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मृदा विज्ञान

विभिन्न प्रकार की मृदा के नमूने

मृदा विज्ञान (Soil science) में मृदा का अध्ययन एक प्राकृतिक संसाधन के रूप में किया जाता है। इसके अन्तर्गत मृदानिर्माण, मृदा का वर्गीकरण, मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों का अध्ययन, उर्वरकता का अध्ययन आदि किया जाता है।

मृदा वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिन्तित हैं कि विश्व की जनसंख्या-वृद्धि के साथ मृदा तथा खेती योग्य भूमि का सरक्षण कैसे किया जाय।

परिचय

मिट्टी को मनुष्य अनादिकाल से जानता है। धरती, जिस पर वह हल चलाता है, खेत जिसमें वह फसलें उगाता है और घर जिसमें वह रहता है, ये सभी हमें मिट्टी की याद दिलाते हैं। किंतु मिट्टी के संबंध में हमारा ज्ञान प्राय: नहीं के बराबर है। यह सभी जानते हैं कि अनाज और फल मिट्टी में उपजाते हैं और यह उपज खाद एवं उर्वरकों के उपयोग से बढ़ाई जा सकती है, लेकिन मिट्टी के अन्य विशेषताओं के बारे में, जिनसे हम सड़क, भवन, धावनपथ (runway) तथा बंधों का निर्माण करते हैं, हमारा ज्ञान बहुत कम है।

मिट्टी के व्यवहार को भली प्रकार से समझने के लिये मिट्टी के रासायनिक और भौतिक संघटन का ज्ञान आवश्यक है।

मृदा भौतिकी

भौतिकी की दृष्टि से मिट्टी के तीन अवयव हैं, रेत, सिल्ट और मृत्तिका। रेत स्थूल अवयव है, जिसमें न केशिकात्व होता है और न संसंजन। रेत के कणों का आकार ०.०५ मिमी० से २ मिमी० के बीच होता है। सिल्ट के कण रेत से भी सूक्ष्म होतेश हैं। इनका आकार ०.०५ मिमी० से ०.००२ मिमी० के बीच होता है। रेत और सिल्‌अ दोनों निष्क्रिय पदार्थ हैं। तीसरा महत्वपूर्ण अवयव मृत्तिका है, जिसके कण ०.००२ मिमी० से छोटे होते हैं। रेत, सिल्ट और मृत्तिका में प्रमुख अंतर यह है कि जहाँ रेत और सिल्ट निष्क्रिय होते हें, वहाँ मृत्तिका रसायनत: सक्रिय होती है।

मिट्टी की बनाबट काफी सीमा तक इन अवयवों की प्रतिशतता पर निर्भर है। रेत, सिलट और मृत्तिका की अधिकता होने पर मिट्टी को क्रमश: रेतीली, सिल्टी और मटियार कहते हैं। इन अवयवों को प्रति शत निर्धारण भौतिकीय विश्लेषण (Mechanical Analysis) कहलाता है।

रेतीली मिट्टी की बनावट (texture) खुली होती है, जिससे वायु संचारण पर्याप्त होता है और यदि मटियार भाग में खनिज पदार्थो की मात्रा यथेष्ट हो तो यह मिट्टी खेती के लिये अधिक उपयुक्त है। मटियार मिट्टी सूखने पर पर्याप्त सिकुड़ती है और पर्याप्त पानी से खूब फूलती भी है। ऐसी मिट्टी न तो कृषि के लिये अच्छी होती है और न मकान बनाने के लिये।

मृदा सघनता

खुली बनावट वाली मिट्टी सघनता की कमी के कारण् कृषि के लिये अच्छी होती है, क्योंकि जल अतिरिक्त स्थलों में प्रविष्ट कर खनिज लवणों को घुला सकता है; पर इंजीनियरी के काम के लिये यह मिट्टी अच्छी नहीं होती, क्योंकि जल प्रवेश के कारण मिट्टी में सघनता होनी चाहिए। मिट्टी जितनी सघन होगी, उसकी दाव प्रबलता और दृढ़ता भी उतनी अधिक होगी। सघनता का घनत्व (degree of compaction) वस्तुत: आर्द्रता की मात्रा पर निर्भर करता है। किसी विशिष्ट प्रकार की मिट्टी के लिये आर्द्रता की जो प्रतिशतता अधिकतम सघनता प्रदान करती है, वह उस मिट्टी की इष्टतम आर्द्रता कही जाती है। इष्टतम आर्द्रता हलके रोलर की तुलना में भारी रोलर के लिये कम होती है। जिस मिट्टी में निम्न आकार के कणों का संमिश्रण अच्छा होता है, उसका घनत्व उच्चतम होता है। संघनित मिट्टी की प्रबलता बनाए रखने के लिये यह आवश्यक है कि पानी के मृदुकरण प्रभाव का वह प्रतिरोधक हो। इसके लिये मिट्टी में सीमेंट, चूना, रसायनक या बिटूमनी पदार्थ मिलाते हैं।

