मुख्य उपनिषद
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उपनिषदों की संख्या लगभग १०८ है जिनमें से प्रायः १३ उपनिषदों को मुख्य उपनिषद् कहा जाता है। मुख्य उपनिषद, वे उपनिषद हैं जो प्राचीनतम हैं और जिनका पठन-पाठन अधिक हुआ है। इनका रचनाकाल ८०० ईसापूर्व से लेकर ईसवी सन के आरम्भ तक माना जाता है। भारत में अंग्रेजों के शासन के समय के कुछ विद्वान यद्यपि केवल दस उपनिषदों को मुख्य उपनिषद की श्रेणी में रखते थे, किन्तु अब अधिकांश विद्वान १३ उपनिषदों को मुख्य उपनिषद मानते हैं-
- (१) ईशावास्योपनिषद्,
- (२) केनोपनिषद्
- (३) कठोपनिषद्
- (४) प्रश्नोपनिषद्
- (५) मुण्डकोपनिषद्
- (६) माण्डूक्योपनिषद्
- (७) तैत्तरीयोपनिषद्
- (८) ऐतरेयोपनिषद्
- (९) छान्दोग्योपनिषद्
- (१०) बृहदारण्यकोपनिषद्
- (११) श्वेताश्वतरोपनिषद्
- (१२) कौशितकी उपनिषद्
- (१३) मैत्रायणी उपनिषद्
आदि शंकराचार्य ने इनमें से १० उपनिषदों पर टीका लिखी थी। इनमें माण्डूक्योपनिषद सबसे छोटा है (१२ श्लोक) और बृहदारण्यक सबसे बड़ा।