सामग्री पर जाएँ

मानचित्रकला

विश्व का मध्यकालीन (१४८२) निरूपण

मानचित्र तथा विभिन्न संबंधित उपकरणों की रचना, इनके सिद्धांतों और विधियों का ज्ञान एवं अध्ययन मानचित्रकला कहलाता है। मानचित्र के अतिरिक्त तथ्य प्रदर्शन के लिये विविध प्रकार के अन्य उपकरण, जैसे उच्चावचन मॉडल, गोलक, मानारेख आदि भी बनाए जाते हैं।

मानचित्रकला में विज्ञान, सौंदर्यमीमांसा तथा तकनीक का मिश्रण है। 'कार्टोग्राफी' शब्द यूनानी Χάρτης, chártēs = कागज तथा graphein = 'लिखना' से बना है।

परिचय

स्पेन और पुतगाल का मानचित्र (१८८५-९०)

मानचित्र विज्ञान का सम्बंध मानचित्र और आरेख तैयार करने से है, जो भौगोलिक परिघटनाओं के वितरण को दर्शाते हैं। यह मानचित्र व आरेख निर्माण करने का प्रयोगात्मक अध्ययन है। यह मानचित्रों और प्रतीकाक्षरों की सहायता से पृथ्वी को प्रस्तुत करता है। पारंपरिक रूप से मानचित्रों का निर्माण कलम, स्याही और कागज की सहायता से होता रहा है, परन्तु कम्प्यूटर ने मानचित्र विज्ञान में क्रांति ला दी है। जी. आई. एस. विधि के द्वारा कोई भी व्यक्ति मानचित्र व आरेख अपनी इच्छानुसार पूर्ण दक्षता से तैयार कर सकता है।

स्थानिक आँकड़े मापन और अन्य प्रकाशित स्रोतों द्वारा प्राप्त किये जाते हैं और उसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए प्रयोग हेतु डाटाबेस में भंडारित किया जा सकता है। स्याही और कागज द्वारा मानचित्र बनाने की परंपरा अब समाप्त होती जा रही है। इसका स्थान कम्प्यूटर निर्मित मानचित्र ले रहे हैं। ये मानचित्र अधिक गत्यात्मक और अंतःक्रियात्मक होते है तथा अंकीय युक्ति (डिजिटल डिवाइस) से इसमें परिवर्तन किये जा सकते हैं। आज अधिक व्यापारिक गुणवत्ता वाले मानचित्र कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर की सहायता से बनाये गये हैं। ये कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर आधारित आंकड़ा प्रबंधन (कैड/CAD), भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) और भूमंडलीय स्थिति तंत्र (जीपीएस/ GPS) है।

मानचित्रकला, आरेखण तकनीक के संग्रहण से निकलकर वास्तविक विज्ञान बन गई है। एक मानचित्रकार को अवश्य समझना चाहिए कि कौन सा संकेत पृथ्वी के बारे में प्रभावशाली सूचना देता है और उन्हें ऐसे मानचित्र तैयार करने चाहिए जिनसे प्रत्येक व्यक्ति मानचित्रों के प्रयोग हेतु उत्साहित हो और वह इसका प्रयोग स्थानों को ढूँढ़ने तथा अपने दैनिक जीवन में करे। मानचित्रकारों को भूगणित के साथ-साथ आधुनिक गणित में भी पारंगत होना चाहिए ताकि वे समझ सकें कि पृथ्वी की आकृति, निरीक्षण के लिए चौरस सतह पर प्रक्षेपित मानचित्र के चिन्हों की विकृति को किस प्रकार प्रभावित करती है।