मृद् रसायन

यह पहले ही बताया जा चुका है कि मिट्टी में प्रधानतया रेत, सिल्ट और मृत्तिका रहते हैं। इनके साथ ही उसमें कुछ विलेय और कुछ अविलेय लवण भी रहते हैं, जैसे कैल्सियम तथा मैग्निशीयम के कार्बोनेट और सोडियम एवं पोटैशियम के क्लोराइड तथा सल्फेट। अनेक रूपों में भिन्न सांद्रता के कार्बनिक पदार्थ भी रहते हैं। ये सभी मिट्टी के रासायनिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, रेत और सिल्ट निष्क्रिय हैं तथा मृत्तिका ही रसायनत: सक्रिय है, अत: मिट्टीश् के रासायनिक गुण मृत्तिका पर अवलंबित हैं। मृत्तिका अनेक तत्वों, जैसे लोह, ऐल्यूमिनियम, सिलिकन आदि की जटिल संरचना के रूप में बनी है। मृत्तिका के खनिज संमिश्र के कुछ गुण विलक्षण हैं। यह पानी में अविलेय होता है, पर उसमें निलंबित अवस्था में रह सकता है। इसका निलंबित रहना कणों के आकार पर निर्भर है। निलंबित अवस्था में यह अम्लीय अभिक्रिया देता है। इसकी अम्लता ऐसीटिक अम्ल की अम्लता सद्यश है। इस अम्लता का उदासीनीकरण कैल्सियम और सोडियम के हाइड्रॉक्साइड सद्यश किसी क्षारीय पदार्थ से किया जा सकता है। इसके फलस्वरूप कैल्सियम और सोडियम मिट्टीयाँ बनती हैं। दानेदार संरचना के कारण कैल्सिचम मिट्टी कृषि केश् लिये उपयुक्त है, पर सोडियम मिट्टी जलाभेध होने के कारण बाँध और सड़कों के निर्माण के लिये अधिक उपयोगी है। मिट्टी द्वारा कैल्सियम अयन अवशोषित होकर ऐसा स्थिरीकृत हो जाता है कि शुद्ध जल के द्वारा वह घुलकर निकल जाता पर अन्य लवण से सरलता से प्रतिस्थापित हो जाता है। उदाहरण के लिये कैल्सियम मिट्टी को जब नमक के विलयन से अपक्षालित किया जाता है, तब उससे सोडियम मिट्टी बनती है और कैल्सियम अयन क्लोराइड के रूप में विलयन में आ जाता है। सोडियम मिट्टी को फिर कैल्सियम, या अन्य मिट्टीयों के विलयन के साथ अपक्षालित करने से कैल्सियम, या अन्य धातुओं की मिट्टीयों में परिणत किया जा सकता है। मिट्टी के इस गुण को, जिसमें क्षारों का विनिमय होता है, " मिट्टीश् का विनिमय गुण' कहते हैं और विनिमय होने वाला धनायन वाली मिट्टीयाँ होती हैं, जिनमें कैल्सियम, सोडियम, पोटैशियम तथा मैंग्निशियम प्रमुख हैं और निकेल, कोबाल्ट, बोरन आदि बड़ी अल्प मात्रा में रहते हैं, यद्यपि पौधों की वृद्धि के लिये ये आवश्यक हैं। सूक्ष्म मात्रा में रहने वाले इन तत्वों को अणुपोष "तत्व' कहते हैं। किसी मृद् भाग में धनायन का प्रतिशत विनिमय धारिता पर निर्भर करता है, जो मांटमारिलोनाइट कोटि की मिट्टी में अधिक और केओलिनाइट कोटि की मिट्टी में कम होती है। मांटमारिलोनाइट कोटि की मिट्टी का उदाहरण कपास वाली काली मिट्टी है, जो भारत के मध्यप्रदेश, मद्रास और बंबई के कुछ भागों में फैली हुई है। केओलिनाइट मिट्टी साधारण्तया भारत के जलोढ़ मैदानों में पाई जाती है।

हाइड्रोजन आयन सांद्रता (ph)

जैसा पहले संकेत किया जा चुका है कि जिस मिट्टी में तनु अम्ल के उपचार से विनिमेय क्षार का नितांत अभाव है, उसकी हाइड्रोजन आयन सांद्रता उच्चतम होती है और फलत: पी एच निम्नतम होता है। ज्यों ज्यों मिट्टी में सोडियम कैल्सियम जैसे विनिमेय अयन मिलाए जाते हैं, त्यों त्यों उसका पी एच बढ़ता जाता है। मिट्टी का उच्चतम पी एच लगभग ११ तक पहुँच जाता है। वास्तविक क्षेत्र परिस्थिति में इससे कुछ अधिक पी एच देखा गया है, किंतु उसका कारण विनिमेय धनायन नहीं हैं, बल्कि सोडियम कार्बोनेट जैसा विलेय लवण है, जो क्षारीय मिट्टी में साधारणतया रहता है। ऐसे लवणों का एक निश्चित सीमा से अधिक होना फसलों की वृद्धि को रोकता है। लेकिन इंजीनियरी संरचना के लिये मिट्टी में सोडियम कार्बोनेट का होना लाभदायक होता है। इन लवणों की उपस्थिति मिट्टी का सोडियम मिट्टी में परिणत करती है, जो साधन अवस्था में कैल्सियम मिट्टी से अधिक जल प्रतिरोध करती है। फलत: नम अवस्था में भी मिट्टी की शक्ति बनी रहती है, जो इंजीनियरी संरचना के लिये आवश्यक है।

