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मेघवर्ण

महाकाव्य महाभारत के अनुसार मेघवर्ण भीमसेन के पुत्र घटोत्कच का पुत्र था। वह मोरवी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। उसके बड़े भाई बर्बरीक और अंजनपर्व थे।

उत्पत्ति

मूर दैत्य को श्रीकृष्ण ने मार गिराया जिससे उन्होंने मुरारी नाम पाया। मूर की पुत्री मोरवी सुंदर , सर्वगुण सम्पन्न और अस्त्रों शस्त्रों की ज्ञाता और देवी कामाख्या की परम उपासक थी। अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने मोरवी रणभूमि में गई और श्रीकृष्ण ने उस पर अंकुश लगाने के लिए उस पर सुदर्शन चक्र चलाया। कामाख्या देवी ने दोनों को रोका। वे मोरवी से बोलीं " मोरवी इन पर अस्त्र शस्त्र न चलाओ ये तुम्हारे भावी श्वसुर हैं अत: इनका आशीर्वाद लो"। समय आने पर श्रीकृष्ण ने मोरवी का विवाह भीमसेन और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच से कर दिया। विवाह के कुछ ही समय बाद मोरवी ने तीन पुत्र रत्नों को जन्म दिया जिसमें जयेष्ठ पुत्र सिंह के समान घुंघराले बालों वाला था इसी कारण उसे बर्बरीक और अन्य दो को अंजनपर्व और मेघवर्ण नाम दिया गया।

मृत्यु

अपने बड़े भाई बर्बरीक के उनके गुरू श्रीकृष्ण को शीश दान देने के बाद अंजनपर्व और मेघवर्ण ने युद्ध में भाग लिया। अंजनपर्व अश्वत्थामा के हाथों चौदहवें दिन मारा गया और पंद्रहवें दिन अंग देश के राजा कर्ण के पुत्र वनसेन ने मेघवर्ण का वध कर दिया