मुकट सिंह शेखावत
महाराजा मुकट सिंह शेखावत (मुकंद सिंह -ठिकाना सीकर खूड)
महाराजा मुकट सिंह नीन्दरगढ़ के नवाब फ़तेह उल्ला खान तुर्क के खिलाफ सन १५४२ में हुए मधि युद्ध व मौजा सरकडा जंग के सेना नायक थे | ये मूलतया राजस्थान के सीकर के पास खूड ठिकाने के स्वामी श्याम सिंह के पुत्र थे | उतरप्रदेश के बिजनौर जनपद जिसे मुगलकाल में मधी क्षेत्र (जनपद) के नाम से जाना जाता था ,इसमें बसे शेखावत राजपूत राजस्थान के सीकर- खेड़ी(खूड) से आये महाराज मुकट सिंह शेखावत के वंशज है| महाराज मुकट सिंह ने राजस्थान से आकर मधी क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था, उनके पास दो चौरासी थी| राजा मुकट सिंह (राजा मुकंद सिंह शेखावत)के बारे में भाट ने लिखा है कि मुकट सिंह कछवाहे टिर शेखावत निवासी सीकर खेड़ी (खूड़-राजस्थान) आला अफसर थे ,जिन्हें भटियाना से तेलीपुरा तक तथा रामगंगा पार सरकड़ा व रामुवाला शेखू आदि की दो चौरासी मिली थी| राजस्थान के इतिहास में भी “गिरधर वंश प्रकाश, खंडेला का वृहद इतिहास” में ठाकुर सुरजन सिंह जी द्वारा पृष्ठ सं. ४०२ और “शेखावत और उनका समय” रघुनाथ सिंह जी काली-पहाड़ी द्वारा लिखित पुस्तक के पृ.स.६२३ पर उल्लेख से स्पष्ट ज्ञात होता है कि खुड के स्वामी श्याम सिंह के चार पुत्रों में से एक मुकंद सिंह जिन्हें विरासत में दो गांव सुरेडा और मोहनपुरा मिले थे ,वे खुड से मोहनपुरा चले गए थे और वहीं से वे मधी क्षेत्र युद्ध में भाग लेने के आये थे|
घटना सन १५४२ की है | वर्तमान अमरोहा ठाकुरद्वारा तथा बिजनौर जिले को मिलाकर सम्पूर्ण क्षेत्र मधी जनपद के नाम से जाना जाता था | जो मुगल कालीन व्यवस्था के अंतर्गत पड़ने वाले सूबे संभल का एक भाग था |
यहाँ पर राजपूत राजा नवल सिंह चौहान राज्य करते थे | सन १५३० में बाबर की मृत्यु के बाद उसके सेनापति फतेहउल्लाह खां तुर्क ने राजा नवल सिंह चौहान को युद्ध में मारकर उनके राज्य पर अधिकार कर लिया एवं नींदर गढ़ (वर्तमान नीन्दडू जो धामपुर से लगभग तीन किलोमीटर तथा वर्तमान मधी ग्राम से २ किलोमीटर उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है) को अपना ठिकाना बनाकर राज्य करने लगा |
फ़तेह उल्ला खां तुर्क अत्यंत क्रूर शाषक था | वहीँ मधी क्षेत्र में के वन में पिछले २४ वर्षो से एक हठी बाबा भैरो सिद्ध श्रवण अपना आश्रम गुरुकुल बनाकर शिक्षा देते थे | यह शिक्षा गुरुकुल केंद्र फ़तेहउल्लाह की आँखों में खटकता रहता था | अत: उसने एक दिन शिकार करते समय अपने सैनिको को साथ ले जाकर आश्रम में मांस पकाकर आश्रम गुरुकुल की पवित्रता भंग कर दी | जिससे क्रुद्ध होकर हठी बाबा ने उसे उजड़ने का श्राप दे दिया और उसको समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा कर ली | वह स्थान स्थान पर जाकर क्षत्रिय धर्म की शिक्षा का प्रचार प्रसार करते हुए घूमने लगे | परन्तु कोई भी उस तुर्क से युद्ध करने को तैयार नही हुआ |
