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माया वर्ग

नौ खानों वाला एक माया वर्ग

मनोरंजक गणित में n कोटि (आर्डर) का माया वर्ग या 'मैजिक वर्ग' (magic square) n2 संख्याओं (प्रायः पूर्णांकों) का ऐसा विन्यास (arrangement) होता है कि सभी पंक्तियों, स्तम्भों, एवं दोनों विकर्णों में स्थित संख्याओं का योग समान होता है। इसे 'अंक यंत्र' भी कहते हैं।

प्रत्येक पंक्ति, स्तम्भ या विकर्ण (diagonal) का योग माया नियतांक (magic constant) M कहलाता है। इसे 'माया योगफल' (मैजिक सम) भी कहते हैं। किसी सामान्य माया वर्ग का माया नियतांक केवल उसके कोटि n पर ही निर्भर है और इसका मान

होता है।

अतः n = 3, 4, 5, ..., कोटि वाले माया वर्गों के माया नियतांक इस प्रकार होंगे:

15, 34, 65, 111, 175, 260, ...

परिचय

अंक यंत्र एक वर्ग के विभिन्न खानों में व्यवस्थित संख्याओं के उस समूह को कहते हैं जिसमें प्रत्येक पंक्ति, उर्ध्वाधर स्तंभ और विकर्ण में आने वाली संख्याओं का योग समान होता है। पंक्तियों और स्तंभों में खानों की संख्या सदैव समान होती है। एक पंक्ति या स्तंभ में विद्यमान खानों की संख्या उस वर्ग का पद कहलाती है। जैसे एक वर्ग की 9 छोटे खानों में इस प्रकार बाँटा जाए कि प्रत्येक पंक्ति तथा स्तंभ में तीन-तीन खानें हों तो यह तीन पद का वर्ग कहलाएगा। तीन पद के वर्ग में जो अंक से बनाया जा सकता है वह सामने के चित्र में दिखाया गया है।

चीन में इस यंत्र को लोशु (Lo Shu Square) कहते हैं। भारत, चीन और एशिया के ही कुछ अन्य देशों में इसका प्रयोग ताबीज के रूप में होता है। व्यापारी इसे अपनी दुकानों की दीवारों पर लाल रंग से लिखते हैं। शायद ये इसे शुभ मानते हैं।

चार पद का भी अंक यंत्र होता है। इसका आविष्कार भारत के प्राचीन गणितज्ञों ने किया था। खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर में इसे खुदा हुआ पाया गया है। इसे वैज्ञानिक जाति का यंत्र कहते हैं।

712114
213811
163105
96154

मद्रास के प्रोफेसर वेंकटरमन द्वारा बनाया हुआ एक यंत्र यहाँ दिखाया गया है। यह समरूप जाति का है। इसकी प्रथम पंक्ति भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ और अंकों के जादूगर, श्रीनिवास रामानुज की जन्मतिथि है 22-12-1887।

२२१२१८८७
२११६३२
९२१६२४
२७८२२६

भारतीय गणित में माया वर्ग

तंत्र साहित्य में माया वर्ग को 'यन्त्र' कहा गया है। नारायण पण्डित ने इसे 'भद्र गणित' कहा है और अपने गणितकौमुदी नामक ग्रन्थ में ज्यामिति, बीजगणित और माया वर्ग का विशेष वर्णन किया है। वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत्संहिता के 'गन्धयुक्ति' नामक अध्याय में ४ क्रम का निम्नलिखित मायावर्ग दिया है-

द्वित्रीन्द्रियाष्टभागैः अगुरुः पत्रं तुरुष्कशैलेयौ
विषयाष्टपक्षदहनाः प्रियंगुमुस्तारसाः केशः ॥
स्पृक्कात्वक्तगराणां मांस्याश्च कृतैकसप्तषड्भागाः ।
सप्तऋतुवेदचन्द्रैः मलयनखश्रीककुन्दुरुकाः ॥
षोडशके कच्छपुटे यथा तथा मिश्रिते चतुर्द्रव्ये (मिश्रितैश्चतुर्द्रव्यैः) ।
येऽत्राष्टादश भागाः तेऽस्मिन् गन्धादयो योगाः ॥
नखतगरतुरुष्कयुता जातीकर्पूरमृगकृतौद्बोधाः ।
गुडनखधूप्या गन्धाः कर्तव्याः सर्वतोभद्राः ॥[1]

श्रीनिवास रामानुजन के माया वर्ग प्रसिद्ध हैं।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