मत्स्य अवतार
मत्स्य अवतार | |
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वेदज्ञान और सुरक्षा के देवता | |
मत्स्य रूपी भगवान विष्णु हयग्रीव का संहार करते हुए | |
अन्य नाम | मत्स्य नारायण, हयग्रीव अरी, वेदरक्षक, मनुकल्प, मकरनारायण, मीन नारायण आदि। |
संबंध | दशावतार, विष्णु, पर ब्रह्म, परमात्मा, परमेश्वर, विष्णु के प्रथमावतार |
निवासस्थान | वैकुंठ, समुद्र |
मंत्र | ॐ मतस्याय मनुकल्पाय नम: |
अस्त्र | सुदर्शन चक्र, पाञ्चजन्य शंख, कमल पुष्प और कौमोदकी गदा, |
युद्ध | हयग्रीवासुर वध |
जीवनसाथी | महालक्ष्मी |
शास्त्र | भागवत पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण |
त्यौहार | मत्स्य जयंती |
मत्स्यावतार (मत्स्य = मछली का) भगवान विष्णु का अवतार है जो उनके दस अवतारों में से प्रथम है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने इस संसार को भयानक जल प्रलय से बचाया था। साथ ही उन्होंने हयग्रीव नामक दैत्य का भी वध किया था जिसने वेदों को चुराकर सागर की गहराई में छिपा दिया था।
मत्स्य नारायण और मनु
एक बार इस पृथ्वी पर मनु नामक पुरुष हुए। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार वे सुबह के समय सूर्यनारायण को अर्घ्य दे रहे थे तभी एक मछली नें उनसे कहा कि आप मुझे अपने कमंडल में रख लो। दया और धर्म के अनुसार इस राजा ने मछली को अपने कमंडल में ले लिया और घर की ओर निकले, घर पहुँचते तक वह मत्स्य उस कमंडल के आकार का हो गया, राजा नें इसे एक पात्र पर रखा परंतु कुछ समय बाद वह मत्स्य उस पात्र के आकार की हो गई। अंत में राजा नें उसे समुद्र में डाला तो उसने पूरे समुद्र को ढँक लिया। उस सुनहरी-रंग मछली ने अपने दिव्य पहचान उजागर की और अपने भक्त को यह सूचित किया कि उस दिवस के ठीक सातवें दिन प्रलय आएगा तत्पश्चात् विश्व का नया श्रृजन होगा वे सत्यव्रत को सभी जड़ी-बूटी, बीज और पशुओं, सप्त ऋषि आदि को इकट्ठा करके प्रभु द्वारा भेजे गए नाव में संचित करने को कहा। प्रलय आए ही मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने नाव को स्वयं खींचकर इस संसार को प्रलय से बचाया था। [1] पुराणों के अनुसार सत्यव्रत नामक के एक राजा हुए l वे बड़े ही धर्मप्रिय राजा थे और नारायण के प्रिय भक्त थे l एक दिवस राजा जब नदी के किनारे सूर्यार्घ्य दे रहे थे तो एक छोटी मछली जल के साथ उनकी अंजलि में आ गई l राजा ने उस मछली को नदी के के जल में छोड़ना चाहा तो वह मछली बोल उठी कि ये राजन मुझे नदी में मत फेंकों यदि आपने ऐसा किया तो जल में स्थित बड़ी मछलियां मुझे खा जाएँगी l
राजा ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया और घर पंहुचते मछली का बढ़ने लगा और वह कमंडल में नहीं समा पा रही थी तो राजा ने उसको एक बड़े से पात्र में जल के साथ रख दिया l पर यह क्या ? जल्दी ही वह पात्र भी छोटा पड़ने लगा तो राजा ने एक बड़े से जल कुंड में मछली को रखने का आदेश दिया और फिर जल कुंड भी मत्स्य के लिए छोटा दिखाई देने लगा l
विद्वान् राजा समझ गया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है, अवश्य ही यह कोई देव है और राजा ने मछली रुपी देव से अपने असली रूप में आने की प्रार्थना की l राजा की प्रार्थना पर नारायण प्रकट हुए और राजा से बोले कि हे.... राजन आज से सात दिन बाद पृथ्वी पर जल प्रलय होगी l सम्पूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो जायेगी तो आप एक बड़ी सी नाव का निर्माण कर सप्त ऋषियों तमाम तरह के बीजों, पशु-पक्षियों के जोड़ों के साथ उस नाव में बैठ जाएँ l समय आने पर मैं बड़ी मछली बनकर आप की नाव के निकट आउंगी तो आप वासुकि नाग की रस्सी मेरे सींग पर डाल देना मैं स्वयं आप और आपकी नाव को इस जल प्रलय से बाहर सुरक्षित स्थान तक ले जाऊंगा l
भगवान के निर्देशानुसार राजा ने समस्त सामग्री एकत्र कर नाव का निर्माण कर उसमें सभी चीजों और सप्त ऋषियों के साथ बैठ गए l नियत तिथि पर जल प्रलय हुई, चारों तरफ जल ही जल दिखाई पड़ता था l नाव में बैठे राजा बहुत डरे हुए थे तो सप्त ऋषियों ने राजा को ढाढ़स बंधाया और नारायण की प्रतीक्षा करने को कहा l
कुछ समय पश्चात् एक बड़ी मछली नाव के इर्द गिर्द चक्कर लगाने लगी इस मछली के मस्तक पर एक बड़ा सींग दृष्टिगोचर हो रहा था और राजा ने जैसे भगवान ने pahle ही निर्देश दिया था वासुकि नाग की रस्सी बना इस सींग पर डाल दी l अब यह मछली नाव को अपार जल में इधर-उधर घुमाती रही और राजा सत्यव्रत / मनु मत्स्य रुपी नारायण से प्रश्न करते रहे और मत्स्य रुपी नारायण उनके इन प्रश्नों का उत्तर देते रहे l मत्स्य भगवान और राजा सत्यव्रत/मनु के बीच यह संवाद मत्स्य पुराण के रूप में सनातनधर्मियों के बीच स्थित है l
मत्स्यावतार में ही नारायण ने हयग्रीव नामक दानव से वेदों का उद्धार भी किया और हयग्रीव का वध कर वेद पुनः परमपिता ब्रह्मा जी की दिए l
मत्स्य नारायण और हयग्रीवासुर की कथा
एक बार सृष्टि रचियेता ब्रह्मा जी ने वेदों का निर्माण किया। ब्रह्मदेव के निद्रामग्न होने के पश्चात् हयग्रीवासुर नाम का एक दैत्य वेदों को चुराकर ले गया जिससे संसार में पाप और अधर्म छा गया। ब्रह्मदेव ने ये बात भगवान विष्णु को बताई। उन्होंने हयग्रीवासुर का वध करने के लिए एक बड़ी मत्स्य का रूप ले लिया और समुद्र में जाकर हयग्रीव के पहरेदारों को मारकर उसके कारागार से वेदों को छुड़ा लिया और हयग्रीवासुर की सेना समेत हयग्रीवासुर को भी मार डाला और वेदों को अपने मुंह में रखकर समुद्र से बाहर आ गए और वेद वापिस ब्रह्मा जी को सौंप दिए।
चित्र मालिका
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "मत्स्यावतार की कथा". मूल से 31 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 मई 2014.