यशोधरा जीत गई
'यशोधरा जीत गई' भारतीय इतिहास के युग पुरुष अर्थात महात्मा बुद्ध के जीवन पर आधारित एक उत्कृष्ट उपन्यास है। यह रांगेय राघव द्वारा रचित श्रेष्ठ जीवनीपरक उपन्यास है। इस उपन्यास में क्षत्रिय कुमार सिद्धार्थ के राजकुमार से संन्यासी और संन्यासी से भगवान बन जाने की कथा का उल्लेख है। यह १२७ पृष्ठों का एक लघु उपन्यास है, जो राजपाल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
इसके कथानक की बात की जाए तो यह उपन्यास पूर्णतः भगवान बुद्ध के जीवन पर आधारित है। इसका आरंभ उनके जन्म के प्रसंग से होता है तथा उनके जीवन के समस्त महत्वपूर्ण प्रसंगों को समेटते हुए यह उनके जीवन की महान यात्रा को प्रस्तुत करता है।
इसके शीर्षक की बात करें तो यह समझ पाना कठिन है कि लेखक ने इस पुस्तक का शीर्षक यह क्यों दिया। पूरा उपन्यास कई-कई बार पढ़ने के उपरांत भी इस शीर्षक की कहीं सार्थकता नहीं नजर आई। इसमें सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा का चरित्र आम स्त्री की भांति दर्शाया गया है तथा उसके संवाद भी आवश्यकतानुसार कम हैं।
इस उपन्यास की भाषा सुसंस्कृतनिष्ठ है। साथ ही इसमें बुद्धकालीन प्रचलित शब्दावली का भी भरपूर प्रयोग किया गया है। रांगेय राघव के गैर हिंदीभाषी होने के बावजूद इस उपन्यास में कहीं वर्तनी त्रुटि नहीं दिखाई पड़ती है।
अंततः कहा जा सकता है कि 'यशोधरा जीत गई' हिंदी का एक पठनीय उपन्यास है जो भारतीय संस्कृति के एक बड़े भाग को अपने भीतर समेटता है और पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है।