। यहां तक कि शत्राराज्य के दूत को हानि पहुंचाना भी उचित नहीं है। यदि उत्तेजना में किसी दूतावास को हानि पहुँचाई जाती है तो सम्बन्धित राज्य को इसका मुआवजा दिया जाना चाहिये।

स्पष्ट है कि दूत की अवध्यता का अर्थ उसे पूर्ण सुरक्षा प्रदान करना है। यह अनतिक्रम्यता है। इसके अनुसार दूत का शरीर इतना पवित्रा माना जाता है कि कोई व्यक्ति हिंसा या उपद्रव द्वारा उसकी क्षति नहीं कर सकता। न्यायालय उस पर मुकद्दमा चलाकर दण्डित नहीं कर सकते। दूत के सहयोगी व्यक्तियों और वस्तुओं को सुरक्षा प्रदान की जाती है। उसका परिवार, अनुचर-वर्ग, गाड़ियां, पत्र-व्यवहार आदि अनतिक्रम्य समझे जाते हैं। देश का दण्ड विधान उस पर लागू नहीं होता। इस संदर्भ में राजदूत का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह आत्मनियन्त्राण से काम ले और स्वागतकर्त्ता देश के कानून का आदर करे। लार्ड मेहोन के कथनानुसार ”यदि कोई दूत स्वागतकर्त्ता राज्य की सरकार के विरुद्ध षडयंत्रा करता है तो वह अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करता है। उसके विशेषाधिकारों की शर्त यह है कि वह अपने कर्तव्यों की सीमा का उल्लंघन नहीं करे। यदि उसने ऐसा किया तो स्वागतकर्त्ता राज्य अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक कार्यवाही कर सकता है। यदि कोई राजदूत स्वयं ही आग में कूद पड़े तो अनतिक्रम्यता का दावा नहीं कर सकता। यदि वह अनियंत्रित भीड़ में अपने को डाल दे तो उसके अधिकारों की रक्षा नहीं की जा सकती।

राज्य क्षेत्रा बाह्यता (Extra Territoriality)

राजदूतों एवं उनके परिवार के सभी सदस्यों को स्वागतकर्त्ता राज्य के बाहर रखा जाता है। उन्हें स्थानीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्तियां प्रदान की जाती हैं। यह अधिकार अन्तर्राष्ट्रीय कानून के क्षेत्रा में एक नया विकास है, प्राचीन विचारकों के लिए यह अज्ञात था। पहली बार इसे ग्रीशियस की रचनाओं में स्पष्ट किया गया। प्रो0 ओपेनहोम के मतानुसार राज्य-क्षेत्रा बाह्यता एक कल्पना मात्रा है। क्योंकि राजनयज्ञ यथार्थ में स्वागतकर्त्ता राज्य के प्रदेश में रहता है। वह राज्य के कानूनी दायित्व से मुक्त नहीं रहता। किंन्तु वहां के न्यायालय के क्षेत्राधिकार से मुक्त रहता है। अनेक मामलों में यह सिद्ध हो चुका हे कि राज्य-क्षेत्रा बाह्यता केवल साहित्यिक अर्थ में महत्व रखती है। 1934 में बर्लिन स्थित अफगान राजदूत की हत्या हो गई। इस मामले में जर्मन न्यायालय ने यह तर्क स्वीकार नहीं किया कि अफगान दूतावास में घटित यह घटना जर्मन प्रदेश से बाहर है।

निवास स्थान की उन्मुक्ति (Immunity of Domicile)

