रघुवंश (साहित्यकार)
डॉ॰ रघुवंश सहाय वर्मा (जून, १९२१ -- २३ अगस्त, २०१३) हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं आलोचक थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष तथा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, शिमला के फेलो रह चुके हैं।
जीवनी
डॉ॰ रघुवंश का जन्म ३० जून १९२१ को उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के गोपामऊ कस्बे में हुआ था।[1] आरंभ से ही दोनों हाथों से अपंग होने के कारण आठ वर्ष की आयु तक उन्होंने केवल पढ़ना ही सीखा। फिर एक दिन अचानक पैर से हाथ पकड़कर लिखने लगे और विद्यालय में अध्ययन-कार्य का क्रम प्रारंभ हो गया।[2] उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९४८ में हिन्दी साहित्य के ‘भक्तिकाल और रीतिकाल में प्रकृति और काव्य’ विषय पर डी॰ फिल् की थी और वहीं हिन्दी विभाग में अध्यापन का कार्य करने लगे। वे १९७६ से १९८१ तक हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे। इंदिरा गांधी के शासनकाल में आपातकाल के समय डॉ॰ रघुवंश को भी अपंगता के बावजूद जेल में बंद कर दिया गया था। उन पर यह हास्यास्पद आरोप लगाया गया था कि वे रेल की पटरी उखाड़ रहे थे।[3] सन् १९८१ में सेवानिवृत्ति के उपरान्त विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोध परियोजना के अंतर्गत शिमला के उच्च अध्ययन संस्थान में 'मानवीय संस्कृति की अभिव्यक्ति का रचनात्मक आयाम : हिन्दी भक्ति-काल के प्रमुख सन्दर्भ में' विषय पर उन्होंने शोध कार्य किया।[2] दो दर्जन से भी अधिक पुस्तकों के लेखन और कुछ महत्वपूर्ण साहित्यिक ग्रंथावलियों के संपादन के अलावा भारतीय हिन्दी परिषद के मुखपत्र अनुशीलन के भी वे संपादक रहे। भारत-भारती, भगवानदास तथा शंकर सम्मान सहित कई पुरस्कारों से भी उन्हें सम्मानित किया गया। डॉ॰ रघुवंश, हिन्दी के विद्वान फादर कामिल बुल्के, इलाचन्द्र जोशी, फादर धीरानन्द भट्ट, बिशप बी मुरारथा के सान्निध्य में रहे[4] और 15 से अधिक किताबें लिखीं।
डॉ॰ रघुवंश, महादेवी वर्मा के बेहद करीब रहे। उन्हें वे अपने छोटे भाई की तरह मानती थीं। वे शारीरिक रूप से अक्षम थे तथा समस्त लेखन कार्य के अलावा रोजमर्रा के अपने सारे कार्य वह पैर से ही करते थे। उनके हाथ में केवल दो अंगुलियां थीं और वे पैर से ही लेखन कार्य करते थे। पृष्ठ भर जाने के बाद उनकी पत्नी पन्ना पलट देती थीं।[4]
प्रमुख कार्य
डॉ॰ रघुवंश ने शारीरिक अक्षमता को अपनी दुर्द्धर्ष जिजीविषा के बल पर अपनी रचनात्मकता में बाधक नहीं बनने दिया। उनका अध्यवसाय और रचनात्मकता दोनों लगातार अग्रसर रहे। आरम्भ में उनकी दो शोधात्मक आलोचना की पुस्तकें प्रकाशित हुईं। दूसरी पुस्तक के सन्दर्भ में विचार करते हुए आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का कथन डॉ॰ रघुवंश के जीवन एवं सृजन दोनों का प्रभावपूर्ण परिचायक है :
"डॉ॰ रघुवंश हिन्दी के विचारशील तरुण लेखक हैं। यद्यपि विधाता ने इनके हाथ की बनावट पूरी करने में बहुत कृपणता का परिचय दिया है-- इनके हाथ इतने दुर्बल और निःशक्त हैं कि वे उनसे लिख भी नहीं सकते, पैरों की सहायता से हाथों को हिलाकर लेखनी चलाते हैं-- परन्तु फिर भी तीक्ष्ण बुद्धि और उदार मन देकर उन्होंने अपनी कृपणता का कलङ्क मिटा दिया है। इन्होंने संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य का खूब मनन किया है। किसी भी साहित्यिक प्रभाव का वे बड़ी बारीकी से विश्लेषण करते हैं, उसके तह में जाते हैं और उसका वास्तविक स्वरूप समझने का प्रयत्न करते हैं।... किसी वस्तु के याथार्थ्य तक पहुँचने के लिए वे उसका सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं। वस्तुतः वह भेदक दृष्टि वाले आलोचक हैं। उनका अध्ययन विशाल है और दृष्टि विश्लेषणप्रवण।... श्री रघुवंश जी अथक परिश्रम करने वाले लोगों में हैं। वे सदा लिखने-पढ़ने में लगे रहते हैं।"[5]
समाजवादी विचारधारा के पोषक डॉ॰ रघुवंश ने अपनी कलम से लेखन की विविध विधाओं में उत्कृष्ट कृतियों की रचना की। कहानी, उपन्यास, जीवनी, यात्रा-संस्मरण तथा आलोचना-चिन्तन आदि सभी क्षेत्रों में उन्होंने अपनी उत्कृष्टता प्रमाणित की। हिन्दी साहित्य कोश के दोनों भागों के संपादन में वे संयोजक रहे। इसके अतिरिक्त उन्होंने नयी कविता आन्दोलन के दौर की अत्यन्त चर्चित पत्रिका 'क, ख, ग' का भी संपादन किया। शिमला के उच्च अध्ययन संस्थान के अंतर्गत उन्होंने 'मानवीय संस्कृति की अभिव्यक्ति का रचनात्मक आयाम : हिन्दी भक्ति-काल के प्रमुख सन्दर्भ में' विषय पर जो शोध कार्य किया था उसमें मुख्यतः अध्ययन के लिए चार प्रमुख कवियों -- कबीर, जायसी, सूर और तुलसी -- को केन्द्रीय दृष्टि में रखा गया था। इस अध्ययन का पहला भाग 'मानवीय संस्कृति की अभिव्यक्ति का रचनात्मक आयाम' स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ।[6] दूसरे भाग के अंतर्गत उसी मूल दृष्टि से 'कबीर' एवं 'जायसी' का अध्ययन अलग-अलग पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुआ, जिसमें प्रचलन से भिन्न दृष्टि निहित थी।[7]