कुछ समय बाद बाबाजी ने गढमुक्तेश्वर में पुरातन काल से लगने वाले गंगाजी के मेले में क्षत्रिय धर्म की शिक्षा देने के लिए अपना डेरा लगाया | गंगा जी के तट पर लगने वाले इस मेले में दूर दूर से लोग आते थे | उनकी ओजस्वी वाणी को सुनने और अलोकिक तेजस्वी व्यक्तित्व के दर्शन करने को अनेक लोग प्रतिदिन एकत्रित होने लगे | एक दिन राजस्थान से आये कुछ राजपूत सरदार बाबाजी के डेरे पर दर्शन के लिए आये तथा उन्होंने बाबा जी से उनके डेरे में चलकर आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह किया | तब बाबाजी ने अपनी राजपूत सरदारों को अपनी प्रतिज्ञा बताते हुए कहा जो भी फतेहउल्लाह खान से युद्ध कर इस क्षेत्र को मुक्त कराने का वचन देगा उसी का आतिथ्य मैं स्वीकार करुगा | तब उन राजपूत सरदारों में से एक मुकट सिंह शेखावत ने साधू बाबा को वचन दिया | फिर उन्होंने मेले में एक सभा की तथा साधू बाबा को दिया गया वचन सभी उपस्थित राजपूत सरदारों के समक्ष रखा | सभा में उपस्थित सभी क्षत्रियो में से मात्र १२ राजा युद्ध के लिए सहमत हुए | सभी राजा बाबाजी से विजय का आशीर्वाद लेकर युद्ध के लिए प्रस्थान किये | इनके साथ कुल सम्मिलित १२००० योद्धाओं का सैन्य बल था | जिनमें नागलक्ष तक्षक,झाला,भाल,परमार आदि क्षत्रिय कुल के राजपूत योद्धा सरदार सेनापति थे।
मार्ग में पहला पड़ाव वर्तमान धनौरा के पास नरेशनपुर में पड़ा | दूसरा पडाव चांदपुर की घाटी में पड़ा | यहाँ पर सैन्य छावनी बनायी गयी| उस घाटी का नाम सैन्यद्वार( वर्तमान सैनद्वार) पड़ा , तथा पास में ही जहाँ राजाओ का दरबार लगता था तथा युद्ध की रणनीति योजना बनी थी उस स्थान का नाम दरवाड़ा पड़ा |
युद्ध का विगुल बजा ,महाराज मुकट सिंह शेखावत के नेतृत्व में सभी राजपूत राजाओं ने फतेहउल्लाह पर आक्रमण कर दिया | फ़तेहउल्लाह की सहायता के लिए रामगंगा पार के सरकड़ा का पुंडीर राजपूत सरदार अपनी सेना लेकर आया परन्तु रामगंगा नदी में अत्यधिक जल आ जाने के कारण उसकी आधी सेना ही सहायता के लिए पहुच सकी | भयंकर युद्ध हुआ | फतेहउल्ला युद्ध में मारा गया , जिस स्थान पर उसका सर कटा था उस स्थान का सरकथल(वर्तमान सरकथल माधो) पड़ा | जिस स्थान पर उसको दफनाया गया था वहां पर आज भी प्रतिवर्ष नीन्द्डू से दक्षिण दिशा में उर्स लगता है |
उस युद्ध के बाद सभी राजाओं ने सम्मिलित रूप से रामगंगा पार सरकड़ा के पुंडीर राजा पर चढाई कर दी | राजा मालदेव सिंह नरुका का पुत्र विजय सिंह नरुका मौजा सरकडा की जंग में वीरगति को प्राप्त हुए | पुंडीर राजा अपने परिवार व जीवित बची हुई अपनी सेना लेकर गंगा पार मुजफ्फरनगर की और भाग गया | इस युद्ध में राजपूत सरदारों की ओर से राजा अमरजीत सिंह हाडा के दो बेटो तथा महाराज मुकट सिंह शेखावत के बेटे माधव सिंह शेखावत सहित कई अन्य राजपूत योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए |
युद्ध के पश्चात सभी राजपूत राजा सात वर्षो तक नींदडू में डेरा डाले रहे | उन्होंने वापिस जाने का निश्चय किया ,तब बाबाजी ने उन्हें समझाया की रामगंगा और गंगा नदी के बीच अंत्यंत उपजाऊ सस्य श्यामला भूमि को छोड़कर क्यों जाना चाहते हो |इस विजित भूमि को आबाद करो | सभी राजाओं ने उनका सुझाव मान लिया | उन्होंने वन को साफ़ कर रहने योग्य १३ क्षेत्रो में बांटा | तत्कालीन परंपरा के अनुसार सभी राजाओं ने समस्त अपने अपने क्षेत्र को ८४ मालगुजारी संग्रह केन्द्रों में बांटा | ये क्षेत्र चौरासी के नाम से प्रसिद्ध हुए | प्रत्येक राजा को एक एक चौरासी तथा महाराजा मुकट सिंह शेखावत जी को युद्ध का सेनानायक होने के कारण दो चौरासी मिली थी|
