मंडोर
मंडोर | |
---|---|
शहर | |
Country | India |
प्रदेश | राजस्थान |
भाषा | |
• विभागीय | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
नजदीकी शहर | जोधपुर |
लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र | जोधपुर |
विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र | सरदारपुरा |
मंडोर, जोधपुर नगर में रेलवे स्टेशन से ९ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ऐतिहासिक नगर है।
इतिहास
मण्डोर का प्राचीन नाम ’माण्डवपुर’ था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करती थी। मारवाड़ के राठौड़ राजवंश की पुरानी राजधानी मंडोर थी। इससे पूर्व यहाँ पर इंदा राजपूतों का शासन था। राजाओं द्वारा बनाए गए महल भी यहां खंडित अवस्था में है।
राठौड़ राजाऔ ने यहां कई मंदिर बनवाए,राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिड़िया कूट पर्वत पर मेहरानगढ़ का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। वर्तमान में मंडोर दुर्ग के भग्नावशेष ही बाकी हैं, जो बौद्ध स्थापत्य शैली के आधार पर बना था। इस दुर्ग में बड़े-बड़े प्रस्तरों को बिना किसी मसाले की सहायता से जोड़ा गया था।
यह पड़िहार राजाओं का गढ़ था। सैकड़ों सालों तक यहां से पडिहार राजाओं ने सम्पूर्ण मारवाड़ पर अपना राज किया। इंडा पड़िहार के प्रधान वीर राव हेमा जी गहलोत (मंडोरवा राजपुत) की सलाह पर सन् १३९५ में चुंडाजी राठोड की शादी पडिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हे दहेज में मिला तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठोड शासकों का राज हो गया। मन्डोर मारवाड की पुरानी राजधानी रही है। मन्डोर रावण की ससुराल होने की किदवन्ति भी है मगर रावण की पटरानी मन्दोद्री नाम से मिलता नाम के अलावा अन्य कोई साक्ष्य यहाँ उपलब्ध नहीं है। मन्डोर में सदियो से होली के दूसरे दिन राव का मेला लगता है। मेले के स्वरुप व परंपरा आज भी सेकडो साल पुरानी हे हाल के वर्षो में स्वरुप में जरुर बदलाव हुआ हे मगर प्राणपराओं में बदलाव नहीं हुआ है। मण्डोर का दुर्ग देवल, देवताओं की राल, जनाना, उद्यान, संग्रहालय, महल तथा अजीत पोल दर्शनीय स्थल हैं। मण्डोर साम्प्रदायिक सद्भाव एवं एकता का प्रतीक हैं। तनापीर की दरगाह, मकबरे, जैन मंदिर तथा वैष्णव मंदिर सभी का एक ही क्षेत्र में पाया जाना, इस तथ्य का मजबूत सबूत हैं कि विभिन्नता में एकता यहाँ के जीवन की प्रमुख विशेषता रही हैं।
मंडोर सैनिक क्षत्रिय या मंडोरवा राजपूतों का गढ़ है। प्रमुख मंडोरवा राजपुत है - गहलोत, तंवर, सोलंकी (चालुक्य), परिहार (पड़िहार/प्रतिहार), भाटी, देवड़ा, चौहान, सांखला, पंवार, परमार, टाक।
स्थापत्य कला
आधुनिक काल में मंडोर में एक सुन्दर उद्यान बना है, जिसमें 'अजीत पोल', 'देवताओं की साल' व 'वीरों का दालान', मंदिर, बावड़ी, 'जनाना महल', 'एक थम्बा महल', नहर, झील व जोधपुर के विभिन्न महाराजाओं के स्मारक बने है, जो स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। इस उद्यान में देशी-विदेशी पर्यटको की भीड़ लगी रहती है। उद्यान में बनी कलात्मक इमारतों का निर्माण जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह व उनके पुत्र महाराजा अभय सिंह के शासन काल के समय सन 1714 से 1749 ई. के बीच किये गए थे। उसके पश्चात् जोधपुर के विभिन्न राजाओं ने इस उद्यान की मरम्मत आदि करवाकर शनै: शनै: इसे आधुनिक ढंग से सजाया और इसका विस्तार किया।