’’भौगोलिक सूचना तंत्र‘‘ पृथ्वी के विषय में सूचनाओं का भंडार है, जो कम्प्यूटर द्वारा स्वचालित व उचित रीति से पुनः प्राप्त किया जा सकता है। एक जी. आई. एस. विशेषज्ञ को भूगोल के अन्य उपविषयों के साथ-साथ कम्प्यूटर विज्ञान तथा आंकड़ा संचय तंत्र की समझ होनी चाहिए। पारंपरिक रूप में मानचित्रों का उपयोग पृथ्वी की खोज और संसाधनों के दोहन में होता रहा है। जी. आई. एस. तकनीक मानचित्र विज्ञान का विस्तार है, जिसके द्वारा पारंपरिक मानचित्रण की क्षमता और विश्लेषणात्मक शक्ति काफी बढ़ गई है। आजकल वैज्ञानिकों का समुदाय मानवीय क्रियाकलापों के फलस्वरूप पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को जान गये हैं तथा जी. आई. एस. तकनीक भूमंडलीय परिवर्तनों की प्रक्रियाओं को समझने का अनिवार्य उपकरण बन गया है। विविध प्रकार के मानचित्रों और उपग्रह सूचना तंत्रों को मिलाकर प्राकृतिक तंत्रों की जटिल अन्तःक्रियाओं की पुनर्रचना की जा सकती है। इस प्रकार की सजीव कल्पना से यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि बार-बार बाढ़ से ग्रस्त होने वाले क्षेत्र का क्या होगा या किसी विशेष उद्योग के किसी क्षेत्र में स्थापित या विकसित होने से क्षेत्र में क्या परिवर्तन होंगे।

ब्रिटिश आर्डिनेन्स सर्वेक्षण के आधार पर स्थापित भारतीय सर्वेक्षण विभाग के बाद राष्ट्रीय एटलस एवं विषयक मानचित्रण संगठन (एन. ए. टी. एम. ओ.) भारत में मानचित्र निर्माण की प्रमुख संस्था है। इसके दस लाख शृंखला के मानचित्र बहुत प्रसिद्ध हैं। 1960 में पांडिचेरी के फ्रांसीसी संस्थान के मानचित्रण इकाई ने भूगोल के विकास में उल्लेखनीय प्रभाव डाला। इस संस्थान ने 1:1,00,000 के पैमाने पर वनस्पति और मृदा मानचित्र बनाये थे। इस संस्थान को संसाधनों के मानचित्रण के लिए खूब प्रशंसा मिली। 1995 में इस इकाई का दर्जा बढ़ाकर ज्योमेटिक्स प्रयोगशाला (Geomatics Lab) कर दिया गया, जिसमें कम्प्यूटर मानचित्र और भौगोलिक सूचना तंत्र पर विशेष बल दिया जाता है।

मानचित्रकला का इतिहास

मानचित्र कला का इतिहास 5000 वर्ष से

अधिक पुराना नहीं है। लगभग 6200 ईपू.कटाल ह्यूक अनातोलिया में एक भित्ति चित्र बनाया गया था, जिसमें गली व घरों को दर्शाया गया था, उसमें एक ज्वालामुखी को भी दर्शाया गया था। 2300 ईपू. में बेबिलोन के निवासियों द्वारा मिट्टी की टिकियों पर स्थानीय चित्र बने मिले थे। विश्व का पहला मानचित्र यूनानी व्यक्ति अनाक्सि मैंडर ने बनाया था उसका जन्म 610 ईपू.माईलीटस (इटली) में हुआ था। दुर्भाग्य से वह मानचित्र आज हमारे पास नहीं है।

  सन् 140 ई. में यूनानी गणितज्ञ टॉलेमी ने अपनी किताब "गाइड टू ज्योग्राफी" की 8 पुस्तकों में विदित विश्व को मानचित्र करने की कोशिश की। इसमें अक्षांशदेशान्तर का प्रयोग भी किया गया था। 
  सन् 1569 ई. में गेरार्डस मर्केटर ने कई मानचित्र बनाये। ये फ्लैंडर्स, बेल्जियम के थे। इसके बाद कई यूरोपीय एवं ऐशियाई लोगों ने कई मानचित्र बनाये।
  लेख - अजय सर आरोंज शिकोहाबाद 

(ऑक्सफोर्ड स्कूल एटलस 8वां संस्करण)

नक्शा खींचना

नक्शा खींचना (Map Drawing) मनुष्य को उसकी भौमिक परिस्थितियों से साक्षात्कार कराने का सबसे सरल माध्यम है। भूपृष्ठ पर स्थित प्राकृतिक विवरण, जैसे पहाड़, नदी पठार, मैदान, जंगल आदि और सांस्कृतिक निर्माण, जैसे सड़कें, रेलमार्ग, पुल, कुएँ धार्मिक स्थान, कारखाने आदि का सक्षिप्त, सही और विश्वसनीय चित्रण नक्शे पर मिलता है।

नक्शे की इस व्याख्या से तीन प्रश्न उठ खड़े होते हैं :

  • (१) ऐसे विशाल और विस्तृत भूपृष्ठ का छोटे कागज पर कैसे प्रदर्शन हो?
  • (२) गोल भूपृष्ठ को बिना विकृति के समतल पर कैसे चित्रित किया जाए?
  • (३) भूपृष्ठ की अधिकांश प्राकृतिक और कृत्रिम वस्तुएँ त्रिविमितीय होती हैं, अत: उनका समतल पर कैसे ज्ञान कराया जाए?

