मंगलाप्रसाद पारितोषिक
मंगलाप्रसाद पारितोषिक (सन् १९२३ से आरंभ) हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के द्वारा साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाले व्यक्ति को प्रदान किया जाता है। इसकी स्थापना पुरुषोत्तम दास टंडन ने १९२३ ई॰ में की थी।
परिचय
हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में पटना में आयोजित सम्मेलन में यह मन्तव्य निर्धारित हुआ था कि एक ऐसे कोष की स्थापना की जाए जिसके ब्याज से हिन्दी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान देने वाले साहित्यकारों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सहयोग प्रदान करने की दृष्टि से एक पुरस्कार प्रदान किया जा सके, ताकि समुचित रूप से हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि हो। पटना में यह विचार हुआ, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई। कोलकाता में पुरुषोत्तमदास टंडन जी के साथ पुरुषोत्तम राव ने इसकी चर्चा चलायी। टंडन जी ने वाराणसी निवासी गोकुलचन्द जी से इस संबंध में आग्रह किया।[1] गोकुलचन्दजी बनारस के प्रसिद्ध रईस राजा मोतीचन्दजी सी॰आई॰ई॰ के परिवार के थे। इन्हीं के परिवार से बाबू शिव प्रसाद गुप्त भी थे जिन्होंने दस लाख रुपए देकर काशी विद्यापीठ की स्थापना करवायी थी।[2] [3] गोकुलचंद जी ने अपने भाई मंगलाप्रसाद जी की स्मृति में चालीस हजार रुपये दिये और एक ट्रस्ट लिख दिया कि इससे बारह सौ रुपए प्रतिवर्ष पारितोषिक रूप में दिये जाएँ। ट्रस्ट का काम यह निर्धारित किया गया कि तीन निर्णायक चुनें और निर्णायक जिस ग्रंथ को अच्छा समझे उस पर पारितोषिक दें। उनका फैसला अंतिम हो। यदि तीनों निर्णायक तीन भिन्न-भिन्न ग्रंथों की सम्मति देते हैं तो ऐसी स्थिति में दूसरे निर्णायक चुने जाने का नियम है। पहली बार जो तीन निर्णायक चुने गये उनमें आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, चन्द्रशेखर शास्त्री और अम्बिकाप्रसाद वाजपेयी सम्मिलित थे।[1] इन तीनों की सम्मति भिन्न-भिन्न ग्रंथों के लिए हो गयी। अतः शीघ्रतापूर्वक तीन नये निर्णायक चुने गये, जिनमें श्री श्रीधर पाठक, रामदास गौड़ एवं वियोगी हरि शामिल थे। इन तीनों सज्जनों ने एकमत से श्री पद्मसिंह शर्मा को 'बिहारी सतसई' पर उनके संजीवन भाष्य के लिए यह पारितोषिक दिए जाने का निर्णय लिया। सन् १९२३ ई॰ में कानपुर में आयोजित तेरहवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन में पुरुषोत्तमदास टंडन जी की अध्यक्षता में पहली बार यह पारितोषिक पद्मसिंह शर्मा जी को प्रदान किया गया।[4]
पुरस्कृत साहित्यकार
वर्ष | साहित्यकार | कृति |
---|---|---|
१९२३ ई॰ | पद्मसिंह शर्मा | बिहारी सतसई पर 'संजीवन भाष्य' के लिए ; यह पारितोषिक पाने वाले प्रथम व्यक्ति |
१९२४ | गौरीशंकर हीराचंद ओझा | 'भारतीय प्राचीन लिपिमाला' |
१९२६ | प्रो० सुधाकर | मनोविज्ञान |
१९२७ | त्रिलोकीनाथ वर्मा | हमारे शरीर की रचना |
१९२८ | वियोगी हरि | 'वीर सतसई'[5] |
१९२९ | गंगाप्रसाद उपाध्याय | 'आस्तिकवाद'[6] |
१९३१ | गोरख प्रसाद | 'फोटोग्राफी'[7] |
१९३३ | डॉ० मुकुन्दस्वरूप | स्वास्थ्य विज्ञान |
१९३४ | जयचन्द विद्यालंकार | 'भारतीय इतिहास की रूपरेखा'[8] |
१९३५ | श्रीमती चन्द्रावती लखनपाल | 'शिक्षा-मनोविज्ञान' ग्रन्थ पर महात्मा गांधी के सभापतित्व में[9] |
१९३६ | रामदास गौड़ | 'विज्ञान हस्तामलक' |
१९३७ | अयोध्यासिंह उपाध्याय | प्रियप्रवास |
१९३७ | मैथिली शरण गुप्त | साकेत [10] |
१९३८ | जयशंकर प्रसाद | कामायनी |
१९३८ | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | चिन्तामणि [11] |
१९३९ | वासुदेव उपाध्याय | गुप्त साम्राज्य का इतिहास (भाग १-२) |
१९४० | डॉ॰ सम्पूर्णानन्द | 'समाजवाद' |
१९४१ | बलदेव उपाध्याय | 'भारतीय दर्शन' |
१९४२ | महावीर प्रसाद श्रीवास्तव | सूर्य सिद्धान्त का विज्ञान (भाग १-२) |
१९४३ | शंकरलाल गुप्त | क्षयरोग |
१९४४ | महादेवी वर्मा[12] | यामा कविता संग्रह [13] |
१९४५ | हजारीप्रसाद द्विवेदी | 'कबीर' नामक पुस्तक के लिए[14] |
१९४६ | डॉ० रघुवीर सिंह | मालवा में युगान्तर |
१९४७ | कमलापति त्रिपाठी | 'गांधी और मानवता'[15] [16] |
१९४८ | डॉ० सम्पूर्णानन्द | चिद्विलास |
१९५० | श्री चन्द्रावती राधारमण | संतुलित गो-पालन |