मारवाड़ की इस प्राचीन राजधानी में कई प्राचीन स्मारक हैं। हॉल ऑफ हीरों में चट्टान से दीवार में तराशी हुई पन्द्रह आकृतियां हैं जो हिन्दु देवी-देवतीओं का प्रतिनिधित्व करती है (देवताओं की साल व वीरों का दालान)। अपने ऊची चट्टानी चबूतरों के साथ, अपने आकर्षक बगीचों के कारण यह प्रचलित पिकनिक स्थल बन गया है।[1]
जनाना महल
उद्यान में स्थित जनाना महल में वर्तमान समय में राजस्थान के पुरातत्त्व विभाग ने एक सुन्दर संग्रहालय बना रखा है, जिसमें पाषाण प्रतिमाएँ, शिलालेख, चित्र एवं विभिन्न प्रकार की कलात्मक सामग्री प्रदर्शित है। जनाना महल का निर्माण महाराजा अजीत सिंह (1707-1724 ई.) के शासन काल में हुआ था, जो स्थापत्य कला की दृष्टि से एक बेजोड़ नमूना है। जानना महल के प्रवेश द्वार पर एक कलात्मक द्वार का निर्माण झरोखे निकाल कर किया गया है। इस भवन का निर्माण राजघराने की महिलाओं को राजस्थान में पड़ने वाली अत्यधिक गर्मी से निजात दिलाने हेतु कराया गया था। इसके प्रांगण में फव्वारे भी लगाये गए थे।
महल प्रांगण में ही एक पानी का कुंड है, जिसे 'नाग गंगा' के नाम से जाना जाता है। इस कुंड में पहाडों के बीच से एक पानी की छोटी-सी धारा सतत बहती रहती है। महल व बाग़ के बाहर एक तीन मंजिली प्रहरी ईमारत बनी है। इस बेजोड़ ईमारत को 'एक थम्बा महल' कहते हैं। इसका निर्माण भी महाराजा अजीत सिंह के शासन काल में ही हुआ था।
महाराजाओं के स्मारक
मंडोर उद्यान के मध्य भाग में दक्षिण से उत्तर की ओर एक ही पंक्ति में जोधपुर के महाराजाओं के स्मारक ऊँची प्रस्तर की कुर्सियों पर बने हैं, जिनकी स्थापत्य कला में हिन्दू स्थापत्य कला के साथ जैन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट समन्वय देखा जा सकता है। इनमें महाराजा अजीत सिंह का स्मारक सबसे विशाल है। स्मारकों के पास ही एक फव्वारों से सुसज्जित नहर बनी है, जो नागादडी झील से शुरू होकर उद्यान के मुख्य दरवाजे तक आती है व सुरपुरा बांध में जा मिलती हैं। प्रतिहारो के सासंकाल में नागादडी झील का निर्माण हुआ जिस का कार्य मंडोर के नागवंशियों ने कराया था, तथा जिस पर महाराजा अजीत सिंह व महाराजा अभय सिंह के शासन काल में बांध का निर्माण करवाया गया था।
मुख्य पर्यटन स्थल
इस झील से आगे मंडोर किले में प्राचीन (2000 साल लगभग ) चामुण्डा माता मंदिर जो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है , नाहर सिंह जी का मन्दिर, काला गोरा भेरूजी का मन्दिर, सैनिक क्षत्रिय वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत का स्मारक , देवताओं की साल , तेलिया गजानंद जी का मन्दिर, नाग कुंड , साल में एक बार राव मोहोत्सव जो की हेमा जी की तुर्को पर विजय के उपलक्ष मे होता है, तथा संत तनापीर की दरगाह भी है, यहाँ दूर-दूर से यात्री दर्शनार्थ आते हैं। इन जगहो के दरवाजों व खिड़कियों पर सुन्दर नक्काशी की हुई है। दरगाह पर प्रतिवर्ष उर्स के अवसर पर मेला लगता है। दरगाह के पास ही फ़िरोज़ ख़ाँ की मस्ज़िद है।
देवताओं की साल व वीरों का दालान
मंडोर उद्यान का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। राजस्थानी भाषा में साल का अर्थ कक्ष और दालान का अर्थ बरामदा है। अजीत पोल से प्रवेश करते ही एक लम्बा बरामदा दिखाई पड़ता है इसे ही देवताओं की साल व वीरों का दालान कहा जाता है।[2]
मेले और त्यौहार
- सैनिक क्षत्रिय राव महोत्सव
- हरियाली अमावस्या
- नाग पंचमी
- वीरपुरी मेला
- भोगिसेल परिक्रमा
सन्दर्भ
- ↑ "Mandore Garden" [मंडोर उद्यान]. राजस्थान टूरिज़म. मूल से 27 जनवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मई 2015.
- ↑ "जोधपुर की निराली सैर" (सीएमएस). नवभारत टाइम्स. मूल से 21 सितंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मई 2015.