मद्यव्यसनिता
Alcoholism वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
"किन्ग अल्कोहल और उसके प्राइम मिनीस्टर" सिर्का 1820 | |
आईसीडी-१० | F10..2 |
आईसीडी-९ | 303 |
मेडलाइन प्लस | alcoholism |
एम.ईएसएच | D000437 |
मद्यव्यसनिता को मद्य निर्भरता[1][2] के रूप में भी जाना जाता है, जो निर्योग्यकारी व्यसनकारी विकार है। शराब अर्थात अल्कोहल पीनेवाले की सेहत, संबंधों और सामाजिक हैसियत पर इसके नकारात्मक प्रभाव के बावजूद जबरदस्त और अनियंत्रित शराब सेवन द्वारा इसकी चारित्रिक विशेषता बतायी गयी है। अन्य मादक पदार्थों की लत की तरह, चिकित्साशास्त्र में मद्यव्यसनिता को चिकित्सा योग्य बीमारी के रूप परिभाषित किया गया है।[3] "मद्यव्यसनिता" शब्द का प्रयोग व्यापक रूप से 1849 में मैग्नस हस द्वारा किया गया है, लेकिन औषधिशास्त्र में 1960 के दशक में डीएसएम III (DSM III) में इस शब्द की जगह "शराब का अपप्रयोग" और शराब पर निर्भरता" जैसी शब्दावली का प्रयोग किया गया है।[4] इसी प्रकार 1979 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक विशेषज्ञ समिति ने इसकी नैदानिक स्थिति को देखते हुए मद्यव्यसनिता शब्द के उपयोग को पसंद नहीं किया और इसे "शराब निर्भरता सिंड्रोम" की श्रेणी में रखे जाने को वरीयता दी.[5] 19वीं और 20वीं शताब्दी की शुरूआत में, "मद्यव्यसनिता" या पियक्कड़पन शब्द के चलन से पहले शराब पर निर्भरता, मद्योन्माद कहलाती थी।[6]
बहरहाल, मद्यव्यसनिता को जैविक प्रक्रिया का समर्थन अनिश्चित है, हालांकि इसके जोखिम कारक सामाजिक वातावरण, तनाव,[7] मानसिक स्वास्थ्य, आनुवंशिक प्रवृत्ति, उम्र, जातीय समूह और सेक्स हैं।[8][9] दीर्घकालिक शराब का अपप्रयोग या दुरुपयोग दिमाग के शारीरिक क्रिया में परिवर्तन करता है, जैसे कि इससे सहनशीलता और शारीरिक रूप से निर्भरता प्रभावित होती है। ऐसे मस्तिष्कीय रासायनिक परिवर्तन शराब सेवन को त्यागने की मद्यजन्य बाध्यकारी असमर्थता को बनाये रखते है और यह शराब पीना बंद करने पर अलकोहल त्याग सिंड्रोम में परिवर्तित हो जाता है।[10] शराब मस्तिष्क सहित शरीर के लगभग हर अंग को नुकसान पहुंचाती है, क्योंकि संचयी विषैला प्रभाव लंबे समय से शराब के अपप्रयोग को प्रभावित करता है, चिकित्सा से लेकर मानसिक विकारों से पीड़ित होना शराब के जोखिम हैं।[11] मद्यव्यसनिता शराबी और उसके परिजनों की समाजिक प्रतिष्ठा के लिए गहरा धक्का है।[12][13]
मद्यव्यसनिता सहनशीलता, निर्लिप्तता और अत्यधिक मात्रा में शराब सेवन की चक्रीय मौजूदगी है; उसके या उसकी सेहत को होनेवाले नुकसान के प्रति जागरूक होने के बावजूद पीनेवाला बाध्यकारी मद्यपान को नियंत्रित करने में असमर्थ होता है, यह इस बात का संकेत है कि वह शख्स पियक्कड़ हो सकता है।[14] प्रश्नावली आधारित स्क्रीनिंग मद्यव्यसनिता समेत हानिकारक रूप से पीने के पैर्टन का पता लगाने का तरीका है। [15] किसी शख्स को शराब पीने से दूर रखने के लिए विषहरण (अलकोहल डिटॉक्सिफिकेशन) किया जाता है, आमतौर पर निर्लिप्तता लक्षणों को व्यवस्थित करने के लिए प्रतिकूल-सहनशील औषधि उदाहरण के लिए बेंज़ोडायज़ेपिंस से किया जाता है।[16] समूह या स्वयं सहायता समूह उपचार जैसे चिकित्सकीय देखभाल के बाद आमतौर पर शराब से परहेज बनाये रखने की आवश्यकता है।[17][18] अक्सर, शराबी अन्य मादक पदार्थों के भी आदी होते हैं, ज्यादातर बेंजोडायजेपिंस के, जिसमें अतिरिक्त चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है।[19] शराबी होने में पुरुषों की अपेक्षा शराबी महिलाएं शराब के शारीरिक, दिमागी और मानसिक हानिकारक प्रभाव और सामाजिक कलंक के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।[20][21] विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में 140 मिलियन शराबी हैं।[22][23]
वर्गीकरण और शब्दावली
शराब का दुरुपयोग, समस्याजनित उपयोग, अपप्रयोग और भारी मात्रा में उपयोग का अर्थ शराब का अनुचित उपयोग है, जो शराबी को शारीरिक, समाजिक या नैतिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। [24] द डाएटरी गाइडलाइन्स फॉर अमेरिकन्स द्वारा पुरुषों के लिए मादक पेय प्रतिदिन दो से अधिक नहीं और महिलाओं के लिए एक मादक पेय प्रतिदिन से अधिक न लेने को शराब के उदारवादी उपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है।[25]
"मद्यव्यसनिता" शब्द का इस्तेमाल आम रूप से किया जाता है, लेकिन इसे बहुत ही खराब तरीके से परिभाषित किया जाता है। मद्यव्यसनिता को डब्ल्यूएचओ (WHO) ने "लंबे समय से लगातार उपयोग और परिवर्ती अर्थ" के रूप में परिभाषित किया है और इस शब्द के इस्तेमाल का 1979 में डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ समिति ने विरोध किया। द बिग बुक (अल्कोहलिक्स एनोनिमस द्वारा) कहता है कि एक बार कोई शख्स मद्यप हो जाता है, वह हमेशा मद्यप (शराबी) ही रहता है, लेकिन इस संदर्भ में "मद्यप" शब्द का अर्थ क्या है, इसे परिभाषित नहीं किया गया है। 1960 में बिल डब्ल्यू. ने कहा:
- हम मद्यव्यसनिता को कभी भी बीमारी नहीं कहते हैं, क्योंकि तकनीकी तौर पर कहा जाए तो इसकी गिनती किसी बीमारी में नहीं होती है।
उदाहरण के लिए, दिल की बीमारी जैसी कोई चीज नहीं होती है। बल्कि इसमें हृदय के बहुत सारे अलग किस्म के या इनके संयोजित विकार होते हैं। मद्यव्यसनिता इसी तरह की कोई चीज है। इसलिए हम मद्यव्यसनिता को बीमारी कह कर चिकित्सा व्यवसाय के साथ कुछ गलत नहीं करना चाहते हैं। इसलिए हम हमेशा इसे रुग्णता, या व्याधि कह कर - कहीं अधिक सुरक्षित शब्द का उपयोग करते हैं।[26]
