रागी
| रागी फिंगर मिलेट | |
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| मिश्रित वर्ण की रागी | |
| वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
| जगत: | पादप | 
| अश्रेणीत: | एन्जियोस्पर्म | 
| अश्रेणीत: | एकबीजपत्रीय | 
| गण: | पोअलेस | 
| कुल: | पोएसी | 
| उपकुल: | क्लोरिडॉएडी | 
| वंश: | एलेयुसाइन | 
| जाति: | E. coracana | 
| द्विपद नाम | |
| Eleusine coracana L. | |
रागी या मड़ुआ अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक मोटा अनाज है। यह एक वर्ष में पक कर तैयार हो जाता है। यह मूल रूप से इथियोपिया के ऊँचे क्षेत्रों का पौधा है जिसे भारत में कुछ चार हज़ार वर्ष पहले लाया गया था। ऊँचे क्षेत्रों में अनुकूलित होने में यह बहुत समर्थ है। हिमालय में यह 2300 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जाता है।
कृषि
इसे अक्सर तिलहन (जैसे मूंगफली) और नाइजर सीड या फ़िर दालों के साथ उगाया जाता है। यद्यपि आंकड़े ठीक ठीक तो उपलब्ध नहीं है लेकिन फ़िर भी यह फसल विश्व भर में ३८,००० वर्ग किलोमीटर में बोई जाती है।
भण्डारण

एक बार पक कर तैयार हो जाने पर इसका भण्डारण बेहद सुरक्षित होता है। इस पर किसी प्रकार के कीट या फफूंद हमला नहीं करते। इस गुण के कारण निर्धन किसानों हेतु यह एक अच्छा विकल्प माना जाता है।
पोषक तत्व
इस अनाज में अमीनो अम्ल मेथोनाइन पाया जाता है, जो कि स्टार्च की प्रधानता वाले भोज्य पदार्थों में नही पाया जाता। प्रति १०० ग्राम के हिसाब से इसका विभाजन इस प्रकार किया जाता है-
विभाजन सारणी
- प्रोटीन ७.३. ग्राम
- वसा १.३. ग्राम
- कार्बोहाइड्रेट ७२ ग्राम
- खनिज २.७ ग्राम
- कैल्शियम ३.४४ ग्राम
- रेशा ३.६ ग्राम
- ऊर्जा ३२८ किलो कैलोरी
रागी से बनने वाले खाद्य पदार्थ

भारत में कर्नाटक ,उत्तराखंड और आन्ध्र प्रदेश में रागी का सबसे अधिक उपभोग होता है। इससे मोटी डबल रोटी, डोसा और रोटी बनती है। इस से रागी मुद्दी बनती है जिसके लिये रागी आटे को पानी में उबाला जाता है, जब पानी गाढा हो जाता है तो इसे गोल आकृति कर घी लगा कर साम्भर के साथ खाया जाता है। वियतनाम मे इसे बच्चे के जन्म के समय औरतो को दवा के रूप मे दिया जाता है। इससे मदिरा भी बनती है।