रचनात्मक लेखन और साहित्यिक आलोचना के अतिरिक्त संस्कृति एवं दर्शन से सम्बन्धित क्षेत्र भी डॉ॰ रघुवंश का प्रिय कार्यक्षेत्र रहा है। सन् २००४ में उनकी पुस्तक 'पश्चिमी भौतिक संस्कृति का उत्थान और पतन' प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने पश्चिमी सभ्यता की तर्क-केन्द्रित भौतिक सभ्यता की ओर उन्मुखता तथा पूर्वी संस्कृति की आत्मकेन्द्रीयता दोनों की अतियों और परिणामों पर सजगता के साथ विचार किया है। इसमें अनेक विचारकों के मतों को उन्होंने अपने चिन्तनक्रम में नये सिरे से परिभाषित किया है।[8]
प्रकाशित कृतियाँ
- कहानी-
- छायातप -१९४७ (साहित्य भवन लिमिटेड, प्रयाग से प्रकाशित)
- उपन्यास-
- तन्तुजाल -१९७४ (साहित्य भवन लिमिटेड, प्रयाग)
- अर्थहीन -१९६२ (नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली)
- वह अलग व्यक्ति -१९९० (नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली)
- यह जो अनिवार्य -१९९६ (नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली)
- यात्रा वृत्तान्त-
- हरी घाटी -१९६१ (भारतीय ज्ञानपीठ, काशी)
- जीवनी-
- मानव पुत्र ईसा : जीवन और दर्शन (लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद)
- आलोचना-
- प्रकृति और काव्य (हिन्दी खण्ड) - १९४८ (साहित्य भवन लिमिटेड, प्रयाग)
- प्रकृति और काव्य (संस्कृत खण्ड) - १९५१ (साहित्य भवन लिमिटेड, प्रयाग)
- साहित्य का नया परिप्रेक्ष्य -१९६३ (भारतीय ज्ञानपीठ, काशी)
- समसामयिकता और आधुनिक हिन्दी कविता -१९७२ (केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा)
- नाट्य-कला -१९६१ (नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली)
- कबीर : एक नई दृष्टि - (लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद)
- जायसी : एक नई दृष्टि -१९९३ (लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद)
- आधुनिक कवि निराला
- हिन्दी साहित्य की समस्याएँ -१९६८ (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग)
- चिन्तन-
- जेल और स्वतंत्रता -१९७८ (लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद)
- सर्जनशीलता का आधुनिक सन्दर्भ
- आधुनिक परिस्थिति और हम लोग (साहित्य भंडार, ५०, चाहचंद (जीरो रोड), इलाहाबाद)
- पश्चिमी भौतिक संस्कृति का उत्थान और पतन -२००४ (लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद)
- 'यूरोप के इतिहास की प्रभाव-शक्तियाँ - २०१२ (लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद)
- हम भीड़ हैं (विविध विषयक लेख-निबन्ध) - २०१६ (लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद)
- सम्पादन-
- हिन्दी साहित्य कोश - दो भागों में (संयोजक)
- आलोचना (पत्रिका) (सह सम्पादक)
- 'क ख ग’ (पत्रिका)
- अनुशीलन (शोध-पत्रिका)
सम्मान
- उत्तर प्रदेश हिन्दी-संस्थान का ‘साहित्य-भूषण सम्मान’
- के.के. बिडला फाउंडेशन का ‘शंकर पुरस्कार’ ('मानवीय संस्कृति का रचनात्मक आयाम' के लिए)
- बिहार सरकार का 'जननायक कर्पूरी ठाकुर पुरस्कार'
- वर्ष २००८ का मूर्तिदेवी पुरस्कार
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ 22वाँ मूर्तिदेवी पुरस्कार डॉ॰ रघुवंश को।
- ↑ अ आ पश्चिमी भौतिक संस्कृति का उत्थान और पतन, डॉ॰ रघुवंश, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण-2004, अंतिम आवरण फ्लैप पर उल्लिखित।
- ↑ हमारे रज्जू भैया, देवेंद्र स्वरूप एवं ब्रजकिशोर शर्मा, प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-२०१७ पृष्ठ-१७४.
- ↑ अ आ "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 जुलाई 2019.
- ↑ हजारीप्रसाद द्विवेदी, प्रकृति और काव्य (संस्कृत खण्ड), डॉ॰ रघुवंश, साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण- अक्टूबर १९५१, पृष्ठ-१,२ ('परिचय')।
- ↑ कबीर : एक नई दृष्टि, डॉ॰ रघुवंश, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, द्वितीय संस्करण-१९९८, पृष्ठ-७ (भूमिका)।
- ↑ जायसी : एक नई दृष्टि, डॉ॰ रघुवंश, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण-१९९३, पृष्ठ-५ (भूमिका)।
- ↑ पश्चिमी भौतिक संस्कृति का उत्थान और पतन, डॉ॰ रघुवंश, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण-2004, प्रथम आवरण फ्लैप पर उल्लिखित।