पेशेवर और अनुसंधान संदर्भों में, "मद्यव्यसनिता" शब्द में कभी-कभी शराब का अपप्रयोग और शराब पर निर्भरता दोनों को शामिल कर लिया जाता है।[27] और इसे कभी-कभी शराब पर निर्भरता के समान माना जाता है।
मनोविज्ञान और मनोरोग विज्ञान में, डीएसएम (DSM) बहुत ही सामान्य वैश्विक मानक है, जबकि चिकित्सा में, आईसीडी (ICD) मानक है। इन लोगों ने जिन शब्दों की सिफारिश की है, वे एक समान हैं, लेकिन अभिन्न नहीं हैं।
WHO's ICD-10 (आईसीडी-10) | "शराब का हानिकारक उपयोग" और "शराब निर्भरता सिंड्रोम" | परिभाषाएं DSM-IV (डीएसएम-IV) के ही समान हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मद्यव्यसनिता के बजाए शराब निर्भरता सिंड्रोम शब्द का उपयोग किया है।[5] 1992 के दशक में पहली बार आईसीडी -10 (ICD-10) में "हानिकारक उपयोग" की अवधारणा (दुरुपयोग के विपरीत) का उपयोग निर्भरता के अभाव नुकसान को कम से कम करके बताने के लिए किया गया था।[4] मद्यपान शब्द आईसीडी (ICD) के आईसीडी-8/आईसीडीए-9 (ICD-8/ICDA-8) और आईसीडी-9 (ICD-9) के बीच से निकाल दिया गया।[31] |
शब्द में अपरिशुद्धि निहित होने के बावजूद, "मद्यव्यसनिता" शब्द का जब सामना हो तो इसकी व्याख्या किस तरह की जानी चाहिए, इसे परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। 1992 में इसे एनसीएडीडी (NCADD) और एएसएएम (ASAM) द्वारा "एक प्राथमिक, जीर्ण बीमारी के रूप में इसे परिभाषित करके इसका चित्रण अति पान के नियंत्रण के अयोग्य हो, ड्रग शराब के नशे में धुत, प्रतिकूल परिणाम के बावजूद शराब का उपयोग और सोच में विकृति की तरह किया गया।"[32] 1999 से "मद्यव्यसनिता" को MeSH में प्रविष्ट मिली हुई है और इसकी परिभाषा 1992 के संदर्भ में है। [33]
शब्द व्युत्पत्ति
इसके मद्यव्यसनिता के नाम से जाने जाने से पहले ऐतिहासिक रूप से 1819 में एक जर्मन चिकित्सक डॉ॰ सी. डबल्यू. हुफेलैंड द्वारा इसे मद्योन्माद नाम दिया गया है।[34][35] "मद्यव्यसनिता" शब्द का उपयोग पहली बार 1849 में एक स्वीडिश चिकित्सक मैगनस हस द्वारा व्यवस्थित प्रतिकूल प्रभावों का वर्णन करते हुए किया गया।[36]
एए ने मद्यव्यसनिता का वर्णन एक ऐसी बीमारी के रूप में किया है जो शारीरिक एलर्जी और मानसिक जुनून से संबंधित है।[37][38] ध्यान रहे कि "एलर्जी" की परिभाषा का उपयोग इस संदर्भ में जिस तरह किया गया वह आधुनिक चिकित्सा में उस तरह नहीं किया गया है।[39] डॉक्टर और व्यसन विशेषज्ञ डॉ॰ विलियम डी. सिल्कवर्थ एम. डी. एए (AA) की ओर से लिखते हैं कि "शराबी मानसिक नियंत्रण से परे (शारीरिक) प्रबल लालसा से ग्रस्त होता है।"[37]
1960 में ई. मॉर्टन जेलिनेक द्वारा किए गया अध्ययन में आधुनिक बीमारी में शराब के सिद्धांत को इसकी जड़ में देखा गया है।[40] जेलिनेक की परिभाषा मद्यपान शब्द के उपयोग का विरोध करती है, खासतौर पर वहां, जहां प्राकृतिक इतिहास का विशिष्ट मामला हो। तब से लेकर अब तक शराब की आधुनिक चिकित्सकीय परिभाषा को कई बार संशोधित किया गया है। वर्तमान समय में अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन मद्यव्यसनिता शब्द का उपयोग खासतौर पर जीर्ण प्राथमिक बीमारी के संदर्भ में करता है।[41]
इस मामले में अल्पसंख्यक राय मद्यव्यसनिता को बीमारी कहने के खिलाफ है, हरबर्ट फिंगरेट और स्टैटोन पिले उल्लेखनीय रूप से मद्यव्यसनिता को बीमारी मानने के खिलाफ हैं। जब कभी शराब पीने के नकारात्मक प्रभाव की चर्चा की गयी है, तब बीमारी के मॉडल के आलोचकों ने "भारी मात्रा में पीने" शब्द का उपयोग किया है।
संकेत और लक्षण
अल्कोहल के लिए बढ़ती सह्यता और उस पर बढ़ती शारीरिक निर्भरता द्वारा मद्यव्यसनिता अर्थात पियक्कड़पन की विशेषता का चित्रण होता है, जो व्यक्ति की अल्कोहल खपत को नियंत्रित करने की क्षमता पर प्रभाव डालता है। माना जाता है कि ये विशेषताएं शराब पीने की शराबी की क्षमता में विघ्न डालने की भूमिका अदा करती हैं।[10] मद्यव्यसनिता मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, इससे मनोवैज्ञानिक विकार पैदा होते हैं और आत्महत्या का जोखिम बढ़ जाता है।[42][43]
शारीरिक लक्षण
दीर्घकालिक शराब के अपप्रयोग से अनेक प्रकार के शारीरिक रोगों के लक्षण सामने आ सकते हैं, इनमें यकृत का सिरोसिस, अग्नाशयकोप, मिरगी, पोलीन्यूरोपैथी, पियक्कड़ मनोभ्रंश, ह्रदय रोग, पोषण संबंधी दोष और यौन दुष्क्रिया शामिल हैं, जो अंततः घातक हो सकते हैं। अन्य भौतिक प्रभावों में ह्रदयवाहिनी रोग विकसित होने के जोखिम में वृद्धि, पाचनतंत्र में गड़बड़, मद्यजन्य यकृत रोग और कैंसर शामिल हैं। लगातार शराब पीने से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और परिधीय तंत्रिका तंत्र को क्षति पहुंच सकती है।[44][45]
महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा बहुत तेजी से शराब निर्भरता की दीर्घकालिक जटिलताओं का विकास होता है। इसके अतिरिक्त, मद्यव्यसनिता से पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मृत्यु दर अधिक है।[20] जटिलताओं की दीर्घावधि के उदाहरणों में मस्तिष्क, हृदय और यकृत की क्षति[21] शामिल हैं और स्तन कैंसर का ख़तरा भी बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, काफी समय से बहुत अधिक शराब पीने की आदत से महिलाओं में प्रजनन क्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप प्रजनन दुष्क्रिया होती है, जैसे कि डिंबक्षरण, डिंबग्रंथि पिंड में कमी, मासिक चक्र की समस्याएं या अनियमितता और समय से पहले रजोनिवृत्ति.[20] दुसाध्य शराबियों और मदिरापानोत्सव का जिनका हाल का इतिहास है, को केटोएसिड़ोसिस हो सकता है।[46]
