यूनानी चिकित्सा पद्धति
यूनानी चिकित्सा पद्धति को केवल यूनानी या हिकमत के नाम से भी पुकारा जाता है। इसे " यूनानी-तिब " या केवल " यूनानी " के नाम से भी जाना जाता है। यूनानी तिब में यूनानी शब्द मूलत: " लोनियन " का अरबी रूपांतरण है जिसका अर्थ ग्रीक या यूनान है। भारत में सौ से अधिक यूनानी चिकित्सा विश्वविद्यालयों में यूनानी चिकित्सा पद्धति सिखाया जाता है। यह प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के करीब है। इसे भारत में भी वैकल्पिक चिकित्सा माना गया है। यूनानी चिकित्सा छद्म वैज्ञानिक है।[1][2]
इतिहास
460 -377 ईसा पूर्व में यूनानी चिकित्सा विधि का पता चलता है। बुकरात (अंग्रेजी में हिप्पोक्रेट) नामक दार्शनिक को यूनानी चिकित्सा विधि का जन्मदाता माना जाता है। बुकरात को बाबा-ए-तिब यानी चिकित्या के पूर्वज भी माना जाता है। हिप्पोक्रेट ने मिश्र और मेसोपोटामिया यानी वर्तमान ईराक, शाम और तुर्की के दजला-फुरात नदियों के मघ्य की सभ्यता, संस्कृति और चिकित्सा पद्धति को नजदीक से देखा। उस समय की चिकित्सा व्यवस्था को पुन: जीवित करने का प्रयास किया। इनके बाद 129 से 200 ई. में हकीम जालीनूस का जमाना आया। इन्हें अंग्रेजी में गेलन के नाम से भी जाना गया। हकीम जालीनूस ने प्राचीन यूनानी दर्शन और दवाईयों को पारदर्शिता से पहचान और परिचय दिया। हकीम जालीनूस के बाद जाबिर-इब-हयात और हकीम-इब-सीना का भी जिक्र आता है।
आधुनिक भारत में यूनानी चिकित्सा का इतिहास
भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति की शुरूआत 10 वी शताब्दी से मानी जाती हैं किंतु भारत में यूनानी चिकित्सा (Unani) पद्धति को पुनर्जीवित कर आधुनिक रूप देनें का श्रेय हकीम अजमल खान को जाता हैैं । हकीम अजमल खान के प्रयासो से ही दिल्ली में यूनानी चिकित्सा में पढा़ई हेतू "तिब्बतिया कालेज" की स्थापना हुई ।
हकीम अजमल खान के प्रयासो को मान्यता देते हुये भारत सरकार ने उनके जन्मदिवस 11 फरवरी को 'राष्ट्रीय यूनानी दिवस'के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया जिसकी शुरूआत सन् 2016 से हुई थी ।[1]
चिकित्सा पद्धति
यूनानी चिकित्सा पद्धति भारतीय चिकित्सा विधि का ही एक रूप है। दम (खून), बलगम (कफ), पीला पित्त (सफ़रा) और काला पित्त (सौदा) प्रधानता के आधार पर रोग के लक्षणों का पता किया जाता है। भारतीय चिकित्सा दर्शन के करीब माना जाता है। मानव शरीर में आग, जल, पृथ्वी और वायु प्रधानता का मानव शरीर पर प्रभाव ही मूल रोग लक्षण और निदान देखा गया है। यूनानी चिकित्सा के अनुयायियों के अनुसार इन तत्वों के विभिन्न तरल पदार्थ में और उनके शेष राशि की उपस्थिति से स्वास्थ्य के असंतुलन का सुराग लगता है। इन पदार्थो का प्रत्येक आदमी में अनूठा मिश्रण उसके स्वभाव और रक्त की विशेषता तय करता है। कफ की प्रधानता वाला व्यक्ति ठंडे स्वभाव का होता है। पित्त पीला या चिड़चिड़ा और विषादपूर्ण पित्त काला बनाता है।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- American Institute of Unani Medicine
- Hakim Syed Zillur Rahman Library, Directory of History of Medicine Collection
- इब्न सीना अकैडमी ऑफ़ मेडीएवल मेडिसिन एंड साइंसेस
आधुनिक भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति का [2]
- ↑ Quack, Johannes (2012). Disenchanting India: Organized Rationalism and Criticism of Religion in India. Oxford University Press. पपृ॰ 3, 213. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0199812608.
- ↑ Kaufman, Allison B.; Kaufman, James C., संपा॰ (2018). Pseudoscience: The Conspiracy Against Science. MIT Press. पृ॰ 293. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-262-03742-6.