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मुक्तिवाहिनी

बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी)

मुक्ति वाहिनी (बंगला : মুক্তি বাহিনী मुक्ति बाहिनी), उन सभी संगठनों का सामूहिक नाम है जिन्होने सन् १९७१ में पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध संघर्ष करके बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वतंत्र कराया।

बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान मुक्ति वाहिनी का गठन पाकिस्तान सेना के अत्याचार के विरोध में किया गया था। १९६९ में पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक शासक जनरल अयूब के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष बढ़ गया था और शेख मुजीबुर रहमान के आंदोलन के दौरान १९७० में यह अपने चरम पर था। मुक्ति वाहिनी एक छापामार संगठन था, जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहा था। मुक्ति वाहिनी को भारतीय सेना ने समर्थन दिया था।

इतिहास

14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बना, लेकिन पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में कोई समानता नहीं थी। पूर्वी पाकिस्तान में ज्यादा संसाधन थे, लेकिन पश्चिमी क्षेत्र के नेता राजनीति में हावी रहते थे। और इसी वजह से अंत में 1971 में बांग्लादेश बना।

पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी, पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी, जबकि पूर्व हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था। लेकिन पूर्वी हिस्सा हमेशा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा। इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबर्दस्त नाराजगी थी। और इसी नाराजगी को भुनाने के लिए बांग्लादेश के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की। 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबर्दस्त विजय हासिल की। उनके दल ने संसद में बहुमत भी हासिल किया लेकिन बजाए उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के उन्हें जेल में डाल दिया गया। और यहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव रखी गई।

1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे और उन्होंने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी। लेकिन उनके द्वारा दबाव से मामले को हल करने के प्रयास से स्थिति पूरी तरह बिगड़ गई। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान के इस हिस्से में जबर्दस्त नरसंहार हुआ। इससे पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में जबर्दस्त रोष हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली। पाकिस्तानी फौज का निरपराध, हथियार विहीन लोगों पर अत्याचार जारी रहा। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से लगातार अपील की कि पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति सुधारी जाए, लेकिन किसी देश ने ध्यान नहीं दिया और जब वहां के विस्थापित लगातार भारत आते रहे तो अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देकर, बांग्लादेश को आजाद करवाने का निर्णय लिया।

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