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मूल्य संकेत

नॉर्वे में बिकते हुए फल। कीमतें उपभोक्ताओं को अपनी खपत कम-अधिक करने की और उत्पादकों को अपना उत्पादन बढ़ाने-घटाने का संकेत देती हैं।

अर्थशास्त्र में मूल्य संकेत (price signal) या कीमत संकेत वह सूचना होती है जो उपभोक्ताओं और उत्पादकों के बीच किसी उत्पादन (सेवा या वस्तु) की कीमत द्वारा दी जाती है। यदि कीमत बढ़े तो उपभोक्ताओं को संकेत मिलता है कि बाज़ार में उत्पादन की उपलब्धि की कमी हो रही है इसलिए खपत कम करें और उत्पादकों को संकेत मिलता है कि उत्पादन की मात्रा बढ़ाएँ। इसके विपरीत यदि कीमत गिरे तो संकेत मिलता है कि बाज़ार में उत्पादन थोक में है इसलिए खपत बढ़ाई जाए और उत्पादकों को संकेत मिलता है कि उत्पादन की मात्रा घटाएँ।[1] मूल्य संकेत अच्छी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत आवश्यक है और उसमें हस्तक्षेप से दुषप्रभाव हो सकते हैं। आर्थिक भाषा में मूल्य संकेत में कृत्रिम फेरबदल करने से आर्थिक अदक्षता उत्पन्न हो जाती है।[2][3]

उदाहरण

  • यदि माना जाए कि आरम्भ में मुंबई में केले ₹50 प्रति किलो बिक रहे हैं। इस कीमत पर लोग अपनी क्षमता और अवश्यकता के अनुसार केले खरीद रहे हैं और पूरे मुंबई में रोज़ 2 टन केले बिक रहे हैं।
  • केलों का उत्पादन केरल, गुजरात, बिहार व ओड़िशा में हो रहा है और हर स्थान पर किसानों को केलों की बिक्री से आमदनी हो रही है। इन सभी जगहों पर अन्य चीज़ें भी उगाई जा रहीं हैं।
  • केरल में केलों में कोई कीट लगने के कारण वहाँ का उत्पादन कुछ वर्षों के लिए गिर जाता है, जिस से मुंबई में केलों की कमी होती है।
  • इस कमी से केलों की कीमत बढ़ती है। कुछ उपभोक्ता केलों के स्थान पर अन्य फल खरीद लेते हैं, जिस से केले अब वह लोग खरीदते हैं जिनकों आवश्यकता अधिक है (मसलन अपने स्वास्थ्य के लिए) और वह अधिक कीमत अदा करने को तैयार हैं।
  • केलों की कीमत बढ़ने से गुजरात, बिहार व ओड़िशा के किसान इसका उत्पादन बढ़ाने के इछुक हो जाते हैं और उत्पादन बढ़ा देते हैं।
  • धीरे-धीरे यह बढ़ा हुआ उत्पादन मुंबई पहुँचने लगता है। कीमत कुछ हद तक गिर जाती है। बाज़ार में उत्पादन व उपभोग का संतुलन फिर बहाल हो जाता है।

यदी केलों की कमी से होने वाली कीमत की बढ़ौतरी में सरकार हस्तक्षेप करे तो व्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है:

  • कीमत न बढ़ने से कोई अपनी खपत बंद नहीं करता, लेकिन जो पहले खरीद ले उसे मिल जाते हैं, और जिन्हें अधिक आवश्यकता है उनमें से कुछ वंछित रह जाते हैं।
  • कीमत न बढ़ने से गुजरात, बिहार व ओड़िशा के किसानों को कोई संकेत नहीं मिलता और वह उत्पादन नहीं बढ़ाते। बाज़ार में केलों की कमी स्थाई रूप से आ जाती है, हालांकि कुछ लोग केलों से वंछित हैं जो उनके लिए अधिक दाम देने के लिए तैयार हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Boudreaux, Donald J. "Information and Prices". The Concise Encyclopedia of Economics. Library of Economics and Liberty (econlib.org). मूल से 19 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 June 2017.
  2. "Microeconomics: An Intuitive Approach with Calculus," Thomas Nechyba, Cengage Learning, 2010, ISBN 9781111792534, ... One of these conditions is that the price signal is not distorted by government policy, and we have seen above that explicit distortions through the setting of price ceilings or price floors will indeed result in deadweight losses (or inefficiencies) ...
  3. "Journal of Policy Analysis and Management," Association for Public Policy Analysis and Management, 1989, ... But a mandatory price — by denying consumers paying it the option of exercising discretion - sacrifices the value that price signal information can have for producers ...