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रसमीमांसा

रसमीमांसा आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आलोचनात्मक कृति है।

परिचय

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रसमीमांसा नामक आलोचनात्मक कृति का प्रथम प्रकाशन सन् १९४९ में हुआ था।

विशेषताएँ

रसमीमांसा की प्रस्तावना में ओमप्रकाश सिंह लिखते हैं कि-"आचार्य रामचंद्र शुक्ल की पुस्तक 'रसमीमांसा' हिन्दी साहित्य की सैद्धान्तिक समीक्षा की अकेली पुस्तक है। शुक्ल जी से पहले हिन्दी साहित्य के किसी समीक्षक ने सैद्धान्तिक समीक्षा पर न तो किसी ग्रन्थ की रचना की थी और न ही उनके बाद के किसी समीक्षक ने ।"[1]

अध्याय विभाजन

इस पुस्तक में पाँच अध्याय हैं। इसके साथ ही परिशिष्ट तथा अनुक्रमणिका भी है।

काव्य

इसमें तीन उपअध्याय हैं-

  1. काव्य
  2. काव्य के विभाग
  3. काव्य का लक्ष्य

काव्य के अंतर्गत काव्य की साधना, काव्य और सृष्टि प्रसार, काव्य और व्यवहार, मनुष्यता की उच्च भूमि, भावना या कल्पना, मनोरंजन, सौंदर्य, चमत्कारवाद, काव्य की भाषा, अलंकार, उपसंहार आदि का विवेचन किया गया है। काव्य के विभाग के अंतर्गत आनंद की साधनावस्था, आनंद की सिद्धावस्था और माधुर्यपक्ष का वर्णन किया गया है। काव्य का लक्ष्य में रीतिग्रंथों का बुरा प्रभाव, सूक्ति और काव्य, काव्य में असाधारणत्व का विवरण दिया गया है।


विभाव

इसके अंतर्गत विभाव का समावेश किया गया है।

भाव

इसमें चार उपअध्यायों की योजना की गई है-

  1. भाव
  2. भावों का वर्गीकरण
  3. असम्बद्ध भावों का रसवत् ग्रहण
  4. विरोध विचार

भावों का वर्गीकरण के अंतर्गत स्थायी, संचारी, स्वतंत्र विषयवाले भाव, मन के वेग, अन्य अंतःकरणवृत्तियाँ, मानसिक अवस्थाएँ तथा शारीरिक अवस्थाएँ इत्यादि का वर्णन किया गया है। विरोध विचार में आश्रयगत विरोध, आलम्बनगत विरोध की व्याख्या की गई है।

रस

इसमें छः उपअध्याय हैं-

  1. रसात्मक बोध
  2. प्रत्यक्ष रूपविधान
  3. स्मृत रूपविधान
  4. कल्पित रूपविधान
  5. प्रस्तुत रूपविधान
  6. अप्रस्तुत रूपविधान

स्मृत रूपविधान में विशुद्ध स्मृति, प्रत्यभिज्ञान तथा स्मृत्याभ्यास कल्पना आदि का विवरण दिया गया है। कल्पित रूपविधान में कल्पना का वर्णन किया गया है।

शब्द शक्ति

इसमें तीन उपअध्याय हैं-

  1. शब्द शक्ति
  2. काव्य का लक्ष्य
  3. ध्वनि

काव्य का लक्ष्य में अभिधा, लक्षणा, व्यंजना तथा तात्पर्य वृत्ति का उल्लेख किया गया है। ध्वनि के अंतर्गत संकर और संसृष्टि ध्वनि, व्यंजना की स्थापना, रस निर्णय तथा रसचक्र का विवरण प्रस्तुत किया गया है।

परिशिष्ट

इसमें

  • (क) उद्धरण के लिए उदाहरण
  • (ख) काव्यवाली पुस्तक के लिए मनोविज्ञान संबंधी टिप्पणियाँ
  • (ग) 'शब्दशक्ति' तथा परिशिष्ट ख का मूल अँगरेजी

आदि का उल्लेख किया गया है।

इन्हें भी देखें

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

संदर्भ

  1. आचार्य रामचंद्र, शुक्ल (२०१५). रसमीमांसा. नयी दिल्ली: पुस्तक प्रतिष्ठान.