मनोरोग के लक्षण
लंबे समय से शराब के अनुचित सेवन से मानसिक स्वास्थ्य की अनेक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। गंभीर संज्ञानात्मक समस्याएं असामान्य नहीं हैं; मनोभ्रंश अथवा पागलपन के लगभग 10 प्रतिशत मामले शराब के उपभोग से जुड़े हैं, जिससे मनोभ्रंश के प्रमुख कारणों में शराब दूसरे स्थान पर आ पहुंचा है।[47] अत्यधिक शराब पीने से मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को नुकसान पहुंचता है और समय के साथ तेजी से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।[48] शराबियों में मनोरोग संबंधी विकार आम हैं, लगभग 25 प्रतिशत शराबी गंभीर मनोरोग संबंधी गड़बड़ी से पीड़ित हैं। सबसे अधिक प्रचलित मनोरोग के लक्षण चिंता और अवसाद विकार हैं। शराब छोड़ देने पर आमतौर पर शुरू में मनोरोग के लक्षण कहीं अधिक खराब दिखने लगते हैं, लेकिन संयम की निरंतरता से आम तौर पर इसमें सुधार आता है या ये सिरे से गायब हो जाते हैं।[49] शराब के अपप्रयोग से मनोविकृति, भ्रम और चेतन मस्तिष्क संलक्षण हो सकते हैं, जो सिजोफ्रेनिया जैसे रोग के होने के गलत लक्षण दिखला सकते हैं।[50] लंबी अवधि के शराब के अपप्रयोग के सीधे परिणामस्वरूपआतंक विकार विकसित हो सकता है या बदतर रूप धारण कर सकता है।[51][52]
बड़े अवसादग्रस्तता विकार और मद्यव्यसनिता या पियक्कड़पन सहवर्ती घटना के रूप में बखूबी दर्ज हैं।[53][54][55] जिनमें कोमोरबिड (अतिरिक्त रुग्णता या एक से अधिक रुग्णता का सह-अस्तित्व) की उपस्थिति हुआ करती है, उनके लिए आम तौर पर एक अंतर किया जाता है- ऐसे अवसादी प्रसंग जो शराब के त्याग के बाद घट जाया करते हैं ("पदार्थ-प्रेरित") और ऐसे अवसादी प्रसंग जो कि प्रधान हैं और जो शराब त्यागने से घटते नहीं ("स्वतंत्र" प्रसंग)। [56][57][58] अन्य दवाओं का अतिरिक्त उपयोग शराबियों में अवसाद के खतरे को बढ़ा सकता है।[73]
मनोरोग विकार लिंग के आधार पर भिन्न होते हैं। जिन महिलाओं में शराब पीने के कारण विकार पैदा हुए हैं, उनमें बड़े अवसाद, चिंता, आतंक विकार, अतिक्षुधा, अभिघातजोत्तर तनाव विकार (PTSD), या बॉर्डरलाइन व्यक्तित्व विकार जैसे सह-घटित मनोरोग निदान अक्सर होते हैं। जिन पुरुषों में शराब पीने के कारण विकार पैदा हुए हैं, उनमें आत्मकामी या समाज-विरोधी व्यक्तित्व विकार, द्विध्रुवीय विकार, सिजोफ्रेनिया, आवेगी विकार, या ध्यान में कमी/अतिसक्रियता विकार के सह-घटित निदान पाए जाते हैं।[59] बहुत संभव है कि आम महिला आबादी की तुलना में मद्यव्यसनिता की शिकार महिलाओं के साथ शारीरिक या यौन उत्पीड़न, बुरा बर्ताव और घरेलू हिंसा की घटनाएं अधिक घटी होंगी,[59] जिससे मनोरोग विकार के उच्च दृष्टांत देखे जा सकते हैं और शराब पर अधिक निर्भरता पैदा हो सकती है।
मद्यव्यसनिता या पियक्कड़पन से पैदा होने वाली समस्याएं गंभीर हैं, जो अल्कोहल अर्थात शराब से मस्तिष्क में मनोविकारी परिवर्तन आने और शराब के मादक प्रभाव के कारण होता है।[47][60] शराब के अपप्रयोग से बाल-उत्पीडन, घरेलू हिंसा, बलात्कार, चोरी और मारपीट सहित आपराधिक घटनाओं में वृद्धि हो रही है।[61] पियक्कड़पन के साथ रोजगार की क्षति जुड़ी हुई है,[62] जिससे आर्थिक नुकसान होता है। गलत समय में शराब पीने और निर्णय करने में चूक से हुए गलत व्यवहार से कानूनी नतीजे भोगने पड़ सकते हैं, जैसे कि नशे में गाड़ी चलाने[13] या सार्वजनिक अव्यवस्था फैलाने के आपराधिक आरोप, या क्षतिकर कृत्य के लिए दीवानी आर्थिक दंड और आपराधिक सजा भी हो सकती है। नशे के समय किसी शराबी का व्यवहार और मानसिक दुर्बलता उसके आसपास के लोगों पर गहराई से प्रभाव डाल सकता है और उसे परिवार तथा दोस्तों से अलग-थलग कर सकता है। इस अलगाव से वैवाहिक विवाद और तलाक तक की नौबत आ सकती है, या घरेलू हिंसा में इजाफा हो सकता है। शराबीपन से बच्चों की उपेक्षा भी हो सकती है, इससे शराबी के बच्चों के भावनात्मक विकास को स्थायी क्षति पहुंच सकती है।[12]
अगर उसे ठीक से प्रबंधित न किया गया तो बर्बीट्युरेट्स और बेंजोडायजेपाइन्स जैसे एक समान पदार्थ के साथ किसी शामक-निद्राकारी प्रक्रिया द्वारा शराब पर निर्भरता के प्रत्याहार की कोशिश खतरनाक भी हो सकती है।[60][63] शराब का प्राथमिक प्रभाव होता है गाबाए (GABAA) ग्राही (रिसेप्टर) को उत्तेजित करना, जिससे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के अवसाद को बढ़ावा मिलता है। शराब के लगातार और भारी उपभोग से, ये अभिग्राहक या रिसेप्टर्स असंवेदी हो जाते हैं और इनकी संख्या कम हो जाती है, जिसका असर सहनशीलता तथा शारीरिक निर्भरता पर पड़ता है। जब शराब के उपभोग को अचानक बंद कर दिया जाता है, तब संबंधित व्यक्ति का तंत्रिका तंत्र अनियंत्रित चेतोपागम फायरिंग (synapse firing) से पीड़ित हो उठता है। इससे व्यग्रता, आत्महत्या का दौरा, कंपोन्माद, मतिभ्रम, थरथराहट और संभावित ह्रदय गति के रुकने जैसे लक्षण दिख सकते हैं।[64][65] अन्य न्यूरोट्रांसमीटर तंत्र भी शामिल है, विशेष रूप से डोपेमाइन और एनएमडीए.[10][66]
शराब छोड़ने के तीव्र लक्षण एक से तीन सप्ताह के बाद कम होने लगते हैं। कम गंभीर लक्षण (जैसे कि अनिद्रा और व्यग्रता, आनन्दमयी अनुभूति का पूर्ण लोप) शराब प्रत्याहार के बाद के संलक्षण के हिस्से के रूप में जारी रह सकते हैं, जिनमें धीरे-धीरे संयम के साथ एक साल या उससे भी अधिक समय में सुधार हो सकता है।[67][68][69] प्रत्याहार लक्षण कम होने शुरू होते हैं जब शरीर और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र शराब सहनशीलता और गाबा क्रिया को सामान्य बनाने लगते हैं।[70][71]
