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राजकुमारी यशोधरा

राजकुमारी यशोधरा
यशोधरा
यशोधरा और राहूल के साथ बुद्ध, अजंता गुफा
जीवनसंगीगौतम बुद्ध
पितासुप्पबुद्ध
धर्मसनातन धर्म
बौद्ध धर्म

की श्रेणी का हिस्सा

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राजकुमारी यशोधरा (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) कोलीय वंश के राजा सुप्पबुद्ध और उनकी पत्नी पमिता की पुत्री थीं। यशोधरा की माता- पमिता राजा शुद्धोदन की बहन थीं। १६ वर्ष की आयु में यशोधरा का विवाह राजा शुद्धोधन के पुत्र सिद्धार्थ गौतम के साथ हुआ। बाद में सिद्धार्थ गौतम संन्यासी हुए और गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। यशोधरा ने २९ वर्ष की आयु में एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल था। अपने पति गौतम बुद्ध के संन्यासी हो जाने के बाद यशोधरा ने अपने बेटे का पालन पोषण करते हुए एक संत का जीवन अपना लिया। उन्होंने मूल्यवान वस्त्राभूषण का त्याग कर दिया। पीला वस्त्र पहना और दिन में एक बार भोजन किया। जब उनके पुत्र राहुल ने भी संन्यास अपनाया तब वे भी संन्यासिनि हो गईं। उनका देहावसान ७८ वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध के निर्वाण से २ वर्ष पहले हुआ।

यशोधरा के जीवन पर आधारित बहुत सी रचनाएँ हुई हैं, जिनमें मैथिलीशरण गुप्त की रचना यशोधरा (काव्य) बहुत प्रसिद्ध है।[1]

एक आदर्श नारी

यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है। परंतु वह नारीत्व को किसी भी अंश में हीन मानने को प्रस्तुत नहीं है। वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है। उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे। सब मिलाकर यशोधरा आदर्श पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। परंतु गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समान तर्क, युक्तिपूर्वक वार्तालाप करता है, जो जन्मजात प्रतिभासम्पन्न बालक के प्रसंग में भी निश्चय ही अतिरंजना है।

इन्हें भी देखे

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. Gautam Buddha Prashnotari. Diamond Pocket Books (P) Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7182-775-6.