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मंदिर श्री नृःसिंह भगवान, चकलेश्वर रोड, गोवर्धन (मथुरा)

                         मंदिर श्री नृःसिंह भगवान, चकलेश्वर रोड, गोवर्धन (मथुरा)

पवि़ाणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। र्धसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।। सतयुग में भक्त प्रह्लादादि को असहनीय यातनाएँ दैत्यराज हरिण्यकशिपु के द्वारा दी जाने लगी। तब अकारण दया द्रवित होने वाले करूणा वरूणालय श्रीहरि से यह देखा नहीं गया। अपने विरद को सँभालते हुए भक्त प्रह्लाद की रक्षार्थ एवं आतातायी दैत्य हरिण्यकशिपु को मारने के लिए भगवान विष्णु के चौथे अवतार में नृःसिंह रूप लेकर राज सभा के मध्य बने खम्बे से अपने अनन्य भक्त प्रह्लाद की इच्छा को सर्वोपरि करते हुये प्रकट हो गये। मेघ गर्जन तुल्य गर्जना करते हुए युद्ध के लिये दैत्यराज को ललकारा। परिणामतः दोनों में धमासान युद्ध हुआ। ब्रह्माजी के द्वारा दिये गये वादानों के अनुसार दैत्यराज को याद दिलाते हुए उसका अपने नाखूनों से उदर फाड़ते हुए वध कर दिया। श्री हरि का वही विकराल स्वरूप श्री नृःसिंह जी का विग्रह श्रीधाम गोवर्धन के चकलेश्वर मार्ग पर कनक भवन के पूर्व दिशि मार्ग पर मन्दिर स्थित है। श्री नृःसिंह जी के मन्दिर का निर्माण कराकर ठाकुर जी की प्रतिष्ठा करने वाले स्वतंत्रता सैनानी पं0 भँवर सिंह शर्मा जी ‘‘जैमन’’ हैं। भगवान श्री नृःसिंह जी लाल-लाल नेत्रों से युक्त विकराल दहाड़ने की मुद्रा में मुखवाये हुए दैत्य राज हरिण्यकशिपु को अपनी जाँघों पर रखे तीखे नाखूनों से उसका उदर विदारते हुए वध करने की मुद्रा में भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। दाहिनी ओर भक्तराज प्रह्लाद जी हाथ जोड़े खड़े हुए हैं तथा दाँयी ओर इस मंदिर की स्थापना के समय जमीन से स्वयं प्रगट होने वाले श्री गिरिराज महाराज विराजमान है। भगवान श्री नृःसिंह जी के अनन्य भक्त पं0 कैलाश चन्द्र मिश्रा ठाकुर जी की नित्य नियमानुसार सेवा-पूजा आरती आदि करते हैं। वर्ष के अन्य उत्सवों के साथ-साथ श्री नृःसिंह जयन्ती का उत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस मंन्दिर के निर्माण की प्रेरणा सिद्धसंत स्व0 पं0 बद्री नारायण जी (कृष्णकुटी वालों) की अभिलाषा की पूर्ति हेतु फाल्गुन शुक्ला पंचमी संवत् 2044 तदनुसार दिनांक- 22 फरवरी 1988 ई0 सोमवार को श्री नृःसिंह जी की प्रतिमा मंगाकर प्राण-प्रतिष्ठा करादी। कुछ कालोपरान्त आपने अपनी बृद्धावस्था के कारण शारीरिक शिथिलिता को ध्यान में रखते हुये भगवान नृःसिंह जी की सेवा-पूजा करने का दायित्व अपने ज्येष्ठ पुत्र ज्योतिष के क्षेत्र में (अनेकों स्वर्ण पदक एवं मानद उपाधियों से अलंकृत) ख्याति प्राप्त, रमल विशेषज्ञ पं0 कैलाश चन्द्र मिश्रा ‘‘आचार्य’’ को सौंप दिया। आपके संरक्षण में ही ‘‘श्री नृःसिंह रमल ज्योतिष शोध संस्थान (ट्रस्ट)’’ की स्थापना की गयी। इसी शोध संस्थान से ‘‘श्री गिरिराज ज्योति’’ नामक त्रैमासिक पत्रिका भी प्रकाशित हो रही है और निःशुल्क ज्योतिष शिक्षा जिज्ञासु छात्रों को प्रदान की जाती है। इसी संस्थान में रमल ज्योतिष के माध्यम से पराविज्ञान की सहायता से जनकल्याणार्थ शोध कार्य किया जा रहा है जो आज ‘‘श्री लक्ष्मी नृःसिंह नवग्रह वाटिका’’ लोकमणि विहार, राधाकुण्ड परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन में आपके दर्शनार्थ/अवलोकनार्थ/सर्वसंकट निवारणार्थ स्थापित हो चुकी है। जिसमें आप देवदोष, पितृदोष, कालसर्प दोष, नवग्रह शांति के साथ-साथ अकस्मात् आये संकट से मुक्ति हेतु पूजा करने से श्री गिरिराज महाराज और श्री नृःसिंह भगवान की कृपा से शाघ की कार्य सिद्धि होती है। यह श्री नृःसिंह रमल ज्योतिष शोध संस्थान आज सम्पूर्ण भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी अपनी पहचान वना चुका है।

 				यं यं चिन्तयते कामं, तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।।
    (मनुष्य श्री नृःसिंह भगवान की आराधना जिन जिन कार्यों को सोच कर करता है उन्हें अवश्य ही प्राप्त कर लेता है।) 
                          !! बोलिए श्री नृःसिंह भगवान की जय। !!