कारण
मद्यव्यसनिता के विकास के जोखिम को आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों का एक जटिल मिश्रण प्रभावित करता है।[72] जीन जो शराब की रस-प्रक्रिया को प्रभावित करता है, वही मद्यव्यसनिता के जोखिम को भी प्रभावित करता है और मद्यव्यसनिता के पारिवारिक इतिहास को जाहिर करता हो सकता है।[73] एक शोध पत्र ने पाया कि कम उम्र में शराब का सेवन जीन के प्रकटन को प्रभावित कर सकता है, जो शराब पर निर्भरता के जोखिम में वृद्धि करता है।[74] जिन व्यक्तियों में शराब के लिए आनुवंशिक झुकाव है, वे भी बहुत संभव औसत रूप से कम उम्र में ही पीना शुरू कर सकते हैं।[75] इसके अलावा, कम उम्र में शराब पीने की शुरुआत के साथ मद्यव्यसनिता या पियक्कड़पन के विकास का जोखिम जुड़ा हुआ है,[75] और करीब 40 फीसदी शराबी अपने किशोरावस्था के अंत तक बहुत ज्यादा पीने लगते हैं। यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि यह जुड़ाव कारणात्मक है या नहीं और कुछ शोधकर्ता इस विचार से सहमत नहीं हैं।[76] ड्रग निर्भरता के जोखिम में आम वृद्धि भी बचपन के गंभीर मानसिक आघात से जुडी है।[72] मित्र मंडली और परिवार के सहयोग का अभाव मद्यव्यसनिता के विकास के साथ जुडा हुआ है।[72] शराब के पुराने अपप्रयोग के न्यूरोटौक्सिक प्रभाव की बढ़ी हुई संवेदनशीलता के साथ आनुवंशिकी और किशोरावस्था जुड़ी हुई हैं। न्यूरोटौक्सिक प्रभाव के कारण वल्कुटीय विकृति (Cortical degeneration) आवेगी व्यवहार को बढ़ा देता है, जो शराब उपभोग के विकार के विकास, सातत्य और उग्रता में योगदान कर सकता है। इस बात के प्रमाण हैं कि संयम से शराब जनित केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की क्षति को थोड़ा-बहुत दुरुस्त किया जा सकता है।[77]
आनुवंशिक विभिन्नता
विभिन्न जातीय समूहों में आनुवंशिक विभिन्नता मौजूद हैं, जो शराब निर्भरता के जोखिम को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, चयापचयी कैसे करते हैं, इस पर अफ्रीकी, पूर्वी एशियाई और इंडो-नस्ली समूहों में अंतर है। माना जाता है कि आंशिक रूप से ये आनुवांशिक कारक नस्लीय समूहों में शराब निर्भरता की दर में अंतर की व्याख्या करते हैं।[78][79] अलकोहल डिहाइड्रोजनेज युग्मविकल्पी (अलेली) एडीएच1 बी*3 (ADH1 B*3) के कारण शराब के चयापचय की क्रिया और भी अधिक तेजी से होती है। युग्मविकल्पी एडीएच1 बी*3 (ADH1 B*3) केवल उन्हीं में पाया जाता है जो अफ्रीकी वंशज हैं और अमेरिकी के कुछ मूल निवासी जनजातियों के हैं। यह युग्मविकल्पी जिन अफ्रीकी और देशी अमेरिकियों में होता है उनमें मद्यव्यसनिता विकसित होने का खतरा कम होता है।[80] बहरहाल, देशी अमेरिकियों में उल्लेखनीय रूप से औसत की तुलना में मद्यव्यसनिता की दर बहुत अधिक होती है; यह साफ नहीं है कि ऐसा क्यों होता है।[81] अन्य जोखिम कारक जैसे कि सांस्कृतिक माहौल का प्रभाव, उदाहरण के लिए गोरी नस्ल में की तुलना में देशी अमेरिकियों मद्यव्यसनिता के स्तर की उच्च दर की व्याख्या करने पर सदमा लग जाता है।[82][83]
दैहिक-व्याधि विज्ञान (पैथोफिजियोलॉजी)
शराब का प्राथमिक प्रभाव केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के अवसाद को बढ़ावा देने के साथ GABAA अभिग्राहक की उत्तेजना में वृद्धि करना है। बार-बार भारी मात्रा में शराब के सेवन के साथ, ये अभिग्राहक असंवेदी हो जाते हैं और इसकी संख्या घट जाती है, इसका असर सहिष्णुता और शारीरिक निर्भरता पर पड़ता है।[64] शराब की मात्रा जिसे जैविक रूप से संसाधित किया जा सकता है और इसका प्रभाव लिंगों में अलग-अलग होता है। पुरुषों और महिलाओं द्वारा बराबर खुराक में शराब का सेवन किए जाने पर आमतौर पर देखा गया है कि महिलाओं के रक्त में शराब की सांद्रता (BACs) उच्च होती है।[59] इसके लिए कई कारणों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसमें से मुख्य कारण यह है कि महिलाओं के शरीर में पुरुषों की तुलना में कम पानी होता है। अतः शराब की एक निश्चित राशि एक औरत के शरीर में अधिक केंद्रित हो जाता है। शराब की दी गयी मात्रा महिलाओं में बहुत अधिक नशा करता है, इसकी वजह यह है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के हार्मोन का स्रोव भिन्न होता है।[21]
निदान
सामाजिक बाधाएं
शराब दुरुपयोग के उपचार और जांच में प्रवृत्ति और सामाजिक छवि अड़चन बन सकते हैं। यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए कहीं अधिक बाधक है। बदनाम हो जाने के डर से महिलाएं अपने पीने की बात को छिपाने के लिए इस बात से इंकार करती है कि वे किसी चिकित्सीय स्थिति से पीड़ित हैं। परिणामस्वरूप यह रवैया परिवार, चिकित्सकों और अन्य के लिए शक करने की गुंजाइश को कम कर देता है कि जिस महिला को वे जानते हैं वह एक मद्यप है।[20] इसके विपरीत, किसी चिकत्सिकीय स्थिति से पीडि़त हैं यह स्वीकार करने में पुरुषों को बदनामी का डर कम होता है, इसीलिए वे खुलेआम सार्वजनिक तौर पर पीने का प्रदर्शन करते हैं और समूह में पीते हैं। परिणामस्वरूप उनके इस रवैये से परिवार, चिकित्सक और अन्य अच्छी तरह जानते हैं कि जिस आदमी को वे जानते हैं वह एक शराबी है।[59]
जांच
