रमणलाल वसंतलाल देसाई
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रमणलाल वसंतलाल देसाई (१८९२-१९५४ ई.) गुजराती भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उन्हें गुजराती साहित्य का "युगमूर्ति वार्ताकार' कहा जाता है। साहित्यिक सौष्ठव और लोकप्रियता दोनों की दृष्टि से गुजरात के कथाकारों में उनका स्थान "मुंशी' के बाद सर्वप्रमुख है। वे अनेक भाषाओं के विद्वान, लोक मर्मज्ञ तथा समाज के अनेक क्षेत्रों में योगदान के लिए विख्यात थे।[1]
इनके अनेक नाटक, उपन्यास, कविता संग्रह और यात्रा संस्मरण प्रकाशित हुए हैं। दिव्य यक्षु, भरेलो अग्नि, ग्राम लक्ष्मी, ग्रामोन्नति, बाला जोगन आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
परिचय
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उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ नाटककार के रूप में हुआ। परंतु उन्हें विशेष प्रसिद्धि उपन्यासकार के रूप में मिली। लघु कथा और उपन्यास ही उनकी अभिव्यक्ति के मुख्य वाहन बने, यद्यपि नाटक, निबंध, कविता, चिंतनविवेचन, आत्मचरित् लेखन इत्यादि विविध विधाओं में भी उन्होंने पर्याप्त महत्व का कार्य किया है। स्वराज्यप्राप्ति से पूर्व उनकी रचनाओं में "जयंत', "शिरीष', "कोकिला', "हदयनाथ' नामक उपन्यासों को विशेष ख्याति प्राप्त हुई। गांधीवाद का उनपर गंभीर प्रभाव पड़ा। "दिव्यचक्षु' और "भारेली अग्नि' की सृष्टि उन्होंने अहिंसा के सिद्धांत पर की है। इसी प्रकार "ग्रामलक्ष्मी' में ग्रामीण जीवन के अनेक संघर्षपूर्ण प्रसंग समाविष्ट करते हुए अंतत: मांगलिक पक्ष पर बल दिया गया है। देश की मुक्ति के अन्तर जो चारित्रिक पतन और आदर्शहीनता, सामाजिक तथा व्यक्तिगत दोनों ही स्तरों पर व्यक्त हुई उनकी विषमता "झंझावात' और "प्रलय' नामक नवलकथाओं की आधारभूमि बनी। "प्रलय' की रचना भविष्य कल्पना के समावेश से हुई हैं। उसमें २००६ ई. तक के आगामी कालविस्तार का विवरण करते हुए मानव की वर्तमान प्रगति के विडंबनापूर्ण पक्षों पर व्यंग किया गया है।
देसाई के उपन्यासों में सूक्ष्म भावप्रवाह के साथ साथ पटनावैचित्रय भी रहता है। फलत: उनकी रोचकता असंदिग्ध है। कहीं-कहीं जासूसी उपन्यासों जैसी रहस्यमयता के दर्शन भी होते हैं। "बंसरी' तो जासूसी उपन्यास है ही। उनके ऐतिहासिक उपन्यास भी घटनाबहुल, आघात प्रतिघात से युक्त एवं रोचक हैं, यद्यपि इस दिशा में "मुंशी' की समकक्षता वे प्राप्त न कर सके। भावनाशील युवक युवतियों की आशास्पद जीवनी तथा उनके संबंधों की विषम सामाजिक पृष्ठभूमि का आलेखन करके प्रेमत्रिकोणों द्वारा कथाप्रवाह में वेग उत्पन्न करना तथा चिंतनप्रधान आकर्षक वर्णनों और व्यंग्य की भंगिमाओं से पाठकां के मन को मुग्ध किए रहना उनकी कथाशैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं। उनका महत्वपूर्ण प्रकाशित साहित्य निम्नलिखित हैं:
उपन्यास - "जयंत', "शिरीष', "कोकिला', "हृदयनाथ', "स्नेहयज्ञ', "दिव्यचक्षु', "पत्रलालसा', "ग्रामलक्ष्मी', "पूर्णिमा', "हृदयविभूति', "छायनट', "झंझावात', "प्रलय', "सौंदर्यज्योति', "बंसरी', "भारेलो अग्नि', "ठग', "क्षितिज', "कालभोज', "पहाड़ के पुष्प'।
कहानीसंग्रह - "झाकल', "कांचन अने गेरू'।
एकांकी संग्रह - "परी अने राजकुमार', "उश्केरायेलो आत्मा', "तम अने रूप', "वैजूबावरो'।
नाटक - "संयुक्ता', "शंकित हृदय', "अंजनी'।
निबंध एवं इतिहास - "अप्सरा' (५ खंड), "रशिया अने मानवशांति, भारतीय संस्कृति'।
आत्मचरित् - "गईकाल', "तेजचित्र', "रेखाचित्र'।
कथा और नाटकों के अतिरिक्त जो साहित्य उन्होंने रचा उसमें उनकी उर्मिप्रधान कविताओं का संकलन "नीहारिका' उल्लेखनीय हैं। इन गीतिमयी कविताओं पर नानालाल की शैली का प्रभाव स्पष्ट है। "अप्सरा' नामक समस्यामूलक ग्रंथ में देसाई ने वेश्यावृत्ति का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया है जो अद्वितीय कहा जा सकता है। "गईकाल' में लेखक ने प्रारंभिक जीवन के सोलह वर्षों का आत्मचरित् वर्णित किया है जो मार्मिक और रोचक है। "भारतीय संस्कृति' नामक ग्रंथ में लेखक ने अपने दृष्टिकोण से भारत की सांस्कृतिक समृद्धि एवं समस्याओं की व्याख्या की है। इतना बहुमुखी कृतित्व होने पर भी उनका विशिष्ट स्थान कथाकार के रूप में ही माना जाता है क्योंकि उनकी मौलिक प्रतिभा का सर्वाधिक प्रस्फुटन उसी क्षेत्र में हुआ है।