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मर्केटर प्रक्षेप

मर्केटर प्रक्षेप द्वारा निर्मित विश्व-मानचित्र

मर्केटर प्रक्षेप (Mercator's Projection) एक भौगोलिक प्रक्षेपण विधि है। नौचालन में विशेषोपयोगी होने के कारण मर्केटर प्रक्षेप प्राचीन और सर्वाधिक सुविदित है। इसकी खोज मर्केटर नाम से विख्यात गर्हार्ड क्रेमर ने 1569 ई में की थी। लोगों की मिथ्या धारणा है कि बेलनाकार प्रक्षेप है।

परिचय

मानचित्रण के हेतु किए गए प्रक्षेपों (projections) का निम्नलिखित दृष्टिकोणों से वर्गीकरण किया जा सकता है :

(1) व्युत्पत्ति के अनुसार अर्थात् संदर्श (perspective, जो ज्यामितीय विधि है) अथवा विश्लेषी (analytical) प्रक्षेप;

(2) जिस विकासनीय पृष्ठ पर चित्रण किया जाय उसके प्रकार के अनुसार अर्थात् समतलीय (plane), शंकु (conical) अथवा बेलनाकार (cylindrical) प्रक्षेप

(3) प्रक्षेप के प्रधान गुणधर्म के अनुसार अर्थात् अनुकोण (conformal, लघु क्षेत्र के यथार्थ चित्रण वाला), समक्षेत्रफली, (equal area), अथवा दिगंशीय समदूरस्थ (azimuthal equidistant) प्रक्षेप।

कोई विशेष प्रक्षेप इनमें से कई वर्गोंवाला हो सकता है और सुविधानुसार उसका नाम रख दिया जाता है।

मर्केटर प्रक्षेप गणितीय विश्लेषण द्वारा प्राप्त एक अनुकोण प्रक्षेप है, जिसमें यह गुणधर्म है कि याम्योत्तरों (meridians) का निरूपण समदूरस्थ ऋजुरेखाओं से और किसी भी अक्षांश समांतर (parallel of latitude), का निरूपण इन रेखाओं पर लंब और दूरी, a log (tan (1/4 + 1/2)) पर स्थित रेखा से होता है। सभी याम्योत्तरों से सर्वत्र एक सा कोण बनानेवाला एकदिश नौपथ (rhumbline) इस प्रक्षेप में ऋजुरेखा बन जाता है। इस कारण कुतुबनुमा (compass) के एक ही बिंदु की दिशा में चलनेवाला जहाज सदा एकदिश नौपथ के अनुदिश चलता रहता है।

महासागर नौचालन में दो बिंदुओं के बीचवाली लघुतम दूरी के अनुदिश चलने के लिये बृहत् वृत्त (great circle) पर चलना होगा और ऐसा करने के लिये कुतुबनुमा से बताई गई दिशा में में निरंतर परिवर्तन करना होगा। इस असुविधा से बचने के उद्देश्य से बृहत्-वृत्तीय पथ पर समुचित दूरियों पर बिंदु अंकित कर लिए जाते हैं और दो क्रमागत बिंदुओं के बीच की यात्रा एकदिश नौपथ के अनुदिश की जाती है। बृहत्-वृत्त केंद्ररेखीय (gnomonic) चार्ट पर ऋजुरेखा द्वारा निरूपित होता है और वहाँ जिन अक्षांशों पर यह याम्योत्तरों से प्रतिच्छेदन करता है, उन्हें मर्केटर प्रक्षेप पर अंकित करने से अभीष्ट बिंदु नौचालन हेतु मिल जाता हैं। जहाँ नौचालन हेतु मर्केटर प्रक्षेप अपरिहार्य है, वहाँ थल मानचित्रों के लिये यह बेकार है। ध्रुव अक्षांश 10 डिग्री वाला समांतर तो अनंतस्थ रेखा से निरूपित होगा; 30 डिग्री अक्षांशों से बाहर का क्षेत्र इस प्रक्षेप द्वारा काफी निरूपित हो जाता है और क्षेत्रफलों का मिथ्याभास कराता है। विशेष रूप से ध्रुवों के समीपस्थ क्षेत्र फलों की तुलना के लिये, समक्षेत्रफली प्रक्षेप का आश्रय लेना होगा। 1. अक्षांश व्रत सरल परस्पर बराबर एवं समानांतर रेखाओं की तरह होते हैं 2. देशांतर रेखाएं भी सरल परस्पर बराबर एवं समांतर होती है 3. अक्षांश व्रत तथा देशांतर रेखा ये एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं 4. देशांतर रेखा ए सामान दूरी के अंतर पर बनी होती है परंतु अक्षांशवृतों के बीच की दूरी भूमध्य रेखा से दूर वो की ओर निरंतर बढ़ती जाती है

बाहरी कड़ियाँ