मड़फा किला
महिमावान मडफा क्षेत्र हिन्दू एवं जैन संस्कृति की संगम स्थली है तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण स्थान है जो पर्वत पर स्थित है।
इतिहास
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चित्रकूट के सन्निकट स्थित मड़फा पुरातनकाल से ही ऋषि-मुनियों का प्रिय तपोवन रहा है। विविध पुराणों के अनुसार यहाँ श्रृष्टि कालीन महर्षि भृगु की पुलोमा नामक पत्नी से उत्पन्न उनके पुत्र च्यवन रहा करते थे। यहीं पर विश्वामित्र का स्वर्ग की अप्सरा मेनका से सम्पर्क स्थापित हुआ था। यहाँ यह ध्यातव्य है कि विश्वामित्रों की एक पूरी वंश परम्परा है, जहाँ सभी को विश्वामित्र कहा जाता है। जिन विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को शिक्षा दी थी, वे उन विश्वामित्र के पूर्ववर्ती हैं, जिन्होंने मेनका से सम्पर्क स्थापित कर शकुन्तला को जन्म दिया था। महर्षि मांडव्य के पूर्व यहाँ कई ऋषियों द्वारा तपस्या किए जाने के उल्लेख मिलते हैं किन्तु इस तपोवन को उल्लेखनीय ख्याति मांडव्य द्वारा यहाँ कठोर ताप किए जाने के बाद मिली है।
भौगोलिक संरचना एवं स्थिति
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शैल मालाओं से आवृत इस स्थान की आकृति मण्डप के सदृश है। कुछ लोग इसके नामकरण का आधार इसी आकृति को मानते हैं जबकि स्थानीय परम्परा तथा अनेक बुद्धिजीवी मंडव्य का अपभ्रंश मानते हैं। यह स्थान झाँसी मानिकपुर रेलमार्ग पर स्थित भरतकूप रेलवे स्टेशन से लगभग 15 KM तथा इसी रेलमार्ग के बदौसा रेलवे स्टेशन से बघेलाबारी होते हुए लगभग 16 KM दुरी पर स्थित मानपुर के समीपी धरातल पर विन्ध्य पर्वत माला की एक पहाड़ी पर स्थित है।
अक्षांश एवं देशान्तर
Latitude 25.126321
Longitude 80.703566
स्थान की जानकारी
मुख्य प्रवेश द्वार
मानपुर के नजदीक मडफा दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार है जहाँ से दुर्ग में जाने का मार्ग सुगम है। अन्य मार्गों में कुरहू तथा खमरिया से भी दुर्ग में जाने के मार्ग हैं जो थोडे दुर्गम हैं। यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है।
सीढियां
दुर्ग पर चढ़नेके लिए लगभग 520 सीढियां हैं जो कंक्रीट द्वारा निर्मित हैं।
हांथी दरवाजा
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लाल बलुआ पत्थर से निर्मित दुर्ग में प्रवेश हेतु मुख्य द्वार हांथी दरवाजा है जिसमें नक्काशीदार स्तंभों के ऊपर पत्थर की कड़ी रखकर छत बनाई गई है। सुरक्षा के लिए दरवाजे के दोनों ओर तोप रखकर चलने के लिए दो बुर्ज बने हुए हैं जो वर्तमान में वहीँ नीचे गिरे हुए हैं।
पंचमुखी शिव मंदिर
हांथी दरवाजा के नजदीक मंदिर में नृत्य मुद्रा में गजासुर संहारक शिव की विलक्षण प्रतिमा प्रतिष्ठित है। काली शिला पर रूपायित इस प्रतिमा में भगवन शिव कुठार, घंटा, डमरू, नरमुण्ड, परशु, धनुष, खप्पर, खेटक, बीज, पूरक आदि आयुध धारण किए हुए हैं।
चन्देलकालीन मंदिर
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किले के अन्दर कुटी नमक स्थान के समीप हिन्दू धर्म से सम्बंधित दो चंदेल कालीन मंदिर प्राप्त हैं। बड़ा मंदिर एक भव्य चबूतरे पर निर्मित है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस मंदिर में अर्द्धमंड़प, मंडप, गर्भगृह निर्मित हैं जो वर्तमान में ध्वस्तावस्था में देखे जा सकते हैं। इसके लगभग 12 मीटर की दूरी पर लघु मंदिर ध्वस्तावस्था में है।
मांडव्य ऋषि आश्रम (कुटी)
