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रणथम्भोर दुर्ग

युनेस्को विश्व धरोहर स्थल
रणथम्भौर का किला
विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम
Ranthambhore Fort
स्थानसवाई माधोपुर, राजस्थान, भारत
प्रकार सांस्कृतिक
मानदंड ii, iii
सन्दर्भ247
युनेस्को क्षेत्रदक्षिण एशिया
शिलालेखित इतिहास
शिलालेख2013 (36th सत्र)

रणथंभोर दुर्ग दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग के सवाई माधोपुर रेल्वे स्टेशन से 13कि॰मी॰ दूर रन और थंभ नाम की पहाडियों के बीच समुद्रतल से ४८१ मीटर ऊंचाई पर १२ कि॰मी॰ की परिधि में बना एक दुर्ग है। दुर्ग के तीनो और पहाडों में प्राकृतिक खाई बनी है जो इस किले की सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है। यूनेस्को की विरासत संबंधी वैश्विक समिति की 36वीं बैठक में 21 जून 2013 को रणथंभोर को विश्व धरोहर घोषित किया गया। यह राजस्थान का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।

दुर्ग निर्माण - 8 वि सदी में रणथान चौहान ने करवाया ( जानकारी सोनू पढ़ाना पठित हम्मीर महाकाव्य से )

रणथंबोर दुर्ग

रणथंबोर दुर्ग का वास्तविक नाम ( रंत:पूर ) है इसका अर्थ रन की घाटी में स्थित नगर रन उस पहाड़ी का नाम है जो दुर्ग की पहाड़ी के नीचे स्थित है एवं थम उस पहाड़ी का नाम है जिस पर किला बना है इसी कारण इसका नाम रणस्तंभपुर हो गया

हीराचंद ओझा के अनुसार रणथंबोर का किला अंडाकृति वाले एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित है यह सात पहाड़ियों के मध्य स्थित है इस कारण यह दुर्ग गिरी दुर्ग वन दुर्ग की श्रेणी में आता है इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासक राजा जयंत द्वारा कराया गया

1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय के पुत्र गोविंद राज ने चौहान वंश की नीव रणथंबोर दुर्ग में रखी

अब्दुल फजल ने इस दुर्ग को देखकर कहा कि और दुर्ग नंगे हैं परंतु यह दुर्ग बख्तरबंद है

रणथंबोर दुर्ग दिल्ली मालवा एवं मेवाड़ से निकट होने के कारण इस दुर्ग पर बार-बार आक्रमण होते रहे हैं रणथंबोर दुर्ग पर सर्वप्रथम कुतुबुद्दीन ऐबक ने आक्रमण किया 1291 1292 में सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने रणथंबोर दुर्ग पर दो बार आक्रमण किया परंतु उसने दुर्ग कड़ी सुरक्षा व्यवस्था देखकर यह कहते हुए कि ऐसे 10 किलो को तो मैं मुसलमानो के मूंछ के एक बाल के बराबर भी नहीं समझता वापस चला गया

रणथंबोर दुर्ग में स्थित प्रवेश द्वार

1 नौलखा दरवाजा - इसका जीर्णोद्वार जयपुर के महाराजा जगत सिंह ने कराया

2 तोरण दरवाजा/अंधेरी दरवाजा - मुस्लिम शासक द्वारा /त्रिपोलिया दरवाजा- जयपुर शासन द्वारा

3 हाथीपोल

4 सूरजपोल

5 गणेशपोल

दुर्ग में स्थित दर्शनीय स्थल

1 जोगी महल

2 जयसिंह की छतरी हमीर ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उसकी समाधि पर लाल पत्थरों से 32 विशाल खंभो वाली 50 फीट ऊंची छतरी बनवाई जिस पर बैठकर न्याय करता था इसलिए इसे न्याय की छतरी भी कहते हैं

3 त्रिनेत्र गणेश मंदिर

4 पदमला तालाब सुपारी महल हमीर महल बादल महल शिव मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर

प माला महल कचहरी महलद

इतिहास

अलाउद्दीन खिलजी ने 1300 ईस्वी के दौरान किले पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन ऐसा करने में विफल रहे। तीन असफल प्रयासों के बाद, उनकी सेना ने अंततः 1 जुलाई 1301 में रणथंभौर किले पर कब्जा कर लिया था। तीन शताब्दियों के बाद अकबर ने किले का पदभार संभाला और 1558 में रणथंभौर राज्य को भंग कर दिया। 18 वीं सदी के मध्य तक किला मुगल शासकों के कब्जे में रहे। 18 वीं शताब्दी में मराठा शासक अपने शिखर पर थे और उन्हें देखने के लिए जयपुर के राजा सवाई माधो सिंह ने मुगलों को किला को उनके पास सौंपने का अनुरोध किया था। सवाई माधो सिंह ने फिर से पास के गांव का विकास किया और इस किले को दृढ़ किया और इस गांव का नाम बदलकर सवाई माधोपुर रखा।

शासक

११९२ में तहराइन के युद्ध में मुहम्मद गौरी से हारने के बाद दिल्ली की सत्ता पर पृथ्वीराज चौहान का अंत हो गया और उनके पुत्र गोविन्द राज ने रणथंभोर को अपनी राजधानी बनाया। गोविन्द राज के अलावा वाल्हण देव, प्रहलादन, वीरनारायण, वाग्भट्ट, नाहर देव, जैमेत्र सिंह, हम्मीरदेव, महाराणा कुम्भा, राणा सांगा, शेरशाह सुरी, अल्लाऊदीन खिलजी, राव सुरजन हाड़ा और मुगलों के अलावा आमेर के राजाओं आदि का समय-समय पर नियंत्रण रहा लेकिन इस दुर्ग की सबसे ज्यादा ख्याति हम्मीर देव (1282-1301) के शासन काल में रही। हम्मीरदेव का 19 वर्षो का शासन इस दुर्ग का स्वर्णिम युग था। हम्मीर देव चौहान ने 17 युद्ध किए जिनमे 13 युद्धो में उसे विजय प्राप्त हुई। करीब एक शताब्दी तक ये दुर्ग चितौड़ के महराणाओ के अधिकार में भी रहा। खानवा युद्ध में घायल राणा सांगा को इलाज के लिए इसी दुर्ग में लाया गया था।

आक्रमण

अकबर राय सुरजन हाडा के खिलाफ रणथम्भौर किले पर हमले का निर्देशन

रणथंभोर दुर्ग पर आक्रमणों की भी लम्बी दास्तान रही है जिसकी शुरुआत दिल्ली के कुतुबुद्दीन ऐबक से हुई और मुगल बादशाह अकबर तक चलती रही। मुहम्मद गौरी व चौहानो के मध्य इस दुर्ग की प्रभुसत्ता के लिये 1209 में युद्ध हुआ। इसके बाद 1226 में इल्तुतमीश ने, 1236 में रजिया सुल्तान ने, 1248-58 में बलबन ने, 1290-1292 में जलालुद्दीन खिल्जी ने, 1301 में अलाऊद्दीन खिलजी ने, 1325 में फ़िरोजशाह तुगलक ने, 1489 में मालवा के मुहम्म्द खिलजी ने, 1529 में महाराणा कुम्भा ने, 1530 में गुजरात के बहादुर शाह ने, 1543 में शेरशाह सुरी ने आक्रमण किये। 1569 में इस दुर्ग पर दिल्ली के बादशाह अकबर ने आक्रमण कर आमेर के राजाओं के माध्यम से तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली।

 यहाँ पर राजस्थान का पहला शाका हुआ सन् 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के ऐतिहासिक आक्रमण के समय हुआ था। इसमें हम्मीर देव चौहान विश्वासघात के परिणामस्वरूप वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर किया था। इसे राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का प्रथम साका माना जाता है।                                                                                                                                                                      
                      वर्तमान

कई ऐतिहासिक घटनाओं व हम्मीरदेव चौहान के हठ और शौर्य के प्रतीक इस दुर्ग का जीर्णोद्धार जयपुर के राजा पृथ्वी सिंह और सवाई जगत सिंह ने कराया। महाराजा मान सिंह ने इस दुर्ग को शिकारगाह के रूप में परिवर्तित कराया। आजादी के बाद यह दुर्ग सरकार के अधीन हो गया जो 1964 के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में है।

चित्रावली

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

  • सवाई माधोपुर का रणथम्बोर दुर्ग