रघुनन्दन भट्टाचार्य
रघुनन्दन भट्टाचार्य (15वीं-16वीं शती) बंगाल के विधि-ग्रन्थों के रचनाकारों में प्रमुख थे। इनका जन्म नवद्वीप में हुआ था। पिता का नाम था हरिहर। बंगाल के प्रख्यात निबन्धकार। इन्होंने श्रीनाथ आचार्यचूड़ामणि के पास स्मृतिशास्त्र और वासुदेव सार्वभौम के पास नव्य-न्याय सिखा था । वहा रघुनाथ शिरोमणि और चैतन्य महाप्रभु उन्के सहपाठी थे । इन्होने 'स्मृतितत्व' नाम से एक निबन्ध, तीर्थयात्राविधि आदि प्रयोगग्रन्थ आदि लिखे। बंगीय निबन्धाकार जीमूतवाहन (१२वीं शताब्दी) रचित विख्यात 'दायभाग' नामक ग्रन्थ की टीका रचना की। स्मृतिशास्त्र में पाण्डित्य के कारण समग्र भारतबर्ष में 'स्मार्तभट्टाचार्य' नाम से प्रसिद्ध हुए। बहुत से निबन्ध और आलोचना करके तात्कालिक बंगीय हिन्दुसमाज के सामाजिक और धर्मसंक्रान्त विषय में निर्देश दिया। उन्की स्मृतितत्व के टीकाकारों में अष्टादश शताब्दी के बंगाल के काशीराम वाचस्पति प्रसिद्ध हैं।
कृतियाँ
स्मृतितत्त्व
यह उन्की सबसे महत्वपूर्ण रचना है । इसके अंतर्गत विषय निम्नलिखित हैं:[1][2]
- तिथितत्त्व जिसमे कौनसे तिथिमे कौनसा अनुष्ठान करना चाहिए- इस विषय पर चर्चा की गई है
- श्राद्धतत्त्व जिसमे सामवेदी ब्राह्मणों के द्वारा श्राद्ध करने की विधि पर चर्चा की गई है
- आह्निकतत्त्व जिसमे सन्ध्यावन्दनादि दैनिक अनुष्ठानों के विधि पर चर्चा की गई है
- प्रायश्चित्ततत्त्व जिसमे विभिन्न पापों के प्रायश्चित्तानुष्ठान के विधि पर चर्चा की गई है
- ज्योतिस्तत्त्व जिसमे समय निर्धारण करने की विधि पर चर्चा की गई है
- मलमासतत्त्व जिसमे अधिक मास के उपर चर्चा की गई है
- संस्कारतत्त्व जिसमे उपनयनादि संस्कारों के विधि के उपर चर्चा की गई है
- दायतत्त्व जिसमे उत्तराधिकार के विधि के उपर चर्चा की गई है
- शुद्धितत्त्व जिसमे विभिन्न तरीक़ों के सूतकों के उपर चर्चा की गई है
- दिव्यतत्त्व जिसमे अग्निपरीक्षा जैसे विभिन्न दर्दनाक चुनौतियों के माध्यम से विचार करने के प्रक्रियाओं (अंग्रेजी मे trial by ordeal) के उपर चर्चा की गई है
- एकादशीतत्त्व जिसमे एकादशी के दिन किए जाने वाले अनुष्ठानों के उपर चर्चा की गई है
- उद्वाहतत्त्व जिसमे विवाह से संबंधित नियमों के उपर चर्चा की गई है
- व्रततत्त्व जिसमे व्रतों के अनुष्ठान-पद्धति के उपर चर्चा की गई है
- व्यवहारतत्त्व जिसमे कानूनी विचार-प्रक्रिया के उपर चर्चा की गई है
- वास्तुयागतत्त्व जिसमे वास्तुयज्ञ के पद्धति के उपर चर्चा की गई है
- कृत्यतत्त्व जिसमे साल-भर मनाये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों की विधि पर चर्चा की गई है
- यजुर्वेदीश्राद्धतत्त्व जिसमे शुक्लयजुर्वेदी ब्राह्मणों के द्वारा श्राद्ध करने की विधि पर चर्चा की गई है
- देवप्रतिष्ठातत्त्व जिसमे भगवान की मूर्ति के स्थापना करने की विधि पर चर्चा की गई है
- जलाशयोत्सर्गतत्त्व जिसमे तालाव की प्रतिष्ठा करने की विधि पर चर्चा की गई है
- मठप्रतिष्ठातत्त्व जिसमे मंदिर के स्थापना की विधि पर चर्चा की गई है