शराब के सेवन के नियंत्रण की हानि का पता लगाने के लिए कई उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकता है। ये उपकरण ज्यादातर प्रश्नावली के रूप में आत्म-प्रतिवेदन होते हैं। एक अन्य आम विषय एक स्कोर या टैली है जो शराब के सेवन की सामन्य गंभीरता का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करता है।[15]
जिसे CAGE (सीएजीई) प्रश्नावली नाम दिया गया है उसमें चार प्रश्न होते हैं, इनमें से हरेक ऐसा उदाहरण होता है जो चिकित्सक के कार्यालय में मरीज की तुरंत जांच कर लेता है। शराब से संबंधित समस्याओं का पता लगाने में CAGE (सीएजीई) प्रश्नावली बहुत अधिक प्रभावकारी होता है; हालांकि जिन लोगों में शराब से संबंधित समस्याएं अपेक्षाकृत कम गंभीर हैं, जैसे गोरी महिलाओं और कॉलेज के छात्रों में, यह सीमित रूप से काम करता है।[84]
शराब निर्भरता का पता लगाने के लिए अन्य किस्म के जांच का भी इस्तेमाल किया जाता है, मसलन; शराब डेटा निर्भर प्रश्नावली (अलकोहल डिपेंडेंस डाटा क्वेस्चनेर), जो कि CAGE (सीएजीई) प्रश्नावली की तुलना में बहुत ही अधिक संवेदनशील नैदानिक जांच है। अत्यधिक मात्रा में शराब के सेवन और शराब निर्भरता के बीच के अंतर को स्पष्ट करने में यह मदद करता है।[85] मिशिगन अलकोहल स्क्रीनिंग टेस्ट (MAST (एमएएसटी)), एक जांच उपकरण है मद्यव्यसनिता के लिए व्यापक रूप से अदालत द्वारा शराब से संबंधित अपराध[86] के लिए उचित सजा देने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है़ ऐसे अपराध में शराब के नशे में गाड़ी चलाना सबसे आम है। शराब के प्रयोग से होनेवाले विकार की पहचान जांच (अलकोहल यूज डिऑर्डर्स आईडेंटिफिकेशन टेस्ट) (AUDIT एयूडीआईटी)) विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विकसित की गयी प्रश्नावली है, इस अनोखे जांच को छह देशों में वैधतता प्राप्त है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रयोग किया जाता है। CAGE (सीएजीई) प्रश्नावली की तरह, गंभीर जांच के मामले में अच्छे नतीजे प्राप्त करने लिए इस प्रश्नावली का उपयोग किया जाता है।[87] जो दुर्घटना को अंजाम देते हैं या आपातकालीन विभाग में जाते हैं, उनके साथ शराब संबंधित समस्याओं की जांच के लिए पैडिंगटोन अल्कोहल टेस्ट (PAT पीएटी) को डिजाइन किया गया है। यह AUDIT प्रश्नावली के साथ अच्छी तरह से मेल खाते है, लेकिन पांच बार इसकी मदद ली जाती है।[88]
आनुवंशिक प्रवृत्ति का परीक्षण
मनोचिकित्सक अनुवांशिकविद जॉन आई. नंबर्गर और लॉरा जीन बिरूट का कहना है कि मद्यपान का कोई एक कारण नहीं होता, बल्कि —अनुवांशिक समेत— "जो शरीर और दिमाग की प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हुए सुरक्षा या अतिसंवेदनशीलता की भावना के निर्माण के लिए परस्पर एक-दूसरे के साथ और जीवन के व्यक्तिगत अनुभवों को प्रभावित करने में जीन एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है". वे यह भी कहते है कि कुछ लोगों की तुलना में मद्यव्यसनिता से संबंधित एक दर्जन जीन की पहचान हो चुकी है, लेकिन और भी कुछ की खोज किया जाना अभी बाकी है।[89]
युग्मविकल्पी (अलील) के लिए कम से कम एक आनुवंशिक परीक्षण है जो मद्यपतता और अफीमयुक्त मादक द्रव्य से संबंधित है।[90] मानव डोपामीन अभिग्राहक जीनो का पता लगाने योग्य भिन्नता होती है जिसे डीआरडी2 टैक-आई (DRD2 TaqI) बहुरूपता कहा जाता है। उन लोगों में जिनमें यह बहुरूपता वाला A1 अलील (भेद) तो कम होता हैं, लेकिन उनमें एंडोर्फिन निष्कासित करने वाला अफीमयुक्त मादक पदार्थ और शराब की लत की प्रवृत्ति बहुत अधिक है।[91] हालांकि शराबियों और अफीमयुक्त मादक पदार्थों का सेवन करनेवालों में यह अलील थोड़ा अधिक आम है ये अपने आप में मद्यव्यसनिता का समुचित अंदाज लगानेवाले नहीं होते और कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि DRD2 का प्रमाण विरोधाभासी है।[89]
डीएसएम (DSM) द्वारा बीमारी की पहचान
शराब पर निर्भरता का डीएसएम-IV (DSM-IV) निदान पद्धति मद्यपान की परिभाषा का प्रतिनिधित्व करता है। एक तरह से यह अनुसंधान प्रोटोकॉल के विकास में मदद करने के लिए है, जिसके नतीजों की तुलना अन्य से की जा सकती है। डीएसएम-IV (DSM-IV) के अनुसार, शराब पर निर्भरता की एक पहचान निम्न है:[14]
...मैलअडैप्टिव अल्कोहल यूज़ विथ क्लीनिकली सिग्निफीकंट इम्पेयर्मेंट ऐज़ मैनीफेस्टेड बाई ऐट लीस्ट थ्री ऑफ़ द फोलौइंग विदीन एनी वन-इयर पीरियड: टोलेरेंस; विथड्रौल; टेकेन इन ग्रेटर अमाउन्ट्स ओर ऑवर लौंगर टाइम कोर्स दैन इंटेंडेड; डिज़ायर ऑर अन्सक्सेसफुल अटेम्प्ट्स टू कट डाउन ऑर कंट्रोल यूज़; ग्रेट डील ऑफ़ टाइम स्पेंट औब्टेनिंग, यूज़िंग, ऑर रिकवरिंग फ्रॉम यूज़; सोशियल, औक्यूपेशनल, ऑर रीक्रिएश्नल एक्टिविटिज़ गिवेन अप ऑर रीड्युसड; कंटीन्यूड यूज़ डेस्पाईट नॉलेज ऑफ़ फिज़िकल ऑर साइकोलॉजिकल सीक्वल.
मूत्र और रक्त परीक्षण
शराब के वास्तविक उपयोग के लिए विश्वसनीय परीक्षण है, जिसमें एक सामान्य परीक्षण रक्त में शराब अवयव का परीक्षण (बीएसी (BAC)) है।[92] ये परीक्षण मद्यव्यसनी से गैर मद्यव्यसनी के अंतर को स्पष्ट नहीं करता है; हालांकि लंबे समय तक अति मात्रा में मद्यपान का शरीर पर पहचानने योग्य प्रभाव होता है। इसमें निम्न शामिल है:[93]
- मैक्रोसिटोसिस (बढ़ा हुआ (एमसीवी (MCV))
- उन्नत (जीजीटी (GGT))
- एएसटी (AST) और एएलटी (ALT) और एएसटी (AST) की संयत उन्नति: एएलटी (ALT) का अनुपात 2:1 है।
- उच्च कार्बोहाइड्रेट की कमी (सीडीटी (CDT)) ट्रांसफेरिन
हालांकि, जैविक चिह्नकों इनमें से कोई भी रक्त परीक्षण उतना ही संवादनशील नहीं होता जितना कि जांच प्रश्नावली.
