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मलिक मोहम्मद जायसी

मलिक मुहम्मद जायसी
जायसी
"सबसे सुन्दर कौन है? मैं या पद्मावती? रानी नागमति अपने तोते से पूछती है; और वह अप्रिय उत्तर देता है..."; पद्मावत, १७५० ई० से संकलित।
जन्म1492 ई.
जायस,अमेठी (हाल में उत्तर प्रदेश, भारत)
मौत1548
पेशाकवि, भक्त,
भाषाहिन्दी
कालभक्ति काल
विधाकविता
विषयसामाजिक, आध्यात्मिक
आंदोलनभक्ति आंदोलन
उल्लेखनीय कामsपद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा

मलिक मुहम्मद जायसी (1492-1548) हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि थे।[1] वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे। जायसी मलिक वंश के थे। मिस्र में सेनापति या प्रधानमंत्री को मलिक कहते थे। दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश राज्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा को मरवाने के लिए बहुत से मलिकों को नियुक्त किया था जिसके कारण यह नाम उस काल से काफी प्रचलित हो गया था। इरान में मलिक जमींदार को कहा जाता था व इनके पूर्वज वहां के निगलाम प्रान्त से आये थे और वहीं से उनके पूर्वजों की पदवी मलिक थी। मलिक मुहम्मद जायसी के वंशज अशरफी खानदान के चेले थे और मलिक कहलाते थे। फिरोज शाह तुगलक के अनुसार बारह हजार सेना के रिसालदार को मलिक कहा जाता था।[2] जायसी ने शेख बुरहान और सैयद अशरफ का अपने गुरुओं के रूप में उल्लेख किया है।

जीवन

जायसी का जन्म सन 1492 ई़ के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे।[3] उनके नाम में जायसी शब्द का प्रयोग, उनके उपनाम की भांति, किया जाता है। यह भी इस बात को सूचित करता है कि वे जायस नगर के निवासी थे। इस संबंध में उनका स्वयं भी कहना है-

जायस नगर मोर अस्थानू।
नगरक नांव आदि उदयानू।
तहां देवस दस पहुने आएऊं।
भा वैराग बहुत सुख पाएऊं॥ [4]

इससे यह पता चलता है कि उस नगर का प्राचीन नाम उदयान था, वहां वे एक पहुने जैसे दस दिनों के लिए आए थे, अर्थात उन्होंने अपना नश्वर जीवन प्रारंभ किया था अथवा जन्म लिया था और फिर वैराग्य हो जाने पर वहां उन्हें बहुत सुख मिला था। जायस नाम का एक नगर उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में आज भी वर्तमान है, जिसका एक पुराना नाम उद्याननगर 'उद्यानगर या उज्जालिक नगर' बतलाया जाता है तथा उसके कंचाना खुर्द नामक मुहल्ले में मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म-स्थान होना भी कहा जाता है।[2] कुछ लोगों की धारणा कि जायसी की किसी उपलब्ध रचना के अंतर्गत उसकी निश्चित जन्म-तिथि अथवा जन्म-संवत का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं पाया जाता। एक स्थल पर वे कहते हैं,

भा अवतार मोर नौ सदी।
तीस बरिख ऊपर कवि बदी॥ [5]

जिसके आधार पर केवल इतना ही अनुमान किया जा सकता है कि उनका जन्म संभवतः ८०० हि० एवं ९०० हि० के मध्य, तदनुसार सन १३९७ ई० और १४९४ ई० के बीच किसी समय हुआ होगा तथा तीस वर्ष की अवस्था पा चुकने पर उन्होंने काव्य-रचना का प्रारंभ किया होगा। पद्मावत का रचनाकाल उन्होंने ९४७ हि० [6] अर्थात १५४० ई० बतलाया है। पद्मावत के अंतिम अंश (६५३) के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि उसे लिखते समय तक वे वृद्ध हो चुके थे।

उनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है और कहा जाता है कि वे मामूली ज़मींदार थे और खेती करते थे। स्वयं जायसी का भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है। जायसी ने अपनी कुछ रचनाओं में अपनी गुरु-परंपरा का भी उल्लेख किया है। उनका कहना है, सैयद अशरफ़, जो एक प्रिय संत थे मेरे लिए उज्ज्वल पंथ के प्रदर्शक बने और उन्होंने प्रेम का दीपक जलाकर मेरा हृदय निर्मल कर दिया।। जायसी कुरुप व काने थे थे। एक मान्यता अनुसार वे जन्म से ऐसे ही थे किन्तु अधिकतर लोगों का मत है कि शीतला रोग के कारण उनका शरीर विकृत हो गया था। अपने काने होने का उल्लेख जायसी ने स्वयं ही इस प्रकार किया है - एक नयन कवि मुहम्मद गुनी। अब उनकी दाहिनी या बाईं कौन सी आंख फूटी थी, इस बारे में उन्हीं के इस दोहे को सन्दर्भ लिया जा सकता है:

मुहमद बाईं दिसि तजा, एक सरवन एक ऑंखि।

इसके अनुसार यह भी प्रतीति होती है कि उन्हें बाएँ कान से भी उन्हें कम सुनाई पड़ता था। जायस में एक कथा सुनने को मिलती है कि जायसी एक बार जब शेरशाह के दरबार में गए तो वह इन्हें देखकर हँस पड़ा। तब इन्होंने शांत भाव से पूछा - मोहिका हससि, कि कोहरहि? यानि तू मुझ पर हँसा या उस कुम्हार (ईश्वर) पर? तब शेरशाह ने लज्जित हो कर क्षमा माँगी। एक अन्य मान्यता अनुसार वे शेरशाह के दरबार में नहीं गए थे, बल्कि शेरशाह ही उनका नाम सुन कर उनके पास आया था। [7]