पहली समस्या का समाधान कागज की एक इकाई दूरी पर पृथ्वी की कई इकाई दूरी को प्रदर्शित करके किया गया है, अर्थात् किन्हीं भी दो बिंदुओं की भौमिक दूरी को नक्शे पर एक निश्चित अनुपात में प्रदर्शित करते हैं, जैसे नक्शे पर १ इंच = १ मील २ मील, ४ मील या ५० मील इत्यादि, या १ इकाई (इंच या सेंटिमीटर) = १,०००, १०,०००, २५,००० ५०,००० (इंच या सेंटिमीटर) इत्यादि। इसे अनुपात के रूप में १ : १,०००, १ : २५,००० आदि भी लिख सकते हैं। इस प्रकार की अभिव्यक्ति नक्शे का पैमाना कहलाता है।

दूसरी समस्या का ग्राह्य समाधान मानचित्र प्रक्षेप (map projection) से किया गया है, जिसमें अक्षांश (latitude) एवं देशांतर (longitude) मानचित्र के प्रयोग की सुविधा के अनुकूल समतल पर प्रक्षिप्त कर लिए जाते हैं। प्रक्षेप का अर्थ समझने के लिए कल्पना करें कि काच के एक गोले पर अपारदर्शी रंग से अक्षांश तथा देशांतर रेखाएँ खींची हैं। गोले पर एक स्पर्शी समतल या समतल के रूप में विकसित हो जाने वाली सतहें, जैसे शंकु (cone) या बेलन (cylinder), रखी हैं और गोले के केंद्र पर प्रकाश का एक बिंदु-सा है इस अवस्था में स्पर्शी सतह पर बनी छाया अक्षांश या देशांतरों का प्रक्षेप कहलाएगी। भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रक्षेप, जिनमें किसी पर क्षेत्रफल, किसी पर दिशा एवं दूरी और किसी पर आकृतियाँ सही बनती हैं, इसी प्रकार की एक या दूसरी सतह पर तैयार किए जाते हैं। इनमें समतल पर त्रैज्य (Gnomonic) प्रक्षेप, त्रिविम (stereographic) प्रक्षेप, बेलन और कैसिनी (Cassini) का प्रक्षेप, मर्केटर (Mercator) के प्रक्षेप और शंकु पर बहुशंकुक (polyconic) प्रक्षेप सर्वाधिक प्रयुक्त होते हैं। सर्वेक्षित भूमि के विस्तार और भूपृष्ठ पर उसकी स्थिति के अनुसार प्रक्षेप का चयन किया जाता है।

तीसरी समस्या का समाधान, विवरण (detail) के लिए सांकेतिक चिह्नों का प्रयोग कर, किया गया है। सांकेतिक चिह्नों के निर्धारण में यह ध्यान रखा जाता है कि वे बिना किसी अतिरिक्त टिप्पणी के उस वस्तु का परिचय दे सकें जिसके वे प्रतिनिधि हों, तथा मानचित्र पर बनाने की दृष्टि से सरल और सूक्ष्म हों। इन चिह्नों का आकार मानचित्र के पैमाने पर निर्भर करता है। मानचित्र के पैमाने जैसे-जैसे छोटे होते जाते हैं वैसे-वैसे कम महत्व के विवरण छोड़ दिए जाते हैं और चिह्न भी छोटे होते जाते हैं, जैसे भारत के भौगोलिक मानचित्र, गाँव, छोटी नदियाँ, वनस्पति आदि नहीं दिखाए जाते और नगर केवल बिंदुओं या छोटे वृत्तों से प्रदर्शित किए जाते हैं।