रोकथाम
विश्व स्वास्थ्य संगठन यूरोपीय संघ और अन्य क्षेत्रीय निकायों, राष्ट्रीय सरकारों और संसदों ने शराब नीतियों का गठन किया है ताकि शराब के नुकसान को कम किया जा सके। [94][95] किशोरों और युवा वयस्कों को लक्ष्य बनाकर शराब दुरुपयोग के नुकसान को कम करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। शराब पर निर्भरता और इसके दुरुपयोग से होनेवाले नुकसान को कम करने के लिए बढ़ती उम्र में जब दुरुपयोग की जानेवाले जायज औषधियां जैसे कि शराब खरीदी जा सकती है, को प्रतिबंधित करने या शराब के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव अतिरिक्त तरीके के रूप में दिया गया है। जन माध्यम में शराब दुरुपयोग के परिणामों के बारे में विश्वसनीय, प्रमाणिकता पर आधारित शिक्षण अभियान की सिफारिश की गई है। शराब के दुरुपयोग की रोकथाम के लिए और युवाओं में मानसिक सेहत संबंधी समस्याओं में मदद के लिए माता पिता के लिए दिशानिर्देश दिए जाने की भी सिफारिश की गयी है। [96]
उपचार
उपचार विभिन्न तरह के हैं, क्योंकि शराब को लेकर अलग-अलग कई दृष्टिकोण हैं। जो मद्यव्यसनिता को किसी की सामाजिक विकल्प के रूप में देखते हैं उनकी तुलना में जो इसे चिकित्सकीय स्थिति या बीमारी के रूप में देखते हैं वे उपचार का सुझाव देते हैं। अधिकांश इलाज लोगों को अपने शराब के सेवन को बंद करने में मदद करने पर केन्द्रित हैं, जिसके बाद उन्हें शराब के प्रयोग पर पुनः लौटने से रोकने में उनकी मदद करने के लिए जीवन प्रशिक्षण और/या सामाजिक समर्थन प्रदान की जाती है। चूंकि मद्यव्यसनिता के साथ बहुत सारे कारक होते हैं, जो किसी शख्स को पीना जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करता हैं, उन सबको सफलतापूर्वक पूर्वावस्था में प्राप्त होने के रूप में देखा जाना चाहिए। विषहरण के बाद आत्म-सहायता समूह में सहायक उपचार के संयोजन में उपस्थित होना और तंत्र का मुकाबला के लिए लगातार होनेवाला विकास इस तरह उपचार की एक मिसाल है। मद्यव्यसनिता का उपचार करनेवाले समुदाय आमतौर पर शून्य सहिष्णुता आधारित पद्धति का समर्थन करते हैं, हालांकि इसीके साथ कुछ ऐसे भी हैं जो नुकसान को कम करनेवाले पद्धति को प्रोत्साहित करते हैं।[97]
शराबियों के लिए किसी परिपूरक मादक पदार्थ, जैसे बेंजोडायजेपाइन, जिसका कि शराब की तल छुड़ाने में एक सामन प्रभाव है का संयोजन कर शराब विषहरण (detoxification) या संक्षेप में 'डिटॉक्स' (detox) करने से अप्रत्याशित रूप से शराब पीना बंद हो जाता है। जिन व्यक्तियों में केवल बहुत ही मामूली प्रत्याहार लक्षणों का हल्का सा खतरा है, उनका विषहरण बाहरी-मरीजों के रूप में किया जा सकता है। जो व्यक्तियों को गंभीर प्रत्याहार संलक्षण (सिंड्रोम) का खतरा होने के साथ-साथ जो महत्वपूर्ण या तीव्र अति-अस्वस्थ स्थिति के शिकार होते हैं, उनका इलाज आम तौर पर अस्पताल में रहकर इलाज कराने वाले मरीजों के रूप में किया जाता है। विषहरण मद्यव्यसनिता का वास्तविक इलाज नहीं करता है और शराब पर निर्भरता या अपप्रयोग में पूर्वावस्था की प्राप्ति के खतरे को कम करने के लिए विषहरण के बाद उपयुक्त उपचार कार्यक्रम जरूरी है।[16]
समूह थेरेपी और मनोचिकित्सा
अन्तर्निहित मनोवैज्ञानिक मुद्दों, जिनसे शराब की लत संबंधित है के साथ विभिन्न तरह के समूह उपचार और मनोचिकित्सा का इस्तेमाल किया जा सकता है, इसीके साथ ही साथ पूर्वावस्था प्राप्ति की रोकथाम का कौशल भी प्रदान किया जा सकता है। शराबियों को परहेज बनाये रखने में मदद के लिए परस्पर-सहायता वाले समूह-परामर्श का पद्धति सबसे ज्यादा आम है।[17][18] परस्पर, गैर पेशेवर परामर्श प्रदान करने के लिए अन्य संगठनों में से अल्कोहलिक एनोनिमस नाम का एक पहला संगठन है और अब भी यह सबसे बड़ा संगठन है। अन्य में लाइफरिंग सेकुलर रिकवरी (LifeRing Secular Recovery), SMART रिकवरी (स्मार्ट रिकवरी) और वुमेन फॉर सब्राइइटी (Women For Sobriety) शामिल हैं।
खुराक और संयम
खुराक और संयम कार्यक्रम जैसे कि मॉडरेशन मैनेजमेंट (Moderation Management) और ड्रिंकवाइज (DrinkWise) पूरी तरह से परहेज का समर्थन नहीं करता है। जबकि अधिकांश शराबी इस तरह से अपने पीने की सीमा तय करने में असमर्थ होते हैं, कुछ संयम के साथ पीना फिर से शुरू कर देते हैं। 2002 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन अलकोहल एब्यूज एंड अल्कोहलिज्म (एनआईएएए) द्वारा किया गया अमेरिकी अध्ययन बताता है कि एक साल से अधिक पहले कम-जोखिम शराब सेवन की श्रेणी में पहुँचाने वालों के 17.7 प्रतिशत व्यक्तियों का निदान शराब निर्भर के रूप किया गया। हालांकि, इस समूह में निर्भरता के बस कुछ ही प्रारंभिक लक्षण देखे गए।[98] एक ही विषय का उपयोग करते हुए एक अनुवर्ती अध्ययन में वर्ष 2001-2002 में पीने में हुए सुधार के मामले को 2004-2005 में समस्याजनित पीने की ओर फिर से लौट जाने की दर से जांचा गया। अध्ययन में पाया गया कि शराब से परहेज शराब से काबू पाने का सबसे सबसे अधिक दृढ़ तरीका हैं।[99] दीर्घकालिक (60 साल) तक शराबी पुरुषों के दो समूहों का अनुवर्तन किए जाने पर पाया गया कि "दशकों तक फिर से पीना शुरू किए बगैर या परहेज को बरकरार करने की अपेक्षा नियंत्रित होकर फिर से पीना शुरू करने में दृढ़ता बमुश्किल से बनी रहती है। "[100]
औषधियां
मद्यव्यसनिता के इलाज के अंश के रूप में विभिन्न तरह की औषधियां दी जा सकती है।
वर्तमान समय में चिकित्सा में उपयोगी
- एंटाब्यूज (Antabuse) (डिसुलफिरम) एसीटैल्डिहाइड, जो इथेनॉल के रासायनिक परिवर्तन के दौरान शरीर द्वारा उत्पन्न होने वाला एक रसायन है, के निष्कासन को रोकता है। एसीटैल्डिहाइड अपने आपमें ही शराब के सेवन होनेवाले बहुत तरह की खुमारी के लक्षणों का कारण है। अत्यधिक तीव्र गति से क्रिया करने वाला और लंबे समय तक बने रहने वाला तकलीफदेय खुमारी प्रदान करनेवाला शराब जब पिया जाता है तो कुल मिलाकर इसका प्रभाव अत्यंत कष्टदायक होता है। जब वे यह दवा ले रहे होते हैं तो यही बात शराबी को अत्यधिक मात्रा में पीने से हतोत्साहित करती है। 9 साल से किए जा रहे अध्ययन से हाल ही में पता चला कि व्यापक उपचार कार्यक्रम में पर्यवेक्षित डिसुलफिरम और संबंधित यौगिक कार्बामाइड के संयोजन का नतीजे में परहेज करने की दर 50 प्रतिशत से अधिक थी।[101]
