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मांटेसरी पद्धति

पारम्परिक मोन्तेस्सौरी शैक्षिक सामग्री

मांटेसरी पद्धति बच्चों के लिए शिक्षा की एक प्रणाली है जो औपचारिक शिक्षण विधियों का उपयोग करने के बजाय प्राकृतिक रुचियों और गतिविधियों को विकसित करने का प्रयास करती है। एक मांटेसरी कक्षा व्यावहारिक व क्रियाशील शिक्षण और वास्तविक दुनिया के कौशल को विकसित करने पर महत्व देती है।[1] यह स्वतंत्रता पर जोर देता है। यह बच्चों को स्वाभाविक रूप से ज्ञान के लिए जिज्ञासु और पर्याप्त रूप से सहायक और गुणवत्तायुक्त शैक्षिक माहौल में विद्यार्जन करने में सक्षम मानता है। अंतर्निहित दर्शन को अन्फ़ोल्डमेंट थियरी से उपजी के रूप में देखा जा सकता है।[2] यह उपलब्धि के कुछ पारम्परिक उपायों को निरुत्साहित करता है, जैसे ग्रेड और परीक्षण।

इस पद्धति का विकास 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इतालवी चिकित्सक मारीया मोन्तेस्सौरी द्वारा किया गया था, जिन्होंने अपने सिद्धांतों को अपने छात्रों के साथ वैज्ञानिक प्रयोग के माध्यम से विकसित किया था; इस पद्धति का उपयोग तब से दुनिया के कई भागों में, सार्वजनिक और निजी स्कूलों में समान रूप से किया जा रहा है।[3][4]

परिचय

१९१५ में हॉलैण्ड का एक मांटेसरी विद्यालय

फ्रोबेल के शिक्षादर्शन से दूर होते हुए भी मांटेसरी की शिक्षा के उद्देश्य एवं सिद्धांत फ्रोबेल से मिलते जुलते हैं। फ्रोबेल की भाँति उनका भी विश्वास था कि वही वास्तविक शिक्षा है जो जीवन की शक्तियों की अभिव्यक्ति कर सके। ऐसा कर सकने के हेतु शिक्षा को बालक की अंतर्प्रेरणाओं एवं निर्माणशक्तियों के अनुरूप होना होगा। शिक्षा का मूल सिद्धांत बालक के नैसर्गिक विकास में सहायक होना और उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास होना चाहिए। चिकित्साशास्त्र से संबंधित होने के कारण वे यह भी मानती थीं कि शिक्षा को बच्चों के साधारण मानसिक एवं ऐंद्रिक दोषों जैसे भीरुता, वाणीदोष आदि, के सुधार में भी सहायक होना चाहिए।

इस शिक्षा का पाठ्यक्रम मुख्यत: चार भागों में विभाजित है-- कर्मेंद्रिय शिक्षण, ज्ञानेंद्रय शिक्षण, भाषा और गणित। कमेंद्रिय शिक्षण के अंदर कई प्रकार की "व्यावहारिक जीवन की क्रियाएँ, जैसे पानी उड़ेलना, कुर्सी उठाना, बटन खोलना आदि, आती हैं, जिनकी संख्या एक सौ के लगभग है। यद्यपि हर क्रिया का अपना विशेष प्रयोजन भी है, इनका साधारण उद्देश्य है बालक का गतिनियंत्रण, मांसामेशियों का संचालन, तथा संतुलन सिखाना। इन क्रियाओं का दूसरा साधारण उद्देश्य है बच्चे को आत्मनिर्भर बनाकर सही अर्थ में स्वतंत्र बनाना। ज्ञानेंद्रिय शिक्षण के लिये कई शिक्षण यंत्र हैं जिनमें स्वयं भूल का नियंत्रण या, सुधार होता है और जो बच्चे को स्वयं शिक्षा देनेवाले हैं। मांटेसरी के विचार में इस शिक्षा से न केवल ज्ञानेंद्रियाँ कुशाग्र होती हैं वरन् बालक का आत्मा संबंधी ज्ञानप्राप्ति में भी सहायता मिलती है। यह विचार अतिशयोक्तिपूर्ण माना गया है। भाषाशिक्षण में पढ़ने से पूर्व या प्राय: साथ साथ लिखने की शिक्षा आती है जिसके लिये रेगमाल के और लकड़ी के कटे अक्षरों का प्रयोग होता है। लिखने की तैयारी उन क्रियाओं द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से पहले ही हो जाती है जिनमें बालक अँगुलियों का विशेष प्रयोग करता है। "चित्र कार्ड" द्वारा बालक पढ़ना आरंभ करता है। गणित शिक्षा हेतु अंक सीढ़ियाँ "नंबर कार्ड्स", मोतियों का सामान आदि कई साधन हैं जिनके द्वारा बच्चों को गिनती और सरल अंकगणित के बाद शनै: शनै: भिन्न, दशमलव और रेखागणित का भी कुछ ज्ञान कराया जाता है। बालक की आवश्यकताओं की दृष्टि से यह पाठ्यक्रम कुछ अपूर्ण सा है। इसमें बच्चे के शारीरिक तथा समाजिक विकास और उसकी कल्पनात्मक एवं रचनात्मक प्रवृत्तियों के लिये समुचित साधन नहीं है।