मिट्टी का वर्गीकरण

निसर्ग भूमि के तीन प्रमुख अवयव हैं, रेत, सिल्ट और मिट्टी। इनके कणों के आकार में तो अंतर है ही, इनके रासायनिक तथा भौतिक गुण भी भिन्न हैं।

रेत (sand) साधारणतया सिलिका और स्फटिक की बनी होती है। सिलिका और स्फटिक निष्क्रिय होते हैं। रेत का आकार ०.०६ मिमी० से २ मिमी० तक होता है। रेत के कणों में संसंजन (cohesion) और केशिकात्व (capilarity) नहीं होता, किंतु पारगम्यता (permeability) अधिक होती है।

सिल्ट (silt) के घटक सिलिका और स्फटिक ही हैं, किंतु इसके कणों का आकार ०.०००२ मिमी० से ०.०६ मिमी० तक होता है। सिल्ट के कणों में संसंजन नहीं होता, लेकिन केशिकात्व काफी होता है।

मिट्टी (clay) के कणों का आकार ०.००२ मिमी० से कम होता है। रेत और सिल्ट से इसकी असमानता यह है कि मिट्टी के कण रसायनत: आविष्ट (chemically charged) होने के कारण रसायनकों स अभिक्रिया करते हैं।

मिट्टी की अधिकता से भूमि में केशिकात्व तथा संसंजन आता है। ऐसी भूमि गीली होने पर फूलती है तथा सूखने पर सिकुड़ती है।

मिट्टी के इन स्पष्ट भौतिक गुणों का कारण उसमें कोलायडीय कणों की उच्च प्रतिशतता है, जिससे हाइड्रोजन, सोडियम, कैल्सियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम आदि के अयन पृष्ठ से अधिशोषित (adsorbed) होते हैं। ये अयन विनिमेय हैं, अर्थात् विलयन (solution) में ये दूसरे अयनों से प्रतिस्थापनीय (replaceable) हैं।

इन अयनों को अधिशोषित करने की उच्चतम क्षमता को क्षार की विनिमय धारिता (base exchange capacity) कहते हैं। अयनों की क्षारक (specific surface area) भी उतना ही अधिक होगा। मिट्टी के गुण पृष्ठ पर अधिशोशित धनायन (cation) पर निर्भर करते हैं।

मिट्टी की संरचना

भिन्न भिन्न मिट्टीयों के रासायनिक अवयव एक ही हैं, अर्थात् मात्रा में (MgO), (CaO), (K2O), (Na2O) के साथ (SiO2), (Al2O3), (Fe2O3) तथा जल, किंतु भिन्न्न मिट्टियों में खनिज यौगिक भिन्न होते हैं। अनेक वैज्ञानिकों के एक्स किरण तथा सजातीय शैल विश्लेषण अनेक वैज्ञानिकों के एक्स किरण तथा सजातीय शैल विश्लेषण (petrographic) संबंधी प्रयोगों के फलस्वरूप मिट्टी खनिज के दो समूह निश्चित हुए हें। वर्गीकरण का आधार क्रिस्टल जालक (crystal lattice) की बनावट है।

केओलिन समूह

देखें - चीनी मिट्टी

इस समूह के खनिज सिलिका और ऐल्यूमिना के एक एक चादरों से बने होते हैं।

मांट मारिलोनाइट समूह

इस समूह के खनिज के क्रिस्टल जालक दो इकाई सिलिका चादर और एक इकाई ऐल्यूमिना चादर से बने होते हैं।

क्रिस्टल जालक संरचना की भिन्नता के फलस्वरूप इन दो समूहों की मिट्टियों के रासायनिक तथा भौतिक गुणों में महान अंतर होता है।

केओलिन खनिज की क्षार विनियम धारिता निम्न और उसका अधिशोषण गुण भी कम होता है, जब कि मांटमारिलोनाइट खनिज का धनायन-अधिशोषण होता है।

भारत के मिट्टी समूहों में प्रधान कपास की काली मिट्टी, जो प्राय: समस्त मध्य तथा दक्षिण भारत में छाई हुई है, मांटमारिलोनाइट समूह की है। इसका मुख्य गुण सिकुड़ना तथा फैलना है, जो भवन तथा सड़क निर्माण की समस्या है। इधर की खोज से सिद्ध हुआ है कि मोटे चूने (fat lime) से अभिक्रिया कराने पर मिट्टी का फूलना बहुत कुछ कम हो जाता हैं।

इन्हें भी देखें