रवीन्द्र सेतु
रवीन्द्र सेतु (हावड़ा सेतु) রবিন্দ্র সেতূ | |
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निर्देशांक | 22°35′07″N 88°20′49″E / 22.5853°N 88.3469°E |
आयुध सर्वेक्षण राष्ट्रीय ग्रिड | [1] |
पार | हुगली नदी |
स्थान | कोलकाता,हावड़ा |
आधिकारिक नाम | रवीन्द्र सेतु |
अन्य नाम | हावड़ा ब्रिज |
लक्षण | |
डिज़ाइन | संतुलित कैंटिलीवर सस्पेंशन |
दीर्घतम स्पैन | 457.5 मीटर (1,501 फीट) |
सेतु फर्श के नीचे | 26 मीटर (85 फीट) |
इतिहास | |
खुला | १९43 |
सांख्यिकी | |
दैनिक ट्रैफिक | १,५०,००० वाहन, ४०,००,००० यात्री |
रवीन्द्र सेतु भारत के पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के उपर बना एक "कैन्टीलीवर सेतु" है। यह हावड़ा को कोलकाता से जोड़ता है। इसका मूल नाम "नया हावड़ा पुल" था जिसे बदलकर १४ जून सन् १९६५ को 'रवीन्द्र सेतु' कर दिया गया। किन्तु अब भी यह "हावड़ा ब्रिज" के नाम से अधिक जाना जाता है। यह अपने तरह का छठवाँ सबसे बड़ा पुल है। सामान्यतया प्रत्येक पुल के नीचे खंभे होते है जिन पर वह टिका रहता है परंतु यह एक ऐसा पुल है जो सिर्फ चार खम्भों पर टिका है दो नदी के इस तरफ और पौन किलोमीटर की चौड़ाई के बाद दो नदी के उस तरफ। सहारे के लिए कोई रस्से आदि की तरह कोई तार आदि नहीं। इस दुनिया के अनोखे हजारों टन बजनी इस्पात के गर्डरों के पुल ने केवल चार खम्भों पर खुद को इस तरह से बैलेंस बनाकर हवा में टिका रखा है कि 80 वर्षों से इस पर कोई फर्क नहीं पडा है जबकि लाखों की संख्या में दिन रात भारी वाहन और पैदल भीड़ इससे गुजरती है। अंग्रेजों ने जब इस पुल की कल्पना की तो वे ऐसा पुल बनाना चाहते थे कि नीचे नदी का जल मार्ग न रुके। अतः पुल के नीचे कोई खंभा न हो। ऊपर पुल बन जाय और नीचे हुगली में पानी के जहाज और नाव भी बिना अवरोध चलते रहें। ये एक झूला अथवा कैंटिलिवर पुल से ही संभव था। जब निर्माण हुआ तो किसी भी स्टील कारखाना या कम्पनी द्वारा इस पुल के लिए इतना स्टील सप्लाई करना सम्भव नहीं था । इस पुल के लिए स्टील सप्लाई करने का जिम्मा फिर टाटा स्टील ने उठाया । इस पुल में अधिकांशतः स्टील टाटा कम्पनी का ही लगा हुआ है। एक अफवाह के कारण दिन और रात के बारह बजे कुछ देर के लिए इस पुल को बंद किया जाता है। इतना बड़ा संतुलन में झूलता हुआ पुल होने के बाबजूद भी इस पुल में एक भी जगह नट बोल्ट का प्रयोग नहीं किया गया है । सभी जगह नट बोल्ट के स्थान पर रिबिट्स का प्रयोग किया गया है।
तकनीकी जानकारी
इस सेतु का नाम बंगाली लेखक, कवि, समाज-सुधारक गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के नाम पर रखा गया है। इस सेतु के दोनों ओर ही नदी पर दो अन्य बड़े सेतु भी हैं:
सन्दर्भ
- ↑ स्ट्रक्चरी आंकड़ों में Howrah Bridge