- शू्द्रकृृत्यविचारणतत्त्व जिसमे शूद्रों के अधिकारों के उपर चर्चा की गई है
- श्रीपुरुषोत्तमतत्त्व जिसमे पुरी और भुवनेश्वर की माहात्म्य पर चर्चा की गई है
- छन्दोगवृृषोत्सर्गतत्त्व जिसमे सामवेदी ब्राह्मणों के द्वारा वृषोत्सर्ग (मृत व्यक्ति के स्वर्गप्राप्ति के लिए उसके नाम पर त्रिशूल-चिह्नित साँड़ को खुला छोड़ देने के लिए एक अनुष्ठान) करने की विधि पर चर्चा की गई है
- यजुर्वेदीवृषोत्सर्गतत्त्व जिसमे शुक्लयजुर्वेदी ब्राह्मणों के द्वारा वृषोत्सर्ग करने की विधि पर चर्चा की गई है
- ऋग्वेदीवृषोत्सर्गतत्त्व जिसमे ऋग्वेदी ब्राह्मणों के द्वारा वृषोत्सर्ग करने की विधि पर चर्चा की गई है
- दीक्षातत्त्व जिसमे मंत्रदीक्षा के तान्त्रिक विधि पर चर्चा की गई है
दायभाग पर टीका
रघुननदन भट्टाचार्य की दायभागटीका या दायभागव्याख्या, जीमूतवाहन द्वारा रचित दायभाग की टीका है। ब्रितानी राज में, जब न्यायालयों में हिन्दू विधि का उपयोग किया जाता था, कोलकाता उच्च न्यायालय ने रघुनन्दन भट्टाचार्य की दायभाग टीका को दायभाग पर सबसे अच्छी टीका कहा था।[1] विलियम जोन्स, ने कहा था कि यद्यपि हिन्दू विद्वान प्रायः जीमूतवाहन के दायभाग को उद्धृत करते थे, किन्तु बंगाल में रघुननदन भट्टाचार्य की दायभागटीका अधिक प्रचलित थी।[3]
दायभागटीका में अन्य विद्वानों और उनकी कृतियों के नाम का उल्लेख है, जिनमें मेधातिथि, कुल्लूक भट्ट, मिताक्षरा, विवाद-रत्नाकर (चण्डेश्वर ठाकुर), शूलपाणि, और विवाद-चिन्तामणि (वाचस्पति मिश्र) प्रमुख हैं।[3]
अन्य रचनाएँ
- गयाशाद्ध-पद्धति जिसमे गया मे किए जाने वाले विशेष श्राद्धकर्मों के विधि के उपर चर्चा की गई है
- ग्रहयाग-तत्त्व (या ग्रह-प्रमाण-तत्त्व) जिसमे ग्रहयज्ञ के विधि के उपर चर्चा की गई है
- तीर्थयात्रा-तत्त्व जिसमे तीर्थयात्रा की विधि के उपर चर्चा की गई है
- त्रिपुष्करशान्ति-तत्त्व जिसमे त्रिपुष्कर-योग नामक अत्यंत शुभ मुहूर्त मे किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के विधि के उपर चर्चा की गई है
- द्वादशयात्रा-तत्त्व जिसमे पुरी मे साल-भर मनाई जाने वाले जगन्नाथ-प्रभु के विशेष उत्सवों के विधि के उपर चर्चा की गई है
- रासयात्रा-तत्त्व (या, रासयात्रापद्धति) जिसमे रासयात्रा (कार्तिकपूर्णिमा के अवसर पर श्रीकृष्ण की रासलीला के स्मरण मे बंगाल, असम, ओड़िशा और मणिपुर मे मनाया जाने वाला त्यौहार) के विधि के उपर चर्चा की गई है
- दुर्गापूजाप्रयोग-तत्त्व (या दुर्गार्चनपद्धति) जिसमे दुर्गापूजा की विधि के उपर चर्चा की गई है
सन्दर्भ
- ↑ अ आ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;GRG_1992
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;SCB_1999
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ अ आ Ludo Rocher (2002). Jimutavahana's Dayabhaga : The Hindu Law of Inheritance in Bengal: The Hindu Law of Inheritance in Bengal. Oxford University Press. पृ॰ 16. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-803160-4.