स्थानीय मान्यतानुसार जायसी के पुत्र दुर्घटना में मकान के नीचे दब कर मारे गए जिसके फलस्वरूप जायसी संसार से विरक्त हो गए और कुछ दिनों में घर छोड़ कर यहां वहां फकीर की भांति घूमने लगे। अमेठी के राजा रामसिंह उन्हें बहुत मानते थे। अपने अंतिम दिनों में जायसी अमेठी से कुछ दूर एक घने जंगल में रहा करते थे। लोग बताते हैं कि अंतिम समय निकट आने पर उन्होंने अमेठी के राजा से कह दिया कि मैं किसी शिकारी के तीर से ही मरूँगा जिस पर राजा ने आसपास के जंगलों में शिकार की मनाही कर दी। जिस जंगल में जायसी रहते थे, उसमें एक शिकारी को एक बड़ा बाघ दिखाई पड़ा। उसने डर कर उस पर गोली चला दी। पास जा कर देखा तो बाघ के स्थान पर जायसी मरे पड़े थे। जायसी कभी कभी योगबल से इस प्रकार के रूप धारण कर लिया करते थे।[7] काजी नसरुद्दीन हुसैन जायसी ने, जिन्हें अवध के नवाब शुजाउद्दौला से सनद मिली थी, मलिक मुहम्मद का मृत्युकाल रज्जब ९४९ हिजरी (सन् १५४२ ई.) बताया है। इसके अनुसार उनका देहावसान ४९ वर्ष से भी कम अवस्था में सिद्ध होता है किन्तु जायसी ने 'पद्मावत' के उपसंहार में वृद्धावस्था का जो वर्णन किया है वह स्वत: अनुभूत - प्रतीत होता है। जायसी की कब्र अमेठी के राजा के वर्तमान महल से लगभग तीन-चैथाई मील के लगभग है। यह वर्तमान किला जायसी के मरने के बहुत बाद बना है। अमेठी के राजाओं का पुराना किला जायसी की कब्र से डेढ़ कोस की दूरी पर था। अत: यह धारणा प्रचलित है कि अमेठी के राजा को जायसी की दुआ से पुत्र हुआ और उन्होंने अपने किले के समीप ही उनकी कब्र बनवाई, निराधार है। इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि अमेठी नरेश इनके संरक्षक थे। एक अन्य मान्यता अनुसार उनका देहांत १५५८ में हुआ।

कृतियाँ

पद्मावत रचना का एक दृश्य

उनकी २१ रचनाओंlalaluk के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा, कान्हावत आदि प्रमुख हैं। पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है।[8] इसमें पद्मिनी की प्रेम-कथा का रोचक वर्णन हुआ है।[9] रत्नसेन की पहली पत्नी नागमती के वियोग का अनूठा वर्णन है।[10] इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना-शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मध्यकालीन कवियों की गिनती में जायसी को एक प्रमुख कवि के रूप में स्थान दिया है। शिवकुमार मिश्र के अनुसार शुक्ल जी की दृष्टि जब जायसी की कवि प्रतिभा की ओर गई और उन्होंने जायसी ग्रंथावली का संपादन करते हुए उन्हें प्रथम श्रेणी के कवि के रूप में पहचाना, उसके पहले जायसी को इस रूप में नहीं देखा और सराहा गया था।[11] इसके अनुसार यह स्वाभाविक ही लगता है कि जायसी की काव्य प्रतिभा इन्हें मध्यकाल के दिग्गज कवि गोस्वामी तुलसीदास के स्तर कि लगती है। इसी कारण से उन्हें तुलसी के समक्ष जायसी से बड़ा कवि नहीं दिखा। शुक्ल जी के अनुसार जायसी का क्षेत्र तुलसी की अपेक्षा परिमित है, पर प्रेमवेदना अत्यंत गूढ़ है। [12][13]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Beohar, N. C. (2020). A Tale of Three Lawyers: A Comparative Study of Mahatma Mohandas Karamchand Gandhi, Quaid-e-Azam Mohammad Ali Jinnah, and Bharat Ratna Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar (अंग्रेज़ी में). Notion Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-64850-687-1. अभिगमन तिथि 13 जनवरी 2022.
  2. उर्रहमान, महमूद. "मलिक मुहम्मद जायसी - संक्षिप्त परिचय". इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र. मूल से 14 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २ अगस्त, २०१७. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. "मलिक मुहम्मद जायसी". हिन्दी कविता.कॉम. मूल से 29 जुलाई 2017 को पुरालेखित.
  4. (आखिरी कलाम 10)
  5. (आखिरी कलाम 4)
  6. (सन नौ से सैंतालीस अहै- पद्मावत 24)
  7. "जायसी का जीवनवृत्त / मलिक मुहम्मद जायसी / रामचन्द्र शुक्ल". गद्यकोश.कॉम. मूल से 7 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २ अगस्त, २०१७. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  8. "कहाँ से आई थीं पद्मावती?". मूल से 25 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 नवंबर 2017.
  9. "'Padmavat' reminds us that a major casualty of the gory Rajput conflicts were Rajput women". मूल से 25 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2017.
  10. "Absurdity of epic proportions: Are people aware of the content in Jayasi's Padmavat?". मूल से 25 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 नवंबर 2017.
  11. शिवकुमार मिश्र, भक्तिआन्दोलन और भक्ति काव्य, पृ.८६
  12. भूमिका, त्रिवेणी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, सं.कृष्णानद, पृ.९
  13. "सूफी कवि : मलिक मुहम्मद जायसी : एक परिचय" (पीएचपी). वर्चुअल लर्निंग प्रोग्राम. दिल्ली विश्वविद्यालय. अभिगमन तिथि २ अगस्त, २०१७. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]

बाहरी कड़ियाँ