सांकेतिक चिह्नों के विषय में एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि अन्य विवरणों को लंबाई और चौड़ाई, अर्थात् दो विस्तार वाले सांकेतिक चिह्नों से दर्शाना कठिन नहीं, किंतु पहाड़ी तथा उभरी भूमि का मानचित्र पर सही परिचय कराना विशेष महत्व रखता है। उभरी भूमि (ground relief) का प्रदर्शन चार प्रकार से होता है :

  • (१) समोच्च रेखाओं (contouring) से,
  • (२) रेखाच्छादन (hachuring) से
  • (३) छाया (shading) से तथा
  • (४) प्रदर्शन (layering) स्तर से।

इनमें समोच्च रेखाओं का उपयोग सबसे अधिक होता है।

प्रक्रिया एवं उपकरण

कार्यक्षेत्र में किए गए सर्वेक्षण के पटलचित्र, या पटलचित्रों, या हवाई सर्वेक्षणों का ब्लू प्रिंट मोटे कागज पर से बनाया जाता है। यह मानचित्र की सबसे पहली प्रति होती है। इसके बाद लिथो मुद्रण द्वारा वांछित संख्या में प्रतियाँ तैयार कर ली जाती हैं। ब्लू प्रिंट पर सबसे पहली प्रति हाथ से तैयार करने का प्रमुख कारण यह है कि पटलचित्र, या हवाई सर्वेक्षण खंड (air survey section), पर हाथ से किए गए रेखण की त्रुटियाँ निकल जाएँ और मानचित्र सुंदर और सुघड़ कलाकृति बन जाए। इसके लिए जो उपकरण प्रयुक्त होते हैं, वे निम्नलिखित हैं :

  • रेखण लेखनी (Drawing pen) - यह किसी के सहारे या स्वतंत्र सीधी रेखाएँ खींचने का उपकरण है।
  • फिरकी कलम (Swivel Pen) - यह हाथ से वक्र रेखाएँ खींचने का उपकरण है। प्रधानत: समोच्च रेखाएँ खींचने में इसका प्रयोग होता है।
  • मार्ग लेखनी (Road Pen) - यह दो सीधी समांतर रेखाएँ साथ साथ खींचने की लेखनी है। यह प्रधानत: सड़कों के रेखण में प्रयुक्त होती है।
  • वृत्त लेखनी (Circle Pen) - यह वृत्त या चाप खींचने की लेखनी है।
  • समांतर रेखनी (Parallel Ruler) - यह सीधी और समांतर रेखाएँ खींचने की लेखनी है।
  • फ्रांसीसी वक्र (French Curves) - यह वक्र रेखाएँ खींचने का सहायक उपकरण है।
  • पड़ी परकार (Beam Compass)
  • परकार (Divider) - ये दोनों दूरी नपाने के उपकरण हैं।
  • अनुपाती परकार (Proportional Compass) - यह आनुपातिक दूरी लगाने में प्रयोग में आता है।
  • लोहे की निब (Crowquill Nib) - यह हाथ से सूक्ष्म रेखाएँ खींचने के काम में प्रयुक्त होती है।

शुद्ध रेखाएँ मानचित्र के वांछित पैमाने से ड्योढ़े पैमाने पर किया जाता है, जिसे फोटोग्राफी द्वारा घटा कर वांछित पैमाने का मानचित्र प्राप्त कर लिया जाता है। इससे यह लाभ होता है कि उपर्युक्त सहायक उपकरणों द्वारा भी यदि रेखण में कुछ त्रुटियाँ आ गई हों तो वे लघुकरण में इतनी छोटी रह जाएँ कि आंखों को न खटकें। रेखण करते समय नक्शानवीस अभिवर्धक लेंस का भी उपयोग करता है, जिससे वह बुराइयों को बड़ा देखकर साथ साथ दूर करता जाता है।

संपूर्ण रेखण तो काले रंग में होता है, किंतु प्रकाशन के समय पहचानने की सुविधा के लिए भिन्न-भिन्न विवरण भिन्न-भिन्न रंगों में छापे जाते हैं। रंगीन मुद्रण का साधारण नियम निम्नलिखित है :

सांस्कृतिक निर्माण (मानव निर्मित वस्तुएँ) काले या लाल रंग में, जलाकृतियाँ नीले रंग में, उभर आकृतियाँ भूरे रंग में, तथा वनस्पतियाँ हरे रंग में दिखाई जाएँ।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

See Maps for more links to modern and historical maps; however, most of the largest sites are listed at the sites linked below.