- जिस तरह से एंटाब्यूज काम करता है, उसी तरह टेमपोसिल (Temposil) (कैल्शियम कार्बीमाइड) (calcium carbimide) भी काम करता है; इसमें लाभ यह होता है कि कभी कभी डिसुलफिरम (disulfiram), हेपटोटॉक्सिटी (hepatotoxicity) और उनींदेपन का एक प्रतिकूल प्रभाव कैल्सियम कार्बीमाइड के साथ नहीं होता है।[101][102]
- नेलट्रेक्सॉन (Naltrexone) ऑपिओइड (opioid) अभिग्राहक के लिए प्रतिस्पर्धात्मक प्रतिपक्षी होता है, यह एंडोर्फिन (endorphins) और अफीस के प्रभाव को प्रभावी रूप से रोक देता है।
नेलट्रेक्सॉन का उपयोग शराब के लिए तलब को कम करने और इससे परहेज के लिए प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है। शराब के कारण शरीर से एंडोर्फिन का निष्कासन होता है, इसके बदले डोपामाइन (dopamine) का निष्कासन होता है और इसके प्रतिफल सक्रिय हो जाता है; इसलिए जब नेलट्रेक्सॉन शरीर में होता है तो शराब के सेवन से होनेवाला आनंददायक प्रभाव काफी कम हो जाता है।[103] मद्यव्यसनिता के एक और उपचार विधि में नेलट्रेक्सॉन का उपयोग होता है, जो सिनक्लेयर पद्धति कहलाता है, यह मरीज का उपचार नेलट्रेक्सॉन और लगातार सेवन के संयोजन के माध्यम से किया जाता है .[104]
- कैंपरल (Campral) एकैंप्रोसैट (acamprosate), यह शराब की निर्भरता को न्यूरोट्रांसमीटर ग्लुटामेट, उत्तर-निर्लिप्तता के चरण में अत्यधिक सक्रिय होती है, की प्रतिक्रियाशीलता के जरिए मस्तिष्क रसायन को स्थिर कर देता है।
प्रयोगात्मक औषधियां
- टॉपामैक्स (Topamax) टॉपिरामेट (topiramate) प्राकृतिक तौर पर पाये जानेवाले शर्कर मोनोसेच्चराइड का यौगिक डी-फ्रुटोस, शराबियों को शराब छुड़ाने में या जितनी मात्रा में वे पीते हैं उसमें कमी करने में यह प्रभावी पाया गया है।
प्रमाण बताते हैं कि टॉपिरामेट उत्तेजक ग्लूटामेट अभिग्राहकों को विरोधी बना देता है, डोपामीन को मुक्त होने से रोकता है और निरोधात्कम गामा-अमीनोब्यूटायरिक एसिड की क्रियाशीलता को बढ़ाता है। 2008 में टॉपिरामेट की प्रभावशीलता की समीक्षा का निष्कर्ष निकाला कि प्रकाशित परीक्षण के परिणाम आशाजनक हैं, लेकिन 2008 में जो भी था, वह पहली पंक्ति के शराब निर्भर एजेंट के लिए टॉपिरामेट के उपयोग के समर्थन में महज एक सप्ताह के अनुपालन के परामर्श से जोड़ कर देखा जाए तो वह डाटा अपर्याप्त था।[106] 2010 की एक समीक्षा से पता चला कि मौजूदा शराब फामाकोथेरप्यूटिक विकल्प के लिए टॉपिरामेट बेहतर हो सकता है। टॉपिरामेट प्रभावी रूप से तलब और शराब निर्लिप्तता की गंभीरता को कम कर देने के साथ ही साथ जीवन की गुणवत्ता के मूल्यांकन में भी सुधार लाता है।[107]
औषधियां जिनका परिणाम बुरा हो सकता है
- बेंजोडायजेपाइन्स, तीव्र शराब निर्लिप्तता में हालांकि यह बहुत ही उपयोगी दवा है, लेकिन अगल लंबे समय तक इसका इस्तेमाल किया जाता है तो मद्यव्यसनिता में इसका परिणाम बुरा हो सकता है। क्रोनिक मद्यव्यसनिता में के मामले में बेंजोडायजेपाइन्स में शराब से परहेज की दर, उनके बनिस्पत जो बेंजोडायजेपाइन्स नहीं ले रहे हैं, से कम है। इस वर्ग की दवाएं आमतौर पर शराबियों को अनिद्रा या चिंता के समन के लिए दी जाती है।[108] स्वास्थ्य लाभ के सिलसिले में व्यक्तियों को बेंजोडायजेपाइन्स या शामक-निद्राजनित दवा दिए जाने से बीमारी के पुनरावर्तन की उच्च दर पाई गयी, एक लेखक की रिपोर्ट है कि शामक-निद्राजनित दवा के नुस्खे से एक चौथाई से अधिक लोग फिर से पूर्वावस्था में जा पहुंचे। मरीज अक्सर गलती से सोच लेते हैं कि बेंजोडायजेपाइन्स लेना जारी रखने के बावजूद वे संयमी हैं। जो बेंजोडायजेपाइन्स का सेवन लंबे समय से कर रहे हैं उन्हें यकबयक लेना बंद नहीं कर देना चाहिए, इससे हो सकता है गंभीर चिंता और आतंक विकसित हो जाए, जो कि प्रत्याववर्तित होकर शराब के अपप्रयोग का जानामाना जोखिम कारकों बन जाता है। निर्लिप्तता में कम तीव्रता के साथ 6-12 महीने के टेपर पद्धति को बहुत ही सफल पाया गया है।[109][110]
दोहरी लत
शराबियों को अन्य साइकोट्रॉपिक मादक पदार्थों के लत से उपचार की भी आवश्यकता होती है। मद्यता के मामले में शराब निर्भरता की सबसे आम दोहरी लत है बेंजोडायजेपाइन पर निर्भरता है, अध्ययन बताता है कि 10-20 प्रतिशत शराब निर्भर व्यक्ति में निर्भरता और/या दुरुप्रयोग की समस्या बेंजोडायजेपाइन के ही कारण हैं। समस्याग्रस्त शराबी द्वारा जितनी मात्रा में शराब का सेवन करते हैं, बेंजोडायजेपाइन शराब के लिए लालसा में वृद्धि करती है।[111] बेंजोडायजेपाइन्स निर्भरता को कम करने के लिए परिणामों से बचने के बेंजोडायजेपाइन निर्लिप्तता सिंड्रोम और अन्य स्वास्थ्य संबंधी खतरों से बचने के लिए सावधानी से खुराक देने की आवश्यकता होती है।
अन्य शामक निद्राजनक दवाएं जैसे कि जोलपिडेम और जोपिक्लोन के साथ ही साथ अफीमयुक्त और अवैध मादक द्रव्यों पर निर्भरता शराबियों में आम है। शराब अपने आपमें एक शामक-निद्राजनक द्रव्य है और यह अन्य शामक-निद्राजनक पदार्थों जैसे कि बार्बिटुरेट्स, बेंज़ोडायज़ेपाइन्स और नॉन-बेंज़ोडायज़ेपाइन्स के साथ सहनशील-विरोधी होता है। शामक-निद्राजनक से निर्मरता और निर्लिप्तता चिकित्सा की दृष्टि से गंभीर हो सकता है और अगर संभाल कर इसका उपाय नहीं किया गया तो शराब की निर्लिप्तता से मनोविकृति और दौरा पड़ने का खतरा होता है।[19]
महामारी विज्ञान
इस चीज के सेवन से पैदा होनेवाले विकार से बहुत सारे देशों को एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड़ता है। "शराब के इलाज के लिए आए मरीजों में सबसे आम तत्व इसका अपप्रयोग/निर्भरता है।"[97] 2001 में यूनाइटेड किंगडम में, 'निर्भरशील मद्यपों' की संख्या 2.8 लाख से अधिक बतायी गयी थी।[113] अमेरिका के वयस्कों में लगभग 12% के जीवन में कभी न कभी शराब निर्भरता से समस्या रही है।[114] विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 140 मिलियन लोग शराब निर्भरता से ग्रस्त हैं।[22][23] संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के 10 से 20 प्रतिशत पुरुष तथा 5 से 10 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवन में किसी मोड़ पर मद्यव्यसनिता के मानदंडों को पूरा करेंगे ही.[115]