मधी युद्ध में भाग लेने वाले सभी राजपूत राजाओं सरदारों के नाम व् ठिकाने इस प्रकार है
१-महाराज मुकट सिंह शेखावत(मुकन्द सिंह शेखावत)- वंश -सुर्यवंश ,कुल-कछवाहा,गोत्र-मानव्य, शाखा- शेखावत,उपशाखा-गिरधर जी का शेखावत|
इस युद्ध के सेनानायक थे तथा राजस्थान जिला सीकर की रियासत खुड ठिकाने की सुजावास जागीर(सुरेडा मोहनपुरा) से आये थे
इन्होने मौरना, भटियाना व रामगंगा पार के सरकड़ा की दो चौरासी आबाद की|
२-राजा मालदेव सिंह नरुका- वंश -सुर्यवंश , कुल -कछवाहा,गोत्र-मानव्य,शाखा -नरुका | ये जयपुर के पास मोजमाबाद छागलिया से आये थे इन्होने सियाऊ-सैन्दवार की चौरासी आबाद की
३-राजा राम सिंह राजावत- सुर्यवंश ,कुल-कछवाहा,गोत्र-मानव्य, शाखा-राजावत | ये आमेर जयपुर से आये थे | इन्होने सरकडा-सराय की चौरासी आबाद की
४-राजा आनंद सिंह कछवाहा- सुर्यवंश ,कुल कछवाहा गोत्र मानव्य ये ग्वालियर के पास घावलिंग से आये थे | इन्होने नगीना ,बुड्गरा, की चौरासी आबाद की
५-राजा अमरजीत सिंह हाडा- अग्निवश ,कुल- चौहान, गोत्र-वत्स ,शाखा- हाडा| ये राजस्थान के कोटा के पास गोरीपुर तिलवाडी से आये थे | इन्होने फीना की चौरासी आबाद की
६-राजा रणधीर सिंह चौहान- अग्निवश , कुल- चौहान, गोत्र -वत्स ये राजस्थान के नीमराणा से आये थे | इन्होने बसेडा कंवर की चौरासी आबाद की
७-राजा गजानन देव सिंह देवड़ा- अग्निवंश ,कुल -चौहान,गोत्र-वत्स,शाखा- देवड़ा ये राजस्थान के आबू से आये थे | इन्होने अस्गरिपुर -गोहावर की चौरासी आबाद की
८-राजा मान्धाता सिंह चौहान- अग्निवश कुल -चौहान गोत्र वत्स
ये बीकानेर के पास नानक चरसुई से आये थे | इन्होने अमखेड़ा की चौरासी आबाद की
९-राजा रामचंद्र सिंह गहलौत- सुर्यवश कुल- गहलोत गोत्र-वैशम्पायन
ये चित्तोडगढ़ के पास दरहानी से आये थे | इन्होने शेरकोट की चौरासी आबाद की
१०-राजा गोपीचन्द्र गहलौत- सुर्यवश कुल- गहलौत,गोत्र- वैशम्पायन शाखा -सिसोदिया ये चित्तोड़गढ़ से आये थे |इन्होने धामपुर की चौरासी आबाद की
११-महाराजा बाघचन्द्र त्रिलोकचंद्र बैस- चन्द्रवंश ,गोत्र- भारद्वाज, शाखा- डोडिया ये कानपूर के पास डूढयाखेडा से आये थे |इन्होने हल्दौर की चौरासी आबाद की
१२-राजा बलभद्र सिंह गौड- सुर्यवंश कुल-गौड
ये अजमेर के पास वनखंडा से आये थे | इन्होने हरगनपुर की चौरासी आबाद की
'हिम्मत से राजपूतो की सब तुरक जैर थे ,रुबहा बन गये थे जितने दिलेर थे | गोशो में छिपते फिरते थे जितने दिलेर थे, टुदे थे तरकशो के कमानों के ढेर थे
यह जानकारी रियासत हल्दौर के राजा हरिवंश सिंह बैस ने सन १८४२ में राजस्थान के अलवर जिले के गांव खुटेटा कला निवासी जादोराय पुत्र श्री जीवनराय की पोथियों से संकलित कराई थी और जिसे एक छोटी पुस्तिका के रूप में पहले उर्दू में और बाद में हिंदी में प्रकाशित कराई थी| जिसका पूर्ण विषय ड़ा.हरस्वरूप सिंह शेखावत द्वारा लिखित पुस्तक “मुगलकालीन मधी जिले के शेखावत राजपूत” के पृष्ठ स.२३ से २७ तक उल्लिखित है |