राजदूत को निवास स्थान सम्बन्धी उन्मुक्तियां प्रदान की जाती हैं। राज्य की पुलिस, न्यायालय तथा न्यायालय का कोई कर्मचारी इसमें प्रवेश नहीं कर सकता। यदि इस प्रदेश में कोई अपराधी प्रवेश कर जाये तो दूतावास के अधिकारियों का कर्त्तव्य है कि वे उस राज्य को सौंप दें। अपने इस विशेषाधिकार का दुरुपयोग करके दूतावास अपराधियों के अड्डे नहीं बन सकते। ऐसा होने पर राज्य आवश्यक कदम उठा सकता है। घुड़साल एवं मोटर गैरिज को निवास-स्थान का भाग माना जाता है। निवास-स्थान में राज्य के अधिकारियों का प्रवेश दूतावास के अधिकारी की अनुमति से ही होता है। अनेक बार दूतावास शरण पाने के इच्छुक अपराधियों को शरणदान देता है। यदि राज्य न्यायिक कार्यवाही के लिए उस अपराधी की मांग करे तो दूतावास को उसे सौंपने का कर्त्तव्य है। यदि राजदूत ऐसा न करे तो स्वागतकर्त्ता राज्य उसे शारीरिक क्षति पहुंचाने के अतिरिक्त कोई भी कदम उठा सकता है।

विदेशी दूतावास में शरणदान (Asylum in Foreign Legations)

दूतावास में राजनीतिक अपराधियों को शरण देने के सम्बन्ध मेंं विभिन्न देशों में अलग-अलग व्यवस्थायें हैं। प्रारम्भ में अधिकांश राज्यों के दूतावासों में ऐसे शरणदान की परम्परा थी। आजकल यह केवल दक्षिण अमेरिका क राज्यों में है। दूसरे राज्यों में दूतावासों का यह विशेषाधिकार नहीं है कि वे अपनी इमारतों में राजनीतिक अपराधियों को शरण दे सकें। यदि राजदूत ऐसा करे तो स्थानीय सरकार शक्ति का प्रयोग करके अपराधी को पकड़़ सकती है। मानवीय दृष्टि से ऐसे लोगों को दूतावास में शरण दी जा सकती है जो उत्तेजित भीड़ या गैर-कानूनी कार्य करने वालों के आक्रमण से भयभीत हो।

फौजदारी क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति (Exemption from Criminal Jurisdiction)

राजनीतिक अभिकर्त्ताओं को स्वागतकर्त्ता राज्य के फौजदारी क्षेत्राधिकार से पूर्ण उन्मुक्ति प्रदान की जाती है। कानून और व्यवस्था के नाम पर उनको बन्दी नहीं बनाया जा सकता। पुलिस द्वारा इन्हें पकड़ कर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इनसे यह आशा की जाती है कि अपराध न करें और स्वागतकर्त्ता राज्य के कानून की स्वेच्छा से पालन करे। ऐसा न करने पर उन्हें प्रेषक राज्य को वापिस भेजने तथा उनके देश में दण्ड देने की व्यवस्था की जा सकती है। राजा या राज्य के विरुद्ध षड्यन्त्रा में शामिल होने वाले दूतों को प्रायः स्वदेश वापिस जाने के लिए बाध्य किया जा सकता है।

दीवानी क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति (Exemption from Civil Juridiction)

दूतावास के सदस्यों पर कोई दीवानी कार्यवाही नहीं की जा सकती। उन्हें ऋण न चुकाने पर बन्दी नहीं बनाया जा सकता और न ही उनकी गाड़ियों, घोड़ों तथा साज-सामान को जब्त किया जा सकता है। ग्रोशियस का कहना था कि ”राजदूत की व्यक्तिगत सम्पत्ति न्यायालय या सम्प्रभु राजा के आदेशों से ऋणों की अदायगी या सुरक्षा के लिए जब्त नहीं की जा सकती।“ यह विशेषाधिकार राजदूत को चिन्तामुक्त रहकर कार्य करने के लिए दिया जाता है। ग्रेट-ब्रिटेन में 1708 में एक कानून बनाया गया जिसके अनुसार यदि राजदूत कर्ज अदा नहीं करता तो उसके विरुद्ध सम्मन जारी नहीं किया जा सकता। संयुक्त राज्य अमेरिका में कांग्रेस के कानून द्वारा राजदूत के विरुद्ध की गई कार्यवाही को असंवैधानिक घोषित किया गया है। दीवानी क्षेत्राधिकार से मुक्ति के कुछ अपवाद भी हैं।

