मैक्सिम गोर्की
मैक्सिम गोर्की (रूसी भाषा में उच्चारण : 'मक्सीम गोर्की') (२८ मार्च १८६८ - १८ जून १९३६) रूस/सोवियत संघ के प्रसिद्ध लेखक तथा राजनीतिक कार्यकर्ता थे। उनका असली नाम "अलिक्सेय मक्सीमविच पेश्कोव" (रूसी भाषा में - Алексе́й Макси́мович Пе́шков or Пешко́в) था। उन्होने "समाजवादी यथार्थवाद" (socialist realism) नामक साहित्यिक परिभाषा की स्थापना की थी। सन् १९०६ से लेकर १९१३ तक और फिर १९२१ से १९२९ तक वे रूस से बाहर (अधिकतर, इटली के कैप्री (Capri) में) रहे। सोवियत संघ वापस आने के बाद उन्होने उस समय की सांस्कृतिक नीतियों को स्वीकार किया किन्तु उन्हें देश से बाहर जाने की आज़ादी नहीं थी।
जीवन एवं रचनाकर्म
मैक्सिम गोर्की का जन्म निझ्नी नोवगरद नगर में हुआ। गोर्की के पिता बढ़ई थे। 11 वर्ष की आयु से ही गोर्की काम पर लग गए । 1884 में गोर्की का मार्क्सवादियों से परिचय हुआ। 1888 में गोर्की पहली बार गिरफ्तार किए गए । 1891 में गोर्की देशभ्रमण करने के लिए निकले। 1892 में गोर्की की पहली कहानी "मकर छुद्रा" प्रकाशित हुई। गोर्की की प्रारंभिक कृतियों में रोमांसवाद और यथार्थवाद का मेल दिखाई देता है। "बाज़ के बारे में गीत" (1895), "झंझा-तरंगिका के बारे में गीत" (1895) और "बुढ़िया इजरगिल" (1901) नामक कृतियों में क्रांतिकारी भावनाएँ प्रकट हुई थीं। दो उपन्यासों, "फ़ोमा गार्दियेफ़" (1899) और " वे तीन" (1901) में गोर्की ने शहर के अमीर और गरीब लोगों के जीवन का वर्णन किया है। 1899-1900 में गोर्की का परिचय चेख़फ़ और लेव तलस्तोय से हुआ। उसी समय से गोर्की क्रान्तिकारी आंदोलन में भाग लेने लगे। 1901 में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कालेपानी की सज़ा हुई। 1902 में विज्ञान अकादमी ने गोर्की को सामान्य सदस्य की उपाधि दी परन्तु रूस के ज़ार ने इसे रद्द कर दिया।
गोर्की ने अनेक नाटक भी लिखे, जैसे "सूर्य के बच्चे" (1905), "बर्बर" (1905), "तलछट" (1902) आदि, जो बुर्जुआ विचारधारा के विरुद्ध थे। गोर्की के सहयोग से "नया जीवन" बोल्शेविक समाचारपत्र का प्रकाशन हो रहा था। 1905 में गोर्की पहली बार लेनिन से मिले। 1906 में गोर्की विदेश गए, वहीं इन्होंने "अमरीका में" नामक एक कृति लिखी, जिसमें अमरीकी बुर्जुआ संस्कृति के पतन का व्यंगात्मक चित्र दिया गया था। नाटक "शत्रु" (1906) और "मां" उपन्यास में (1906) गोर्की ने बुर्जुआ लोगों और मजदूरों के संघर्ष का वर्णन किया है। विश्वसाहित्य में पहली बार इस विषय में कुछ लिखा गया था। इन रचनाओं में गोर्की ने पहली बार क्रांतिकारी मज़दूर का चित्रण किया था। लेनिन ने इन कृतियों की प्रशंसा की। 1905 की क्रांति के पराजय के बाद गोर्की ने एक लघु उपन्यास - "पापों की स्वीकृति" ("इस्पावेद") लिखा, जिसमें कई अध्यात्मवादी भूलें थीं, जिनके लिए लेनिन ने इसकी सख्त आलोचना की। "आखिरी लोग" और "गैर-ज़रूरी आदमी की ज़िन्दगी" (1911) में सामाजिक कुरीतियों की आलोचना है। "मौजी आदमी" नाटक में (1910) बुर्जुआ बुद्धिजीवियों का व्यंगात्मक वर्णन है। इन वर्षों में गोर्की ने बोल्शेविक समाचारपत्रों "ज़्विज़्दा" और "प्रवदा" के लिये अनेक लेख लिखे। 1911-13 में गोर्की ने "इटली की कहानियाँ" लिखीं जिनमें आजादी, मनुष्य, जनता और परिश्रम की प्रशंसा की गई थी। 1912-16 में "रूस में" कहानी-संग्रह प्रकाशित हुआ था जिसमें तत्कालीन रूसी मेहनतकशों की मुश्किल ज़िन्दगी प्रतिबिम्बित होती है।