१९५२ | डॉ. दीनदयाल गुप्त | अष्टछाप और वल्लभ संप्रदाय |
१९५४ | डॉ॰ वासुदेवशरण अग्रवाल | हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन |
१९५५ | सत्यव्रत सिद्धान्तालङ्कार | 'समाजवाद के मूल तत्त्व'[9] |
१९५७ | उदयवीर शास्त्री | सांख्यदर्शन का इतिहास |
१९५८ | फूलदेव सहाय वर्मा | ईख और चीनी |
१९६० | परशुराम चतुर्वेदी | उत्तर भारत की संतपरम्परा |
१९६२ | राय गोविन्दचन्द्र | प्राचीन भारतीय मिट्टी के बर्तन |
१९६३ | डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल | वेदविद्या |
१९६४ | श्री रमेशचन्द्र कपूर | परमाणु विखंडन |
१९६५ | गंगासहाय पाण्डेय | काय चिकित्सा |
१९६७ | यशपाल[17] | झूठा सच |
१९६८ | डॉ. उदयनारायण राय | प्राचीन भारत में नगर तथा नगर-जीवन |
१९६९ | श्री हरिशंकर जोशी | वैदिक विश्व-दर्शन |
१९८४ | नरेश मेहता[18] | यह पथ बंधु था |
१९८५ | डॉ० रामानन्द तिवारी | अभिनव रस मीमांसा |
१९८६ | डॉ० सत्यदेव त्रिवेदी | प्राचीन भारत में गुप्तचर सेवा |
? | विजयेन्द्र स्नातक | ? |
२००० | विद्यानिवास मिश्र | बसन्त आ गया पर कोई उत्कण्ठा नहीं |
२००६ | मैत्रेयी पुष्पा | कस्तूरी कुंडल बसै ( आत्मकथा) |
२००७ | किसी को नहीं । | २००७ से यह पारितोषिक बन्द है। |
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अ आ राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन, लक्ष्मीनारायण सिंह, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण-१९८२, पृष्ठ-७५.
- ↑ शिवपूजन रचनावली, तीसरा खण्ड, श्री शिवपूजन सहाय, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, द्वितीय संस्करण-२००४, पृष्ठ-३९६.
- ↑ रंग दस्तावेज़ : सौ साल (1850-1950), पृष्ठ ६६
- ↑ राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन, लक्ष्मीनारायण सिंह, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण-१९८२, पृष्ठ-५३,७५,७६.
- ↑ सभापतियों के भाषण, भाग-३ संपादक- डॉ॰ प्रेमनारायण शुक्ल, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण-१९८७, पृष्ठ-३७७.
- ↑ आस्तिकवाद
- ↑ हिंदी विश्वकोश, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, पुनर्मुद्रित संस्करण-२००३, पृष्ठ-२९.
- ↑ सभापतियों के भाषण, भाग-३ संपादक- डॉ॰ प्रेमनारायण शुक्ल, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण-१९८७, पृष्ठ-३८४.
- ↑ अ आ उपनिषद् प्रकाश, सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार, विजयकृष्ण लखनपाल, नयी दिल्ली, अंतिम आवरण पृष्ठ पर लेखक-परिचय में उल्लिखित।
- ↑ "मैथिली शरण गुप्त". मिलनसागर. मूल (एचटीएमएल) से 8 दिसंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जनवरी 2007.
- ↑ सुंदर, श्याम (2003). विद्यानिवास मिश्र (संपा॰). साहित्य अमृत (मासिक पत्रिका) फ़रवरी, वर्ष-8, अंक-7. 4/19 आसफ़अली रोड, नई दिल्ली-110 002, भारत: श्यामसुंदर. पृ॰ 56.
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दिए जाने पर|url= भी दिया जाना चाहिए
(मदद)सीएस1 रखरखाव: स्थान (link) - ↑ महादेवी, दूधनाथ सिंह, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2011, पृष्ठ-315.
- ↑ सुमन, शिवसिंह (1968). अवध श्रीवास्तव, सतीशचंद्र अग्रवाल (संपा॰). नवीन भाषा रत्नाकर. इलाहाबात, भारत: नवीन प्रकाशन मंदिर, 90 बी, महाजनी टोला. पृ॰ 310.
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दिए जाने पर|url= भी दिया जाना चाहिए
(मदद) - ↑ विश्वनाथ त्रिपाठी, व्योमकेश दरवेश (आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का पुण्य स्मरण), राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-2012, पृष्ठ-118.
- ↑ सभापतियों के भाषण, भाग-३ संपादक- डॉ॰ प्रेमनारायण शुक्ल, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण-१९८७, पृष्ठ-३८७.
- ↑ "गांधी और मानवता" (एएसपी) (अंग्रेज़ी में). अटलांटिक पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रिब्यूटर्स. अभिगमन तिथि 3 जनवरी 2007.[मृत कड़ियाँ]
- ↑ यशपाल रचनावली, भाग-१४, समन्वय-संपादन- आनन्द, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम (पेपरबैक) संस्करण-२००७, पृष्ठ-५०६.
- ↑ ज्ञानपीठ पुरस्कार, संपादक- डॉ॰ प्रभाकर श्रोत्रिय, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, संस्करण-2005, पृष्ठ-532 एवं 534.