मुराव
मौर्य जाति | ||
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वर्ण | क्षत्रिय | |
गौत्र | मोरी/गौतम | |
धर्म | सनातन धर्म | |
वासित राज्य | भारतीय उपमहाद्वीप | |
उप विभाजन | मौर्य (मुराव मोरी)[1] | |
स्थिति | वर्तमान मध्यम वर्गीय[2] |
उत्पत्ति
इतिहासकार पं० जेपी चौधरी , इतिहासकार गंगाप्रसाद गुप्ता और विलियम पिंच के अनुसार (मुराव/मोरी) क्षत्रिय जाति हैं, जो श्री राम के वंशज शाक्यों की उपशाखा हैं।[3]
मौर्य (मुराव/मुराई/मोरी) में परिवर्तित कैसे हुई —
अतएव उपरोक्त आधारानुसार मौर्य शब्द बदल कर मौर्यवा हुआ और फिर वही मौर्यवा शब्द भाषा में बदलकर मोरयवा व मोरावा हो गया और मोरावा से आजकल का प्रचलित नाम मुराव रह गया । सरकारी अफसरों ने इस जाति का विवेचन करते हुये इनके भिन्न भिन्न नाम लिखे हैं। जैसे मुराव/मुराऊ/मुराई/मोरी आदि।[4]
शासक
- राजा रायमोहन मुराव (महोना)[5]
वर्तमान परिस्थितियाँ
भारत के संवैधानिक कैटेगरी व्यवस्था के तहत , 1991 में मौर्य जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।[6] भारत के कुछ राज्यों में मौर्य जाति को पिछड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत किए गए हैं।[7] वर्ष 2013 में हरियाणा सरकार ने मौर्य(मुराव) जातियो को "पिछड़ी जातियों" में सम्मिलित किया है। उत्तरप्रदेश गवर्मेंट कास्ट लिस्ट में Maurya/Murao/Murai के रूप में रजिस्टर्ड है। [8]
वर्गीकरण
'के चेट्टी के अनुसार 'मुराव' पारंपरिक रूप से ज़मींदार थे।[9]
मुराव ने 1928 में क्षत्रिय वर्ण में पहचान पत्र हेतु लिखित याचिका भी दायर की थी।[10]
मौर्य गोत्र सूची
चित्तोडिया(क्षत्रिय) कराडिया राजपूत(गुजरात),परमार,सक्तिया(सकटा) , भक्तिया(भगता) , ठाकुरिया , जलुहार ,गोईता,शाक्यसेनी , हल्दिया(मुराव) , पुर्विया , कछवाहा , उत्तराहा , दखिनाहा , प्रयागहा , तनराहा, कनौजिया , भदौरिया , ढंकुलिया , इत्यादि मौर्यों में पीरीवाल २३२ गोत्र हैं।[11]
मुराव (मौर्य,मोरी) यह एक क्षत्रिय और कृषक जाति है जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाया जाने वाला एक जाति समुदाय हैं। जिन्हे मौर्य नाम से जाना जाता है। पालि भाषा का (खत्तिय शब्द : अर्थ-खेतिहर अर्थात खेती-बाड़ी करने वाली योद्धा जाति) का (संस्कृत रूप: क्षत्रिय) हैं, लेकिन जिसका अर्थ बदलकर वर्तमान में केवल (योद्धा: युद्ध लड़ने वाला) से जोड़ दिया गया है। मुराव जाति को कोइरी की उपजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो कुशवाहा नामक एक बड़े समुदाय का हिस्सा है जिसमें कछवाहा, कोइरी, काछी व मुराव जातियां शामिल है। जो मुराव समुदाय के हितों का प्रतिनिधित्व करता है। इतिहासकार के चेट्टी के अनुसार मुराव पारंपरिक रूप से जमींदार थे वर्तमान में इस समुदाय की ज्यादातर सदस्य जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर हैं इनमें से कई पशुपालन व्यवसाय से भी जुड़े हुए हैं इनमें से कई शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाकर विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। उत्तर प्रदेश में, मुसलमान के बीच कुंजड़ा नामक समुदाय का एक वर्ग है जिसे एक अन्य पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इसका गठन मुराव के इस्लाम में रूपांतरण के कारण हुआ है। मुराव जाति को उत्तर प्रदेश और बिहार में मौर्य, मुराई, मोरी नाम से भी जाना जाता है। यह प्राचीन मोरिय जनजाति के वंशज हैं जो शाक्य जनजाति की एक शाखा है चंद्रगुप्त मौर्य को मोरिय गणराज्य के राजा चंद्रवर्धन मौर्य का पुत्र माना जाता है, जो बाद में मौर्य साम्राज्य की स्थापना करते हैं। मौर्य शाक्यों की एक शाखा है, जो पिपलीवन में आकर मौर्य कहलाए जो बाद में समय अनुसार बदलकर मुराव बन गए।
