महापुराण
महापुराण, जैन धर्म से संबंधित दो भिन्न प्रकार के काव्य ग्रंथों का नाम है, जिनमें से एक की रचना संस्कृत में हुई है तथा दूसरे की अपभ्रंश में। संस्कृत में रचित 'महापुराण' के पूर्वार्ध (आदिपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन हैं तथा उत्तरार्ध (उत्तरपुराण) के रचयिता आचार्य गुणभद्र। अपभ्रंश में रचित बृहत् ग्रंथ 'महापुराण' के रचयिता महाकवि पुष्पदन्त हैं।
महापुराण (संस्कृत)
इस महाग्रंथ की पुष्पिका में स्वीकृत मुख्य नाम त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रह है तथा अपर नाम 'महापुराण' है। इसके आदि भाग (आदिपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन तथा उत्तर भाग (उत्तरपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन के शिष्य आचार्य गुणभद्र हैं।[1]
आदिपुराण
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जिनसेन स्वामी ने सभी ६३ शलाका पुरुषों का चरित्र लिखने की इच्छा से महापुराण का प्रारंभ किया था, परंतु बीच में ही शरीरान्त हो जाने से उनकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी और महापुराण अधूरा रह गया जिसे उनकी मृत्यु के उपरांत उनके शिष्य गुणभद्र ने पूरा किया। महापुराण के दो भाग हैं, एक आदिपुराण और दूसरा उत्तरपुराण। आदिपुराण में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ या ऋषभदेव का चरित्र है और उत्तर पुराण में शेष २३ तीर्थंकरों तथा अन्य शलाका पुरुषों का। आदिपुराण में बारह हजार श्लोक तथा ४७ पर्व या अध्याय हैं। इनमें से ४२ पर्व पूरे तथा ४३वें पर्व के ३ श्लोक आचार्य जिनसेन के और शेष चार पर्वों के १६२० श्लोक उनके शिष्य आचार्य गुणभद्र द्वारा रचित हैं। इस तरह आदिपुराण के १०,३८० श्लोकों के रचयिता आचार्य जिनसेन हैं।[2]
आदिपुराण जैनागम के प्रथमानुयोग ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।[3] विविध विषयों का अपने ढंग से विवेचन करने के अतिरिक्त आचार्य जिनसेन ने अपने से पूर्ववर्ती सिद्धसेन, समंतभद्र, श्रीदत्त, यशोभद्र, प्रभाचंद्र, शिवकोटि आदि सोलह विद्वानों का भी उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त देशविभाग में सुकोशल, अवन्ती, पुण्ड्र, कुरु, काशी आदि प्रदेशों का भी विवरण आया है।
उत्तरपुराण
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उत्तरपुराण महापुराण का पूरक भाग है। इसमें अजितनाथ से आरंभ कर २३ तीर्थंकर, सगर से आरंभ कर 11 चक्रवर्ती, ९ बलभद्र, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण तथा उनके काल में होने वाले विशिष्ट पुरुषों के कथानक दिये गये हैं। इन विशिष्ट कथानकों में कितने ही कथानक इतने रोचक ढंग से लिखे गये हैं कि उन्हें प्रारंभ करने पर पूरा किये बिना बीच में छोड़ने की इच्छा नहीं होती। यद्यपि आठवें, सोलहवें, बाईसवें, तेईसवें और चौबीसवें तीर्थंकर को छोड़कर अन्य तीर्थंकरों के चरित्र अत्यंत संक्षिप्त रूप से लिखे गये हैं परंतु वर्णन शैली की मधुरता के कारण वह संक्षेप भी अरूचिकर नहीं होता है। इस ग्रंथ में न केवल पौराणिक कथानक ही है किंतु कुछ ऐसी स्थल भी हैं जिनमें सिद्धांत की दृष्टि से सम्यक् दर्शन आदि का और दार्शनिक दृष्टि से सृष्टिकर्तृत्व आदि विषयों का भी अच्छा विवेचन हुआ है।[4]
महापुराण (अपभ्रंश)
अपभ्रंश भाषा में रचित महान ग्रंथ 'महापुराण' महाकवि पुष्पदंत की लेखनी से प्रसूत अमर काव्य है।
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इसमें कुल 102 संधियाँ हैं जिनमें क्रमश: 24 जैन तीर्थकरों, 12 चक्रवर्तियों, 9 वासुदेवों, 9 प्रतिवासुदेवों और 9 बलदेवों, इस प्रकार 63 शलाकापुरुषों अर्थात् महापुरुषों का चरित्र सुंदर काव्य की रीति से वर्णित है। आदि का अधिकांश भाग, जो 'आदिपुराण' भी कहलाता है, आदि तीर्थंकर ऋषभदेव और उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती के जीवनचरित् विषयक है। शेष शलाकापुरुषों का चरित्विषयक भाग 'उत्तरपुराण' कहलाता है। महापुराण के आदि कवि ने अपने पूर्ववर्ती भरत, पिंगल, भामह तथा दंडी का तथा मंचमहाकाव्यों का भी उल्लेख किया है।[5]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ आदिपुराण, प्रथम भाग, संपादन-अनुवाद- डॉ० पन्नालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, सत्रहवाँ संस्करण-2017, पृष्ठ-9 (प्रस्तावना)।
- ↑ हिंदी विश्व साहित्य कोश, भाग-3, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-2002 ई०, पृष्ठ-222.
- ↑ आदिपुराण, प्रथम भाग, पूर्ववत्, पृ०-37.
- ↑ उत्तरपुराण, संपादन-अनुवाद- डॉ० पन्नालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, सोलहवाँ संस्करण-2016, पृष्ठ-6 (प्रस्तावना)।
- ↑ हिंदी विश्वकोश, खंड-7, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1966ई०, पृ०-289.