यशपाल शर्मा
यशपाल शर्मा | |
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जन्म | 1 जनवरी 1965 हरियाणा, भारत |
आवास | मुंबई, महाराष्ट्र, भारत |
कार्यकाल | 1992 - वर्तमान |
जीवनसाथी | प्रतिभा शर्मा |
यशपाल शर्मा एक भारतीय हिन्दी फिल्म अभिनेता हैं। इन्हें सुधीर मिश्रा की 2003 में बनी फिल्म "हजारों ख्वाइशें ऐसी" के अपने रणधीर सिंह के किरदार के लिए जाना जाता है। इसके अलावा इन्होंने लगान (2001), गंगाजल (2003), अब तक छप्पन (2004), अपहरण (2005), सिंह इज़ किंग (2008), आरक्षण (2011) और राउडी राठौड़ (2012) में भी अपने अच्छे अभिनय के लिए जाने जाते हैं।
ये फिल्मों के अलावा टीवी के धारावाहिकों में भी काम किए हैं, जिसमें ज़ी टीवी का "मेरा नाम करेगी रोशन" में कुंवर सिंह की भूमिका के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा ये थिएटर में भी कई सारे नाटकों में काम कर चुके हैं। इन्हें हरियाणवी फिल्म "पगड़ी द ऑनर" के लिए 62वाँ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिल चुका है।
जीवन
इनका जन्म हरियाणा के हिसार शहर के एक निम्न मध्यम वर्ग के परिवार में हुआ था। इनके पिता प्रेमचन्द्र शर्मा हरियाणा के पीडबल्यूडी विभाग में काम करते थे। यशपाल अपने परिवार के साथ हिसार शहर के राजगढ़ सड़क के पास स्थित कनाल कॉलोनी में रहते हैं। इनके भाई घनशाम शर्मा हमेशा से ही इन्हें अभिनय करने के लिए प्रौत्साहित और समर्थन करते रहे हैं। इन्हें बचपन से ही अभिनय करने में रुचि होने के कारण ये हर बार रामलीला में सक्रिय रूप से भाग लेते थे।
इन्होंने 1994 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, मंडी हाउस, नई दिल्ली से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इन्होंने थियेटर में "कोई बात चले" नामक नाटक में मुख्य किरदार निभाया था, जिसके लेखक और निर्देशक रामजी बाली हैं।[1]
सफर
फिल्मों में
इन्हें फिल्मों में अपनी कला दिखाने का पहला मौका गोविन्द निहलानी की फिल्म हज़ार चौरासी की माँ (1998) से मिला, जिसमें इनके साथ जया बच्चन और नन्दिता दास भी काम किए। इसके बाद वे कई फिल्मों में काम करने लगे, जिसमें शूल और अर्जुन पंडित आदि है। लेकिन इन्हें लगान (2001) के लिए नामांकित किया गया और उसके बाद से ही ये सबके सामने आ गए। इसके बाद इन्होंने गंगाजल और अब तक छप्पन जैसी फिल्मों में भी काम किया और श्याम बेनेजल व प्रकाश झा की अधिकांश फिल्मों में नजर आते रहते हैं।[2]
धारावाहिकों में
इन्होंने सीआईडी के कुल 4 एपिसोड में काम किया था। जिसमें दो एपिसोड 2002 में और बाकी दो एपिसोड 2005 में बनाए गए थे। पहले दो एपिसोड में इन्हें नन्हें नाम का किरदार दिया गया था, वहीं अन्य दो एपिसोड में ये भविष्य बताने वाले का किरदार निभा रहे थे। हालांकि पूर्ण रूप से इन्होंने धारावाहिकों में पहला कदम 2010 में ज़ी टीवी के कार्यक्रम "मेरा नाम करेगी रोशन" से रखा था। जिसके लिए इन्हें इंडियन टेली जूरी द्वारा नकारात्मक किरदार निभाने के लिए पुरस्कार भी मिला।
इसके बाद ये 2011 में सब टीवी के धारावाहिक "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" में नजर आए, जिसमें इन्हें एक डॉन का किरदार दिया गया था, जो अपने पत्नी के भाई को अदालत में निर्दोष साबित करने के लिए चश्मदीद गवाह दया के पति का अपहरण करा लेता है और बाद में दया का भी अपहरण कर लेता है। इसमें ये कुंवर कुलदीप सिंह बने थे और कुल 37 एपिसोड में थे। 2014 में फिर से ज़ी टीवी के धारावाहिक "नीली छतरी वाले" में भगवान दास की एक मुख्य भूमिका में नजर आए।
कार्य
फिल्में
वर्ष | फ़िल्म | चरित्र | टिप्पणी |
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2008 | वेल्कम टू सज्जनपुर | राम सिंह | |
2007 | अनवर | ||
2007 | रिस्क | ||
2007 | बेनाम | ||
2007 | लाइफ में कभी कभी | ||
2005 | अपहरण | ||
2005 | किस्ना | शंकर सिंह | |
2004 | असंभव | ||
2003 | गंगाजल | सुन्दर यादव | |
2003 | मुंबई से आया मेरा दोस्त | ||
2003 | हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी | रणधीर सिंह | |
2003 | चमेली | ||
2003 | धूप | ||
2002 | गुनाह | परशुराम | |
2001 | मुझे कुछ कहना है | ||
2001 | लगान | ||
2000 | पुकार | ||
1999 | अर्जुन पंडित | शिव | |
1999 | समर | ||
1999 | शूल |
धारावाहिक
वर्ष | नाम | किरदार | टिप्पणी |
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2001 | सीरियल किलर | जसपाल | |
2010 | मेरा नाम करेगी रोशन | - | |
2011 | तारक मेहता का उल्टा चश्मा | - | |
2014 | नीली छतरी वाले | भगवान दास |
लघु फिल्में
वर्ष | फिल्म |
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2015 | मोक्ष |
2016 | संयोग |
2017 | कार्बन |
नामांकन और पुरस्कार
वर्ष | फिल्म / धारावाहिक | पुरस्कार | टिप्पणी | |
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2004 | गंगाजल | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार | नामित | |
2004 | गंगाजल | आईफा | नामित | |
2004 | गंगाजल | स्क्रीन साप्ताहिक पुरस्कार | नामित | |
2004 | गंगाजल | ज़ी सिने पुरस्कार | नामित | |
2016 | मेरा नाम करेगी रोशन | इंडियन टेली जूरी पुरस्कार | जीत | नकारात्मक किरदार |
2016 | मोक्ष | वाटअशॉर्ट इंडिपेंडेंट इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल | जीत |
सन्दर्भ
- ↑ मोहन, रमन (4 जनवरी 2010). "Bollywood actor keeps his love for theatre intact" [बॉलीवूड अभिनेताओं का थियेटर के लिए प्यार] (अंग्रेज़ी में). हिसार: ट्रिब्यून इंडिया. मूल से 9 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 अप्रैल 2018. Italic or bold markup not allowed in:
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(मदद) - ↑ वर्मा, चेतना (23 सितम्बर 2010). "Being bad is hard work" [बुरा बनना कड़ी मेहनत है] (अंग्रेज़ी में). द हिन्दू. मूल से 18 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 अप्रैल 2018. Italic or bold markup not allowed in:
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(मदद)