गवाही देने के कार्य से उन्मुक्ति

राजदूत को किसी मामले में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। उसे गवाही के लिए न तो किसी न्यायालय में बुलाया जा सकता है और न ही घर जाकर कोई अधिकारी उसकी गवाही ले सकता है। यदि वह स्वयं गवाही देने के लिए राजी जो तो न्यायालय उसके प्रमाण का लाभ उठा सकते हैं। 1881 में अमेरिकी राष्टंपति गोरफील्ड की हत्या के समय बेनेजुएला का राजदूत वहां उपिंस्थत था। वह अपनी सरकार से अनुमति प्राप्त करके गवाह बन गया। राजदूत चाहे तो गवाही देने की प्रार्थना को ठुकरा सकता है। 1856 में हालैण्ड के राजदूत ने एक नर हत्या का काण्ड देखा था किन्तु अदालत में इसकी गवाही देने से मना कर दिया।

पुलिस से उन्मुक्ति

राजदूत को स्वागतकर्त्ता राज्य की पुलिस से अलग रखा जाता है। वहां की पुलिस के आदेश एवं नियमन उस पर बा ध्यकारी नहीं होते। दूसरी ओर जिन विषयों पर पुलिस नियंत्राण रखती है उन पर राजदूत मनमानी नहीं कर सकता। यह आशा की जाती है कि राजदूत उन सभी आज्ञाओं एवं नियमों का पालन करेगा जो उसके मार्ग में बाधक नहीं हैं और समाज की सामान्य सुरक्षा एवं व्यवस्था के लिए उपयोगी है। यदि राजदूत ऐसा न करे तो प्रेषक सरकार को उसे वापिस बुलाने की प्रार्थना की जा सकती है।

करों से उन्मुक्ति

राजनयिक विशेषाधिकार का सबसे उत्कृष्ट अधिकार करों से उन्मुक्ति है। प्रेषित राज्य के अध्यक्ष के प्रतिनिधि होने के आधार पर राजनयिक सभी प्रकार के करों से मुक्त होता है। थेयर का मत है कि ”राजनयिक अधिकारों में सबसे प्रिय अधिकार करों से स्वतन्त्रता है।“ इसी प्रकार हॉल का भी मत है कि ”राजनयिक अभिकर्त्ता स्वयं, उसकी व्यक्तिगत वस्तुएं तथा वह सम्पत्ति जो उसके प्रभु के प्रतिनिधि के रूप में उसकी है, कर मुक्त है।“ 1928 के पान अमेरिकन कन्वेन्शन की धारा 18 द्वारा राजनयिकों को करों से उन्मुक्ति दी गई है। इस धारा के अनुसार, राजनयिक अधिकारीगण उस राज्य में जहां से प्रत्यापित है, करों से मुक्त होंगे-

  • (१) सभी व्यक्तिगत कर, चाहे वे राष्टीय हों या स्थानीय
  • (२) सभी राजदूतावास की उन इमारतों पर लागू होने वाले भूमि कर, जो उनकी अपनी सरकार की सम्पत्ति हो, उन वस्तुओं पर सीमा शुल्क जो राजदूतावास में सरकारी उपयोग में अथवा राजनयिक अधिकारी से व्यक्तिगत या उसके परिवार के उपयोग में आने वाली हों। 1961 से 1963 के वियाना सम्मेलनों की धारा 34 और धारा 49 और 50 में भी राजनयिक अभिकर्त्ताओं की करों से उन्मुक्ति का वर्णन है।