मांटेसरी पाठ्यक्रम की उपयोगिता उपर्युक्त अभावों के कारण कुछ कम हो जाती है। भारत में "नूतन बालशिक्षण संघ" जैसी संस्थाओं ने इन अभावों की पूर्ति कर इस शिक्षा को अधिक लाभदायक बनाने का प्रयास किया है। इस शिक्षापद्धति की विशेष आलोचना किलपैट्रिक महोदय की पुस्तक "मांटेसरी ऐग्जामिंड" में हुई है। उनके अनुसार डॉ॰ मांटेसरी बालमनोविज्ञान के आधुनिकतम तथ्यों से पूर्ण परिचित नहीं थीं। पृथक् पृथक् बनावटी साधनों द्वारा प्रत्येक ज्ञानेंद्रिय की शिक्षा अमनोवैज्ञानिक है। मांटेसरी शिक्षा के लाभ संबंधी डॉ॰ मांटेसरी के कुछ कथन अमान्य है और उनके पाठ्यक्रम में कई बड़े अभाव हैं। किंतु दूसरी ओर बालोचित वातावरण, बालक की आत्मनर्भरता तथा स्वानुशासन और शिक्षक का चतुर सहायक जैसा होना इस प्रणाली के मान्य गुण हैं। व्यावहारिक जीवन की क्रियाएँ और कई शिक्षण यंत्र बहुत उपयोगी हैं। मांटेसरी का बाल शिक्षा के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा बालक के प्रति उनकी सक्रिय सहानुभूति विशेष प्रशंसनीय हैं।

भारत में इस शिक्षा का प्रचलन अधिक है क्योंकि डॉ॰ मांटेसरी ने स्वयं भारत में दस वर्ष तक रहकर इसका प्रचार किया और 1949 में उनके जाने के बाद से उनके व्यक्तिगत प्रतिनिधि उत्साहपूर्वक इस कार्य में संलग्न हैं। अधिकतर स्कूलों में आवश्यकता, रुचि और समझ के अनुसार मांटेसरी पाठ्यक्रम में कुछ परिवर्तन और संशोधन किया हुआ पाया जाता है।

बाहरी कड़ियाँ

  1. "Organisation of Montessori schools", Understanding the Montessori Approach, Routledge, पपृ॰ 41–55, 2013-03-01, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-203-12480-2, अभिगमन तिथि 2022-08-27
  2. "Theories of Learning: 3 Theories | Psychology". Psychology Discussion - Discuss Anything About Psychology (अंग्रेज़ी में). 2018-03-31. अभिगमन तिथि 2022-08-27.
  3. Montessori, Maria; Hunt, J. McV.; Valsiner, Jaan (2017-09-08), "Teaching of Numeration; Introduction to Arithmetic", The Montessori Method, Routledge, पपृ॰ 326–337, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-315-13322-5, अभिगमन तिथि 2022-08-27
  4. Gupta, Bhavna (2021). "Pros and Cons of Online Medical Education". Anaesthesia & Critical Care Medicine Journal. 6 (1). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2577-4301. डीओआइ:10.23880/accmj-16000189.