प्रसिद्ध इतिहासकार गंगा प्रसाद गुप्त ने मुराव,कोइरी,काछी जाति को एक ही माना है। तथा महान इतिहासकार व साहित्य के प्रकांड विद्वान डॉक्टर शिवपूजन सिंह कुशवाहा ने अपनी किताब 'कुशवाहा क्षत्रियोंत्पत्ति मीमांसा' में कोइरी, काछी,मुराव जो कुशवाहा नाम से भी जानी जाती है। मौर्य वंश के पतन के बाद यह लोग कृषि कार्य को अपना कर अपनी जीविका चलाने लगे इतिहास कारों के अनुसार मौर्य शब्द बदलकर मौर्यवा हुआ और फिर वही मौर्यवा शब्द भाषा में बदलकर मोरयवा व मोरावा हो गया और मोरावा से बदलकर मुराव रह गया । यह मुराव शब्द भी एक दशा में न रहा और देश की भिन्नता के साथ इसके कई भिन्न-भिन्न नाम हो गए सरकारी अफसर ने इस जाति का विवेचन करते हुए उनके भिन्न-भिन्न नाम लिखे हैं जैसे मुराव, मुराई, मोरी आदि
मुराव जाति का इतिहास
मुराव मौर्य जाति का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। शाक्य गणराज्य में आने के कारण कुछ(काशी महाजनपद) के लोग अब शाक्य जाति के कहलाने लगे थे। बाद में शाक्य कुल में राजा शुद्धोधन का जन्म होता है जिनकी शादी कोलिय कुल के राजा अंजन की दो पुत्री महामाया व प्रजापति से होती है। शुद्धोधन महामाया से शाक्यमुनि गौतम बुद्ध सिद्धार्थ का जन्म होता है। जिन्होंने पूरे मानव कल्याण के लिए अपना सारा जीवन लगा दिया। शाक्य कुल में भगवान बुद्ध का जन्म होने के कारण शाक्य गणराज्य की गरिमा पूरे जम्मू दीप में और बढ़ गई थी।शाक्य गणराज्य के समीप स्थित कौशल गणराज्य के राजा प्रसेनजीत अपने गणराज्य की गरिमा बढ़ाने के कारण एक शाक्य कन्या से विवाह करना चाहता था। शाक्य लोग अपनी रक्त शुद्धता बनाए रखने के कारण वह स्वयं व कोलियो के अलावा किसी और से संबंध नहीं बनाते थे। कौशल गणराज्य बहुत शक्तिशाली था जिससे की शाक्य लोग उसे मना नहीं कर सकते थे। इसलिए शाक्यों ने अपने गणराज्य की एक सुंदर दासी पुत्री से प्रसेनजीत का विवाह करवा दिया। जिससे प्रसेनजीत का बेटा विड्डूब्भ जन्म लेता है लेकिन जब उसे यह पता चलता है कि वह एक दासी पुत्री का बेटा है उसे बहुत क्रोध आता है। वह शाक्यों के इस षड्यंत्र से क्रोधित होकर शाक्यों पर हमला कर देता है। कौशल गणराज्य शाक्यों से अधिक विशाल व शक्तिशाली था जब विड्डूब्भ ने शाक्यों पर आक्रमण किया तो शाक्य तितर बितर हो गए तथा कुछ शाक्य लोग पिपलीवन (वर्तमान गोरखपुर)में आकर बस गए तथा यहां पर अपनी शासन व्यवस्था स्थापित कर अपनी जीविका चलाने लगे। जिस तरह कपिलवस्तु में साक नमक पेड़ों के होने के कारण उस गणराज्य को शाक्य गणराज्य कहते थे।इस तरह पिपलीवन में अधिक मात्रा में मोर के पक्षियों के पाए जाने के कारण इसे मोरीय गणराज्य कहा जाने लगा धीरे-धीरे शाक्य भी मोरिय कहे जाने लगे और अपनी पूर्व पहचान को भुलाकर खुद को मोरीय बताने लगे।
मोरियनगरे चन्दवड्ढनो खत्तिया राजा नाम राज्ज करेसि। तेन तस्स नगरस्स समिनो साक़िया च तेस पुत्तपुत्ता च सकलजम्बुदिपे मोरिया नाम’ति पाकटा जाता। ततो पभुति तेस वंसो मोरियवंसो’ति। वुच्चति,तेन वुच्च”मोरियान खात्तियान वंसजात’ति। चन्दवड्ढनो राजस्स मोरिय रञ्ञो सा अहू। राजमहेसी धम्ममोरिया पुत्तातस्सासि चन्दगुप्तो’ति॥
Buddhist Scripture Uttaravihara Atthakatha Written by Ashoka's son Mahinda in Shri Lanka.