राजस्थान के मूर्धन्य साहित्यकार और राजस्थान के ऐतिहासिक मामलों के जानकर तत्कालीन साहित्य अकादमी दिल्ली के सदस्य सौभाग्य सिंह शेखावत, भगतपुरा से ६ जून १९९७ को डा.परमेन्द्र सिंह जी की राजस्थान भवन दिल्ली में दूसरी मुलाकात के समय डा.परमेन्द्र सिंह जी ने महाराज मुकट सिंह जी व उनके वंशज शेखावत राजपूतों के बिजनौर जनपद में कई गांव होने व उनकी अपनी जड़ो व इतिहास से जुड़ने की हसरत व तमन्ना के बारे में चर्चा की और जल्द ही इस बारे में ऐतिहासिक तथ्य लेकर मिलने का प्रस्ताव रखा और इस बीच उनका सौभाग्य सिंह जी से इस विषय पर पत्र व्यवहार चलता रहा| उसके बाद बिजनौर जनपद के डा.हरस्वरूप सिंह शेखावत व हरिसिंह शेखावत इस संबंध में पूरी जानकारी लेकर सौभाग्यसिंह जी से जनवरी १९९८ में दिल्ली में मिले| इस मुलाक़ात की वार्ता में सौभाग्य सिंह जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि- “आप लोग हमारे ही वंश से है और मैं भी जिनकी बहुत समय से खोज कर रहा हूँ वे आप ही है| आप जिन्हें मुकुट सिंह कहते है वे मुकंद सिंह है और जो जगह आप बता रहें है सीकर खेड़ी वह सीकर जिले का खुड ठिकाना है|” खुड को इतिहास में कई भाटों ने खेड़ी, कुहड़ आदि भी लिखा है जो एक इतिहासकार ही जान सकता है| चूँकि सौभाग्यसिंह जी खुड के किले में सभी दस्तावेजों का पुर्व में अध्ययन कर चुके थे और वे खुड के स्वामी श्यामसिंह जी के एक पुत्र मुकंदसिंह के वंशजों के बारे में जानकारी जुटाने हेतु कई वर्षों से प्रयासरत थे| खुड किले में मिले ऐतिहासिक दस्तावेजों में सौभाग्यसिंह जी को यह जानकारी तो मिल चुकी थी कि मुकंदसिंह पुर्व दिशा में गए थे और वही बस गए थे पर इससे आगे की जानकारी उन्हें नहीं मिली थी जिसे जुटाने के लिए वे वर्षों से प्रयासरत थे| राजस्थान के इतिहास में भी “गिरधर वंश प्रकाश, खंडेला का वृहद इतिहास” में ठाकुर सुरजन सिंह जी द्वारा पृष्ठ सं. ४०२ और “शेखावत और उनका समय” रघुनाथ सिंह जी काली-पहाड़ी द्वारा लिखिते पुस्तक के पृ.स.६२३ पर उल्लेख से स्पष्ट ज्ञात होता है कि खुड के स्वामी श्याम सिंह के चार पुत्रों में से एक मुकंद सिंह जिन्हें विरासत में दो गांव सुरेडा ,मोहनपुरा मिले थे, वे खुड से मोहनपुरा चले गए थे और वहीं से वे मधी क्षेत्र युद्ध में भाग लेने के आये थे|
ग्राम तेलीपुरा की वंशावली का साक्ष्य
ग्राम तेलीपुरा के दो परिवारों में एक भूमि सम्बन्धी विवाद चल रहा था| उन्होंने बिजनौर मालखाने से वंशावली का पुराना रिकार्ड निकलवाया तो ज्ञात हुआ कि दोनों पक्ष माधव सिंह के वंशज है और उनके पास उस समय पांच हजार बीघा भूमि थी| जबकि माधव सिंह मुकंद सिंह के सबसे छोटे बेटे थे जिन्हें कछवाहों की उस बेल्ट का आखिरी गांव मिला था|
मौरना और खुड ठिकाने की पीढ़ियों की तुलना
मौरना के शेखावतों के शजरे (वंशावली) “मुगलकालीन मधी जिले के शेखावत राजपूत” द्वारा डा.हरस्वरूप सिंह शेखावत लिखित पुस्तक के अंत में सलंग्न की गई है| इस वंशावली में मौरना के सभी खानदानों की पीढ़ियों की संख्या लगभग एक समान है और जब इनकी तुलना व मिलान खुड ठिकाने के शजरे से किया जाता है तो पीढियां समान पाते है| इससे राजस्थान में खुड ठिकाने से इनका संबंध होना स्वत: सिद्ध हो जाता है|