चिकित्सा और वैज्ञानिक समुदायों में मद्यव्यसनिता के बारे में एक आम सहमति है कि यह एक बीमारी की स्थिति है। उदाहरण के लिए, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन अलकोहल को एक ड्रग मानता है और कहता है कि "मादक पदार्थों की लत एक क्रोनिक, प्रत्यावर्ती दिमागी बीमारी है, जिसमें बाध्यकारी रूप से मादक पदार्थों की तलब होती है और इसके विनाशकारी परिणाम के बावजूद बारबार इसका प्रयोग किया जाता है। यह जैविक अतिसंवेदनशीलता और पर्यावरण जोखिम के परस्पर जटिल प्रभाव और विकास कारकों (जैसे कि मस्तिष्कीय परिपक्वता का स्तर) का परिणाम है।"[41]
पुरुषों में मद्यव्यसनिता का प्रचलन कहीं अधिक है, हालांकि हाल के दशकों में महिला मद्यपों के अनुपात में वृद्धि हुई है।[212] वर्तमान साक्ष्य संकेत देते है कि 40-50 प्रतिशत पर्यावरणीय प्रभाव को छोड़ दिया जाए तो पुरुषों और महिलाओं दोनों में, मद्यव्यसनिता का 50-60 प्रतिशत आनुवंशिक तौर पर निर्धारित होता है।[116] मद्यव्यसनिता का विकास ज्यादातर शराबियों में किशोरावस्था या युवा वयस्कता की अवस्था के दौरान होता है।
पूर्वानुमान
2002 में नेशनल इंस्टीट्युट ऑन अलकोहल एब्यूज एंड अल्कोहलिज्म ने शराब निर्भरता की कसौटी के लिए 4,422 के एक समूह का सर्वेक्षण किया और पाया कि एक साल के बाद, कुछ लोग शराब सेवन के कम जोखिम की लेखक की कसौटी में खरे उतरे, जबकि समूह के सिर्फ 25.5 फीसदी का ही कोई इलाज किया गया। इसका ब्यौरा नीचे पेश किया जा रहा है: 25 फीसदी को अभी भी शराब निर्भर पाया गया, 27.3 फीसदी आंशिक रूप से दुरुस्त हुए (कुछ लक्षण जारी रहे), 11.8 फीसदी स्पर्शोन्मुख (asymptomatic) पियक्कड़ रहे (उपभोग बढ़ने से पूर्वावस्था की वापसी का खतरा) और 35.9 फीसदी पूरी तरह से दुरुस्त हुए - इनमें 17.7 फीसदी कम-जोखिम पीने वाले और 18.2 फीसदी मद्य-त्यागी शामिल हैं।[117]
तथापि, इसके विपरीत, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के जॉर्ज वैल्लांट द्वारा दो समूहों पर लंबे समय तक किये गये अध्ययन से जाहिर हुआ कि "पूर्वावस्था की वापसी या संयम के विकास के बिना नियंत्रित शराब सेवन मुश्किल से एक दशक से अधिक तक टिक पाता है।"[118] वैल्लांट ने यह भी नोट किया कि "जैसा कि अल्पकालिक अध्ययनों से पता चलता है कि नियंत्रित शराब सेवन में वापसी अक्सर एक मरीचिका होती है।"
मद्यपों में मृत्यु का सबसे आम कारण है हृदयवाहिनी समस्या.[119] पुराने शराबियों में आत्महत्या की उच्च दर है, यह प्रवृत्ति उन व्यक्तियों में बढ़ती जाती है है जिनका पीना अधिक दिनों तक चलता जाता है। माना जाता है कि शराब के कारण मस्तिष्कीय रसायन की दैहिक क्षति से ऐसा होता है, साथ ही सामजिक अलगाव के कारण भी. किशोर शराबियों में भी आत्महत्या बहुत ही आम है, किशोरों में आत्महत्या का 25 फीसदी शराब के अपप्रयोग से जुड़ा हुआ है।[120] लगभग 18 प्रतिशत शराबी आत्महत्या किया करते हैं,[43] और शोध में पाया गया है कि 50 प्रतिशत से अधिक आत्महत्याएं शराब या ड्रग निर्भरता से जुड़ी हुई हैं। किशोरों में यह आंकड़ा कहीं अधिक ऊपर है, 70 प्रतिशत आत्महत्याओं में शराब या नशीली दवाओं की भूमिका हुआ करती है।[121]
इतिहास
अभिलिखित पूरे मानव इतिहास में शराब के उपयोग और दुरुपयोग का एक लंबा इतिहास है। बाइबिल, मिस्र और बेबीलोन के स्रोतों में शराब के अपप्रयोग और इस पर निर्भरता का इतिहास दर्ज हैं। कुछ प्राचीन संस्कृतियों में शराब की पूजा की जाती थी और अन्य इसके अपप्रयोग की निंदा किया करते थे। हजारों साल पहले भी अत्यधिक मात्रा में शराब दुरुपयोग और मद्यपतता को समस्याओं का कारण माना जाता रहा हैं। बहरहाल, उस समय इसे आभ्यासिक मद्यव्यसनिता के रूप में परिभाषित किया गया और 1700 के दशक तक इसके प्रतिकूल परिणामों को चिकित्सकीय तौर पर अच्छी तरह से स्थापित नहीं किया गया। 1647 में एक ग्रीक भिक्षु [] ने पहली बार प्रमाणित किया कि शराब का क्रोनिक दुरुपयोग तंत्रिका तंत्र और शरीर में विषाक्तता से जुड़ा हुआ है, जो कारण कई तरह के चिकित्कीय विकार जैसे कि दौरा पड़ना, पक्षाघात और अंदरुनी तौर पर रक्त क्षरण होता है। 1920 में शराब के अपप्रयोग और पुरानी मद्यव्यसनिता के प्रभावों को देखते हुए शराब की विफल रही निषेधाज्ञा को सुविचारित रूप से अंतत: अमेरिका में कुछ समय के लिए लागू किया गया। 2005 में यूएसए (USA) की अर्थव्यवस्था में शराब पर निर्भरता और इसके अपप्रयोग की अनुमानित लागत प्रतिवर्ष लगभग 220 बिलियन डॉलर है जो कि कैंसर और मोटापे से कहीं अधिक है। [122]
समाज और संस्कृति
लंबे समय तक शराब के सेवन से होनेवाली स्वास्थ्य समस्याएं आमतौर पर समाज के लिए हानिकारक मानी जाती हैं, उदाहरण के लिए, काम का समय बर्बाद होने से पैसों का नुकसान, दवाओं की लागत और इसके दूसरे क्रम से इलाज का खर्च. शराब का सेवन सिर पर आघात, वाहन दुर्घटना, हिंसा और मारपीट का प्रमुख कारक होता है। पैसों के अलावा, शराबी और उसके परिवार तथा दोस्तों को खास तरह से सामाजिक मूल्य चुकाना पड़ता है। [60] उदाहरण के लिए, गर्भवती महिला द्वारा शराब के सेवन से भ्रूण शराब सिंड्रोम का शिकार हो सकता है,[123] जो एक लाइलाज और हानिकारक स्थिति है।[124]
शराब के अपप्रयोग से आर्थिक नुकसान का आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एकत्र किया गया है, जो किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी (GDP)) का एक से लेकर छह प्रतिशत तक होता है।[125] ऑस्ट्रेलिया में सभी प्रकार के नशीले पदार्थों के अपप्रयोग में शराब की अनुमानित अधिकीलित सामाजिक लागत 24 प्रतिशत है; इसी तरह कनाडा में हुए अध्ययन के अनुसार शराब के हिस्से में 41 प्रतिशत जाता है।[126] 2001 में किए गए एक अध्ययन में यूके (UK) के सभी प्रकार के अलकोहल के दुरुपयोग की निर्धारित लागत 18.5-20 बिलियन £ पायी गयी।[113][127]
रूढि़वादी शराबी अक्सर लोकप्रिय संस्कृति और काल्पनिक कहानी-उपन्यास में मिल जाते हैं। पश्चिम की लोकप्रिय संस्कृति में 'शहर का पियक्कड़' एक खास चरित्र होता है। रूढि़वादी पियक्कड़पन हो सकता है नस्लवाद या अज्ञातजन भीति पर आधारित हो सकता है, जैसा कि आयरिश के चित्रण में बड़े पियक्कड़ के रूप में होता है।[128] स्टिवर्स और ग्रेले जैसे समाजिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में अमेरिका में रहनेवाले आयरिश में व्यापक स्तर पर बड़ी मात्रा में शराब के सेवन को प्रमाणित करने की कोशिश की गयी है।[129]
इन्हें भी देखें
- शराबी फेफड़ों के रोग
- परिवार प्रणाली में शराब
- शराब से संबंधित यातायात दुर्घटनाएं
- घातुमान पीने
- शराब की खपत के आधार पर देशों की सूची
सन्दर्भ
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