रइघू एक अपभ्रंशकवि थे। वे अपभ्रंश के सर्वाधिक यशस्वी एवं अंतिम कवि थे। उन्होने ही गोपाचल पर निर्मित अधिकांश जैन मूर्तियों की प्राण-प्रतिषठा की थी।
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