साधारणतः राजनयिक सीमा कर, मोटर कर, आयकर, स्थानीय कर, रेडियो शुल्क आदि से उन्मुक्ति होती है। कुछ देशों में राजनयिकों को नगरपालिका सम्बन्धी कर-सफाई, रोशी, पानी आदि-अवश्य देने पड़ते हैं। इस प्रकार राजनयिक राष्ट्रीय, प्रान्तीय, क्षेत्राय अथवा स्थानीय करों तथा सीमा करों से मुक्त होते हैं। सीमा करों के सम्बन्ध में वाटल का मत है कि राजदूत को इससे काई छूट नही होनी चाहिये क्योंकि इस कर का उसके कार्य भार से कोई सम्बन्ध नहीं है, परन्तु वाटेल इस मत से सहमत हैं कि राजदूत को सभी प्रकार के करों से निश्चित ही स्वतन्त्र होना चाहिये। सीमा करों से सम्बन्धित एक अपवाद यह है कि यदि सीमा अधिकारी यह अनुभव करे कि राजदूत द्वारा आयातित वस्तुओं में कोई अनियमितता है तो वे राजनयिक अधिकारों और उन्मुक्तियों को परे हटाकर राजदूत के समान का निरीक्षण कर सकते हैं जैसे कि 1905 में संयुक्त राज्य अमेरिका के राजदूत हैनरी व्हाइट के सामान का आस्टिंयन सीमा अधिकारियों ने निरीक्षण किया था।

धार्मिक अधिकार (Right of Chapel)

राजनयिकों को अपने धर्म के मानने व पूजा करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। इस हेतू यदि वे चाहें तो अपने निवास में पूजा गृह स्थापित कर सकते हैं तथा धर्म पुरोहितों को अपने साथ ले जा सकते हैं। इन धर्म पुरोहितों को भी राजनयिकों की भांति सभी उन्मुक्तियां एवं अधिकार प्राप्त हैं। इन पूजा गृहों में राजदूत के देश के अन्य निवासी भी पूजा में शामिल हो सकते हैं। जहाँ दूतों को इस प्रकार की धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गई है, वहां उन पर कुछ नियन्त्राण भी हैं। ऐसे स्थानों पर गिरजे या मन्दिर के घंटे नहीं बजाये जा सकते। धार्मिक स्थान बाहर से ऐसा नहीं दिखे कि वह पूजा गृह है तथा पूजा की भाषा स्वीकारी देश की ही हो। 1846 में प्रशा के पूजा गृह की भाषा इतावली नहीं होने पर पोप ने ये निर्देश दिया था कि पूजा की भाषा बदली जाये। धार्मिक स्वतन्त्रता के प्रयोग पर नियन्त्राण का एक उदाहरण उस समय का है जब फिलिप द्वितीय ने रानी ऐलिजाबेथ के लेगेशनवासियों को धार्मिक स्वतन्त्रता का यह अधिकार नहीं दिया था। अन्यथा मध्य युग से राजदूत, उसके परिवार, उसके कर्मचारियो तथा उसके देशवासियों को दूतावास में धर्म तथा पूजा के पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं।

पत्राचार की स्वतन्त्रता (Freedom of Communication)

