मदनलाल पाहवा
मदनलाल पाहवा ( पंजाबी: ਮਦਨ ਲਾਲ ਪਾਹਵਾ ; १९२७ - २०००) हिन्दू महासभा का एक कार्यकर्ता था जिसने नई दिल्ली स्थित बिरला हाउस में महात्मा गांधी की हत्या की तिथि से दस दिन पूर्व २० जनवरी १९४८ को उनकी प्रार्थना सभा में हथगोला फेंका था। उपस्थित जन समुदाय ने उसे पुलिस के हवाले कर दिया था। उस घटना के ठीक १० दिन बाद नाथूराम गोडसे ने ३० जनवरी १९४८ को गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी। बाद में उसे फाँसी की सजा दी गई। मदनलाल को भी गान्धी-हत्या के षड्यन्त्र में शामिल होने, राष्ट्रद्रोह के आरोप में गुनहगार सिद्ध होने के बाद आजीवन कारावास दिया गया ।
प्रारम्भिक जीवन
मदनलाल पाहवा का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त के माण्टगोमरी जिले के पाकपट्टन ग्राम में किशनलाल पाहवा के यहाँ हुआ था। उनका पुश्तैनी गाँव व जिला दोनों ही भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान में चले गये। मैट्रिक की परीक्षा के पश्चात उसने रॉयल इन्डियन नेवी में वायरलेस ऑपरेटर के रूप में काम किया। जलसेना से सेवानिवृत होने के बाद वे अपने घर १९४६ में वापस आ गये। १९४७ में जब भारत का विभाजन हुआ, जो उस सदी की सबसे बडी त्रासदी थी तो मदनलाल शरणार्थी के रूप में अपना सब कुछ गँवा कर भारत आ गये और आजीविका की तलाश में मुम्बई (तत्कालीन बॉम्बे) चले गये जहाँ से वह रिटायर हुए थे। उस समय उनके जैसे तमाम शरणार्थी भारत विभाजन के लिये कांग्रेस और उसके सबसे बड़े नेता गान्धी को दोषी मान रहे थे।
भारत में शरणार्थी जीवन
वहाँ नौकरी की तलाश में भटकते हुए मदनलाल को उनके एक मित्र ने रुइया कालेज बम्बई के हिन्दी अध्यापक डॉ॰ जे०सी० जैन से मिलवाया। डॉ॰ जैन ने पच्चीस प्रतिशत कमीशन पर उनकी अपनी लिखी हुई पुस्तकें बेचने का काम दे दिया। बाद में मदनलाल ने एक पटाखे की फैक्ट्री में नौकरी कर ली जहाँ काम करते हुए उन्होंने हथगोला बनाने की विधि सीख ली। इसी दौरान मशीन की गरारी के बीच हाथ आ जाने से उनके हाथ की उँगलियाँ कट गयीं किन्तु उन्होंने उस दर्द को चुपचाप बर्दाश्त कर लिया क्योंकि डॉक्टर के पास इलाज कराने के लिये बाहर जाने पर पकडे जाने का डर था।
हिन्दू महासभा के सम्पर्क में
इसके बाद मदनलाल पाहवा दादा महाराज के माध्यम से हिन्दू महासभा के विष्णु करकरे की संगति में आये। करकरे सेठ ने मदनलाल को फलों की दूकान खुलवा दी। करकरे ने ही उन्हें पूना ले जाकर नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे से मिलवाया। ५ जनवरी १९४८ को अहमदनगर की एक सभा में कांग्रेसी नेता रावसाहब पटवर्धन के हाथों से माइक छीनने के आरोप में उनके और करकरे के नाम पुलिस इन्स्पेक्टर रज्जाक की रिपोर्ट पर १२ जनवरी, १९४८ को गिरफ्तारी के वारण्ट जारी हो गये। लेकिन तब तक वे दोनों अहमदनगर छोडकर दिल्ली जा चुके थे।
बिरला हाउस दिल्ली की घटना
२० जनवरी १९४८ को मदनलाल पाहवा विष्णु रामकृष्ण करकरे, शंकर किश्तैय्या, दिगम्बर रामचन्द्र बडगे, गोपाल गोडसे, नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे के साथ एक लारी में बैठकर, जिसे सुरजीत सिंह नाम का एक सरदार चला रहा था, बिरला हाउस नई दिल्ली पहुँचे। बिरला हाउस के गेटकीपर छोटूराम को रिश्वत देकर ये सभी लोग प्रार्थना सभा में घुस गये। मदनलाल ने छोटूराम से कहा कि वह उन्हें सभा-स्थल के पीछे जाने दे जहाँ से गान्धी की प्रार्थना सभा में उपस्थित जन समुदाय की एक फोटो ली जा सके। छोटूराम को जब मदनलाल पर शक हुआ तो उसने वहाँ से चले जाने को कहा। इस पर मदनलाल वापस लौटे और चहारदीवारी के ऊपर से गान्धीजी की सभा में हथगोला फेंककर वहाँ से भागे परन्तु भीड़ के हत्थे चढ़ गये। उनके अन्य साथी प्रार्थना सभा में मची अफरा-तफरी का लाभ उठाकर बिरला हाउस से साफ बच निकले।
