मधुशाला
मधुशाला | |
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लेखक | हरिवंश राय बच्चन |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
प्रकार | हिंदी काव्य |
प्रकाशक | हिन्द पॉकेट बुक्स |
प्रकाशन तिथि | 2015 |
मीडिया प्रकार | प्रकाशित |
आई॰एस॰बी॰एन॰ | 81-216-0125-8 |
उत्तरवर्ती | मधुबाला |
मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है।
प्रसिद्धि
मधुशाला पहलीबार सन 1935 में प्रकाशित हुई थी। कवि सम्मेलनों में मधुशाला की रूबाइयों के पाठ से हरिवंश राय बच्चन को काफी प्रसिद्धि मिली और मधुशाला खूब बिका। हर साल उसके दो-तीन संस्करण छपते गए। [1]
मधुशाला की हर रूबाई मधुशाला शब्द से समाप्त होती है। हरिवंश राय 'बच्चन' ने मधु, मदिरा, हाला (शराब), साकी (शराब पड़ोसने वाली), प्याला (कप या ग्लास), मधुशाला और मदिरालय की मदद से जीवन की जटिलताओं के विश्लेषण का प्रयास किया है। मधुशाला जब पहली बार प्रकाशित हुई तो शराब की प्रशंसा के लिए कई लोगों ने उनकी आलोचना की। बच्चन की आत्मकथा के अनुसार, महात्मा गांधी ने मधुशाला का पाठ सुनकर कहा कि मधुशाला की आलोचना ठीक नहीं है।
मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय 'मधुबाला' और 'मधुकलश' का हिस्सा है जो उमर खैय्याम की रूबाइयां से प्रेरित है। उमर खैय्याम की रूबाइयां को हरिवंश राय बच्चन मधुशाला के प्रकाशन से पहले ही हिंदी में अनुवाद कर चुके थे। मधुशाला की रचना के कारण श्री बच्चन को " हालावाद का पुरोधा " भी कहा जाता है।[1]
मीडिया में मधुशाला
बाद के दिनों में मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया। मधुशाला की चुनिंदा रूबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया। इस एलबम की पहली स्वयं बच्चन ने गायी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने न्यूयार्क के लिंकन सेंटर सहित कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया। हरिवंश राय बच्चन ने हालावाद के परमूख कवि माने जाते हैं हखलावाद के प्रवर्तक कवि हरिवंश राय बच्चन शुष्क विषयो को भी सरस ढग से प्रस्तुत करने में शिधस्त थे वे छायावाद युग के प्रख्यात कवि है हरिवंश राय बच्चन जैसे महान और उच्चकोटि की विचारधारा वाले कवि सदियों जन्म लेते हैं
मधुशाला के कुछ पद्य
- मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
- प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
- पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
- सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।। १।
- प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
- एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
- जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
- आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।। २।
- प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
- अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
- मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
- एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।। ३।
- भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
- कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
- कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
- पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।। ४।
- मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
- भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
- उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
- अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।। ५।
- मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
- 'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
- अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
- 'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।
- चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
- 'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
- हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
- किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।। ७।
- मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
- हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
- ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
- और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।
- मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
- अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
- बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
- रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।
- सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
- सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
- बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
- चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।
- विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
- यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
- शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
- जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।। १३४।
- बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
- किलत कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
- मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
- विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।। १३५।
पठनीय
- मधुशाला, हरिवंशराय बच्चन, हिंदी में, हिंद पाकेट बुक, 1999. ISBN 81-216-0125-8.
- मधुशाला, हरिवंशराय बच्चन. पेंगुइन बुक्स, 1990. ISBN 0-14-012009-2.
सन्दर्भ
- ↑ अ आ Sharma, Rajendra (February 1, 2003). "The romantic rebel. Harivansh Rai Bachchan, 1907-2003 (Obituary)" Archived 2014-03-06 at the वेबैक मशीन.
बाहरी कड़ियाँ
- मधुशाला (कविताकोश)
- मधुशाला (हिन्दी समय)
- मशुशाला (विकिस्रोत)
- मधुशाला का अपनापन[मृत कड़ियाँ] (अशोक चक्रधर)