अपने कर्त्तव्य की पूर्ति हेतु राजनयिकों को अपने देश की सरकार के साथ पत्राचार की पूर्ण स्वतन्त्रता है। सामान्यतया शान्ति काल में इस नियम का अतिक्रमण नहीं होता है। राजनयिक पत्राचार का सील बन्द दूतावास प्रेष (Diplomatic Bag) खोला नहीं जा सकता। वे व्यक्ति हो सन्देशवाहक (messengers and couriers) का काम करते हैं, किसी भी प्रकार के स्थानीय नियमों के अन्तर्गत नहीं आते। कभी-कभी सील बन्द दूतावास प्रेस में घड़ी, कैमरे आदि अन्य बहुमूल्य वस्तुएं ले जाकर पत्राचार की स्वतन्त्रता का दुरुपयोग भी किया जाता है इसलिए सन्देह होने पर पत्राचार की स्वतन्त्रता के अधिकारी के विरुद्ध स्वीकारी राज्य दूतावास प्रेष को खोल लेते हैं। अक्टूबर, 1976 में उत्तरी कोरिया की सरकार ने अपने राजदूत और कई अन्य राजनयिक अभिकर्त्ताओं को प्योनग्यांग वापिस बुला लिया क्योंकि स्वीडन सरकार ने उन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने दूतावास प्रेष के जरिये चीजें भेजने का धंधा कर रखा था। डेनमार्क, नार्वे और स्वीडन की भांति, फिनलैंड की सरकार ने भी चार राजनयिक अभिकर्त्ताओं को देश छोड़कर जाने की आज्ञा दी थी। 1977 में कीनिया उच्चायुक्त के तीन राजनयिक अभिकर्त्ताओं के सामान की जांच होने पर सात लाख से ऊपर की घड़ियां निकलीं। राजनयिक उन्मुक्ति के कारण उन्हें छोड़ देना पड़ा। बाद में उन्हें देश छोड़ कर जाना पड़ा। छोटे-बड़े सभी राज्य दूतावास प्रेष का दुरुपयोग करते हैं। इस सम्बन्ध में ( दिसम्बर, 1971 को) एक गोष्ठी में यह खुलकर आरोप लगाया गया था कि राजदूत प्रायः दूतावास प्रेष में पुरानी मूर्तियां व चित्रा आदि की चोरी कर अपने देश भेजते हैं। न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) का बहाना बनाकर दो अमरीकी संस्थाओं (FBI तथा CIA) ने 1958 से लेकर 1971 तक दूतावास प्रेषों को खोलकर रूस तथा पूर्वी यूरोपीय साम्यवादी देशों के पत्राचार का खुला अध्ययन किया था। ऐसा करने के लिए उनके पास कोई कानूनी आज्ञा नहीं थी, परन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पा यह सब कुछ होता रहा। रॉकफेलर कमीशन ने भी इस मत की पुष्टि की थी। इस सन्दर्भ में भारत सरकार ने कुछ विदेशी राजदूतों को दूतावास में चोरी का माल ले जाने के आरोप में पकड़ा तथा भारत के कड़ा विरोध प्रकट करने पर उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने आप ही द्वितीय महायुद्ध के छिड़ जाने पर राजनयिक पत्राचार के युद्ध के सन्दर्भ में कुछ नियमों का निर्माण किया था जिससे पत्राचार की स्वतन्त्रता बनी रहे।

व्यावसायिक कार्य (Business Activities)

कुछ लेखकों के मतानुसार राजदूतों को व्यापारिक कार्यों की उन्मुक्ति नहीं देनी चाहिये। यदि राजदूत के पास उसके कार्यालय और निवास के अतिरिक्त कोई वास्तविक सम्पत्ति है तो इस पर कर लगाया जा सकता है। एक राजदूत द्वारा निजी व्यवसाय किए जाने पर अभियोग चलाया जा सकता है। अनेक विचारक इस मत का समर्थन करते हैं। किन्तु समस्या यह है कि राजदूत की व्यक्तिगत सम्पत्ति और उन्मुक्ति से युक्त सम्पत्ति के बीच अन्तर किस प्रकार किया जाये।

अनुचर वर्ग के लिए उन्मुक्तियां (Immunities for Retinue)

राजदूत को जो विशेषाधिकार सौंपे जाते हैं वे एक सीमा तक उसके अनुचर वर्ग को भी प्राप्त होते हैं। इनमें दूतावास में काम करने वाले कर्मचारी, दूत के व्यक्तिगत सेवक, उसके पारिवारिक-जन तथा नौकर-चाकर शामिल हैं। राजदूत द्वारा अपने अनुचर-वर्ग की पूरी सूची स्वागतकर्त्ता राज्य के विदेश मंत्रालय को सौंपी जाती है। इस सूची के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को राजनयिक विशेषाधिकार नहीं दिया जाता।

राजदूत की पत्नी को उक्त सभी विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। यदि राजदूत चाहे तो उसके पारिवारिक सदस्यों के विशेषाधिकारों को हटाया भी जा सकता है। दूतावास में काम करने वाले कर्मचारी, परामर्शदाता, सचिव तथा सहचारी इत्यादि को दीवानी तथा फौजदारी न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से मुक्ति प्रदान की जाती है। राजदूत के निजी नौकरों के सम्बन्ध में कोई सुनिश्चित नियम नहीं है किन्तु उन्हें प्रायः दीवानी उन्मुक्ति प्राप्त होती है और फौजदारी उन्मुक्ति सीमित है। राजदूत के सन्देशवाहकों को पूर्ण दीवानी और फौजदारी उन्मुक्ति प्रदान की जाती है।

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