Hindi Translation-पिप्पलिवन के मोरिय नगर में क्षत्रिय राजा चन्द्रवर्द्धन का शासन था, उस नगर के समीप शाक्य के पुत्र-पौत्र सकल जंबूद्वीप में मौर्य नाम से प्रसिद्ध हुए। तत्पश्चात उनके वंश का नाम मौर्य (मोरिया) वंश पड़ा। इस प्रकार पिप्पलिवन मोरियगणराज्य के शाक्य क्षत्रिय मौर्य कहलाये। इसी कारण उनके राजवंश का नाम मौर्यवंश पड़ा। राजा चंद्रवर्द्धन मोरिया और धर्मा मोरिया के पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य हुए।
शाक्य जाति के लोगों के पीपलीवन में आकर बस जाने के कारण यह लोग मौर्य कहलाए क्योंकि पिपली वन में मोर पक्षियों की संख्या अधिक थी जिसके कारण शाक्यों को भी मौर्य कहा जाने लगा [मौर्य (संस्कृत),मोरिय (पाली)] शाक्य गणराज्य से विस्थापित चंद्रवर्धन मौर्य मोरीय गणराज्य के राजा हुआ करते थे। बौद्ध ग्रंथ ''उत्तरबिहारट्टकथायम्'' ( लेखक- थेर महिंद्र, सम्राट अशोक के पुत्र) के अनुसार मोरिय गणराज्य पर खत्तिय राजा चंद्रवर्धन( जन्म 374 ईसा पूर्व) का शासन था| इनकी प्रधान रानी धम्म मोरिया बनी। उनके पुत्र चंद्रगुप्त पैदा हुए। चंद्रगुप्त मौर्य के पिता राजा चंद्रवर्धन 340 ईसा पूर्व 34 वर्ष की आयु में मगध के विस्तारवादी सीमा संबंधी युद्ध में मारे गए तथा मोरिय गणराज्य पर महापदमनंद का अधिकार हो गया| इस घटना के बाद रानी धम्म मोरिया बच निकली और अपने भाइयों की सहायता से पुत्र के साथ पुष्पपुर आ गई| यहीं पर चंद्रगुप्त मौर्य का बचपन मयूर पालको, शिकारियों तथा ग्वालो अर्थात चरवाहों के मध्य व्यतीत हुआ। वहीं से नंदो के द्वारा अपमानित चाणक्य ने चंद्रगुप्त को देखा तो वह समझ गया कि यह कोई साधारण बालक नहीं है। क्योंकि चंद्रगुप्त के अंदर बचपन से ही राज्य करने की बुद्धि विद्यमान थी। चाणक्य चंद्रगुप्त की मां से संपूर्ण परिचय पूछते हैं उनकी मां पूर्व में घटित संपूर्ण घटनाओं के बारे में चाणक्य को बताती हैं। तथा चंद्रगुप्त को अपने साथ तक्षशिला ले जाते हैं और युद्ध विद्या की शिक्षा कूटनीति आदि ज्ञान देकर चंद्रगुप्त को अखंड भारत पर विजय प्राप्त करने के काबिल बनाते हैं। भारतवर्ष की प्राचीन भाषा पालि की गाथाओं में चंद्रगुप्त मौर्य का परिचय इस प्रकार हैं। आदित्य गोत्र, शाक्य जाति, मौर्य वंश के खत्तियों(क्षत्रिय) मे प्रजा संपन्न चंद्रगुप्त मौर्य राजा हो गए। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए नंदों के साम्राज्य का अंत कर अखंड भारत का निर्माण कर दिया। उसके बाद चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म को अपना कर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिंदुसार हुए जिन्होंने अपने पिता के साम्राज्य को आगे बढ़ाते हुए अपने पुत्र सम्राट अशोक को राजा बना दिया। सम्राट अशोक इस पूरी दुनिया का सबसे महान राजाओं में से एक हैं। जिन्होंने संपूर्ण मानव जगत की कल्याण के लिए अनेकों कार्य किए। कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपना कर तथा उसके प्रचार प्रसार में अपना सारा जीवन व्यतीत किया। वैदिक धर्म को त्याग कर सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने की बात ब्राह्मणों को रास नहीं आई। कई सारे ब्राह्मणों ने अपनी किताबों में मौर्य को शूद्र घोषित करने की चेष्टा की है तथा अभी भी करते रहते हैं लेकिन सच है कि छुपाए नहीं छुपता। सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों में खुद को क्षत्रिय व बुद्ध शाक्य का वशंज बताया है। इसी तरह मौर्य वंश में अनेक शक्तिशाली राजा उत्पन्न हुए मौर्य वंश के अंतिम सम्राट बृहद्रथ मौर्य की हत्या उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग के द्वारा की जाती है। कुछ मौर्य अपनी पहचान छुपा कर कृषि कार्य में लगकर अपना जीवन यापन करने