"मेरा बचपन" (1912-13), "जनता के बीच" (1914) और "मेरे विश्वविद्यालय" (1923) उपन्यासों में गोर्की ने अपनी आत्मकथा लिखी है। 1917 की अक्टूबर क्रांति के बाद गोर्की बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्य कर रहे थे। इन्होंने "विश्वसाहित्य" प्रकाशनगृह की स्थापना की। 1921 में बीमारी के कारण गोर्की इलाज के लिये विदेश गए। 1924 से वे इटली में रहे। "अर्तमोनफ़ के कारखाने" उपन्यास में (1925) गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों और मज़दूरों की तीन पीढ़ियों की कहानी प्रस्तुत की। 1931 में गोर्की स्वदेश लौट आए। इन्होंने अनेक पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन किया। "सच्चे मनुष्यों की जीवनी" और "कवि का पुस्तकालय" नामक पुस्तकमालाओं को इन्होंने प्रोत्साहन दिया। "येगोर बुलिचेव आदि" (1932) और "दोस्तिगायेफ़ आदि" (1933) नाटकों में गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों के विनाश के अनिवार्य कारणों का वर्णन किया। गोर्की की अंतिम कृति- "क्लिम समगीन की जीवनी" (1925-1936) अपूर्ण है। इसमें 1880-1917 के रूस के वातावरण का विस्तारपूर्ण चित्रण किया गया है। गोर्की सोवियत लेखकसंघ के अध्यक्ष थे। गोर्की की समाधि मास्को के क्रेमलिन के समीप है। मास्को में गोर्की संग्रहालय की स्थापना की गई थी। निझ्नी नावगरद नगर को "गोर्की" नाम दिया गया था। गोर्की की कृतियों से सोवियत संघ और सारे संसार के प्रगतिशील साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। गोर्की की अनेक कृतियाँ भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। महान हिंदी लेखक प्रेमचंद गोर्की के गहरे प्रशंसक थे।
परिचय
असमर्थ युग के समर्थ लेखक के रूप में मैक्सिम गोर्की को जितना सम्मान, कीर्ति और प्रसिद्धि मिली, उतनी शायद ही किसी अन्य लेखक को अपने जीवन में मिली होगी। वे क्रांतिदृष्टा और युगदृष्टा साहित्यकार थे। जन्म के समय अपनी पहली चीख़ के बारे में स्वयं गोर्की ने लिखा है- 'मुझे पूरा यकीन है कि वह घृणा और विरोध की चीख़ रही होगी।'
इस पहली चीख़ की घटना १८६८ ई. की 28 मार्च की 2 बजे रात की है लेकिन घृणा और विरोध की यह चीख़ आज इतने वर्ष बाद भी सुनाई दे रही है। यह आज का कड़वा सच है और मैक्सिम गोर्की शब्दों का अर्थ भी है -- बेहद कड़वा। निझ्नी नोवगरद ही नहीं विश्व का प्रत्येक नगर उनकी उस चीख से अवगत हो गया है।
अल्योशा यानी अलिक्सेय मक्सिमाविच पेशकोफ यानी मैक्सिम गोर्की पीड़ा और संघर्ष की विरासत लेकर पैदा हुए। उनके बढई पिता लकड़ी के संदूक बनाया करते थे और माँ ने अपने माता-पिता की इच्छा के प्रतिकूल विवाह किया था, किंतु मैक्सिम गोर्की सात वर्ष की आयु में अनाथ हो गए। उनकी 'शैलकश' और अन्य कृतियों में वोल्गा का जो संजीव चित्रण है, उसका कारण यही है कि माँ की ममता की लहरों से वंचित गोर्की वोल्गा की लहरों पर ही बचपन से संरक्षण प्राप्त करते रहे।
