मुक्ति सेना
मुक्तिसेना (सैलवेशन आर्मी) एक ईसाई संस्था तथा अन्तरराष्ट्रीय धर्मार्थ संस्था है जिसका संगठन अर्ध-सैनिक है। इस संस्था के विश्व भर में १५ लाख से अधिक सदस्य हैं। इसके संस्थापक विलियम बूथ थे।
इसके सदस्य बाइबिल, ईसा के ईश्वरत्व आदि मुख्य ईसाई धर्मसिद्धांतों पर विश्वास करते हैं किंतु वे बपतिस्मा आदि ईसाई संस्कार अस्वीकार करते हैं। मुक्तिसेना का मुख्यालय लंदन में है किंतु उसके सदस्य लगभग 128 देशों में सामाजिक सेवा के विभिन्न कार्यों में लगे हुए हैं। मुक्ती सेना को मुक्ती फौज भी बोला जाता है. मुक्ती फौज की भारत मे 19 सप्टेंबर 1882 में फ्रेडरिक टकर नाम के एक सेवकने की. वह ब्रिटिश इंडिया मे मॅजिस्ट्रेट थे. उन्होने सारी ऐषोआराम की जिंदगी छोडकर साधू के भगवे वस्त्र अपनाकर यीशू मसीहा का संदेश दिया. इतनाही नहीं उन्होने भारतीय नाम भी लिया फकिरसिंग. उन्होने चार लोगोंको लेकर भारत में शुरूवात की. लेकिन आज की तारीख मे मुक्ती फौज के चार लाख से भी जादा सदस्य हैं और 6 टेरिटरीज के साथ अपना काम आगे ले जा रही है. चेन्नई, तिरूनेलवेल्ली, त्रिवेंद्रम, मुंबई, दिल्ली, मिझोराम के प्रांतों में यह काम चालता है. भारत का रजिस्टर्ड कार्यालय मुंबई में है. स्कूल, अस्पताल, हाॅस्टेल, बोर्डिंग, यतिमखाने, अंधाश्रम, वृध्दाश्रम, कम दाम में यात्रियोंके लिए रेहने की सुविधावाला रेड शिल्ड गेस्ट हाउस (500 रू) ऐसे विविध रूप से भारत के लोगोंकी सेवा करती है. यह सारी सेवाए बिना किसी भेदभाव से करती है.
परिचय
विलियम बूथ (सन् १८२९-१९१२ ई०) ऐंग्लिकन चर्च को छोड़कर मेथोडिस्ट पादरी बन गए। सन् १८६१ ई० में वह लंदन आकर निम्न वर्ग के लोगों में सुसमाचार (गॉस्पेल) का प्रचार करने लगे और इस उद्देश्य से उन्होंने 'दि क्रिस्चियन रिवाइवल सोसाइटी' की स्थापना की, जिसे बाद में 'दि क्रिस्चियन मिशन' का नाम दिया गया। सन् १८७८ ई० में 'दि क्रिस्चियन मिशन' का रजिस्ट्रेशन हुआ और बताया गया कि यह एक धार्मिक संस्था है जिसके सदस्य सुसमाचार का प्रचार करने का भार कर्त्तव्य के रूप में स्वीकार करते हैं। सन् १८८० ई० में इस संस्था का 'मुक्तिसेना' नाम रखा गया। इस नाम का कारण यह है कि अंग्रेजी सेना के अनुकरण पर इसका गठन किया गया था।