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मांडव्य ऋषि का आश्रम चन्देलकालीन मंदिरों से लगा हुआ है जिसे कुटी के नाम से जाना जाता है जिसमें भैरव-भैरवी की मूर्ति तथा अन्य मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। इनके चार हाँथ हैं । दाहिने एक हाँथ में डमरू और दुसरे में बच्चा तथा बाएँ एक हाँथ में लड्डू तथा दूसरे में कुत्ता पकड़े हैं। बड़ी-बड़ी निकले हुई आंखे, चौड़ी नासिका तथा गले में नरमुण्ड माला धारण किए हुए हैं।
स्वर्गारोहण दीघी
आश्रम में जलापूर्ति के लिए स्वर्गारोहण दीघी निर्मित है जो वर्ष भर जल से भरी रहती है, यह कुटी में जलापूर्ति का प्रमुख साधन है।
पापमोचन सरोवर
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कुटी के समीप ही ढाल पर पापमोचन सरोवर है जो इस दुर्ग की जलापूर्ति में धार्मिक मान्यता के साथ-साथ बड़ा महत्व रखता है।
शिव एवं नंदी तथा चरण पादुका
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पापमोचन सरोवर के समीप ही एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है जिसके नजदीक रखी शिलाओं में चरणों के निशान हैं तथा एक प्राचीन तुलसी चौरा बना हुआ है। उत्तर पूर्व दिशा में आंगे बढ़ने पर शिव एवं नंदी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
जैन मंदिर
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कुटी से पूर्व दिशा की ओर खमरिया द्वार की ओर लगभग 200 मीटर की दूरी पर 5 जैन मंदिरों का समूह है जिसमे 3 जैन मदिर ही देखे जा सकते हैं। भग्नावस्था में एक मंदिर पूरी तरह से देखा जा सकता है जिसमें गर्भगृह के सामने 16 नक्काशीदार स्तंभों पर आधारित मंडप दर्शनीय है। इन मंदिरों की शैली मध्य प्रदेश के खजुराहो में निर्मित शैली जैसी है। इस मंदिर के गर्भगृह में महावीर स्वामी की प्रतिमा खण्डित अवस्था में प्रतिष्ठित है। देखे जा सकने वाले 2 अन्य जैन मंदिरों में गर्भ गृह उपलब्ध हैं तथा ये ध्वंश होने के कारण भग्नावस्था में पूरी तरह नहीं देखे जा सकते हैं। 5 जैन मंदिरों के गर्भगृह में मुमिनाथ, चंद्रप्रभा, महावीर, अम्बिका तथा लोकपाल की कलात्मक मूर्तियाँ हैं।
राम नाम गुफा
जैन मंदिरों के आंगे पर्वत की सीमा समाप्त होती है। संकरे रास्ते से नीचे उतरकर गुफा में राम नाम अंकित है जिसे किसी तपस्वी ने बड़ी ही कलात्मक तरीके से लिखा है।
पर्वत की वन्य सम्पदा
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लाल बलुआ पत्थर की प्रचुर उपलब्धता के साथ-साथ पर्वत में वन्य सम्पदा भी आबाद है। वन्य सम्पदा में यहाँ धवा, सेज, तेंदू, खैर, रियां, ढाक तथा अन्य वनस्पतियाँ उपलब्ध है जो कांटेदार है तथा औषधीय गुणों से भरपूर हो सकती हैं।
पर्वत का प्राकृतिक सौन्दर्य
पर्वत अपनी वन्य सम्पदा के साथ-साथ प्राकृतिक सौन्दर्य से आबाद है पर्वत के पश्चिम में बाणगंगा नदी प्रवाहित होती है तथा नजदीक ही रसिन बांध है एवं धार्मिक एवं दर्शीय पवन तीर्थ चित्रकूट के नजदीक होने के कारण इसकी प्राकृतिक सुन्दरता और बढ़ जाती है। चारों तरफ से पर्वत चोटियों से घिरे होने के कारण यह पर्वत बड़ा ही मनोरम हो जाता है। वर्षा ऋतु में यहाँ पर्वत में मेघों को उतरते हुए स्पष्ट देखा जा सकता है यह दृश्य पर्यटकों के मन को स्वतः ही आकर्षित कर लेता है। अतएव इस दर्शनीय स्थल पर जो हिन्दू एवं जैन धर्म की संगम स्थली है तथा वसुधैव कुटुम्बकम की भारतीय संस्कृति को दिखाने वाली है में पर्यटकों को आना चाहिए जिससे यहाँ पर्यटन का विकास होगा तथा क्षेत्रीय लोगों को रोजगार प्राप्त होगा।
MAHIMAVAN MARPHA KSHETR IS A TOURIST PLACE. [1]
References
- ↑ Shukl, Harih Om Tatsat (2018). "MAHIMAVAN MARPHA KSHETR". Sadhana Sadan: Prayagraj, ISBN 181-903202-5-4.