रणजीत देसाई
रणजीत रामचंद्र देसाई ( जन्म- 8 अप्रैल 1928 ई०, निधन- 6 मार्च 1998 ई०) मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके हिन्दी में अनूदित उपन्यास भी काफी लोकप्रिय रहे हैं।
रणजीत देसाई | |
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जन्म | 8 अप्रैल, 1928 कोवाड , कोल्हापुर |
मौत | 6 मार्च, 1998 |
पेशा | साहित्यकार |
भाषा | मराठी भाषा |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक काल |
विषय | कहानी , उपन्यास |
उल्लेखनीय कामs | स्वामी , श्रीमान योगी |
परिचय
महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के 'कोवाड' ग्राम में जन्मे बहुमुखी प्रतिभा के धनी रणजीत देसाई की इंटर तक की शिक्षा राजाराम कॉलेज कोल्हापुर से हुई। श्री देसाई आजीवन रचना के साथ-साथ कृषिकर्म से भी जुड़े रहे और अपने प्रत्यक्ष अनुभव का सर्जनात्मक उपयोग अपनी कहानियों में करते रहे। आरंभ से ही वे ग्राम-जीवन की कहानियाँ लिखते रहे।[1] उपन्यास के क्षेत्र में श्री देसाई ने ऐतिहासिक क्षेत्र को चुना और इसमें उन्हें सिद्धि एवं प्रसिद्धि दोनों प्राप्त हुई। मराठी में हरिनारायण आप्टे के बाद के ऐतिहासिक उपन्यासकारों में रणजीत देसाई का नाम अपने आरंभिक लेखन-समय से ही उल्लेखनीय रहा है।[2] सफल ऐतिहासिक उपन्यास के लिए जिन गुणों -- प्रामाणिकता, वातावरण-सृष्टि आदि -- की अपेक्षा होती है वे सब इनकी रचनाओं में उपलब्ध हैं।[3]
श्री देसाई को माधवराव पेशवा के जीवन पर केन्द्रित उनके आरंभिक उपन्यास स्वामी से ही साहित्य जगत में काफी प्रसिद्धि मिल गयी थी। 'स्वामी' के बाद छत्रपति शिवाजी के जीवन को केंद्र में रखकर लिखे गये लगभग 1000 पृष्ठों के विशालकाय ऐतिहासिक उपन्यास श्रीमान योगी ने उन्हें ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में परम प्रतिष्ठा प्रदान की। महानायकों के इर्द-गिर्द जैसे मिथकीय घटाटोप बन जाते हैं, उन्हें भेद कर व्यक्ति की दैन्यताओं, दुर्बलताओं और द्वन्द्वों तक पहुँचना, उन्हें चित्रित करना बहुत कठिन हो जाता है। रणजीत देसाई की रचनात्मक शक्ति इसी बात में है कि वे शिवाजी की स्थापित मूर्ति के भीतर उसकी अनंत तहों में घुसते हुए सचमुच के शिवाजी और उनके धड़कते हुए समय तक पहुँच जाते हैं। वे महानायक को जैसे का तैसा स्वीकार नहीं करते बल्कि उसके जीवन-तत्वों से उसकी पुनर्रचना करते हैं।
'श्रीमान योगी' को अपने मूल मराठी प्रकाशन के कुछ ही समय बाद मराठी भाषियों के बीच एक विरल कालजयी कृति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त हो गयी थी।[4]
प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ
श्री देसाई साहित्य की विभिन्न विधाओं में सक्रिय रहे हैं। उपन्यास, कहानी एवं नाटक के अतिरिक्त उन्होंने फिल्में भी लिखी हैं। उनकी रचनाओं की क्रमवार सूची निम्न रुपेण है:-
उपन्यास
- बारी
- माझा गांव
- स्वामी (हिन्दी अनुवाद- भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली)
- श्रीमान योगी (हिन्दी अनुवाद- राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली)
- राधेय
- लक्ष्यवेध
- समिधा
- पावन खिंड
- राजा रवि वर्मा
कहानी
- रूप महल
- मधुमती
- जाण
- कणव
- गंधाली
- आलेख
- कमोदिनी
- कातल
- मोरपंखी परछाइयाँ
नाटक
- तानसेन
- कांचन मृग
- उत्तराधिकार
- अधूरा धन
- पांगुलगाड़ा
- ये बंधन रेशमी
- गरुड़ उड़ान
- स्वामी
- रामशास्त्री
- तुम्हारा रास्ता अलग है
- धूप की परछाईं
फिल्म
- रातें ऐसी रँगी
- सुनो मेरा सवाल
- संगोली रायाण्णा (कन्नड़ में)
- नागिन
सम्मान
स्वामी उपन्यास के लिये उन्हें सन् 1962 में महाराष्ट्र शासन पुरस्कार, सन् 1963 में हरिनारायण आप्टे पुरस्कार तथा सन् 1964 में साहित्य अकादमी पुरस्कार[5] से सम्मानित किया गया।
भारत सरकार ने सन 1973 में उन्हें 'पद्मश्री' के अलंकरण से विभूषित किया।[6]
अतिरिक्त सम्मानित पद
श्री देसाई 1965 में बड़ौदा मराठी वाङ्मय परिषद के, 1972 में साहित्य सम्मेलन, कल्याण के तथा 1977 में मुंबई महानगर मराठी साहित्य सम्मेलन, गोरेगाँव के अध्यक्ष चुने गये।[7]
सन्दर्भ
- ↑ मंगेश विट्ठल राजाध्यक्ष, 'आज का भारतीय साहित्य', हिंदी अनुवाद- प्रभाकर माचवे, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली, संस्करण- 2007, पृष्ठ- 269.
- ↑ भारतीय साहित्य का समेकित इतिहास, अध्याय-लेखक- रणवीर रांग्रा, संपादक- डॉ० नगेन्द्र, हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय; संस्करण- 2013, पृष्ठ- 605.
- ↑ भारतीय साहित्य कोश, संपादक- डॉ० नगेन्द्र, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली, संस्करण-1981, पृष्ठ- 564.
- ↑ श्रीमान योगी (हिंदी अनुवाद, पेपरबैक), राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली के अंतिम आवरण पृष्ठ पर दी गयी टिप्पणी में उल्लिखित।
- ↑ "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.
- ↑ श्रीमान योगी (हिंदी अनुवाद, पेपरबैक), राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली के आरंभिक पृष्ठ पर दिये गये लेखक-परिचय में उल्लिखित।
- ↑ स्वामी (हिंदी अनुवाद), भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, संस्करण- 2014 के फ्लैप पर दिए गए लेखक परिचय में उल्लिखित।