मदनलाल पर अभियोग
अदालत में जब गान्धी-हत्या का अभियोग चला तो मदनलाल ने उसमें स्वीकार किया कि जो भी लोग इस षड्यन्त्र में शामिल थे पूर्व योजनानुसार उसे केवल बम फोड़कर सभा में गड़बड़ी फैलाने का काम करना था, शेष कार्य अन्य लोगों के जिम्मे था। जब उसे छोटूराम ने जाने से रोका तो उसने जैसे भी उससे बन पाया अपना काम कर दिया। उस दिन की योजना भले ही असफल हो गयी किन्तु इस बात की जानकारी तो सरकार को हो ही गयी थी कि गान्धी की हत्या कभी भी कोई कर सकता है फिर उनकी सुरक्षा की चिन्ता किन्हें करनी चाहिये थी।
नेहरू व पटेल भी दोषी
क्या यह दायित्व जवाहर लाल नेहरू जो देश के प्रधान मन्त्री थे, अथवा सरदार पटेल, जो गृह मन्त्री थे उनका नहीं था? आखिर २० जनवरी १९४८ की पाहवा द्वारा गान्धीजी की प्रार्थना-सभा में बम-विस्फोट के ठीक १० दिन बाद उसी प्रार्थना सभा में उसी समूह के एक सदस्य नाथूराम गोडसे ने गान्धी के सीने में ३ गोलियाँ उतार कर उन्हें सदा सदा के लिये समाप्त कर दिया। हत्यारिन राजनीति[1] शीर्षक से लिखित एक कविता में यह सवाल ("साजिश का पहले-पहल शिकार सुभाष हुए, जिनको विमान-दुर्घटना करवा मरवाया; फिर मत-विभेद के कारण गान्धी का शरीर, गोलियाँ दागकर किसने छलनी करवाया?") बहुत पहले इन्दिरा गान्धी की मृत्यु के पश्चात सन १९८४[2][3] में ही उठाया था जो आज तक अनुत्तरित है।
पाहवा की पहचान
अदालत में पाहवा की शिनाख्त सुलोचना देवी नाम की एक महिला ने की थी जो उस दिन बिरला हाउस परिसर में अपने ३ साल के बच्चे को खोजने आयी थी। उसने ही मदनलाल को वहाँ बम में पलीता लगा कर भागते हुए देखा था। महिला की गवाही व अन्य उपस्थित लोगों की शिनाख्त पर पाहवा को आजीवन कारावास दिया गया।
मुम्बई में मृत्यु
मदनलाल पाहवा, गोपाल गोडसे और विष्णु रामकृष्ण करकरे - इन तीनों को ही गान्धी-हत्या के षड्यन्त्र में शामिल होने के आरोप में आजीवन कारावास का दण्ड मिला था। ये तीनों व्यक्ति १३ अक्टूबर १९६४ को बन्दीगृह से रिहा हुए। मदनलाल कारागार से छूटने के बाद मुम्बई के दादर इलाके में रहने लगे। १९६६ में उन्होंने मंजरी नाम की एक माहिला से विवाह कर लिया। दादर में ही सन २००० में उनका निधन हुआ।[4]
आरोपित अभियुक्त
गान्धी-हत्या के अभियोग में आरोपित सभी अभियुक्तों की सूची इस प्रकार है:
- नाथूराम विनायक गोडसे,
- नारायण दत्तात्रेय आप्टे,
- विष्णु रामकृष्ण करकरे,
- मदनलाल कश्मीरीलाल पाहवा,
- गोपाल विनायक गोडसे,
- शंकर किश्तैय्या,
- दिगम्बर रामचन्द्र बडगे,
- दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे,
- विनायक दामोदर सावरकर,
- गंगाधर जाधव,
- गंगाधर दण्डवते एवम्
- सूर्यदेव शर्मा।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ हत्यारिन राजनीति
- ↑ स्वदेश (हिन्दी समाचारपत्र), ग्वालियर में प्रकाशित
- ↑ राष्ट्रधर्म (साप्ताहिक), लखनऊ में प्रकाशित
- ↑ http://www.mumbaimirror.com/printarticle.aspx?page=comments&action=translate§id=2&contentid=2008012520080125052403625ed04f3e7&subsite=Gandhi Archived 2012-09-04 at archive.today assassination conspirator’s widow ill
- Manohar Malgaonkar, The Men Who Killed Gandhi, Madras, Macmillan India (1978) ISBN 0-333-18228-6