साम्यवाद एवं आदर्शोन्मुख यथार्थभाव के प्रस्तोता मैक्सिम गोर्की त्याग, साहस एवं सृजन क्षमता के जीवंत प्रतीक थे। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि व्यक्ति को उसकी उत्पादन क्षमता के अनुसार जीविकोपार्जन के लिए श्रम का अवसर दिया जाना चाहिए एवं उसकी पारिवारिक समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन या वस्तुएँ मिलना चाहिए। कालांतर में यही तथ्य समाजवाद का सिद्धांत बन गया। गोर्की का विश्वास वर्गहीन समाज में था एवं इस उद्देश्य- पूर्ति के लिए वे रक्त-क्रांति को भी जायज़ समझते थे।
उनकी रचनाओं में व्यक्त यथार्थवादी संदेश केवल रूस तक ही सीमित नहीं रहे। उनके सृजनकाल में ही उनकी कृतियाँ विश्वभर में लोकप्रिय होना प्रारंभ हो गईं। भारत वर्ष में तो 1932 से ही उनकी रचनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी निजी भूमिका संपादित की। उनकी रचनाओं के कथानक के साथ-साथ वह शाश्वत युगबोध भी है, जो इन दिनों भारत की राजनीतिक एवं साहित्यिक परिस्थिति में प्रभावशील एवं प्रगतिशील युगांतर उपस्थित करने में सहायक सिद्ध हुआ।
उनका क्रांतिकारी उपन्यास 'माँ' (जिसे ब्रिटिश भारत में पढ़ना अपराध था), यथार्थवादी आंदोलन का सजीव घोषणा-पत्र है। माँ का नायक है पावेल व्लासेफ़, जो एक साधारण और दरिद्र मिल मजदूर है। पात्र के चरित्र में सबलताएँ और दुर्बलताएँ, अच्छाइयाँ और बुराई, कमजोरियाँ सभी कुछ हैं। यही कारण है कि पावेल व्लासेफ़ का चरित्र हमें बहुत गहरे तक छू जाता है।
गोर्की ने अपने जीवन चरित्र के माध्यम से तत्कालीन संघर्षों एवं कठिनाइयों का समर्थ छवि का अंकन किया है। ’मेरा बचपन’ इस तथ्य का ज्वलंत उदाहरण है। अपने अंतिम वृहद उपन्यास 'द लाइफ ऑफ क्लीम समगीन' में लेखक ने पूँजीवाद, उसके उत्थान और पतन का लेखा प्रस्तुत किया है और इस प्रणाली के विकास का नाम दिया है, जिसके कारण रूस का प्रथम समाजवादी राज्य स्थापित हुआ। लेखक ने इस उपन्यास को 1927 में प्रारंभ किया और 1936 में समाप्त किया। गोर्की ने अपने देश और विश्व की जनता को फासिज्म की असलियत से परिचित कराया था, इसलिए ट्राटस्की बुखारिन के फासिस्ट गुट ने एक हत्यारे डॉक्टर लेविल की सहायता से 18 जून 1936 को उन्हें जहर देकर मार डाला। गोर्की आज हमारे बीच नहीं हैं किंतु उनके आदर्श हमारे बीच जीवित हैं।
मानववाद के सजीव प्रतिमान, क्रांतिदृष्टा, कथाकार और युगदृष्टा विचारक के रूप में मक्सीम गोर्की आने वाली कई पीढ़ियों तक स्मरण किए जाते रहेंगे।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- गोर्की की मां
- मैक्सिम गोर्की की लोकप्रिय कहानियाँ (गूगल पुस्तक)
- Brief biography
- Maxim Gorky Internet Archive at Marxists.org
- "Anton Chekhov: Fragments of Recollections" by Maxim Gorky
- Some works of Maxim Gorky in the original Russian
- The Song of the Stormy Petrel in original Russian
- The Song of the Storm-Finch translated into English by Alice Stone Blackwell
- Informative review of Gorky's short fiction
- Text of Gorky Essay on Coney Island Archived 2008-05-07 at the वेबैक मशीन
- Marxist Tributes to Maxim Gorky Archived 2008-04-08 at the वेबैक मशीन
- Maxim the Bitter Archived 2007-09-28 at the वेबैक मशीन Life experiences influencing the work of Maxim Gorky
- A collection of images of the Maxim Gorkiy Archived 2007-09-27 at the वेबैक मशीन A collection of images of the Maxim Gorkiy