लग गए। जिससे कि मोरिय शब्द समय अनुसार बदलकर मुराव हो गया। तथा आज भी मुराव जाति पिपलीवन वर्तमान गोरखपुर के क्षेत्र के आसपास अधिक मात्रा में पाई जाती है और यह जमींदार कृषक व बड़ी जमीनों के मालिक होते हैं। वर्तमान मुराव जाती ही असली मौर्य की वंशज है। तथा राज्य खत्म होने का मतलब या नहीं की सभी मौर्य राजा मारे गए तथा जो मौर्य राजा बच गए वह अभी भी अपने क्षेत्र में शासन करते थे। जिनमें से कुछ मौर्य राजाओं ने 7 वीं शताब्दी में राजस्थान के मालवा पर लगभग 120 साल तक शासन किया था। राजस्थान गए मौर्यों को मोरी नाम से संबोधित किया गया क्योंकि भारत में हर जगह अलग-अलग भाषाओं के होने के कारण ऐसा होता है तथा मोरी क्षत्रियों को राजपूत की उपाधि भी दी गई। तथा एशिया का सबसे बड़ा चित्तौड़गढ़ का किला मौर्य राजा चित्रांगदा मौर्य ने बनवाया था। तथा अरबों के खिलाफ मौर्य की सेना का नेतृत्व कर रहे गहलोतवंशी बप्पा रावल मोरी राजवंश के अंतिम शासक मान मौर्य की हत्या करके मालवा से सभी मौर्यों को निकलवा देते हैं। जिनमें से कुछ मौर्य महाराष्ट्र के मराठाओं में मिल जाते हैं जिन्हें मोरे मराठा नाम से जाना जाता है। लेकिन जो अन्य छोटी रियासतों के मौर्य थे वो शासन करते रहे इसका उदाहरण यह है कि वर्तमान में मोरी राजपूत नामक एक शाखा राजपूतो में भी पायी जाती हैं और कुछ मौर्य फिर से अपना कृषि कर्म अपना कर कृषि कार्य करके अपना जीवन यापन करते हैं। जो कि वर्तमान में मौर्य,मुराव,मुराई,मोरी,मोरे नाम से जाने जाते हैं।
संदर्भ
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- ↑ Nevill, H. R. (1904). Lucknow:A Gazetteer. Superintendent, Government Press , Allahabad. पृ॰ 149. अभिगमन तिथि 2015-06-26.
- ↑ Pinch, William R. (1996). Peasants and monks in British India. University of California Press. पृ॰ 216. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-20061-6. अभिगमन तिथि 2012-02-22.
- ↑ सप्तखंडी जाति निर्णय - भाग [2]. पृ॰ 259.
- ↑ Lucknow Gazetteer. पृ॰ 106.
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- ↑ Jaffrelot, Christophe (2003). India's silent revolution: the rise of the lower castes in North India (Reprinted संस्करण). C. Hurst & Co. पृ॰ 197. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-85065-670-8. मूल से 27 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-02-06.
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- ↑ Kumar, Ashwani (2008). Community Warriors: State, Peasants and Caste Armies in Bihar (अंग्रेज़ी में). Anthem Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-84331-709-8.
- ↑ Pinch, William R. (1996-06-18). Peasants and Monks in British India (अंग्रेज़ी में). University of California Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-91630-2.
- ↑ "End of a dynasty in 'Chittorgarh of Bihar' | Deccan Herald". web.archive.org. 2022-06-12. मूल से पुरालेखित 12 जून 2022. अभिगमन तिथि 2023-08-27.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
- ↑ Rashid, Omar (2022-01-18). "The importance of being Keshav Prasad Maurya in BJP". The Hindu (अंग्रेज़ी में). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-751X. अभिगमन तिथि 2023-08-27.
- ↑ "National Commission for Backward Classes". www.ncbc.nic.in. अभिगमन तिथि 2023-08-27.
- ↑ न्यूज़, पंकज झा, एबीपी (2016-06-30). "ग्राउंड रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में किस तरफ जा रहा है मौर्य समाज ?". www.abplive.com. अभिगमन तिथि 2023-08-29.